छत्तीसगढ़ का आधुनिक इतिहास
धान का कटोरा कहा जाने वाला छत्तीसगढ़ राज्य भारत में आर्य और अनार्य संस्कृतियों का संगम स्थल रहा है, विभिन्न स्रोतों से ज्ञात होता है की छत्तीसगढ़ का इतिहास मौर्य काल से प्राचीन नही है , लेकिन किवदंतियों तथा महाकाव्यों से जैसे रामायण महाभारत से ज्ञात होता है की छत्तीसगढ़ प्राचीन कल से ही अथवा त्रेता युग से ही भारत की राजनीतिक तथा सांस्कृतिक गतिविधियों से किसी न किसी रूप से संबद्ध है। कलचुरी और नागावंशी शासकों ने इस क्षेत्र पर शासन किया कलचुरियों ने छत्तीसगढ़ पर सन् 980 से लेकर 1741 तक राज किया. जिसके बाद मराठो ने शासन प्रारंभ किया. इतिहासकारों का मानना है की तब से छत्तीसगढ़ का आधुनिक इतिहास प्रारम्भ होता है .
छत्तीसगढ़ में मराठा शासन की स्थापना
छत्तीसगढ़ पर सन् 1741 से लेकर 1854 तक मराठो ने शासन किया उसके पश्चात् ब्रिटिश के अधीन आ गया छत्तीसगढ़ 1854 से 1947 तक. छत्तीसगढ़ में मराठा शासन को हम 6 प्रकार से पढेगे.
- अप्रत्यक्ष मराठा शासन (1741 से 1758 तक)
- प्रत्यक्ष मराठा शासन (1758-1787)
- सूबा शासन (1787-1818)
- ब्रिटिश शासन (1818-1830)
- पुनः मराठा शासन (1830-1854)
- पुनः ब्रिटिश शासन (1854-1947)
1. अप्रत्यक्ष मराठा शासन
- समय अवधि -1741-1758 ई. तक
रघुनाथ सिंह (1741-1745)
- भास्कर पंथ ने शासन नहीं किया।
- रघुनाथ सिंह को सत्ता सौंप कर चला गया।
मोहन सिंह (1745-1758)
- रघुनाथ सिंह को अपदस्थ करके मोहन सिंह को सत्ता सौंपा गया।
- यह मराठों के अधीन अंतिम कल्चुरी शासक था।
2. प्रत्यक्ष मराठा शासन
- समय अवधि -1758-1787 ई. तक
1. बिम्बजी भोसला (1758-1787)
- छ.ग. के प्रथम मराठा शासक था।
- रतनपुर व रायपुर का प्रशासनिक एकीकरण किया (1778)
- छत्तीसगढ़ राज्य की संज्ञा दी।
- मराठी, उर्दू, गोंडी लिपि प्रारंभ करवाया।
- न्यायलय की स्थापना किया तालुकेदारी प्रथा चलवाया।
- राजनांदगाँव व खुज्जी नामक नई जमींदारी का निर्माण किया।
- रतनपुर में रामटेकरी मंदिर का निर्माण करवाया तथा स्वयं की मूर्ति रखवाया है।
- रायपुर में दूधाधारी मठ का जीर्णोद्धार करवाया।
- बिम्बा जी के दो पत्निया थीं। 1. उमाबाई 2. आनंदी बाई 3.रमाबाई
- बिम्बा जी की मृत्यु के बाद उसकी पत्नि उमा बाई बिम्बाजी को गोद में लेकर जिंदा चिता में जली व सती हुई थी।
- रतनपुर में उमाबाई की सती चौरे स्थित है।
- बिम्बाजी भोसला रायपुर राज्य के अंतर्गत छत्तीगसढ़ का प्रथम मराठा शासक थे
- उन्होंने न्याय संबंधी सुविधा के लिए रतनपुर में नियमित न्यायालय की स्थापना की तथा
- अपने शासन काल मे राजनांदगांव तथा खुज्जी नामक दो नई जमीदरियो का निर्माण किया
- रतनपुर में रामटेकरी मंदिर का निर्माण एवम विजय दशमी पर स्वर्ण पत्र देने की प्रथा का आरंभ किया |
- इस समय कौड़ी मुद्रा का प्रचलन था उसके स्थान पर नागपुुुरी मुद्वा का प्रचलन करवाया |
