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जानिए भाषा क्या है? भाषा की परिभाषा, भेद, अंग, शैली, विकास, उत्पति एवं भाषा की प्रक्रिया

भाषा मुख से उच्चारित होने वाले शब्दों और वाक्यों आदि का वह समूह है जिनके द्वारा मन की बात बतलाई जाती है। किसी भाषा की सभी ध्वनियों के प्रतिनिधि स्वन एक व्यवस्था में मिलकर एक सम्पूर्ण भाषा की अवधारणा बनाते हैं।

भाषा क्या होती है?

“व्यक्त नाद की वह समष्टि जिसकी सहायता से किसी एक समाज या देश के लोग अपने मनोगत भाव तथा विचार एक दूसरे पर प्रकट करते हैं। या मुख से उच्चारित होनेवाले शब्दों और वाक्यों आदि का वह समूह जिनके द्वारा मन की बात बतलाई जाती है, उसे भाषा कहते हैं।”

भाषा वह साधन है, जिसके माध्यम से हम सोचते है और अपने विचारों को व्यक्त करते हैं। मनुष्य अपने विचार, भावनाओं एवं अनुभुतियों को भाषा के माध्यम से ही व्यक्त करता है।

एक भाषा कई लिपियों में लिखी जा सकती है, और दो या अधिक भाषाओं की एक ही लिपि हो सकती है। भाषा संस्कृति का वाहन है और उसका अंग भी। -रामविलास शर्मा

भाषा की परिभाषा

भाषा एक ऐसा साधन है जिसके द्वारा हम अपने विचारों को व्यक्त कर सकते हैं और जिसके लिए हम आवश्यक ध्वनियों का प्रयोग करते हैं।

भाषा का अर्थ

भाषा शब्द संस्कृत के भाष् धातु से बना है जिसका अर्थ है बोलना या कहना अर्थात् भाषा वह है जिसे बोला जाय

भाषा यादृच्छिक वाचिक ध्वनि-संकेतों की वह पद्धति है, जिसके द्वारा मानव परम्परा विचारों का आदान-प्रदान करता है।” – स्पष्ट ही इस कथन में भाषा के लिए चार बातों पर ध्यान दिया गया है-

  1. भाषा एक पद्धति है, यानी एक सुसम्बद्ध और सुव्यवस्थित योजना या संघटन है, जिसमें कर्ता, कर्म, क्रिया, आदि व्यवस्थिति रूप में आ सकते हैं।
  2. भाषा संकेतात्कम है अर्थात् इसमे जो ध्वनियाँ उच्चारित होती हैं, उनका किसी वस्तु या कार्य से सम्बन्ध होता है। ये ध्वनियाँ संकेतात्मक या प्रतीकात्मक होती हैं।
  3. भाषा वाचिक ध्वनि-संकेत है, अर्थात् मनुष्य अपनी वागिन्द्रिय की सहायता से संकेतों का उच्चारण करता है, वे ही भाषा के अंतर्गत आते हैं।
  4. भाषा यादृच्छिक संकेत है। यादृच्छिक से तात्पर्य है – ऐच्छिक, अर्थात् किसी भी विशेष ध्वनि का किसी विशेष अर्थ से मौलिक अथवा दार्शनिक सम्बन्ध नहीं होता।

भाषा में शैली

विकास की प्रक्रिया में भाषा का दायरा भी बढ़ता जाता है। यही नहीं एक समाज में एक जैसी भाषा बोलने वाले व्यक्तियों का बोलने का ढंग, उनकी उच्चारण-प्रक्रिया, शब्द-भंडार, वाक्य-विन्यास आदि अलग-अलग हो जाने से उनकी भाषा में पर्याप्त अन्तर आ जाता है। इसी को भाषा की शैली कह सकते हैं।

भाषा की उत्पत्ति

प्राचीनकाल से भाषा की उत्पत्ति पर विचार होता रहा है। कुछ विद्वानों का मंतव्य है कि यह विषय भाषा-विज्ञान का है ही नहीं। इस तथ्य की पुष्टि में उनका कहना है कि विषय मात्र संभावनाओं पर आधारित है।

