वाच्य का शाब्दिक अर्थ है – ‘बोलने का विषय‘। क्रिया के जिस रूपांतर से यह जाना जाए कि क्रिया द्वारा किए गए विधान (कही गई बात) का विषय कर्ता है, कर्म है या भाव है उसे ‘वाच्य’ कहते हैं। राम रोटी खाता है। कविता गाना गाएगी।
वाच्य किसे कहते हैं? (Voice)
वाच्य का शाब्दिक अर्थ होता है – बोलने योग्य या बोलने का विषय, परंतु व्याकरण में क्रिया के विधान को वाव्य कहते हैं।
वाच्य की परिभाषा – क्रिया का वह प्रयोग, जिसके द्वारा क्रिया-विधान या क्रिया व्यापार के विषय का बोध होता है, वाच्य कहलाता हैं।
जैसे –
क | ख | ग |
---|---|---|
रिया कूदती है। मुझसे सब बोला जाता है। | राम फैसला करता है। विजय से संस्कृत नहीं पढ़ी जाती है। | रजनी से लिखा नहीं जाता। मुझसे भागा नहीं जाता। |
- वर्ग (क) के वाक्यों की क्रियाएँ अपने-अपने कर्ता के लिंग, वचन के अनुसार प्रयोग में आई हैं।
- वर्ग (ख) के वाक्यों की क्रियाएँ अपने-अपने कर्म के लिंग, वचन के अनुसार प्रयोग में आई हैं।
- वर्ग (ग) के वाक्यों की क्रियाएँ न तो कर्ता के लिंग और वचन के अनुसार प्रयोग की गई हैं और न ही कर्म के
- लिंग व वचन के अनुसार ये क्रियाएँ भाव के अनुसार प्रयोग की गई हैं। क्रियाओं का यही विधान ‘वाच्य’ कहलाता है।
वाच्य के भेद
क्रिया-विधान का विषय कर्ता, कर्म अथवा भाव में से कोई एक हो सकता है। इसी के आधार पर वाच्य का विभाजन किया जाता है।
1. कर्तृवाच्य
2. कर्मवाच्य
3. भाववाच्य
1. कर्तृवाच्य (Active Voice) – क्रिया के जिस रूप से यह पता चलता है कि उसका प्रयोग कर्ता के लिंग, वचन के अनुसार हो रहा है, उसे कर्तृवाच्य कहते हैं।
जैसे—
(क) सैनिक परेड करेंगे।
(ख) तोता मिर्च खाता है।
उपर्युक्त वाक्यों में ‘सैनिक’ और ‘तोता’ कर्ता है। ‘परेड करेगे’ और ‘खाता है’ क्रिया है। पहले वाक्य में क्रिया में विधान का विषय ‘सैनिक’ है तथा दूसरे वाक्य में क्रिया के विधान का विषय ‘तोता’ है। इस प्रकार दोनों ही वाक्यों में क्रिया का सीधा संबंध ‘कर्ता’ से हैं; अत: दोनों वाक्य कर्तृवाच्य हुए। कर्तृवाच्य में अकर्मक और सकर्मक दोनों प्रकार की क्रियाएँ होती हैं।
2. कर्मवाच्य (Passive Voice) – क्रिया के जिस रूप से यह मालूम होता है कि उसका प्रयोग कर्म के लिंग, वचन के अनुसार हो रहा है, उसे कर्मवाच्य कहते हैं।
जैसे-
गीता के द्वारा पुस्तक लिखी गई।
उपर्युक्त वाक्य में ‘गीता’ कर्ता है, ‘पुस्तक’ कर्म है तथा ‘लिखी’ क्रिया है। क्रिया विधान का विषय ‘पुस्तक’ कर्म
है। अतः यह क्रिया, कर्मवाच्य क्रिया कही जाएगी।
3. भाववाच्य (Impersonal Voice) – क्रिया के जिस रूप से भाव की प्रधानता प्रकट हो, उसे भाववाच्य कहते हैं। भाववाच्य में न तो कर्ता की प्रधानता होती है, न कर्म की; वरन् भाव की ही प्रधानता होती है। ऐसे वाक्यों में क्रिया का भाव ही मुख्य होता है। वाक्य में उद्देश्य के रूप में क्रिया का भाव विद्यमान होता है। भाववाच्य में क्रिया सदा अन्य पुरुष,पुल्लिंग और एकवचन में रहती है।
जैसे-
उसको पढ़ना आता है।
इस वाक्य में पढ़ने का भाव ही क्लिया-विधान का विषय है। इस वाक्य में न कोई कर्ता है और न ही कोई कर्म।
क्रिया ‘आता है’ सदैव आता है’ ही रहेगी, उसका रूप परिवर्तित नहीं होगा। अतः यह क्रिया विधान भाववाच्य है।
विशेष—
1. भाववाच्य में कर्ता और कर्म की प्रधानता नहीं होती है।
2. इसमें मुख्यतः अकर्मक क्रिया का ही प्रयोग होता है।
3. प्रायः निषेधार्थक वाक्य ही भाववाच्य में प्रयुक्त होते हैं।
कर्तृवाच्य से कर्मवाच्य बनाना-
कर्ता के साथ से द्वारा के द्वारा आदि जोड़कर एवं कर्म के बाद मुख्य धातु में ‘आ’ अथवा ‘या’ जोड़ दिया जाता है तथा उसके बाद जा धातु आती है।
जैसे –
कर्तृवाच्य | कर्मवाच्य |
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1. मनोज से गाना गाया जाता है। | 1. मनोज से गाना गाया जाता हैं |
2. राधा ने चाय बनाई। | 2. राधा के द्वारा चाय बनाई गई है। |
3. मोहन नहाता है। | 3. मोहन के द्वारा नहाया जाता है। |
4. आप विश्राम कीजिए। | 4. आपके द्वारा विश्राम किया जाए। |
कर्तृवाच्य से भाववाच्य बनाना –
अतः कर्तृवाच्य से भाववाच्य बनाते समय क्रिया के अन्य पुरुष को एकवचन में कर दिया जाता है। भाववाच्य की क्रिया बहुवचन, कभी नहीं आती कर्ता के साथ ‘से’ जोड़ दिया जाता है, क्रियाक सामान्य भूत में बदल दिया जाता है तथा काल के अनुसार ‘जाना’ क्रिया का रूप जोड़ दिया जाता है
जैसे—
कर्तृवाच्य | भाववाच्य |
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राहुल लड़ता है। | राहुल से लड़ा जाता है। |
बन्दर कूद सकते हैं। | बन्दरों से कूदा जा सकता है। |
तुम खेल नहीं सकतीं। | तुमसे खेला नहीं जा सकता। |
बच्चा बोलता नहीं है। | बच्चे से बोला नहीं जाता है। |