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संधि किसे कहते हैं? संधि विच्छेद, संधि के भेद, स्वर संधि, व्यंजन संधि, विसर्ग संधि जानिए …

सन्धि शब्द का अर्थ है 'मेल' या जोड़। दो निकटवर्ती वर्णों के परस्पर मेल से जो विकार होता है वह संधि कहलाता है। संस्कृत, हिन्दी एवं अन्य भाषाओं में परस्पर स्वरो या वर्णों के मेल से उत्पन्न विकार को सन्धि कहते हैं। जैसे - सम् + तोष = संतोष; देव + इंद्र = देवेंद्र; भानु + उदय = भानूदय।

संधि के तीन प्रकार या भेद होते हैं। स्वर संधि, व्यंजन संधि, विसर्ग संधि। यदि संधि के पहले शब्द का अंतिम वर्ण स्वर हो तो ‘स्वर संधि’। यदि संधि के पहले शब्द का अंतिम वर्ण व्यंजन हो तो ‘व्यंजन संधि’।

संधि किसे कहते हैं?

जब दो या दो से अधिक वर्ण परस्पर मिलते हैं, तो उनके रूप में विकार उत्पन्न होता है। यही संधि कहलाता है।

दूसरे शब्दो में – दो समीप वर्णों के मेल से जो विकार उत्पन्न होता है उसे संधि कहते हैं।

उदाहरण – (योग + अभ्यास) = योगाभ्यास

कोष्ठक में दिए गए शब्दों में पहले शब्द के अंतिम वर्ण का दूसरे शब्द के प्रथम वर्ण से मेल हुआ है। मेल की इस प्रक्रिया द्वारा जो रूपांतरण हुआ है, उससे एक नया ही शब्द बन गया है, जो संधि का परिणाम है।

संधि के अंतर्गत पहले शब्द की अंतिम ध्वनि और दूसरे शब्द की प्रथम ध्वनि में मेल होकर परिवर्तन घटित होता है।

जैसे – रोहित + आश = रोहिताश,

हित + उपदेश = हितोपदेश

संधि विच्छेद

संधि के नियमों के अनुसार मिले हुए वर्णों को यदि फिर से अलग कर दें, तो उसे संधि विच्छेद कहा जाता है।

जैसे – मतानुसार = मत + अनुसार।

संधि के भेद

संधि 3 प्रकार की होती हैं

1. स्वर संधि
2. व्यंजन संधि
3. विसर्ग संधि

1. स्वर संधि

दो स्वरों के मेल से उत्पन्न विकार अथवा रूप परिवर्तन को स्वर संधि कहते हैं। इसके अंतर्गत पहले शब्द का अंतिम वर्ण तथा दूसरे शब्द का पहला वर्ण स्वर होते हैं और ये परस्पर मिलकर नया रूप धारण कहते हैं।

जैसे – महा + इंद्र = महेंद्र,

लोक + उक्ति = लोकोक्ति।

स्वर संधि के भेद

(क) दीर्घ संधि – यदि अ, इ, उ के पश्चात क्रमशः अ, इ, उ स्वर आये तो दोनों को मिलाकर आ, ई, ऊ हो जाते हैं।

1. स्वार्थी (अ + अ = आ)
2. सत्याग्रह (अ + आ = आ)
3. सीमांत (आ + अ = आ)
4. सीमांत (आ + आ = आ)
5. अतीव (इ + इ = ई)
6. हरीश (इ + ई = ई)
7. महीन्द्र (ई + इ = ई)
8. नारीश्वर (ई + ई = ई)
9. भानूदय (उ + उ = ऊ)
10. लघुर्मि (उ + ऊ = ऊ)
11. भूतसर्ग (ऊ + उ = ऊ)
12. भूर्जा (ऊ + ऊ = ऊ)

(ख) गुण संधि – यदि ‘अ’ या ‘आ’ के बाद इ या ई हो तो दोनों के स्थान पर ए; यदि उ या ऊ हो तो दोनों के स्थान पर ओ और यदि ॠ हो तो अर् हो जाता है। इसे गुण संधि कहते हैं।