भाषा के वैज्ञानिक अध्ययन को भाषा-विज्ञान कहते हैं। यदि भाषा का विकास और उसके प्रारंभिक रूप का अध्ययन भाषा-विज्ञान का विषय है, तो भाषा-उत्पत्ति भी निश्चय ही भाषा-विज्ञान का विषय है। भाषा-उत्पत्ति का विषय अत्यंत विवादास्पद है।

भाषा का विकास

इस समय सारे संसार में प्रायः हजारों प्रकार की भाषाएँ बोली जाती हैं जो साधारणतः अपने भाषियों को छोड़ और लोगों की समझ में नहीं आतीं। अपने समाज या देश की भाषा तो लोग बचपन से ही अभ्यस्त होने के कारण अच्छी तरह जानते हैं, पर दूसरे देशों या समाजों की भाषा अच्छी़ तरह नहीं आती।

भाषाविज्ञान के ज्ञाताओं ने भाषाओं के आर्य, सेमेटिक, हेमेटिक आदि कई वर्ग स्थापित करके उनमें से प्रत्येक की अलग अलग शाखाएँ स्थापित की हैं और उन शाखाकों के भी अनेक वर्ग उपवर्ग बनाकर उनमें बड़ी बड़ी भाषाओं और उनके प्रांतीय भेदों, उपभाषाओं अथाव बोलियों को रखा है।

भाषा के प्रकार (भेद)

भाषा बोलने, लिखने और समझने की आधार पर तीन प्रकार की होती हैं, अर्थात भाषा के तीन प्रकार के भेद या रूप होते हैं- मौखिक, लिखित और सांकेतिक भाषा।

  1. मौखिक भाषा
  2. लिखित भाषा
  3. सांकेतिक भाषा

मौखिक भाषा

भाषा के जिस रूप से हम अपने विचार एवं भाव बोलकर प्रकट करते हैं अथवा दूसरों के विचार अथवा भाव सुनकर ग्रहण करते हैं, उसे मौखिक भाषा कहते हैं। उदाहरण के लिए- जब हम किसी से फोन पर बात करते हैं तो भाषा के मौखिक रूप का प्रयोग करते हैं।

लिखित भाषा

जब हम मन के भावों तथा विचारों को लिखकर प्रकट करते हैं, तो वह भाषा का लिखित रूप कहलाता है। लिखित भाषा के उदाहरण निम्न है- पत्र, लेख, समाचार पत्र, कहानी, जीवनी संस्मरण, तार इत्यादि।

भाषा का लिखित रूप सीखने के लिए विशेष अध्ययन की आवश्यकता होती है। किसी भी भाषा को लिखने के लिए उसके वर्णों, शब्दों, वाक्यों अर्थात व्याकरण का सम्पूर्ण ज्ञान होना जरूरी है।

सांकेतिक भाषा

संकेत भाषा या सांकेतिक भाषा एक ऐसी भाषा है, जिसको हम विभिन्न प्रकार के दृश्य संकेतों (जैसे हस्तचालित संकेत, अंग-संकेत) के माध्यम से व्यक्त करतें हैं। इसमें बोलनें वाले के विचारों को धाराप्रवाह रूप से व्यक्त करने के लिए, हाथ के आकार, विन्यास और संचालन, बांहों या शरीर तथा चेहरे के हाव-भावों का एक साथ उपयोग किया जाता है।

भाषा के अंग

भाषा के मुख्य पाँच अंग होते हैं, जो कि इस प्रकार हैं- ध्वनिवर्णशब्दवाक्य और लिपि। सभी भाषा के अंगों का विवरण निम्नलिखित है-

