लोकोक्तियाँ किसे कहते हैं?
अर्थ को पूरी तरह स्पष्ट करने वाला वाक्य लोकोक्ति कहलाता है। लोकोक्ति को कहावतें भी कहते हैं। कहावतें कही हुई बातों के समर्थन में होती है। महापुरुषों, कवियों व संतों के कहे हुए ऐसे कथन जो स्वतंत्र और आम बोलचाल की भाषा में कहे गए हैं जिसमें उनका भाव निहित होता है तो ये लोकोक्तियाँ कहलाती है। प्रत्येक लोकोक्ति के पीछे कोई न कोई घटना व कहानी होती है।
मुहावरे और लोकोक्ति में अंतर
मुहावरा पूर्णतः स्वतंत्र नहीं होता है, अकेले मुहावरे से वाक्य पूरा नहीं होता है। लोकोक्ति पूरे वाक्य का निर्माण करने में समर्थ होती है। मुहावरा भाषा में चमत्कार उत्पन्न करता है जबकि लोकोक्ति उसमें स्थिरता लाती है। मुहावरा छोटा होता है जबकि लोकोक्ति बड़ी और भावपूर्ण होती है।
लोकोक्ति की परिभाषाएँ
डॉ. भोलानाथ तिवारी के अनुसार, “विभिन्न प्रकार के अनुभवों, पौराणिक तथा ऐतिहासिक व्यक्तियों एवं कथाओं, प्राकृतिक नियमों एवं लोक विश्वास आदि पर आधारित चुटीला, सरगर्भित, सजीव, संक्षिप्त लोक प्रचलित ऐसी उक्तियों को लोकोक्ति कहते हैं जिनका प्रयोग बात की पुष्टि या विरोध, सीख तथा भविष्य कथन आदि के लिए किया जाता है।”
लोकोक्ति की विशेषताएं
- समाज का सही मार्गदर्शन दिखाने के लिए।
- धार्मिक एवं नैतिक उपदेश रूपी प्रवृत्ति।
- हास्य और मनोरंजन में प्रयोग।
- सर्वव्यापी एवं सर्वग्राही ( लोकोक्तियों के अर्थ प्रत्येक समाज में एक से रहते हैं।)
- प्राचीन परंपरा से चलती आ रही है।
- जीवन के हर पहलू को स्पर्श करती है।
- अनुभव पर आधारित एवं जीवनोपयोगी बातों के बारे में सुझाव देती है।
- सरल एवं समास शैली( इसमें गहरी से गहरी बात को सूक्ष्म से सूक्ष्म शब्दों में कह दिया जाता है।
- लोकोक्ति के माध्यम से किसी जटिल बात को भी सरल और सहज अंदाज में कहा जा सकता है।
- लोकोक्तियाँ जीवन में मार्गदर्शक का कार्य करती हैं क्योंकि प्राचीन समय में लोगों ने अपने जीवन के अनुभवों के आधार पर लोकोक्तियों को बनाया था।
कुछ महत्वपूर्ण लोकोक्तियाँ एवं कहावतें
- बाँझ का जाने प्रसव की पीड़ा
अर्थः पीड़ा को सहकर ही समझा जा सकता है। - बाड़ ही जब खेत को खाए तो रखवाली कौन करे
अर्थः रक्षक का भक्षक हो जाना। - बाप भला न भइया, सब से भला रूपइया
अर्थः धन ही सबसे बड़ा होता है। - बाप न मारे मेढकी, बेटा तीरंदाज़
अर्थः छोटे का बड़े से बढ़ जाना। - बाप से बैर, पूत से सगाई
अर्थः पिता से दुश्मनी और पुत्र से लगाव। - बारह गाँव का चौधरी अस्सी गाँव का राव, अपने काम न आवे तो ऐसी-तैसी में जाव
अर्थः बड़ा होकर यदि किसी के काम न आए, तो बड़प्पन व्यर्थ है। - बारह बरस पीछे घूरे के भी दिन फिरते हैं
अर्थः एक न एक दिन अच्छे दिन आ ही जाते हैं। - बासी कढ़ी में उबाल नहीं आता
अर्थः काम करने के लिए शक्ति का होना आवश्यक होता है। - बासी बचे न कुत्ता खाय
अर्थः जरूरत के अनुसार ही सामान बनाना। - बिंध गया सो मोती, रह गया सो सीप
अर्थः जो वस्तु काम आ जाए वही अच्छी। - बिच्छू का मंतर न जाने, साँप के बिल में हाथ डाले
अर्थः मूर्खतापूर्ण कार्य करना। - बिना रोए तो माँ भी दूध नहीं पिलाती
अर्थः बिना यत्न किए कुछ भी नहीं मिलता। - बिल्ली और दूध की रखवाली?