1. हर + इंद्र = हरेन्द्र (अ + इ = ए)
2. नर + ईश = नरेश (अ + ई = ए)
3. नाग + इंद्र = नागेन्द्र (आ + इ = ए)
4. राका + ईश = राकेश (आ + ई = ए)
5. पर + उपकार = परोपकार (अ + उ = ओ)
6. महा + उत्सव = महोत्सव (आ + उ = ओ)
7. दया + ऊर्मि = दयोर्मि (आ + ऊ = ओ)
8. ब्रह्म + ऋषि = ब्रह्मर्षि (आ + ऋ = अर्)

(ग) वृद्धि संधि – जब ‘अ’ या ‘आ’ के बाद ए या ऐ हो तो दोनों वर्ण मिलकर ऐ हो जाते हैं तथा ‘अ’ या ‘आ’ के बाद ओ या औ होने पर दोनों वर्ण मिलकर औ हो जाते हैं। इन वर्णों के इस प्रकार के मेल को वृद्धि संधि कहते हैं।

अ + ए = ऐ एक + एक = एकैक

अ + ऐ= ऐ सदा + एव = सदैव

अ + ओ = औ वन + ओधधि = वनौषधि

(घ) यण् संधि – जब ‘इ’ या ‘ई’ के बाद इससे भिन्न कोई स्वर हो तो इ या ई के स्थान पर ऋ हो जाता है। ‘उ’ या ‘ऊ’ के पश्चात् इससे भिन्न कोई स्वर हो तो उ या ड् का व् हो जाता है और ‘ऋ’ के पश्चात् इसके अतिरिक्त कोई अन्य स्वर हो तो ऋ कार हो जाता है; जैसे-

इ या ई + ‘कोई अन्य स्वर’ = य्

अति + अल्प = अत्यल्प

अनु + अय = अन्वय

अति + अधिकं = अत्यधिक

ऋ + ‘कोई अन्य स्वर’ = र्

पितृ + आज्ञा = पित्राज्ञा

मातृ + इच्छा = मात्रिच्छा

उ या ऊ + ‘कोई अन्य स्वर’ = व्

सु + अल्प = स्वल्प

भू + आदि = भ्वादि

पितृ + आदेश = पित्रादेश

उपरि + उक्त = उपर्युक्त

(ण) अयादि संधि – ‘ए’, ‘ऐ’, ‘ओ’ या ‘औ’ के बाद यदि कोई विजातीय स्वर आ जाए तो एका अय्, ऐ का आयु, ओ का अव् और औ का आव् हो जाता है। ऐसी संधि को अयादि संधि कहते हैं।

जैसे –

ए + अ = अय्

ऐ + अ = आय्

ओ + अ = अव्

औ + अ = आव्

ने अन = नयन

भो + अन भवन

पौ + अन = पावन

चे + अन = चयन

गो + अन = गवन

पौ+ अक = पावक

2. व्यंजन संधि

जब पहले शब्द के अंत में कोई व्यंजन होता है और दूसरे शब्द के प्रारंभ में स्वर या व्यंजन कोई भी वर्ण होता है, तो इनके परस्पर मेल को व्यंजन संधि कहते हैं।

जैसे – सत् + आचार = सदाचार।

व्यंजन संधि के नियम

व्यंजन संधि के नियम निम्नलिखित हैं।

पहले वर्गीय वर्ण का तीसरे वर्गीय वर्ण में परिवर्तन किसी वर्ग के पहले वर्ण (क्, च्, ट्, तू, प्) का मेल किसी स्वर या ‘य’, ‘र’, ‘ल’, ‘व’, ‘ह’ में किसी वर्ण’ से होने पर वर्ग का पहला वर्ण अपने ही वर्ग के तीसरे वर्ण (ग्न) इ, द्, बू) में बदल जाता हैं । जैसे-

दिक् + अंत = दिगंत

जगत + अंबा = जगदंबा

उत् + घाटन = उद्घाटन

पहले वर्गीय वर्ण का पाँचवें वर्गीय वर्ण में परिवर्तन यदि किसी वर्ग के पहले वर्ण (क्, च्, टू, तू. प्) का मेल किसी अनुनासिक वर्ण से हो तो उसके स्थान पर उसी वर्ग का पाँचवाँ वर्ण हो जाता है। जैसे-