- बिम्बा जी ने प्रशासनिक दृस्टि से रतनपुर और रायपुर को एक कर छत्तीसगढ़ राज्य की संज्ञा प्रदान किया था तथा रायपुर स्थित दूधाधारी मठ का पुनर्निर्माण करवाया |
- बिम्बाजी ने यहां मराठी भाषा, मोड़ी लिपि और उर्दू भाषा को प्रचलित कराया
- सन 1787 में बिम्बाजी की मृत्यु हो गई, इसके पश्चात उनकी पत्नी उमाबाई सती हो गई थी|
3. सुबा शासन
- समय अवधि -1787-1818 ई. तक
- छत्तीसगढ़ में स्थापित यह सूबा शासन प्रणाली मराठों की उपनिवेशवादी नीति का परिचायक थी |
- सूबेदार मुख्यालय रतनपुर में रहकर सम्पूर्ण कार्यो का संचालन करते थे |
- यह पद न तो स्थायी था न ही वंशानुगत, इनकी नियुक्ति ठेकेदारी प्रथा के अनुसार होती थी जो व्यक्ति छत्तीसगढ़ से सर्वाधिक राशि वसूल कर नागपुर भेजने का वादा करता था उसे सूबेदार नियुक्त कर दियाजता था
- इस दौरान छत्तीसगढ़ में कुल 8 सूबेदार नियुक्त किये गए थे|
व्यंकोजी भोसला (1787-1811)
- बिम्बाजी की मृतयु के बाद व्यंकोजी को कि छत्तीसगढ़ का राज्य प्राप्त हुआ |
- व्यंकोजी ने राजधानी रतनपुर में रहकर पूर्व की भांति प्रत्यक्ष शासन करने की अपेक्षा नागपुर में रहकर शासन संचालन करने का निश्चय किया |
- व्यंकोजी यहाँ का शासन सूबेदारों के माध्यम से चलाने लगे |
- यहीं से छत्तीसगढ़ में सूबेदार पद्धति अथवा सूबा शासन का सूत्रपात हुआ |
- यह पद्धति छत्तीसगढ़ में ब्रिटिश नियंत्रण होने तक विद्यमान रही |
- छत्तीसगढ़ में सूबा शासन के संस्थापक व्यंकोजी भोसला की 1811 में बनारस में मृत्यु हो गई |
- छ.ग. में सूबेदारी पद्धति या सूबा शासन की शुरूआत हुई ।
- प्रशासन का पूरा दायित्व सूबेदार के हाथों में होता था।
- सूबेदारों का पद वंशानुगत नहीं था।
- ठेकेदारी प्रथा पर आधारित था।
छ.ग. में 8 सूबेदार हुए -
1. महिपतराव दिनकर (1787-1790)
- छत्तीसगढ़ में नियुक्त होने वाला प्रथम सूबेदार था.
- इसके शासन काल मे फारेस्टर नामक यूरोपीय यात्री छत्तीसगढ़ आया था.
- इसके शासन की सारी शक्तियां बिम्बाजी भोसला की विधवा आनंदी बाई के हाथ मे था.
- इसी समय यूरोपीय यात्री फारेस्टर छ.ग. आया था (1790) .
2. विठ्ठलराव दिनकर (1790-96)
- ये इस क्षेत्र के दूसरे सूबेदार नियुक्त हुए.
- छत्तीसगढ़ में परगना पद्धति के जनक कहलाते हैं.
- ये पद्धति 1790 से 1818 तक चलती रही इस पद्धति के अंतर्गत प्राचीन प्रशानिक इकाई को समाप्त कर समस्त छत्तीगढ़ को परगनों में विभाजित कर दिया गया , जिनकी संख्या 27 थी
- परगने का प्रमुख अधिकारी कमविसदर कहलाता था.
- इसके शासन काल मे यूरोपीय यात्री कैप्टन ब्लंट 1795 में छत्तीसगढ़ की यात्रा की थी.
- 1795 में ब्लंट ने प्रशासनिक तौर पर छ.ग. शब्द का प्रयोग ग्रेजिटीयर में किया था।
3. भवानी कालू (1796-97)
- इनका कार्यकाल सबसे कम था।
4. केशव गोविंद (1797-1808)
- यह लंबी अवधि तक छत्तीसगढ़ का सूबेदार था.