  1. ध्वनि– हमारे मुख से निकलने प्रत्येक स्वतंत्र आवाज ध्वनि होती है। और ये ध्वनियाँ हमेशा मौखिक भाषा में प्रयोग होतीं हैं।
  2. वर्ण– वह मूल ध्वनि जिसके और टुकड़े ना किये जा सके, वह वर्ण कहलाते हैं। जैसे- अ, क्, भ्, म्, त् आदि।
  3. शब्द– वर्णों का वह समूह जिसका कोई अर्थ निकलता है, उसे शब्द कहते हैं। जैसे- क् + अ + म् + अ +ल् + अ = कमल, भ् + आ + ष् + आ = भाषा।
  4. वाक्य– सार्थक शब्दों का वह समूह जिसका कोई अर्थ निकलता है, उसे वाक्य कहते हैं। जैसे- कमल हिन्दी भाषा पढ़ रहा है। यदि हम इस वाक्य को “हिन्दी है रहा कमल पढ़ भाषा” लिख दे दो इसका कोई अर्थ नहीं निकलता, तो हम इसे वाक्य नहीं कह सकते।
  5. लिपि– मौखिक भाषा को लिखित रूप में व्यक्त करने के लिए जिन चिन्हों का प्रयोग किया जाता है, उन्हें लिपि कहते हैं। जैसे- हिन्दी भाषा की “देवनागरी लिपि” है।

भाषा की प्रक्रिया

जैसा कि हम सभी जानते है कि भाषा एक सम्प्रेषण (Communication) का माध्यम है। इस प्रकार भाषा की प्रक्रिया के पाँच चरण क्रमवार निम्न है- सुनना, देखना, बोलना, पढ़ना और लिखना।

सुनना (Listening)

जब कोई व्यक्ति हमसे कुछ कहता है तो उसे सुनना भी पड़ता है, बिना सुने भाषा का कोई महत्व नहीं है। उदाहरण के लिए- शिक्षक कहें कि ‘कल आपको जो प्रश्न दिए हैं उनके उत्तर लिखकर लाने हैं’, और शिक्षार्थी उसे सुने ही ना, अनसुना कर दे; तो वह उस कार्य को समय पर नहीं कर सकता। अतः कह सकते हैं भाषा को प्रभावी बनाने के लिए सुनने की प्रक्रिया बहुत महत्वपूर्ण है।

देखना (Seeing)

संचार या सम्प्रेषण में जिस प्रकार सुनने की प्रक्रिया एक आवश्यक हैं उसी प्रकार देखना भी। उदाहरण के लिए- शिक्षक शिक्षार्थियों को कोई गणित के प्रश्न का हल (answer) बोर्ड पर समझा रहा हैं, तो शिक्षार्थियों को चाहिए कि वे अपनी नजर बोर्ड पर ही रखें, क्यूंकि गणित के प्रश्न के उत्तरों में एक प्रक्रिया होती है जिसे देख कर ही समझा जा सकता है, सुनकर नहीं, या फिर दोनों देख और सुनकर “श्रव्य-द्रश्य”।

बोलना (Speaking)

भाषा के प्रभावशाली संचार या सम्प्रेषण के लिये शुद्ध बोलना अति आवश्यक है। बोलना वाक-शक्ति द्वारा ध्वनियों को जोड़कर बने एक विस्तृत शब्दकोश के शब्दों का प्रयोग कर के करी गई सम्प्रेषण की क्रिया को कहते हैं। बोलनें के लिए व्याकरण का ज्ञान आवश्यक नहीं। परंतु भाषा के प्रभावी सम्प्रेषण के लिये व्याकरण का ज्ञान होना चाहिए।

पढ़ना (Reading)

पढ़ना, भाषा की एक जटिल प्रक्रिया है। किसी भाषा को पढ़ने के लिए उस भाषा के वर्णों, शब्दों, वाक्यों अर्थात सभी व्याकरण अंगों का ज्ञान होना अति आवश्यक हैं। व्याकरण वह ज्ञान है जो हमें भाषा को शुद्ध रूप से बोलना, लिखना व पढ़ना सीखाता है।

लिखना (Writing)

लिखना, भाषा की एक अति जटिल प्रक्रिया है।  किसी भाषा को लिखने के लिए उस भाषा के वर्णों, शब्दों, वाक्यों अर्थात सभी व्याकरण अंगों का ज्ञान होना अति आवश्यक हैं। अतः व्याकरण वह ज्ञान है जो हमें भाषा को शुद्ध रूप से बोलना, लिखना व पढ़ना सीखाता है।