चित् + मय = चिन्मय

उत् + नयन = उन्नयन

अप् + मय = अन्मय

‘वाक् + मय = वाङ्मय

षट् + मास = षण्मास

जगत नाथ = जगन्नाथ

‘तू’ के संबंध में विशेष नियम

(क) ‘तू’ के बाद क वर्ग, त वर्ग, प वर्ग के तीसरे, चौथे वर्ण (अर्थात् ग, घ, द, ध, ब, भ), य, र, व या कोई स्वर आ जाए तो उसका द हो जाता है ।

जैसे –

तत् + हित = तद्धित

सत + धर्म = सद्धर्म

सत् + गति = सद्गति

तत् + शंकर = तच्छंकर

सत् + शास्त्र = सच्छास्त्र

सत् + आनंद = सदानंद

(ख) यदि ‘तू’ के बाद च या छ हो, तो वह च तथा ज या झ हो तो वह जू में परिवर्तित हो जाता है। इसी प्रकार ‘तू’ बाद ट ट या ढ होने पर तू और ल होने पर लू हो जाता है।

जैसे –

उत् + लास = उल्लास

सत् + छत्र = सच्छत्र

उत् + लेख = उल्लेख

सत् + जन = सज्जन

शरद् + चंद्र = शचंद्र

उत् + डयन = उन

(ग) यदि ‘तू’ के बाद श हो तो ‘तू’ के स्थान पर च और शू हो तो छ हो जाता है।

जैसे-

उत् + शिष्ट = उच्छिष्ट

उत् + श्वास = उच्छ्वास

(घ) ‘तू’ के बाद यदि ‘ह’ हो तो ‘तू’ का दू और ‘ह’ का ध हो जाता है।

जैसे-

उत् + हार = उद्धार

पत + द्धति = पद्धति

उत् + हरण = उद्धरण

‘छ’ के संबंध में विशेष नियम किसी स्वर के बाद यदि ‘छ’ वर्ण आ जाए, तो ‘छ’ से पहले च वर्ण जोड़ दिया जाता है।जैसे –

आ + छादन = आच्छादन

वृक्ष + छाया = वृक्षच्छाया

‘म’ के संबंध में विशेष नियम

(क) यदि ‘म्’ बाद ‘क’ से ‘म’ तक कोई व्यंजन हो तो ‘म’ उसी वर्ग के अंतिम वर्ण (इ, ञ, ण्. न. म्) अथवा अनुस्वार () में बदल जाता है।

जैसे –

सम् + गति = संगति, सङ्गति

परम् + तु = परंतु, परन्तु

सम् + बन्ध = संबंध, सम्बन्ध

सम् + ध्या = संध्या, सन्ध्या

(ख) ‘म’ से पूर्व ‘म्’ का द्वित्व हो जाता है; जैसे

सम्मुख सम्मुख

सम् + मान = सम्मान

सम् + रक्षक = संरक्षक

सम् + योग = संयोग

(ग) यदि ‘म’ के बाद कोई अंत:स्थ व्यंजन (य, र, ल, व) अथवा ऊष्म (श, ष, स, ह) हो, तो म् का अनुस्वार (*) होता है।

जैसे –

सम् + शय = संशय

सम् + योग = संयोग.

सम् + सार = संसार

सम् + हार = संहार

( अपवाद परंतु सम् + राट् = सम्राट में अनुस्वार नहीं होता।)

यदि ‘ऋ’, ‘र’ और ‘ष’ के बाद न हो, परंतु इनके मध्य कोई स्वर या प वर्ग का कोई व्यंजन, अनुस्वार य्, व् ह् में से कोई वर्ण हो तो ‘न’ को ण हो जाता है। जैसे –