- इसके काल मे यूरोपीय यात्री कोलब्रुक (1799) ने छत्तीसगढ़ की यात्रा की थी.
5. विको जी पिंड्री (दीरों कुलकर)
- कुछ समय तक सूबेदार था।
6. बीका जी गोपाल (1809-1817)
- इसके शासन काल में पिंडारियों ने आक्रमण किया था।
- इसके शासन काल में सहायक संधि अंग्रेजों व मराठों के बीच हुआ था।
- अप्पा जी को छ.ग. का वायसराय बनाया गया।
7. सीताराम टांटिया (सरकार हरि)
- कोई विशेष योगदान नहीं किया।
8. यादव राव दिवाकर (1817-1818)
- छत्तीसगढ़ में सूबा शासन के दौरान का अंतिम सूबेदार था.
- 1818 से छत्तीसगढ़ ब्रिटिश नियंत्रण में आ गया और सूबा शासन स्वयं समाप्त हो गया.
- (1830 के बाद पुनः 1830-54 ) के मराठा अधिपत्य के दौरान सूबेदारी पद्धति प्रचलित रही.
- तृतीय आंग्ल-मराठा युद्ध में मराठा अंग्रेजो से हार गये, परिणाम स्वरूप छ.ग. में ब्रिटिश शासन प्रारंभ हो गया।
अप्पा साहब (1816-1818)
- व्यंकोजी भोसला की मृत्यु के पश्चात अप्पा साहब छत्तीसगढ़ के नए शासक नियुक्त किये गए.
- अपनी नियुक्ति के पश्चात अप्पा साहब ने छत्तीसगढ़ के तत्कालिक सूबेदार बीकाजी गोपाल (1809 -1817) से बहुत बड़ी राशि की मांग की , परन्तु जब बीकाजी गोपाल ने देने में असमर्थता प्रकट की तो अप्पा साहब ने उसे पद से हटा दिया.
4. ब्रिटिश शासन
- समय अवधि -1818-1830 ई. तक
- 1818 में पहली बार छ.ग. ब्रिटिश शासन के अधीन हुआ।
- 1818 में तृतीय आंग्ल मराठा युद्ध मे पराजित होने के बाद छत्तीसगढ़ में मराठा शासन समाप्त हो गया.
- इस युद्ध के बाद नागपुर की संधि के साथ छत्तीसगढ़ अप्रत्यक्ष रूप से ब्रिटिश नियंत्रण में आ गया .
- ब्रिटिश रेजिडेंट जेनकिन्स ने नागपुर राज्य में व्यवस्था हेतु घोषणा की , जिसके अनुसार उन्हें रघु जी तृतीय के वयस्क होने तक नागपुर राज्य अपने हाथ मे लेना था.
- इस घोषणा के साथ ही छत्तीसगढ़ का नियंत्रण भी ब्रिटिश नियंत्रण में चला गया.
- नागपुर के प्रथम ब्रिटिश रेजीडेंट जेनकिन्स ने सूबा पद्धति को समाप्त कर ब्रिटिश अधीक्षकों की नियुक्ति की।
कैप्टन एडमण्ड (1818)
- छत्तीसगढ़ में नियुक्त होने वाले प्रथम अधीक्षक
- इन्हें नागपुर रेसिडेंट के अधीन कार्य करना पड़ता था।
कैप्टन एगेन्यू (1818-1825)
- इनका कार्यकाल सबसे लम्बा था।
- इन्होंने 1818 में राजधानी रतनपुर से रायपुर ले गया।
- 1820 में छ.ग. का सर्वप्रथम जनगणना हुआ था।
- इन्होंने 1818 में राजधनी परिवर्तन कर नागपुर से रायपुर कर दी |
- रायपुर पहली बार ब्रिटिश अधीक्षक का मुख्यालय बना |
- इनके शासन काल मे सोनाखान के जमीदार रामराय ने 1819 ई में विद्रोह किया था |
- गेंदसिंह का परलकोट विद्रोह भी इसी समय हुआ था ।
- कैप्टन एग्न्यु ने छत्तीसगढ़ के 27 परगनों को पुनर्गठित कर इन्हें केवल 8 परगनों (रतनपुर, रायपुर, धमतरी , दुर्ग ,धमधा, नवागढ़ ,राजहरा ,खरौद) में सीमित कर दिया |
- कुछ समय बाद बालोद को भी परगना बना दिया, इस प्रकार परगनों की संख्या 9 हो गई |
- परगनों का प्रमुख पदाधिकारी को कमविसदर कहा जाता था |
कैप्टन हंटर (1825)
- हिन्दू-मुस्लिम वर्ष के स्थान पर अंग्रेजी वर्ष 1825 में इंटर ने शुरूआत किया था।
कैप्टन सैंडिस (1825-1828)
- इन्होंने अंग्रेजी भाषा को सरकार काम-काज का माध्यम बनाया.
