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कारक किसे कहते हैं? परिभाषा, कारक के भेद, उदाहरण

रूपविज्ञान के सन्दर्भ में, किसी वाक्य, मुहावरा या वाक्यांश में संज्ञा या सर्वनाम का क्रिया के साथ उनके सम्बन्ध के अनुसार रूप बदलना कारक कहलाता है। अर्थात् व्याकरण में संज्ञा या सर्वनाम शब्द की वह अवस्था जिसके द्वारा वाक्य में उसका क्रिया के साथ संबंध प्रकट होता है उसे कारक कहते हैं।

संज्ञा या सर्वनाम के जिस रुप से उस वाक्य का किसी दूसरे वाक्य के साथ उसका संबंध दर्शाए उस चिन्ह को कारक कहा जाता है. यह परिभाषा शायद अब आपको अच्छे से समझ में आ गई होगी कि कारक क्या होता है तो अब हम आपको नीचे कारक के भेद बताएंगे कारक के आठ भेद होते हैं.

कारक किसे कहते हैं?

परिभाषा – “संज्ञा या सर्वनाम के जिस रूप और कार्य से उसका संबंध वाक्य में क्रिया, अन्य संज्ञा या सर्वनाम से जाना जाए, उसे कारक कहते हैं।।

निम्नलिखित वाक्यों को ध्यानपूर्वक पढ़िए और समझिए

  1. अमन ने फल खाया।
  2. गीता ने साबुन से हाथ धोए।
  3. पेड़ से फल गिर पड़ा।
  4. हरि मेले में घूम रहा है।
  5. राम ने रावण को मारा।
  6. अंकित ने गृहकार्य कर लिया।

उपर्युक्त सभी वाक्यों में संज्ञा अथवा सर्वनाम पदों का क्रिया के साथ पारस्परिक संबंध प्रकट होता है। इन वाक्यों पदों के साथ ने, ने, से, से, ने, को, में, ने’ आदि शब्द-चिह्न लगे हैं। इन चिह्नों से ही वाक्य के शब्दों के बीच संबंध का चलता है। और अर्थ स्पष्ट हो जाता है। ये कारक – चिह्न कहलाते हैं तथा जिस पद के साथ ये प्रयुक्त होते हैं, वह पद वाक्य में अन्य पदों के साथ, विशेषकर, क्रिया के साथ, संबंध प्रकट करता है तथा कारक कहलाता है।

कारक की परिभाषा

Karak की परिभाषा नीचे दी गई है-वाक्य में प्रयुक्त शब्द आपस में सम्बद्ध होते हैं। क्रिया के साथ संज्ञा का सीधा सम्बन्ध ही कारक( Karak ) है। कारक को प्रकट करने के लिये संज्ञा और सर्वनाम के साथ जो चिन्ह लगाये जाते हैं, उन्हें विभक्तियाँ कहते हैं।
जैसे –पेड़ पर फल लगते हैं।

कारक के भेद

कारक के निम्नलिखित 8 भेद होते हैं –

  1. कर्ता कारक
  2. कर्म कारक
  3. करण कारक
  4. संप्रदान कारक
  5. अपादान कारक
  6. संबंध कारक
  7. अधिकरण कारक
  8. संबोधन कारक

1. कर्ता कारक

संज्ञा या सर्वनाम के जिस रूप से क्रिया के करने वाले का बोध होता है, उसे कर्ता कारक कहते हैं। कर्ता कारक का विभक्ति-चिह्न ‘ने’ है।

जैसे – राम ने आम खाया।

(वाक्य में क्रिया या कार्य करने वाले को कर्ता कहते हैं। यह प्राय: संज्ञा या सर्वनाम होता है।)

यहाँ क्रिया करने वाला राम है, अतः राम कर्ता कारक है। कर्ता कारक का प्रयोग 2 प्रकार से होता है –

परसर्गसहित – राम ने आम खाया।

परसर्गरहित – राम आम खाता है।

राम आम खाएगा।

‘ने’ का प्रयोग वर्तमानकाल और भविष्यत् काल की क्रिया होने पर नहीं होता; भूतकाल में भी क्रिया के सकर्मक होने पर ही ‘ने’ का प्रयोग होता है।

विशेष — कभी-कभी कर्ता कारक को, से, के द्वारा परसर्गों के साथ भी आता है।

जैसे – (क) चाचाजी को दिल्ली जाना है।
(ख) नानाजी से दौड़ा नहीं जाता।
(ग) छात्रों के द्वारा यह कमरा सजाया गया है।

वाक्य में मुख्य क्रिया के साथ ‘कौन’ प्रश्न करने पर उत्तर में मिलने वाला पद कर्ता कारक होता है; जैसे – अनिल पत्र लिखता है।

प्रश्न – कौन पत्र लिखता है?

