अविकारी शब्द किसे कहते हैं?
अधिकारी का अर्थ – परिवर्तन न होना। जो शब्द लिंग, वचन, कारक, पुरूष और काल के कारण नहीं बदलते, वे अव्यय या अविकारी शब्द कहलाते हैं.
अविकारी शब्द परिभाषा
अविकारी शब्द वे होते हैं जिसमें लिंग, वचन, पुरुष, काल आदि की दृष्टि से कोई रूप परिवर्तन नहीं होता।
अविकारी शब्द के प्रकार
अविकारी शब्द मुख्यतः 5 प्रकार के है।
- क्रियाविशेषण
- समुच्चयबोधक
- संबंधबोधक
- विस्मयादिबोधक
1. क्रियाविशेषण
क्रिया की विशेषता का बोध कराने वाले शब्दों को क्रियाविशेषण कहा जाता है।
जैसे-
- घोड़ा तेज दौड़ता है।
- कछुआ धीरे धीरे चलता है।
- राम प्रतिदिन साइकिल चलाता है।
इन वाक्यों में ‘तेज’, ‘धीरे-धीरे’, ‘प्रतिदिन’ शब्द क्रिया को विशेषता प्रकट कर रहे हैं; अतः ये शब्द क्रियाविशेषण’ हैं।
क्रियाविशेषण के भेद
क्रियाविशेषण के मुख्यतः 4 भेद होते हैं —
- रीतिवाचक क्रियाविशेषण
- स्थानवाचक क्रियाविशेषण
- कालवाचक क्रियाविशेषण
- परिमाणवाचक क्रियाविशेषण
A. रीतिवाचक क्रिया विशेषण
ऐसे शब्द, जो क्रिया की ऐति या ढंग का बोध कराते है, रोतिवाचक क्रियाविशेषण कहलाते हैं।
जैसे-
- वह अचानक हँस पड़ा।
- शादी के बाद रवि बदल गया।
- तेज चलो, ट्रेन चली जाएगी।
- बारिश जल्दी होगी।
उपर्युक्त वाक्यों में ‘अचानक’, ‘बदल’, ‘तेज’ और ‘जल्दी’ शब्द क्रिया के ढंग का बोध करा रहे हैं, अतः ये शब्द ‘रीतिवाचक क्रियाविशेषण हैं।
B. स्थानवाचक क्रियाविशेषण
जो शब्द क्रिया होने के स्थान का बोध कराते हैं, वे स्थानवाचक क्रियाविशेषण कहलाते हैं।
जैसे –
- विजय अलग खड़ा है।
- आइस क्रोम वाला घर के सामने खड़ा है।
- यहाँ बहुत प्रकाश है।
- पीछे मत देखो।
उपर्युक्त वाक्यों में अलग’, ‘सामने’, ‘वहाँ’ और ‘पीछे’ शब्द क्रिया के स्थान का बोध करा रहे हैं, अत: ये स्थानवाचक क्रियाविशेषण’ है।
C. कालवाचक क्रियाविशेषण
जो शब्द क्रिया होने के काल (समय) का बोध कराते हैं, उन्हें कालवाचक क्रियाविशेषण कहते हैं।
जैसे-
- यह काम शीघ्र करना है।
- मैं कल देहरादून जाऊँगा।
- तुम निरंतर परिश्रम करते रहो।
- रवि आज हमारे घर आएगा।
उपर्युक्त वाक्यों में शीघ्र’, ‘काल’, ‘निरंतर’ और ‘आज’ शब्द क्रिया के होने के समय का बोध करा रहे
शब्द ‘कालवाचक क्रियाविशेषण’ है।
D. परिमाणवाचक क्रियाविशेषण
जो शब्द क्रियाविशेषण के परिमाण का बोध कराएँ, उन्हें परिमाणवाचक क्रियाविशेषण कहते हैं।
जैसे-
- तुम बहुत खाते हो।
- यह कम तोल रहा है।
- राम को हल्का बुखार है।
- नौकर अधिक काम करता है।
उपर्युक्त वाक्यों में बहुत कम, हल्का और अधिक शब्द क्रिया के परिमाण का बोध करा रहे हैं, अतः ये शब्द
‘परिमाणवाचक क्रियाविशेषण हैं।
विशेषण और क्रियाविशेषण में अंतर
विशेषण | क्रियाविशेषण |
---|---|
1. विशेषण शब्द संज्ञा और सर्वनाम की विशेषता प्रकट करते हैं। | 1. क्रियाविशेषण शब्द क्रिया की विशेषता प्रकट करते हैं। |