- छ.ग. में डाकतार की शुरूआत करवाया.
- छत्तीसगढ़ में अंग्रेजी वर्ष को मान्यता दी थी.
- लोरमी व तरेंगा नामक दो तहुतदारी बनाया था.
विलिकिंसन (1828)
- यह कुछ समय के लिए अधीक्षक रहा।
क्रॉफर्ड (1828-1830)
- छ.ग. के अंतिम ब्रिटिश अधीक्षक था।
- अंग्रेज व रघुजी तृतीय के मध्य समझौता होने के बाद 1830 में पुनः मराठा शासन प्रारंभ हो गया।
5. पुनः मराठा शासन
- समय अवधि -1830-1854 ई. तक
रघुजी तृतीय (1830-1853)
- भोसला शासक रघुजी तृतीय के वयस्क होने पर छत्तीसगढ़ पुनः भोसलो के नियंत्रण में चला गया |
- भोसला अधिकारी कृष्णराव अप्पा को छत्तीसगढ़ का शासन सौंपा गया |
- कृष्णाराव अप्पा छत्तीसगढ़ के प्रथम जिलेदार नियुक्त हुई |
- 1830 में ब्रिटिश अधीक्षक क्राफोर्ड ने कृष्णराव अप्पा को इस क्षेत्र का शासन सौंप दिया
- इस समय भोसला शासक छत्तीसगढ़ में जिलेदार के माध्यम से शासन करते थे |
- जिलेदार का मुख्यालय रायपुर था, इस दौरान कुल 8 जिलेदार नियुक्त हुए थे |
- इन्होंने छ.ग. में जिलेदारी पद्धति की शुरूआत किया।
छ.ग.के कुल 8 जिलेदार -
- कृष्णाराव अप्पा (प्रथम जिलेदार )
- अमृतराव
- सदुद्दीन
- दुर्गा प्रसाद
- इन्दुक राव
- सखा राम बापू
- गोविन्द राव
- गोपाल राव जिलेदार (अंतिम जिलेदार)
- जिलेदारों का मुख्यालय रायपुर था।
- छत्तीसगढ़ में भोसलो द्वारा नियुक्त अंतिम जिलेदार गोपालराव थे |
- लार्ड डलहौजी ने गोद निषेध प्रथा के तहत् नागपुर रियासत को ब्रिटिश साम्राज्य में मिला लिया।
- नागपुर रियासत को ब्रिटिश साम्राज्य में विलय का अधिकारिक घोषणा 13 मार्च 1854 में किया गया।
- सन 1853 में रघुजी तृतीय की मृत्यु हो गई, इसके पश्चात डलहौजी ने अपनी हड़प नीति के तहत 1854 में नागपुर का ब्रिटिश साम्राज्य में विलय कर लिया |
- छ.ग. पुनः ब्रिटिश शासन में शामिल हो गया।
मराठों की प्रशासनिक व्यवस्था
मराठों की राजस्व व्यवस्था
- आय का प्रमुख साधन भूमि कर था।
- भूमि कर का निर्धारण ग्राम स्तर पर व सूबेदार करता था। फसली वर्ष जून माह में प्रारंभ होता था।
- मराठों ने कौड़ियों के स्थान पर नागपुरी रूपया चलाया था।
- भूमि कर के लिए तालुकादारी व्यवस्था बनाया गया था।
- सूबा शासन के समय राजभाषा मराठी थी।
मराठों की कर व्यवस्था
- 1 हल = 2½ एकड़ ( 1 हेक्टेयर) था।
- टकोली – वार्षिक कर था।
- सायर – आयात-निर्यात कर
- कलाली – आबकारी कर।
- पंडरी – गैर कृषि कार्य पर कर
- सेवई – अपराध कर
- जमींदारी कर – आयातित अनाज पर कर।
- खालसा क्षेत्र – यह मराठों के नियंत्रण में था।
- जमींदारी क्षेत्र – यह जमींदारों के नियंत्रण में था।
मराठों की दूरी व माप पद्धति
1.दूरी
- आधा धाप = एक हॉक
- एक धाप = आया कोस
- एक कोस = तीन मील