अर्थः भक्षक रक्षक नहीं हो सकता। - बिल्ली के सपने में चूहा
अर्थः जरूरतमंद को सपने में भी जरूरत की ही वस्तु दिखाई देती है। - बिल्ली गई चूहों की बन आयी
अर्थः डर खत्म होते ही मौज मनाना। - बीमार की रात पहाड़ बराबर
अर्थः खराब समय मुश्किल से कटता है। - बुड्ढी घोड़ी लाल लगाम
अर्थः वय के हिसाब से ही काम करना चाहिए। - बुढ़ापे में मिट्टी खराब
अर्थः बुढ़ापे में इज्जत में बट्टा लगना। - बुढि़या मरी तो आगरा तो देखा
अर्थः प्रत्येक घटना के दो पहलू होते हैं – अच्छा और बुरा। - लिखे ईसा पढ़े मूसा
अर्थः गंदी लिखावट।
अ से शुरू होने वाली लोकोक्तियाँ
- अंडा सिखावे बच्चे को कि चीं-चीं मत कर : जब कोई छोटा बड़े को उपदेश दे।
उदा-मोहन का छोटा भाई मोहन के द्वारा प्रश्न गलत हल करने पर उसका छोटा भाई उसे सिखाने लगता है तो मोहन उससे कहता है अंडा सिखावे बच्चे को कि चीं चीं मत कर। - अन्त भले का भला : जो भले काम करता है, अन्त में उसे सुख मिलता है।
उदा-रामलाल ने अपनी पुत्री को पढ़ा लिखा कर बड़ा किया अब वृद्ध अवस्था में उसकी पुत्री ने उसकी देखभाल की इसे कहते हैं अंत भले का भला। - अंधा क्या चाहे, दो आंखे : आवश्यक या अभीष्ट वस्तु अचानक या अनायास मिल जाती है, तब ऐसा कहते हैं।
उदा- मैं पिकनिक जाने का सोच ही रही थी कि मैंने कहा चलो कल पिकनिक चलते हैं यह तो वही हुआ अंधा क्या चाहे दो आंखें। - अंधा बांटे रेवड़ी फिर-फिर अपने को ही देः अधिकार पाने पर स्वार्थी मनुष्य अपने ही लोगों और इष्ट-मित्रों को ही लाभ पहुंचाते हैं।
उदा- छात्र चुनाव में राहुल ने जीतने के बाद अपने ही दोस्तों को अन्य पदों पर नियुक्त कर दिया यह तो वही बात हुई अंधा बांटे रेवड़ी फिर-फिर अपने को ही दे। - अंधा सिपाही कानी घोड़ी, विधि ने खूब मिलाई जोड़ी: जहां दो व्यक्ति हों और दोनों ही एक समान मूर्ख, दुष्ट या अवगुणी हों वहां ऐसा कहते हैं।
उदा- राम और श्याम दोनों अनपढ़ है फिर भी उन्होंने विद्यालय खोल लिया शिक्षक की भर्ती लेनी थी लेकिन दोनों अनपढ़। यह तो वही बात हुई अंदर सिपाही का निगोड़ी भी - अंधी पीसे, कुत्ते खायें : मूर्खों को कमाई व्यर्थ नष्ट होती है।
उदा- राम ने उसकी मां के ना रहने पर बड़ी मुश्किल से खाना बनाया परंतु उसका पड़ोसी आकर सारा खाना खा गया यह तो वही बात हुई अंधी पीसे कुत्ता खाए। - अंधे के आगे रोवे, अपना दीदा खोवे : मूर्खों को सदुपदेश देना या उनके लिए शुभ कार्य करना व्यर्थ है।
उदा- अध्यापक विद्यालय में भाषण दे रहे थे और छात्र अपनी बातों में मस्त है वह भाषा में कोई रुचि नहीं ले रहे थे बस शोर मचाते जा रहे थे इसे कहते हैं अंधे के आगे रोवे, अपना दीदा खोवे। - अंधे को अंधेरे में बहुत दूर की सूझी : जब कोई मूर्ख मनुष्य बुद्धिमानी की बात कहता है तब ऐसा कहते हैं।
उदा- रोहित हमेशा शरारत की ही बातें करता रहता है लेकिन आज उसने अध्यापक से पढ़ाई के विषय में पूछा तो अध्यापक ने उससे कहा अंधे को अंधेरे में बहुत दूर की सूझी। - अंधेर नगरी चौपट राजा, टका सेर भाजी टका सेर खाजा: जहां मालिक मूर्ख होता है, वहां गुण का आदर नहीं होता।