ऋ + न = ऋण

तर्प + न = तर्पण

निर् + मान = निर्माण

दर्प + न = दर्पण

प्र + मान = प्रमाण

राम + अयन= रामायण

परि + मान = परिमाण

परंतु च वर्ग, ट वर्ग, त वर्ग, श् और स् आने पर ‘नू’ का ‘ण’ नहीं होता जैसे –

दुर् + जन = दुर्जन

निवर्त + मान = निवर्तमान

यदि ‘स’ से पहले आ या आ से भिन्न कोई स्वर आ जाए, तो ‘स’ का पू हो जाता है; जैसे

नि + सिद्ध = निषिद्ध

(इस नियम के अपवाद वि + स्मरण विस्मरण, अनु + स्वारअनुस्वार, अनुसरणअनुसरण)

3. विसर्ग संधि

1. जब पहले शब्द के अंत में विसर्ग और दूसरे शब्द के प्रारंभ में स्वर या व्यंजन हो, तो उनसे होने वाले मेल को विसर्ग संधि कहते हैं।
जैसे- नमः + कार = नमस्कार,
पुनः + जन्म = पुनर्जन्म

2. विसर्ग का किसी स्वर या व्यंजन से मेल होने पर विसर्ग में जो विकार होता है, उसे ‘विसर्ग संधि’ कहते हैं। विकार की भिन्नता की दृष्टि से विसर्ग संधि के भी निम्न प्रकार होते हैं।

जैसे

3. विसर्ग से पहले यदि ‘अ’ और उसके बाद भी ‘अ’ या किसी वर्ग के तीसरे, चौथे, पाँचवें वर्ण (ग, घ, ङ, ज. झ, ञ, ड, ढ, ण, द, ध, न, ब, भ, म) अथवा य, र, ल, व, श में से कोई वर्ण हो, तो विसर्ग का ‘ओ’ हो जाता है।

जैसे-

मनः अनुकूल = मनोनुकूल

वयः + वृद्ध = वयोवृद्ध

रज: + गुण = रजोगुण

तपः + वन ‌= तपोवन

यशः + दा = यशोदा

सर: + ज = सरोज

मनः + रथ = मनोरथ

4. विसर्ग के बाद यदि ‘तू’ या ‘स’ हो तो विसर्ग का ‘स्’ हो जाता है जैसे

नमः ते = नमस्ते

मनः + ताप = मनस्ताप

तेजः + राशि = तेजोराशि

पयः + धर = पयोधर

तमः + गुण = तमोगुण

5. विसर्ग के पहले कोई स्वर हो और बाद में वर्ग को तीसरा, चौथा और पाँचवाँ वर्ण एवं ‘य, र, ल, व, ह’ हो तो विसर्ग का ‘र्’ हो जाता है। जैसे-

निः + धन = निर्धन

दुः + उपयोग= दुरुपयोग

निः + मल = निर्मल

निः + बल = निर्बल

निः + आस = निराश

4. विसर्ग के पश्चात् यदि श, ष, स हो तो या तो विसर्ग यथावत रहता है या विसर्ग का विकल्प से श्, ष्, स् हो
जाता है।

जैसे*

दु: + शासन = दुश्शासन, दुःशासन

निः + सन्देह = निस्सदेह, निःसन्देह

5. विसर्ग से पहले इ या उ हो और बाद में क, ख, ट, ठ, प, फ हो तो विसर्ग का ‘घू’ हो जाता है; जैसे..

निः + कलंक = निष्कलंक

निः + कंटक = निष्कंटक

निः + फल = निष्फल

निः + प्राण = निष्प्राण

धनु: + टंकार धनुष्टंकार

FAQs

संधि के भेद कितने होते हैं?

संधि के तीन प्रकार या भेद होते हैं। स्वर संधि, व्यंजन संधि, विसर्ग संधि। यदि संधि के पहले शब्द का अंतिम वर्ण स्वर हो तो 'स्वर संधि'।

संधि का मतलब क्या होता है?

समझौते का भाव 2. विशेषतः : देशों के बीच एक संधि । व्युत्पत्ति। मध्य अंग्रेजी संधि "समझौता," प्रारंभिक फ्रांसीसी संधि (समान अर्थ) से, लैटिन पैक्टम (समान अर्थ) से, "सहमत, अनुबंध" से लिया गया

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