2.माप
- एक फोहाई = 49/16 घंटाक
- दो फोहाई = एक अथेलिया
- दो अघोतिया = एक चौथिया
- चार चौथिया = एक काठा
- चार पयली = एक काठा
- बीस काठा = एक खण्डी
- बीस खण्डी = एक गाड़ा
मराठों की न्याय व्यवस्था
- सूबेदार द्वारा मृत्यु दण्ड दिया जा सकता था।
- ब्राह्मण, गोसाई, बैरागी, महिला को छोड़कर
- मराठों की अधिकतर सेना मुसलमान थे।
- छ.ग. में मुसलमानों का आगमन मराठा काल से हुआ था।
मराठों कालीन अधिकारी
- सूबेदार – राज्य प्रमुख
- कमाविंसदार – परगना प्रमुख
- फडनवीस – एकाउन्टेंट
- पोतदार – खजांची
- बरार पाण्डे – गाँव का लगान निर्धारक
- पंडरी पाण्ड – आबकारी अधिकारी
- गौटिया – गाँव प्रमुख
- पटेल – राजस्व वसुली में सहयोगी
- कोतवाल – गाँव का पहरेदार
- चौहान – ग्राम रक्षक (जासूस)
6. पुनः ब्रिटिश शासन
- समय अवधि -1854-1947 ई. तक
- नागपुर राज्य के अंग्रेजी साम्राज्य में विलय के साथ ही 1854 में छत्तीसगढ़ प्रत्यक्ष रूप से ब्रिटिश शासन का अंग बन गया |
- 1 फरवरी 1855 को छत्तीसगढ़ के अंतिम मराठा जिलेदार गोपालराव ने यहां का शासन ब्रिटिश शासन के प्रतिनिधि प्रथम डिप्टी कमिश्नर चार्ल्स सी इलियट को सौप दिया
- उनका अधिकार क्षेत्र वही था जो ब्रिटिश नियंत्रक काल मे मिस्टर एग्न्यु का था
- ब्रिटिश शाशन के अंतर्गत सम्पूर्ण छत्तीसगढ़ सूबे को एक जिले का दर्जा प्रदान किया गया जिसका प्रमुख अधिकारी डिप्टी कमिश्नर कहा गया
- छत्तीसगढ़ में डिप्टी कमिश्नर ने यहां तहसीलदारी व्यवस्था का सूत्रपात किया |
- छत्तीसगढ़ जिले में तीन तहसीलों का निर्माण किया गया – रायपुर ,धमतरी और रतनपुर |
- 1 फरवरी 1857 को तहसीलों का पुनर्गठन कर उनकी संख्या बढ़ाकर 5 कर दी गयी |
- रायपुर ,धमतरी ,रतनपुर , धमधा .नवागढ़ | कुछ समय बाद धमधा के स्थान पर दुर्ग को तहसील मुख्यालय बनाया गया |
- प्रशासनिक सुविधा हेतु 2 नवम्बर 1861 को नागपुर और उसके अधिनस्त क्षेत्रों को मिलाकर ” सेेन्ट्रल प्रोविंस” का गठन किया तथा उसका मुख्यालय नागपुर रखा गया
- 1893 – रायपुर में राजकुमार कॉलेज की स्थापना की गयी |
चार्ल्स सी. इलियट
- छ.ग. के प्रथम डिप्टी कमिश्नर थे।
- इन्होनें छ.ग. में अनेक काम करवाये है।
- इनकी मृत्यु के बाद इन्हें सालहर (रायगढ़) में दफनाया गया है।
- इन्होनें सहायक कमिश्नर व अतिरिक्त सहायक कमिश्नर का पद सुरक्षित किया।
- बिलासपुर के लिए गोपाल राव को अतिरिक्त सहायक कमिश्नर नियुक्त किया गया।
- रायपुर के लिए मोबिबुल हसन को अतिरिक्त सहायक कमिश्नर नियुक्त किया गया।
- छ.ग. में पंजाब की प्रशासनिक व्यवस्था को लागू किया गया।
- ब्रिटिश काल में राजस्व वर्ष 1 मई से 30 अप्रैल होता था।
ब्रिटिश कालीन हुए कार्य
तहसीलों का गठन