उत्तर – अनिल।

2. कर्म कारक

वाक्य में जिस संज्ञा या सर्वनाम पर क्रिया के व्यापार (चेष्टा) का फल पड़ता है, वह कर्म कारक कहलाता है। कर्म कारक का विभक्ति चिह्न ‘को’ है;

जैसे —

(क) हिरन को मत मारो।
(ग) कृष्ण ने कंस को मारा।
(ख) राम ने रावण को मारा।
(घ) मैनेजर ने क्लर्क को बुलाया।

यहाँ ‘हिरन’, ‘रावण’ ‘कंस’ तथा ‘कलर्क’ कर्म कारक हैं।

कर्म कारक का प्रयोग दो प्रकार से होता है –

परसर्गसहित – राम ने रावण को मारा।
मालिक ने नौकर को बुलाया।

परसर्गरहित – नौकर सफाई करता है।
मैंने गाना गाया।

कभी-कभी एक ही वाक्य में दो कर्म आ जाते हैं।

जैसे –

(क) माँ बच्चे को दवा पिलाती है।
कर्म बच्चा, दवा

(ख) गीता ने सीता को आम दिया।
कर्म – सीता, आम

पहले वाक्य में गौण कर्म ‘बच्चा’ तथा मुख्य कर्म ‘दवा’ । दूसरे वाक्य में गौण कर्म ‘सीता’ तथा मुख्य कर्म ‘आम’।

वाक्य में मुख्य तथा गौण दोनों कर्म होने पर ‘को’ गौण कर्म के साथ आता है। गौण कर्म प्रायः सजीव तथा मुख्य कर्म निर्जीव होता है।

वाक्य में विभक्तिरहित या मुख्य कर्म को पहचानने के लिए मुख्य क्रिया के साथ ‘क्या’ लगाकर प्रश्न करते हैं; जैसे बालक दूध पी रहा है।

प्रश्न – क्या पी रहा है?
उत्तर- दूध। यहाँ ‘दूध’ विभक्तिरहित या मुख्य कर्म है।

3. करण कारक

संज्ञा या सर्वनाम के जिस रूप से क्रिया के साधन का बोध हो, वह करण कारक कहलाता है। करण कारक के विभक्ति-चिह्न ‘से’ तथा ‘के द्वारा’ हैं।
जैसे –
(क) बच्चा खिलौने से खेलता है।
(ख) डण्डे से गन्ना तोड़ा।

यहाँ ‘खिलौने’ तथा ‘डंण्डे’ वे साधन हैं, जिनसे क्रिया हुई है। इनके साथ विभक्ति चिह्न ‘से’ के स्थान पर ‘के द्वारा’ का भी प्रयोग होता है; जैसे –

(क) दादाजी ने पिताजी को तार के द्वारा सूचित कर दिया है।
(ख) कार के द्वारा शहर चले जाओ।

कभी-कभी करण कारक का प्रयोग परसर्ग रहित भी होता है।
जैसे –

1. अकाल में हजारों गरीब भूखों मरे।

2. तुमने कानों सुनी बात बता दी।

4. संप्रदान कारक

वाक्य में प्रयुक्त कर्ता जिसके लिए कोई क्रिया करे, उसे संप्रदान कारक कहते हैं। संप्रदान कारक के विभक्ति-चिह्न हैं-के वास्ते, को, के हेतु, के लिए; जैसे-नर्स रोगी के लिए औषधि लाई। यहाँ नर्स (कर्ता) ने औषधि लाने की क्रिया की। यह क्रिया ‘रोगी’ के लिए की गई; अत: ‘रोगी’ संप्रदान कारक है।

अन्य उदाहरण देखिए –

1. जनता के वास्ते नल लगवाओ।
2. ये चित्र बिक्री के हेतु हैं।
3. बच्चे को फल दो।
4. मंत्री जी ने गरीबों के लिए स्कूल बनवाया।