उदा- एक कंपनी का मालिक मूर्ख था तथा वहां के कर्मचारी गुणवान लेकिन फिर भी उनके गुणों का आदर नहीं होता था। इसे कहते हैं अंधेर नगरी चौपट राजा, टका सेर भाजी टका सेर खाजा - अंधों में काना राजा : मूर्खों या अज्ञानियों में अल्पज्ञ लोगों का भी बहुत आदर होता है।
उदा- टेस्ट नहीं जहां सभी के जीरो नंबर आए वहां राम दो नंबर से प्रथम आ गया। इसे कहते हैं अंधों में काना राजा। - अपनी-अपनी डफली, अपना-अपना राग : कोई काम नियम-कायदे से न करना
- अपनी पगड़ी अपने हाथ : अपनी इज्जत अपने हाथ होती है।
- अमानत में खयानत : किसी के पास अमानत के रूप में रखी कोई वस्तु खर्च कर देना
- अस्सी की आमद, चौरासी खर्च : आमदनी से अधिक खर्च
- अति सर्वत्र वर्जयेत् : किसी भी काम में हमें मर्यादा का उल्लंघन नहीं करना चाहिए।
- अपनी करनी पार उतरनी : मनुष्य को अपने कर्म के अनुसार ही फल मिलता है
- अंत भला तो सब भला : परिणाम अच्छा हो जाए तो सब कुछ माना जाता है।
- अंधे की लकड़ी : बेसहारे का सहारा
- अपना रख पराया चख : निजी वस्तु की रक्षा एवं अन्य वस्तु का उपभोग
- अच्छी मति जो चाहो बूढ़े पूछन जाओ : बड़े बूढ़ों की सलाह से कार्य सिद्ध हो सकते हैं।
- अब की अब, जब की जब के साथ : सदा वर्तमान की ही चिन्ता करनी चाहिए
- अपनी नींद सोना, अपनी नींद जागना : पूर्ण स्वतंत्र होना
- अपने झोपड़े की खैर मनाओ : अपनी कुशल देखो
- अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता/फोड़ता : अकेला आदमी कोई बड़ा काम नहीं कर सकता; उसे अन्य लोगों की सहयोग की आवश्यकता होती है।
- अक्ल के अंधे, गाँठ के पूरे : निर्बुद्धि धनवान् इसका मतलब यह है कि जिसके पास बिलकुल बुद्धि नहीं हो फिर भी वह धनवान हो तब इसका प्रयोग किया जाता है।
- अक्ल बड़ी की भैंस : बुद्धि शारीरिक शक्ति से श्रेष्ठ होती है।
- अटका बनिया दे उधार : जिस बनिये का मामला फंस जाता है, वह उधार सौदा देता है।
- अति भक्ति चोर के लक्षण : यदि कोई अति भक्ति का प्रदर्शन करे तो समझना चाहिए कि वह कपटी और दम्भी है।
- अधजल/अधभर गगरी छलकत जाय : जिसके पास थोड़ा धन या ज्ञान होता है, वह उसका प्रदर्शन करता है।
- अधेला न दे, अधेली दे : भलमनसाहत से कुछ न देना पर दबाव पड़ने पर या फंस जाने पर आशा से अधिक चीज दे देना।
- अनदेखा चोर बाप बराबर : जिस मनुष्य के चोर होने का कोई प्रमाण न हो, उसका अनादर नहीं करना चाहिए। ।
- अनमांगे मोती मिले मांगे मिले न भीख : संतोषी और भाग्यवान् को बैठे-बिठाये बहुत कुछ मिल जाता है परन्तु लोभी और अभागे को मांगने पर भी कुछ नहीं मिलता।
- अपना घर दूर से सूझता है: अपने मतलब की बात कोई नहीं भूलता। या प्रियजन सबको याद रहते हैं।
- अपना पैसा सिक्का खोटा तो परखैया का क्या दोष? : यदि अपने सगे-सम्बन्धी में कोई दोष हो और कोई अन्य व्यक्ति उसे बुरा कहे, तो उससे नाराज नहीं होना चाहिए।
- अपना लाल गंवाय के दर-दर मांगे भीख : अपना धन खोकर दूसरों से छोटी-छोटी चीजें मांगना।