- छ.ग. में तीन तहसील 1854 में बने –
- 1. रायपुर
- 2. रतनपुर
- 3. धमतरी
- 1857 में तहसीलों की संख्या 5 कर दी गई –
- 4. धमथा
- 6. नवागढ़
- 8 माह बाद धमधा के स्थान पर दुर्ग को तहसील बनाया गया।
- तहसीलदार व नायब तहसीलदार का पद भारतीयों के लिए सुरक्षित था।
जिलों का गठन
- छ.ग. में तीन जिले 2 नवम्बर 1861 में बने
- 1. रायपुर
- 2. बिलासपुर
- 3. संबलपुर (उड़ीसा चला गया)
- 4. दुर्ग (1905)
संभाग का गठन
- छ.ग. को 1862 में संभाग बनाया गया था।
- 2 नवम्बर 1861 को सेन्ट्रल प्रोविन्स एण्ड बरार का गठन किया गया और मध्यप्रांत में 5 संभाग 1862 में बनाये गये थे, इसमें छ.ग. एक था।
- मध्य प्रांत की राजधानी नागपुर था।
पुलिस व्यवस्था
- 1858 में पुलिस मैनुअल लागू किया गया (IPC, CIPC, CRPC)
- 1862 में पुलिस अधीक्षक नियुक्त किया गया।
- 1862 में पुलिस प्रणाली लागू किया गया।
- एक तहसीलदारी क्षेत्र में 15 थाने होते थे।
जेल व्यवस्था
- 1854 में रायपुर जेल बनाया गया था।
- 1873 में बिलासपुर जेल बनाया गया था।
- 1862 में कैदियों के स्वास्थ्य के लिए नियमित डॉ. की व्यवस्था की गयी।
रेल व्यवस्था
- 1900 ई. में मुम्बई-हावड़ा रेल लाईन जोड़ा गया, जिसमें छ.ग. आ गया।
- रायपुर से धमतरी छोटी लाईन द्वारा जोड़ा गया।
- छ.ग. में रेलवे लाईन का निर्माण बंगाल-नागपुर रेलवे कम्पनी द्वारा किया गया था।
डाक व्यवस्था
- चिठ्ठी का लाना ले जाना घोड़ों से किया जाता था।
- रायपुर डाकघर का प्रथम पोस्ट मास्टर ले. स्मिथ था।
- रानी विक्टोरिया का चित्र अंकित स्टाम्प व टिकट जारी किया गया।
मुद्रा व्यवस्था
- नागपुरी रूपया को बंद कर ब्रिटिश रूपया चलाया गया।
- नागपुरी रूपया को कम्पनी के सौ रूपया के बराबर माना गया।
- रूपया के अदला-बदली के लिए 6 माह का समय दिया गया था।
सड़क व्यवस्था
- 1862 में G.E. (ग्रेट ईस्टर्न) रोड़ नागपुर से संबलपुर बनाया गया था। (N.H. 6)
- अब N.H. 53 के नाम से जाना जाता है।
उद्योग व्यवस्था
- राजनांदगाँव में C.P. मिल लगाया गया था।
- C.P. मिल के निर्माता मुम्बई के मि. J.V. मैकवेथ थे।
- इन्होंने यह मिल 1897 में मेसर्स शावालीस कम्पनी कलकत्ता को बेच दी।
- तब C.P. मिल का नाम बलदकर B.N.C. मिल नाम रखा गया।
छत्तीसगढ़ में 1857 की क्रांति
सोनाखान विद्रोह (1856)
- स्थापना – 1490 में बिसई ठाकुर बिंझवार ने सोनाखान जमींदार की स्थापना किया था।
- नेतृत्व – सोनाखान के जमींदार वीर नारायण सिंह राजपूत थे।
- कारण – अकाल पीड़ितो को खाना उपलब्ध कराना इसके लिए वीर नारायण सिंह ने कसडोल के माखन लाला व्यापारी के गोदाम से अनाज लूटा।
- गिरफ्तार – 2 दिसम्बर 1857 में कैप्टन स्मिथ ने सोनाखान से किया।
