समाजशास्त्र को अंग्रेजी में Sociology कहा जाता है। Sociology शब्द Socius और logos दो शब्दों से मिलकर बना है। Socius लैटिन भाषा का एक शब्द हैं जिसका अर्थ होता है – समाज। Logos एक ग्रीक शब्द है जिसका अर्थ होता है – विज्ञान या अध्ययन। इसप्रकार समाजशास्त्र का शाब्दिक अर्थ होता है – समाज का विज्ञान या समाज का अध्ययन।
समाजशास्त्र का अर्थ
समाज का अर्थ सामाजिक सम्बन्धों के ताने-बाने से है जबकि विज्ञान किसी भी विषय के व्यवस्थित एवं क्रमवद्ध ज्ञान को कहते है। समाजशास्त्र को एक नवीन विज्ञान के रूप में स्थापित करने का श्रेय फ्रांस के प्रसिद्ध विद्वान आगस्त कॉम्टे (Auguste Comte) को जाता है। कॉम्टे ने ही 1838 में इस नए विषय को Sociology नाम दिया था। इसलिए आगस्त कॉम्टे को समाजशास्त्र का जनक (Father of Sociology) कहा जाता है।
समाजशास्त्र की परिभाषा
समाजशास्त्र की कोई सर्वमान्य परिभाषा नही है। विभिन्न विद्वानों ने इसकी परिभाषा भिन्न-भिन दृष्टिकोणों से दी है। विभिन्न विद्वानों ने समाजशास्त्र को एक समाज-वैज्ञानिक विषय व सामाजिक विषय के रूप में अपने-अपने तरीकों से परिभाषित करने के प्रयास किए।
- आगस्त काॅम्टे के अनुसार – “समाजशास्त्र सामाजिक व्यवस्था और प्रगति का विज्ञान है।”
- लिस्टर एफ. वार्ड के अनुसार – “समाजशास्त्र समाज का विज्ञान है।”
- ओडम के अनुसार – “समाजशास्त्र वह विज्ञान है जो समाज का अध्ययन करता है।”
- एफ. एच. गिडिंस के अनुसार – “समाजशास्त्र समग्र रूप से समाज का क्रमवद्ध वर्णन तथा व्याख्या है।”
- जिसबर्ट के अनुसार – “समाजशास्त्र सामान्यतः समाज के विज्ञान के रूप में परिभाषित किया जाता है।”
समाजशास्त्र क्या है?
समाजशास्त्र की परिभाषा से हमें पता चलता है कि समाजशास्त्र क्या है। अलग-अलग विद्वानों ने इसे अलग-अलग तरीके से परिभाषित किया है। आगस्त कॉम्टे का मानना था कि जिस प्रकार भौतिक वस्तुओं का अध्ययन करने के लिए भौतिकशास्त्र, अतीत की घटनाओं का अध्ययन करने के लिए इतिहास, आर्थिक क्रियाओं के अध्ययन के लिए अर्थशास्त्र है। ठीक उसी प्रकार सामाज का अध्ययन करने के लिए एक अलग सामाजिक विज्ञान की आवश्यकता है। शुरुआत में इन्होने इसे सामाजिक भौतिकी (Social Physics) नाम दिया था और 1838 में बदलकर समाजशास्त्र रखा था।
समाजशास्त्र का महत्व एवं उपयोगिता
समाजशास्त्र के अध्ययन की उपयोगिता एवं महत्व को आज प्रत्येक देश में, जहाँ सामाजिक परिस्थितियाँ व्यक्तित्व और सामाजिक ढाँचे के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती है, इस शास्त्र की उपयोगिता देश के लिए और भी अधिक बढ़ जाती है।
समाजशास्त्र की उपयोगिता एवं महत्व निम्न बिन्दुओं द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है –
1. समाज के सम्बन्ध में वैज्ञानिक ज्ञान
अपने या अन्य समाज के विषय में वैज्ञानिक आधार पर सही परिचय समाजशास्त्र के द्वारा ही सम्भव है, क्योंकि समाजशास्त्र के अध्ययन से ही समाज की उत्पत्ति, विकास और विशेषताओं का वैज्ञानिक और सामान्य ज्ञान हमें प्राप्त हो सकता है। एक सामाजिक विज्ञान के रूप में, समाजशास्त्र हमारा परिचय सम्पूर्ण मानवता एवं समाज से कराता है।
2. नवीन सामाजिक परिस्थितियों से अनुकूलन करने में सहायक
समाजशास्त्रीय ज्ञान हमें नवीन सामाजिक परिस्थितियों से अनुकूलन करने में मदद करता है। आधुनिक मानव समाज गतिशील है। आज मानव ने आकाश में उड़ना सीख लिया है। प्राचीन मान्यताओं में तीव्र गति से परिवर्तन हो रहा है।
3. सामाजिक जीवन की सामान्य समस्याओं का ज्ञान