- अपना हाथ जगन्नाथ का भात : दूसरे की वस्तु का निर्भय और उन्मुक्त उपभोग।
- अपनी अक्ल और पराई दौलत सबको बड़ी मालूम पड़ती है : मनुष्य स्वयं को सबसे बुद्धिमान समझता है और दूसरे की संपत्ति उसे ज्यादा लगती है।
- अपनी-अपनी डफली अपना-अपना राग : सब लोगों का अपनी-अपनी धुन में मस्त रहना।
- अपनी गली में कुत्ता भी शेर होता है:अपने घर या मोहल्ले आदि में सब लोग बहादुर बनते हैं।
- अपनी फूटी न देखे दूसरे की फूली निहारे : अपना दोष न देखकर दूसरे के छोटे अवगुण पर ध्यान देना।
- अपने घर में दीया जलाकर तब मस्जिद में जलाते हैं : पहले स्वार्थ पूरा करके तब परमार्थ या परोपकार किया जाता है।
- अपने दही को कोई खट्टा नहीं कहता : अपनी चीज को कोई बुरा नहीं कहता।
- अपने मरे बिना स्वर्ग नहीं दिखता : अपने किये बिना काम नहीं होता।
- अपने मुंह मियां मिळू: अपने मुंह से अपनी बड़ाई करने वाला व्यक्ति।
आ से शुरू होने वाली लोकोक्तियाँ
- आंख के अंधे नाम नयनसुख : नाम और गुण में विरोध होना, गुणहीन को बहुत गुणी कहना।
- आंखों के आगे पलकों की बुराई : किसी के भाई- बन्धुओं या इष्ट-मित्रों के सामने उसकी बुराई करना।
- आंखों पर पलकों का बोझ नहीं होता : अपने कुटुम्बियों को खिलाना-पिलाना नहीं खलता। या काम की चीज महंगी नहीं जान पड़ती।
- आंसू एक नहीं और कलेजा टूक-टूक : दिखावटी रोना।
- आई है जान के साथ जाएगी जनाजे के साथ : वह विपत्ति या बीमारी जो आजीवन बनी रहे।
- आ गई तो ईद बारात नहीं तो काली जुम्मे रात : पैसे हुए तो अच्छा खाना खायेंगे, नहीं तो रूखा-सूखा ही सही।
- आई मौज फकीर को, दिया झोपड़ा फूंक : विरक्त(बिगड़ा हुए) पुरुष मनमौजी होते हैं।
- आए थे हरि भजन को, ओटन लगे कपास: जिस काम के लिए गए थे, उसे छोड़कर दूसरे काम में लग गए।
- आगे कुआं, पीछे खाई : दोनों तरफ विपत्ति होना।
- आगे नाथ न पीछे पगहा, सबसे भला कुम्हार का गदहा या (खाय मोटाय के हुए गदहा) : जिस मनुष्य के कुटुम्ब में कोई न हो और जो स्वयं कमाता और खाता हो और सब प्रकार की चिंताओं से मुक्त हो।
- आठों पहर चौंसठ घड़ी : हर समय, दिन-रात।
- आठों गांठ कुम्मैत : पूरा धूर्त, घुटा हुआ।
- आत्मा सुखी तो परमात्मा सुखी : पेट भरता है तो ईश्वर की याद आती है।
- आधी छोड़ सारी को धावे, आधी रहे न सारी पावे : अधिक लालच करना अच्छा नहीं होता; जो मिले उसी से सन्तोष करना चाहिए।
- आपको न चाहे ताके बाप को न चाहिए : जो आपका आदर न करे आपको भी उसका आदर नहीं करना चाहिए।
- आप जाय नहीं सासुरे, औरन को सिखि देत : आप स्वयं कोई काम न करके दूसरों को वही काम करने का उपदेश देना।
- आप तो मियां हफ्तहजारी, घर में रोवें कर्मों मारी : जब कोई मनुष्य स्वयं तो बड़े ठाट-बाट से रहता है पर उसकी स्त्री बड़े कष्ट से जीवन व्यतीत करती है तब ऐसा कहते हैं।
- आप मरे जग परलय: मूत्यु के बाद की चिन्ता नहीं करनी चाहिए।
- आप मियां मांगते दरवाजे खड़ा दरवेश : जो मनुष्य स्वयं दरिद्र है वह दूसरों को क्या सहायता कर सकता है?