बोली, विभाषा और भाषा

यों बोली, विभाषा और भाषा का मौलिक अन्तर बता पाना कठिन है, क्योंकि इसमें मुख्यतया अन्तर व्यवहार-क्षेत्र के विस्तार पर निर्भर है। वैयक्तिक विविधता के चलते एक समाज में चलने वाली एक ही भाषा के कई रूप दिखाई देते हैं। मुख्य रूप से भाषा के इन रूपों को हम इस प्रकार देखते हैं-

  1. बोली,
  2. विभाषा, और
  3. भाषा (अर्थात् परिनिष्ठित या आदर्श भाषा)

बोली

यह भाषा की छोटी इकाई है। इसका सम्बन्ध ग्राम या मण्डल अर्थात सीमित क्षेत्र से होता है। इसमें प्रधानता व्यक्तिगत बोलचाल के माध्यम की रहती है और देशज शब्दों तथा घरेलू शब्दावली का बाहुल्य होता है। यह मुख्य रूप से बोलचाल की भाषा है, इसका रूप (लहजा) कुछ-कुछ दूरी पर बदलते पाया जाता है तथा लिपिबद्ध न होने के कारण इसमें साहित्यिक रचनाओं का अभाव रहता है। व्याकरणिक दृष्टि से भी इसमें विसंगतियॉं पायी जाती है।

विभाषा

विभाषा का क्षेत्र बोली की अपेक्षा विस्तृत होता है यह एक प्रान्त या उपप्रान्त में प्रचलित होती है। एक विभाषा में स्थानीय भेदों के आधार पर कई बोलियाँ प्रचलित रहती हैं। विभाषा में साहित्यिक रचनाएं मिल सकती हैं। विभाषा को उपभाषा भी कहते हैं। जैसे- ब्रज और अवध।

भाषा

भाषा, अथवा कहें परिनिष्ठित भाषा या आदर्श भाषा, विभाषा की विकसित स्थिति हैं। इसे राष्ट्र-भाषा या टकसाली-भाषा भी कहा जाता है। भाषा का क्षेत्र व्यापक होता है। जैसे- हिन्दी, अंग्रेजी।

बोली और भाषा में अन्तर

  1. बोली का क्षेत्र कुछ जिलों या ग्रामों तक सीमित होता है, जबकि भाषा का क्षेत्र व्यापक होता है।
  2. बोली क्षेत्र विशेष में बोली जाती है अतः विकसित नहीं होती, जबकि भाषा बोली का पूर्ण विकसित रूप होता है।
  3. बोली में साहित्य लेखन क्षेत्रीय होता है, जबकि भाषा में साहित्य की प्रचुरता होती है।
  4. बोली का प्रयोग राजकार्यों में नहीं होता है, जबकि भाषा का प्रयोग राजकार्य में भी होता है।
  5. बोली का व्याकरण सीमित या नहीं होता है, जबकि भाषा का व्याकरण सुव्यवस्थित एवं पूर्ण होता है।
  6. बोलियों में जैसे- कन्नौजी, कुमाउनी, मेवाती आदि। भाषाओं में जैसे- हिन्दी, अंग्रेजी।

भाषा और विभाषा में अंतर

  1. भाषा का क्षेत्र व्यापक होता है। जबकि विभाषा का क्षेत्र सीमित होता है।
  2. भाषा बोली का पूर्ण विकसित रूप होता है। जबकि विभाषा बोली का अर्ध विकसित रूप होता है।
  3. भाषा साहित्य की प्रचुरता तथा महत्ता होती है। जबकि विभाषा में साहित्य तो रहता है परंतु उसे महत्ता प्राप्त नहीं हो पाती है।
  4. भाषा का प्रयोग राजकार्य में भी होता है। जबकि विभाषा केवल साहित्य तथा बोलचाल तक ही सीमित होती है।
  5. भाषाओं में जैसे- हिन्दी, अंग्रेजी। और विभाषाओं में जैसे- ब्रज और अवध।

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