कर्म कारक और संप्रदान कारक में अंतर –

दोनों कारकों में ‘को’ परसर्ग का प्रयोग होता है। संप्रदान कारक में देने का भाव मुख्य होता है, जबकि कर्म कारक में क्रिया के प्रभाव का भाव होता है;

जैसे –

(क) माँ ने बेटी को जगाया। – (क्रिया का प्रभाव कर्म कारक)

(ख) बेटी ने माँ को दवा दी। – (देने का भाव संप्रदान कारक)

याद रखिए– यदि वाक्य में कर्म कारक और संप्रदान कारक दोनों हों तो कर्म कारक के साथ परसर्ग नहीं लगता;

जैसे – राधा ने माँ के लिए खीर बनाई।

5. अपादान कारक​

संज्ञा या सर्वनाम के जिस रूप से किसी वस्तु के अलग होने का बोध हो, वह अपादान कारक कहलाता है। इसका विभक्ति-चिह्न ‘से’ (अलग होना) है ।

जैसे –

(क) बोरी से चावल गिर रहे हैं।
(ख) बच्चा साइकिल से गिर गया।

इसके अतिरिक्त ‘घृणा’, ‘दूरी’, ‘स्त्रोत’, ‘तुलना करने’, ‘भय’ तथा ‘ईर्ष्या’ आदि का बोध कराने वाले शब्द भी अपादान कारक में होते हैं,

जैसे –

(क) वह चोरी से घृणा करता है। – (घृणा)

(ख) मेरा घर स्कूल से तीन किमी दूर है। – (दूरी)

(ग) गंगा हिमालय से निकलती है। – (स्रोत)

(घ) रामू अहमद से अच्छा माली है। – (तुलना)

(ङ) चुहिया बिल्ली से भय खाती है। – (भय)

(च) कौरव पांडवों से ईर्ष्या करते थे। – (ईर्ष्या)

करण कारक तथा अपादान कारक में अंतर –

करण कारक तथा अपादान कारक दोनों का विभक्ति-चिह्न ‘से’ है, किंतु अर्थ की दृष्टि से दोनों में भेद है। करण कारक में किसी की सहायता से क्रिया की जाती है।

जैसे- ‘राम कलम से लिखता है।’

इस वाक्य में क्रिया ‘कलम’ से सम्पन्न हो रही है। अत: ‘कलम’ करण कारक है।

परंतु अपादान में एक वस्तु दूसरे से अलग होनी पाई जाती है।

जैसे- ‘हम शिमला से आए हैं।’
यहाँ ‘शिमला’ से अलगाव का बोध होने के कारण अपादान कारक है।

6. संबंध कारक​

संज्ञा या सर्वनाम के जिस रूप से उसका संबंध (अपनापन, स्वल लगाव) किसी और व्यक्ति या वस्तु से ज्ञात हो, उसे संबंध कारक कहते हैं। इसके कारक-चिह्न हैं— ‘का’, ‘की’ के ‘रा’, ‘री’, ‘रे’ ।

उदाहरण देखिए –

(क) संजय का कमरा बड़ा है। – (संबंध कारक-संजय)

(ख) कश्मीर भारत का अंग है। – (संबंध कारक -भारत)

(ग) राज का दोस्त कब आएगा ? – (संबंध कारक-राज)

(घ) आज तुम्हारी परीक्षा हो जाएगी। – (संबंध कारक तुम्हारी)

(ङ) राधा के पिता वकील हैं। – (संबंध कारक-राधा)

विशेष —
अन्य कारकों का संबंध मुख्य रूप से क्रिया के साथ होता है और सामान्य रूप से अन्य संज्ञा या सर्वनाम के साथ, परंतु संबंध कारक का संबंध मुख्य रूप से संज्ञाओं के साथ होता है, क्रिया के साथ नहीं।

7. अधिकरण कारक​

संज्ञा या सर्वनाम के जिस रूप से क्रिया के आधार (स्थान, काल या भाव) का बोध होता है, उसे अधिकरण कारक कहते हैं। इसके विभक्ति-चिह्न हैं — ‘में, पे, पर’।

(क) पुस्तकें मेज पर रख दो। – (मेज–स्थान)

(ख) मेरा घर स्कूल से तीन किमी दूर है। – (तीन किमी-काल)

(ग) उसे आज्ञापालन पर पुरस्कार मिलेगा। – (आज्ञापालन – भाव)