- धोखेबाजी – भटगांव, बिलाईगढ़, देवरी व कटगी के जमींदारों ने अंग्रेजों का साथ दिया।
- फाँसी – इसी आरोप में 10 दिसम्बर 1857 को रायपुर के जयस्तंभ चौक फाँसी दे दिया गया।
- अधीक्षक – चार्ल्स इलियट
- शहीद – छ.ग. स्वतंत्रता आंदोलन के प्रथम शहीद कहलाते है।
सुरेन्द्र साय का विद्रोह
- स्थान – संबलपुर (उड़ीसा)
- नेतृत्व – सुरेन्द्र साय चौहान (संबलपुर के जमींदार)
- कारण – उत्तराधिकार युद्ध के कारण हजारीबाग जेल में बंद ।
- इस दौरान वीर नारायण सिंह का बेटा गोविन्द सिंह साथ में था।
- ये 31 अक्टूबर 1857 को जेल से फरार ।
- सजा – 1864 में गिरफ्तार कर असीरगढ़ के किले में भेज दिया गया।
- जहाँ 1884 में खूब यातनाओं के बाद मृत्यु हो गयी।
- इसे छ.ग. स्वतंत्रता आंदोलन के अंतिम शहीद कहते है।
सोहागपुर विद्रोह (15 अगस्त 1857)
- स्थान – सरगुजा
- नेतृत्व – रंगाजी बापू
- विपक्षी – अंग्रेज
सैन्य या सिपाही विद्रोह (18 जनवरी 1858)
- स्थान – रायपुर
- नेतृत्व – हनुमान सिंह पुलिस (बैसवाड़ा के राजपूत)
- पद – रायपुर में सेना के तीसरी बटलियन के लश्कर-ए-मैग्जीन के पद में पदस्थ थे।
- कारन – 1857 के क्रांति का प्रभाव था।
- हत्या – अपने बड़े अधिकारी सार्जेन्ट सीडवैल को गोली मरी थी।
- हनुमान सिंह फरार हो गया लेकिन उसके 17 साथी गिरफ्तार हो गये तथा फाँसी दे दी गई।
नोट – हनुमान सिंह को छ.ग. का मंगल पाण्डे कहते हैं।
सारंगगढ़ का विद्रोह
- स्थान – रायगढ़
- नेतृत्व – कमल सिंह
- विपक्षी – अंग्रेज
उदयपुर का विद्रोह
- स्थापना – सरगुजा
- नेतृत्व – कल्याण सिंह
- विपक्षी – अंग्रेज
छत्तीसगढ़ में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
राष्ट्रीय एकता काल (1857-1885)
- 1857 के क्रांति में हार के बाद आपसी एकता की भावना जागृत हुआ।
- सभी समझ गये आपसी मदभेद के कारण हम 1857 की क्रांति हार गये।
मुम्बई में कांग्रेस अधिवेशन (1889 )
- इसमें छ.ग. के 5 लोग शामिल हुए थे
- माधव राव सप्रे
- वामन राव लाखे
- राम दयाल तिवारी
- बद्रीनाथ साव
- C.M. ठककर
नागपुर में कांग्रेस अधिवेशन (1891)
- इस अधिवेशन में भी छ.ग. के नेताओं ने बढ़-चढ़ कर भाग लिया।
- इस अधिवेशन का अध्यक्ष मद्रास के वकील P.आनंद चार्लु थे।
समित्र मण्डल (1906)
- पं. सुन्दरलाल शर्मा ने समित्र मण्डल का गठन किया।
छ.ग. में कांग्रेस का स्थापना (1906)
- 1906 में छ.ग. में कांग्रेस का स्थापना किया गया।
- इसी दौरान पं. सुन्दर लाल शर्मा ने कांग्रेस की सदस्यता लिया।
- कांग्रेस में शामिल होने वाले छ.ग. से प्रथम व्यक्ति थे।
सूरत अधिवेशन (1907)
- छ.ग. के कांग्रेस दो भागों में बँट गया 1. गरमदल 2. नरमदल
नरमदल के नेता
- पं. सुन्दरलाल शर्मा
- डॉ. शिव राम मुंजे