- आ बैल मुझे मार : जान- बूझकर विपत्ति में पड़ना।
- आम के आम गुठलियों के दाम : किसी काम में दोहरा लाभ होना।
- आम खाने से काम, पेड़ गिनने से क्या काम? (आम खाने से मतलब कि पेड़ गिनने से? ) : जब कोई मतलब का काम न करके फिजूल बातें करता है तब इस कहावत का प्रयोग करते हैं।
- आया है जो जायेगा, राजा रंक फकीर : अमीर-गरीब सभी को मरना है।
- आरत काह न करै कुकरमू : दुःखी मनुष्य को भले और बुरे कर्म का विचार नहीं रहता।
- आस पराई जो तके, जीवित ही मर जाए : जो दूसरों पर निर्भर रहता है, वह जीवित रहते हुए भी मरा हुआ होता है।
- आस-पास बरसे, दिल्ली पड़ी तरसे : जिसे जरूरत हो, उसे न मिलकर किसी चीज का दूसरे को मिलना।
- इक नागिन अस पंख लगाई : किसी भयंकर चीज का किसी कारणवश और भी भयंकर हो जाना।
- इन तिलों में तेल नहीं निकलता: ऐसे कंजूसों से कुछ प्रप्ति नहीं होती।
इ, ई से शुरू होने वाली लोकोक्तियाँ
- इब्तिदा-ए-इश्क है. रोता है क्या, आगे-आगे देखिए, होता है क्या : अभी तो कार्य का आरंभ है; इसे ही देखकर घबरा गए, आगे देखो क्या होता है।
- इसके पेट में दाढ़ी है : इसकी अवस्था बहुत कम है तथापि यह बहुत बुद्धिमान है।
- इहां कुम्हड़ बतिया कोउ नाहीं, जो तर्जनि देखत मरि जाहीं : जब कोई झूठा रोब दिखाकर किसी को डराना चाहता है।
- इहां न लागहि राउरि मायाः यहां कोई आपके धोखे में नहीं आ सकता।
- ईश रजाय सीस सबही के : ईश्वर की आज्ञा सभी को माननी पड़ती है।
- ईश्वर की माया, कहीं धूप कहीं छाया : भगवान की माया विचित्र है। संसार में कोई सुखी है तो कोई दुःखी, कोई धनी है तो कोई निर्धन।
उ, ऊ से शुरू होने वाली लोकोक्तियाँ
- उधरे अन्त न होहिं निबाह । कालनेमि जिमि रावण राहू।। : जब किसी कपटी आदमी को पोल खुल जाती है, तब उसका निर्वाह नहीं होता। उस पर अनेक विपत्ति आती है।
- उत्तम विद्या लीजिए, जदपि नीच पै होय : छोटे व्यक्ति के पास यदि कोई ज्ञान है, तो उसे ग्रहण करना चाहिए।
- उतर गई लोई तो क्या करेगा कोई : जब इज्जत ही नहीं है तो डर किसका?