समाजशास्त्र के अध्ययन से हमें सामाजिक जीवन की सामान्य समस्याओं का ज्ञान प्राप्त होता है। आधुनिक जटिल समाज में सामाजिक जीवन में स्वार्थ, आवश्यकताएँ, उद्देश्य और समस्याएँ भी जटिल होती जा रही हैं, जिनके सम्बन्ध में हमें वैज्ञानिक ज्ञान समाजशास्त्र के द्वारा ही प्राप्त होता है।
4. धार्मिक एकता प्राप्त करने में सहायक
समाजशास्त्र समाज में धार्मिक एकता स्थापित करने में भी सहायक सिद्ध हो सकता है। समाजशास्त्र विभिन्न धर्मों की वास्तविकताओं तथा सामान्य तत्वों के सम्बन्ध में हमें यथार्थ ज्ञान प्राप्त करता है तथा सामाजिक जीवन एवं धर्म के पारस्परिक सम्बन्ध तथा महत्व को भी बनाता है, जिससे धार्मिक एकता बढ़ाने में मदद मिलती है।
5. सामाजिक समस्याओं को हल करने में सहायक
समाजशास्त्र समाज की विभिन्न सामाजिक समस्याओं; जैसे-अपराध, बाल अपराध, वेश्यावृत्ति, भिक्षावृत्ति, बेकारी, गरीबी, डकैती इत्यादि जैसे गम्भीर सामाजिक समस्याओं का वैज्ञानिक ढंग से अध्ययन करके उनके हल करने के सुझाव प्रस्तुत करता है ।
6. पारिवारिक जीवन और समाजशास्त्र
पारिवारिक जीवन की अनेक समस्याएँ जैसे पारिवारिक बजट, बच्चों का पालन-पोषण, जीवनसाथी का चुनाव, पति-पत्नी का सह-अनुकूलन, वैवाहिक जीवन इत्यादि ऐसी पारिवारिक जटिल समस्याएँ हैं, जिनके उचित ज्ञान के अभाव में सुखी पारिवारिक जीवन कभी सम्भव नहीं है।
7. अन्तर्राष्ट्रीय जीवन और समाजशास्त्र
समाजशास्त्र के ज्ञान से अन्तर्राष्ट्रीय जीवन में शत्रुता और वैमनस्य को समाप्त किया जा सकता है और मित्रता और सहिष्णुता की वृद्धि के द्वारा अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति स्थापना की समस्या को सरल किया जा सकता है।
8. समाजशास्त्र का व्यावसायिक महत्व
व्यावसायिक दृष्टिकोण से भी समाजशास्त्र का अत्यधिक महत्व है। आज समाजशास्त्रियों का महत्व सामाजिक अभियन्ता (Social Engineer) के रूप में दिन-प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है। समाज कल्याण कार्य, प्रशासन, ग्रामीण पुनर्निर्माण, परिवार नियोजन जनगणना, सामाजिक सेवा कार्य, सामुदायिक योजनाएँ, ग्राम और नगर नियोजन इत्यादि कार्यों में समाजशास्त्री अत्यधिक महत्वपूर्ण योगदान दे रहे हैं।
समाजशास्त्र की विशेषताएं
समाजशास्त्र की परिभाषा और प्रकृति से हमें इसकी विशेषताओं के बारे में पता चलता है। समाजशास्त्र एक स्वतंत्र विज्ञान है जिसकी प्रकृति विज्ञान की तरह पूर्णतः वैज्ञानिक है। समाजशास्त्र की निम्नलिखित विशेषताएँ है –
- समाजशास्त्र एक सामाजिक विज्ञान है, प्राकृतिक विज्ञान नहीं।
- समाजशास्त्र एक वास्तविक (निश्चयात्मक) विज्ञान है, आदर्शात्मक विज्ञान नहीं।
- समाजशास्त्र एक विशुद्ध विज्ञान है, व्यावहारिक विज्ञान नहीं।
समाजशास्त्र की प्रकृति
किसी भी विषय की प्रकृति से आशय है कि सम्बद्ध विषय विज्ञान है अथवा कला। जहाँ तक समाजशास्त्र की प्रकृति का सम्बन्ध है तो समाजशास्त्र के जनक कहे जाने वाले आगस्त कॉम्टे सहित इमाईल दुर्थीम, मैक्स वेबर आदि प्रतिष्ठित समाजशास्त्रियों ने समाजशास्त्र को शुरू से ही विज्ञान माना है।
समाजशास्त्र को विज्ञान मानने के निम्नलिखित कारण है –
1. समाजशास्त्र में वैज्ञानिक पद्धति का प्रयोग, वस्तुनिष्ठ अध्ययन, सत्यापनीयता, निश्चितता, कार्य-कारण सम्बन्धों की स्थापना के गुण विद्यमान है। इसलिए इसकी प्रकृति विज्ञान जैसी है।
2. विज्ञान की ही तरह समाजशास्त्र में सामान्यीकरण करना, पूर्वानुमान लगाना, आनुभविक अध्ययन एवं सार्वभौमिकता की दशाएँ सन्निहित रहती हैं जो समाजशास्त्र की प्रकृति वैज्ञानिक बनाती हैं।
3. विज्ञान की सभी विशेषताएँ होने के बावजूद समाजशास्त्र की कुछ सीमाएँ हैं। इस बात को सावधानी के साथ समझने की आवश्यकता है कि समाजशास्त्र प्राकृतिक विज्ञान न होकर सामाजिक विज्ञान है। ऐसी स्थिति में इसकी अपनी कुछ सीमाएँ है।