2. विशेषण शब्दों का लिंग, वचन और कारक को दृष्टि से परिवर्तित हो जाता है। | 2. क्रियाविशेषण शब्दों का रूप परिवर्तित नहीं होता है। |
3. विशेषण शब्द संज्ञा या सर्वनाम से पहले लगते है। | 3. क्रियाविशेषण शब्द क्रिया से पहले लगते हैं। |
2. संबंधबोधक
संबंधबोधक भी एक अविकारी शब्द है। संबंधबोधक का अर्थ है – परस्पर संबंध का बोध कराने वाला
जैसे—
- मोहन, राम जी के साथ दिल्ली गया था।
- तुम बस के अंदर जाओ।
- दवा के बिना आराम नहीं मिलता।
- एक के बाद दो आता है।
उपर्युक्त वाक्यो में ‘के साथ’, ‘के अंदर’, ‘के बिना’, ‘के बाद’ शब्द संबंधबोधक हैं, क्योंकि ये संज्ञा या सर्वनाम का संबंध वाक्य के अन्य शब्दों के साथ बता रहे हैं।
संबंधबोधक की परिभाषा
जो शब्द संज्ञा या सर्वनाम का संबंध वाक्य के अन्य शब्दों के साथ बताते हैं, वे संबंधबोधक कहलाते हैं।
संबंधबोधक के प्रकार
अर्थ की दृष्टि से संबंधबोधक शब्दों के निम्नलिखित प्रमुख रूप होते हैं
- स्थानवाचक – के पीछे, के आगे, के नीचे के ऊपर के निकट, के भीतर के बाहर आदि।
- कालवाचक – के पहले के पश्चात के बाद, के उपरांत के मध्य आदि।
- दिशावाचक – की तरफ, के चारों ओर, के सामने, के आस-पास के निकट आदि।
- साधनवाचक – के हाथ, के सहारे, के द्वारा, से निर्मित आदि
- संगसूचक – के साथ, के संग, के समेत के सहित आदि।
- विरोधसूचक – के प्रतिकूल के विपरीत, के विरुद्ध, के खिलाफ आदि
- समतावाचक – की तरह, के समान, के अनुसार, के तुल्य के बराबर आदि।
- हेतुसूचक – के रहित, के सिवा के अलावा, के बिना आदि।
संबंधबोधक अव्यय के भेद
संबंधबोधक अव्यय के दो भेद है-
- सामान्य संबंधबोधक
- विभक्तियुक्त संबंधबोधक
1. सामान्य संबंधबोधक – जो संबंधबोधक विभक्ति रहित होते हैं, वे सामान्य संबंधबोधक कहलाते हैं
जैसे-
- राम भरोसे दिल्ली पहुँच ही जाऊँगा।
- वह वर्षों तक बेरोजगार रहा।
2. विभक्तियुक्त संबंधबोधक- जो संबंधबोधक विभक्ति के साथ प्रयोग में होते हैं वे विभक्तियुक्त संबंधबोधक कहलाते हैं
जैसे –
- मेरी दुकान के सामने एक बैंक है।
- पेड़ के नीचे कोई बैठा है।
संबंधबोधक और क्रियाविशेषण में अंतर
संबंधबोधक | क्रियाविशेषण |
---|---|
1. संबंधबोधक संज्ञा या सर्वनाम का संबंध वाक्य के अन्य शब्दों से करवाते हैं। | 1. क्रियाविशेषण क्रिया की विशेषता बताते हैं |
2. संबंधबोधक शब्दों के पहले विभक्ति-चिह्न लगते हैं। | 2. क्रियाविशेषणों के साथ विभक्ति-चिह्न नहीं लगते हैं। |
3. समुच्चयबोधक
समुच्चयबोधक भी एक अविकारी शब्द है। समुच्चयबोधक को योजक भी कहा जाता है। योजक का अर्थ होता है “जोड़ने वाला”, अर्थात समुच्चयबोधक शब्दों, वाक्यों या वाक्यांशों को आपस में जोड़ता है।
उदाहरण देखिए-
- मुझे कुर्सी और मेज दोनों चाहिएँ।
- कोशिश बहुत की परन्तु बचा नहीं।
- विश्वास बिना काम नहीं चलता।
- सच तो सामने आता है।
उपर्युक्त वाक्यों में ‘और’, ‘परतु’, ‘बिना’ तथा ‘तो’ शब्द समुच्चयबोधक है, क्योंकि इनसे दो शब्दों या वाक्यांशों
को आपस में जोड़ा गया है।
समुच्चयबोधक की परिभाषा