- उधार का खाना और फूस का तापना बराबर है : फूस की आग बहुत देर तक नहीं ठहरती। इसी प्रकार कोई व्यक्ति बहुत दिनों तक उधार लेकर अपना खर्च नहीं चला सकता।
- उमादास जोतिष की नाई, सबहिं नचावत राम गोसाई : मनुष्य का किया कुछ नहीं होता। मनुष्य को ईश्वर की इच्छा के अनुसार काम करना पड़ता है।
- उल्टा चोर कोतवाल को डांटे: अपना अपराध स्वीकार न करके पूछने वाले को डांटने-फटकारने या दोषी ठहराने पर उक्ति(कथन)।
- उसी की जूती उसी का सिर : किसी को उसी की युक्ति(वस्तु)से बेवकूफ बनाना।
- ऊंची दुकान फीके पकवान : जिसका नाम तो बहुत हो, पर गुण कम हो।
- ऊंट के गले में बित्ली: अनुचित, अनुपयुक्त या बेमेल संबंध विवाह।
- ऊंट के मुंह में जीरा : बहुत अधिक आवश्यकता वाले या खाने वाले को बहुत थोड़ी-सी चीज देना।
- ऊंट-घोड़े बहे जाए, गधा कहे कितना पानी : जब किसी काम को शक्तिशाली लोग न कर सकें और कोई कमजोर आदमी उसे करना चाहे, तब ऐसा कहते हैं।
- ऊंट दूल्हा गधा पुरोहित : एक मूर्ख या नीच द्वारा दूसरे मूर्ख या नीच की प्रशंसा पर उक्ति(वाक्य/कथन)।
- ऊंट बर्राता ही लदता है : काम करने की इच्छा न रहने पर डर के मारे काम भी करते जाना और बड़बड़ाते भी जाना।
- ऊंट बिलाई ले गई, हां जी, हां जी कहना : जब कोई बड़ा आदमी कोई असम्भव बात कहे और दूसरा उसकी हामी भरे।
आ से शुरू होने वाली लोकोक्तियाँ
- आंख के अंधे नाम नयनसुख : नाम और गुण में विरोध होना, गुणहीन को बहुत गुणी कहना।
- आंखों के आगे पलकों की बुराई : किसी के भाई- बन्धुओं या इष्ट-मित्रों के सामने उसकी बुराई करना।
- आंखों पर पलकों का बोझ नहीं होता : अपने कुटुम्बियों को खिलाना-पिलाना नहीं खलता। या काम की चीज महंगी नहीं जान पड़ती।
- आंसू एक नहीं और कलेजा टूक-टूक : दिखावटी रोना।
- आई है जान के साथ जाएगी जनाजे के साथ : वह विपत्ति या बीमारी जो आजीवन बनी रहे।
- आ गई तो ईद बारात नहीं तो काली जुम्मे रात : पैसे हुए तो अच्छा खाना खायेंगे, नहीं तो रूखा-सूखा ही सही।
- आई मौज फकीर को, दिया झोपड़ा फूंक : विरक्त(बिगड़ा हुए) पुरुष मनमौजी होते हैं।
- आए थे हरि भजन को, ओटन लगे कपास: जिस काम के लिए गए थे, उसे छोड़कर दूसरे काम में लग गए।
- आगे कुआं, पीछे खाई : दोनों तरफ विपत्ति होना।
- आगे नाथ न पीछे पगहा, सबसे भला कुम्हार का गदहा या (खाय मोटाय के हुए गदहा) : जिस मनुष्य के कुटुम्ब में कोई न हो और जो स्वयं कमाता और खाता हो और सब प्रकार की चिंताओं से मुक्त हो।
- आठों पहर चौंसठ घड़ी : हर समय, दिन-रात।
- आठों गांठ कुम्मैत : पूरा धूर्त, घुटा हुआ।
- आत्मा सुखी तो परमात्मा सुखी : पेट भरता है तो ईश्वर की याद आती है।
- आधी छोड़ सारी को धावे, आधी रहे न सारी पावे : अधिक लालच करना अच्छा नहीं होता; जो मिले उसी से सन्तोष करना चाहिए।
- आपको न चाहे ताके बाप को न चाहिए : जो आपका आदर न करे आपको भी उसका आदर नहीं करना चाहिए।
- आप जाय नहीं सासुरे, औरन को सिखि देत : आप स्वयं कोई काम न करके दूसरों को वही काम करने का उपदेश देना।
- आप तो मियां हफ्तहजारी, घर में रोवें कर्मों मारी : जब कोई मनुष्य स्वयं तो बड़े ठाट-बाट से रहता है पर उसकी स्त्री बड़े कष्ट से जीवन व्यतीत करती है तब ऐसा कहते हैं।
- आप मरे जग परलय: मूत्यु के बाद की चिन्ता नहीं करनी चाहिए।
- आप मियां मांगते दरवाजे खड़ा दरवेश : जो मनुष्य स्वयं दरिद्र है वह दूसरों को क्या सहायता कर सकता है?