8. संबोधन कारक​

वाक्य में जिन शब्दों से किसी को बुलाने, पुकारने या सावधान करने का बोध होता है, उसे संबोधन कारक कहते हैं। इसे प्रकट करने के लिए ‘हे, अरे, ओ’ अथवा अन्य संबोधनसूचक शब्द का प्रयोग किया जाता है।

जैसे –
(क) ‘हे अर्जुन! आत्मा अजर-अमर है।’

(ख) अरे ! यह चित्र तुमने बनाया है।

(ग) बच्चों, कठिन परिश्रम करो।

इन वाक्यों में सभी रंगीन पद संबोधन कारक हैं। –

संबोधन कारक के पश्चात् संबोधन चिह्न (!) का प्रयोग किया जाता है, लेकिन कभी-कभी अल्पविराम (,) भी लगा दिया जाता है।

कारक के उदाहरण

निम्नलिखित वाक्य पढ़कर प्रयुक्त कारकों में से कोई एक कारक पहचानकर उसका भेद लिखिए :-

1. राम अयोध्या से वन को गए। इस वाक्य में ‘से’ किस कारक का बोधक है?
(a) करण
(b) कर्ता
(c) अपादान

उत्तर :(c) अपादान

2. ‘मछली पानी में रहती है’ इस वाक्य में किस कारक का चिह्न प्रयुक्त हुआ है?
(a) संबंध
(b) कर्म
(c) अधिकरण

उत्तर : (c) अधिकरण

3. ‘राधा कृष्ण की प्रेमिका थी’ इस वाक्य में की’ चिह्न किस कारक की ओर संकेत करता है?
(a) करण
(b) संबंध
(c) कर्ता

उत्तर : (b) संबंध

4. ‘गरीबों को दान दो’ ‘गरीब’ किस कारक का उदाहरण है?
(a) कर्म
(b) करण
(c) सम्प्रदान

उत्तर : (c) सम्प्रदान

5. ‘बालक छुरी से खेलता है’ छुरी किस कारक की ओर संकेत करता है?

(a) करण
(b) अपादान
(c) सम्प्रदान

उत्तर :(a) करण

6. सम्प्रदान कारक का चिह्न किस वाक्य में प्रयुक्त हुआ है?
(a) वह फूलों को बेचता है।
(b) उसने ब्राह्मण को बहुत सताया था।
(c) प्यासे को पानी देना चाहिए।

उत्तर : (c) प्यासे को पानी देना चाहिए।

7. इन वाक्यों में से किसमें करण कारक का चिह्न प्रयुक्त हुआ है?
(a) लड़की घर से निकलने लगी है
(b) बच्चे पेंसिल से लिखते हैं
(c) पहाड़ से नदियों निकली हैं

उत्तर : (b) बच्चे पेंसिल से लिखते हैं

8. किस वाक्य में कर्म–कारक का चिह्न आया है?
(a) मोहन को खाने दो
(b) पिता ने पुत्र को बुलाया
(c) सेठ ने नंगों को वस्त्र दिए

उत्तर : (b) पिता ने पुत्र को बुलाया

9. अपादान कारक किस वाक्य में आया है?
(a) हिमालय पहाड़ सबसे ऊँचा है
(b) वह जाति से वैश्य है
(c) लड़का छत से कूद पड़ा था

उत्तर : (c) लड़का छत से कूद पड़ा था

1. इनमें से किस वाक्य में ‘से’ चिह्न कर्ता के साथ है?
(a) वह पानी से खेलता है
(b) मुझसे चला नहीं जाता
(c) पेड़ से पत्ते गिरते हैं

उत्तर :(b) मुझसे चला नहीं जाता

FAQs

कारक कितने प्रकार के होते हैं?

संज्ञा या सर्वनाम के जिस रूप से उसका सम्बन्ध वाक्य के किसी दूसरे शब्द के साथ जाना जाए, उसे कारक (Karak) कहते हैं। हिन्दी में 'आठ कारक' होते हैं।

कारक का पहचान कैसे करें?

कारक संज्ञा या सर्वनाम शब्दो का वह रूप होता है जिसका सीधा सम्बन्ध क्रिया से होता है। कहने का मतलब ये है की, जब किसी वाक्य मे संज्ञा या सर्वनाम शब्दों का अलग-अलग रूप मे प्रयोग होता है तब इन्ही अलग-अलग रूप को Karak कहते हैं। कुछ उदाहरण – राम किताब पढ़ता है। – संता बंता के लिए मिठाई लाया है।

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