वे शब्द, जो शब्दों, वाक्यों या वाक्यांशों को आपस में जोड़ते हैं, वे समुच्चयबोधक शब्द कहलाते हैं।
विभिन्न रूपों में समुच्चयबोधक शब्द।
1. दो समान शब्दों को आपस में जोड़ने वाले – और, एवं, तथा, जो कि, अर्थात
उदाहरण-
- पिताजी और माताजी कल जाएँगे।
- राम, रवि तथा रोहित बाजार गए हैं।
2. शब्दों में विभाजन करने वाले – या, अथवा, वा, चाहे।
उदाहरण-
- एक निबन्ध या जीवनी लिखो।
- सच बोल रहे हो अथवा झूठ, कल पता चला जाएगा।
3. विरोध कराने वाले – फिर भी, परंतु, किंतु, लेकिन, पर, बल्कि, अपितु
उदाहरण-
- अभिषेक ने पूर्ण प्रयास किया परंतु सफल न हो सका।।
- मैं बोल नहीं सकता फिर भी कोशिश करूंगा।
4. परिणामदर्शक – नहीं तो, अतः, अन्यथा, ताकि, इसलिए।
उदाहरण-
- राम व्यायाम करता है इसलिए स्वस्थ है।
- तुम कठिन परिश्रम करो, नहीं तो फेल हो जाओगे।
5. संकेतबोधक – तो, यदि, चाहे, यद्यपि, भी, तथापि
उदाहरण-
- यदि आलस्य किया तो पीछे रह जाओगे।
- अनिल और सुनील भी मेरे भाई समान हैं।
6. अर्थ स्पष्ट कराने वाले – अर्थात, यानी, मानो, यहाँ तक कि
उदाहरण-
- तुमने भी उसको देखा था यानी रवि सच बोल रहा था।
- मैंने उसे बहुत समझाया यहाँ तक कि किराया भी दिया।
उद्देश्यबोधक शब्द – कि, ताकि, जिससे कि ।
- नौकर से कहो कि मेरे लिए चाय बनाए।
- रात को जल्दी सोना ताकि सुबह जल्दी उठो
4. विस्मयादिबोधक
विस्मयादिबोधक भी अविकारी शब्द ही हैं। विस्मय का अर्थ होता है – अचानक ये शब्द मन में अचानक आए के लिए प्रयोग किए जाते हैं। इन शब्दों के आगे विस्मयादिबोधक-चिह्न (!)लगाया जाता है।
उदाहरण देखिए –
- शाबाश! ऐसे ही तरक्की करते रहना।
- ओह! अभी घर से निकला ही था कि बेचारा मारा गया।
- बहुत अच्छे ! तुम तो बड़े मतलबी निकले।
- दुर! बेशर्मी को भी हद होती है, हट जाओ मेरे सामने से।
इन वाक्यों में ‘शाबाश’, ‘ओह’, ‘बहुत अच्छे’ और ‘दुर’ शब्दों के द्वारा मन के भिन्न-भिन्न भाव प्रकट हुए हैं। ऐसे शब्दों को विस्मयादिबोधक शब्द कहते हैं।
विस्मयादिबोधक की परिभाषा
जो शब्द आश्चर्य (विस्मय), शोक, घृणा, प्रशंसा, प्रसन्नता, भय आदि भावों का बोध कराते हैं, उन्हें विस्मयादिबोधक शब्द कहते हैं।
विस्मयादिबोधक शब्दों के उदाहरण
- विस्मय (आश्चर्य) बोधक – क्या, अरे, अहो, है, सच, ओहो आदि।
- शोकबोधक – ओह, उफ, आह, हाय, हे राम राम राम आदि।
- हर्षबोधक – वाह, धन्य, अहा आदि।
- प्रशंसाबोधक – शाबाश, वाह, अति सुंदर आदि।
- क्रोधबोधक – अरे, चुप, सुन आदि।
- भयबोधक – हाय, बाप रे आदि।
- चेतावनीबोधक – खबरदार, बचो, सावधान, होशियार आदि।।
- घृणाबोधक – छिः छिः, धिक्कार, उफ, धत आदि।
- इच्छाबोधक – काश, ईश्वर करे आदि।
- संबोधनबोधक – अजी, हे, अरे, सुनते हो, हाँ जो आदि।
- अनुमोदनबोधक – अच्छा, हाँ, हाँ हाँ, ठीक आदि।
- आशीर्वादबोधक – शाबाश, जीते रहो, सदा सुखी रहो आदि।।
विस्मयादिबोधक शब्द वाक्य के अंग नहीं होते, इनका कार्य केवल विशेष भाव को प्रकट करना होता है।