- आ बैल मुझे मार : जान- बूझकर विपत्ति में पड़ना।
- आम के आम गुठलियों के दाम : किसी काम में दोहरा लाभ होना।
- आम खाने से काम, पेड़ गिनने से क्या काम? (आम खाने से मतलब कि पेड़ गिनने से? ) : जब कोई मतलब का काम न करके फिजूल बातें करता है तब इस कहावत का प्रयोग करते हैं।
- आया है जो जायेगा, राजा रंक फकीर : अमीर-गरीब सभी को मरना है।
- आरत काह न करै कुकरमू : दुःखी मनुष्य को भले और बुरे कर्म का विचार नहीं रहता।
- आस पराई जो तके, जीवित ही मर जाए : जो दूसरों पर निर्भर रहता है, वह जीवित रहते हुए भी मरा हुआ होता है।
- आस-पास बरसे, दिल्ली पड़ी तरसे : जिसे जरूरत हो, उसे न मिलकर किसी चीज का दूसरे को मिलना।
- इक नागिन अस पंख लगाई : किसी भयंकर चीज का किसी कारणवश और भी भयंकर हो जाना।
- इन तिलों में तेल नहीं निकलता: ऐसे कंजूसों से कुछ प्रप्ति नहीं होती।
इ, ई से शुरू होने वाली लोकोक्तियाँ
- इब्तिदा-ए-इश्क है. रोता है क्या, आगे-आगे देखिए, होता है क्या : अभी तो कार्य का आरंभ है; इसे ही देखकर घबरा गए, आगे देखो क्या होता है।
- इसके पेट में दाढ़ी है : इसकी अवस्था बहुत कम है तथापि यह बहुत बुद्धिमान है।
- इहां कुम्हड़ बतिया कोउ नाहीं, जो तर्जनि देखत मरि जाहीं : जब कोई झूठा रोब दिखाकर किसी को डराना चाहता है।
- इहां न लागहि राउरि मायाः यहां कोई आपके धोखे में नहीं आ सकता।
- ईश रजाय सीस सबही के : ईश्वर की आज्ञा सभी को माननी पड़ती है।
- ईश्वर की माया, कहीं धूप कहीं छाया : भगवान की माया विचित्र है। संसार में कोई सुखी है तो कोई दुःखी, कोई धनी है तो कोई निर्धन।
उ, ऊ से शुरू होने वाली लोकोक्तियाँ
- उधरे अन्त न होहिं निबाह । कालनेमि जिमि रावण राहू।। : जब किसी कपटी आदमी को पोल खुल जाती है, तब उसका निर्वाह नहीं होता। उस पर अनेक विपत्ति आती है।
- उत्तम विद्या लीजिए, जदपि नीच पै होय : छोटे व्यक्ति के पास यदि कोई ज्ञान है, तो उसे ग्रहण करना चाहिए।
- उतर गई लोई तो क्या करेगा कोई : जब इज्जत ही नहीं है तो डर किसका?
- उधार का खाना और फूस का तापना बराबर है : फूस की आग बहुत देर तक नहीं ठहरती। इसी प्रकार कोई व्यक्ति बहुत दिनों तक उधार लेकर अपना खर्च नहीं चला सकता।
- उमादास जोतिष की नाई, सबहिं नचावत राम गोसाई : मनुष्य का किया कुछ नहीं होता। मनुष्य को ईश्वर की इच्छा के अनुसार काम करना पड़ता है।
- उल्टा चोर कोतवाल को डांटे: अपना अपराध स्वीकार न करके पूछने वाले को डांटने-फटकारने या दोषी ठहराने पर उक्ति(कथन)।
- उसी की जूती उसी का सिर : किसी को उसी की युक्ति(वस्तु)से बेवकूफ बनाना।
- ऊंची दुकान फीके पकवान : जिसका नाम तो बहुत हो, पर गुण कम हो।
- ऊंट के गले में बित्ली: अनुचित, अनुपयुक्त या बेमेल संबंध विवाह।
- ऊंट के मुंह में जीरा : बहुत अधिक आवश्यकता वाले या खाने वाले को बहुत थोड़ी-सी चीज देना।
- ऊंट-घोड़े बहे जाए, गधा कहे कितना पानी : जब किसी काम को शक्तिशाली लोग न कर सकें और कोई कमजोर आदमी उसे करना चाहे, तब ऐसा कहते हैं।
- ऊंट दूल्हा गधा पुरोहित : एक मूर्ख या नीच द्वारा दूसरे मूर्ख या नीच की प्रशंसा पर उक्ति(वाक्य/कथन)।
- ऊंट बर्राता ही लदता है : काम करने की इच्छा न रहने पर डर के मारे काम भी करते जाना और बड़बड़ाते भी जाना।
- ऊंट बिलाई ले गई, हां जी, हां जी कहना : जब कोई बड़ा आदमी कोई असम्भव बात कहे और दूसरा उसकी हामी भरे।