- डॉ. हरि सिंह गौर
- डॉ. मघोलकर
गरम दल के नेता
- पं. रविशंकर शुक्ल
- माधवराव सप्रे
- दादा साहब खापर्डे
रायपुर प्रांतीय सम्मेलन (1907)
- अध्यक्षता – डॉ. केलकर
- स्वागताध्यक्ष – डॉ. हरि सिह गौर।
- खापर्डे ने सम्मेलन का प्रारम्भ वन्देमातरम् से करने का सुझाव दिया।
- इसको नरम दल ने विरोध तथा खापर्डे नाराज होकर चले गए।
प्रथम छात्र हड़ताल (1907)
- स्थान – स्टेट हाई स्कूल राजनांदगाँव
- नेतृत्व – ठाकुर प्यारे लाल सिंह
माधव राव सप्रे को जेल (1908)
- सप्रे ने तिलक के मराठा व केसरी पत्रिका से प्रभावित हुआ।
- 1907 में हिन्द केसरी प्रकाशित किया।
- इस पत्रिका ने देश का पुर्देव व बम्ब गोले शब्द का प्रयोग किया। इस कारण जेल गए।
सरस्वती पुस्तकालय (1909)
- स्थान – राजनांदगाँव
- स्थापना – ठाकुर प्यारे लाल सिंह
- उदेस्य – राष्ट्रीय चेतना के लिए।
- वर्तमान – डिजिटल लायब्रेरी बनाया गया है।
काव्यकुंब्ज सभा (1912)
- पं. रविशंकर शुक्ल ने काव्यकुंब्ज सभा का गठन किया था।
माल गुजारों का सम्मेलन (1915)
- रायपुर के टाउन हाल में 250 माल गुजारों ने सम्मेलन किया था।
होमरूल आंदोलन (1917)
- छ.ग. में केवल तिलकवादी आंदोलन सक्रिय था।
- 1918 में तिलक व गोपाल कृष्ण गोखले रायपुर आये थे।
- विभिन्न शहरों में होमरूल लीग का स्थापना हुआ था।
- लीग का सम्मेलन 1918 में रायपुर में हुआ तथा सदस्य 1700 से अधिक थे।
- रायपुर – पं. रविशंकर शुक्ल, मूलचंद बागड़ी, सप्रे, लक्ष्मण राव उदगीरकर थे।
- बिलासपुर – ई. राघवेन्द्र राव, कुंज बिहारी अग्निहोत्री, गजाधर साव ,अंबिका प्रसाद वर्मा, मुन्नी लाल स्वामी, गोविंद तिवारी अदि थे .
- दुर्ग – घनश्याम सिंह गुप्त
- राजनांदगाँव – ठाकुर प्यारे लाल सिंह
रायपुर में प्रांतीय सम्मेलन (1918)
- ई. राघवेन्द्र राव व C.M. ठक्कर को कांग्रेस कमेटी का सदस्य बनाया गया।
- इस सम्मेलन में गोपाल कृष्ण गोखले उपस्थित थे।
नोट – पं. सुन्दर लाल शर्मा ने 1918 में छ.ग. का स्पष्ट कल्पना किया था।
रोलेक्ट एक्ट का विरोध (1919)
- छ.ग. के रायपुर, बिलासपुर दुर्ग, राजनांदगाँव, धमतरी, व चांपा आदि में इस काले कानून का विरोध किया गया।
- रायपुर में जुलूस – माधवराव सप्रे, पं. रविशंकर शुक्ल, महंत लक्ष्मी नारायण, वामनराव लाखे ने किया।
- बिलासपुर में जुलूस – ई. राघवेन्द्रराव, छेदीलाल गुप्ता, यदुनंदन प्रसाद, शिव दुलारे ने किया।
- राजनांदगांव में जुलूस ठाकुर प्यारे लाल व खापर्डे ने किया।
नोट – काले वस्त्र धारण कर रैली निकाली गई।
B.N.C. मिल हड़ताल (1920)
- स्थान – मील चाल (राजनांदगाँव)
- नेतृत्व – त्यागमूर्ति अर्जुन ठाकुर प्यारे लाल सिंह
- कारण – मजदूरों का विभिन्न प्रकार से शोषण
- हड़ताल – यह हड़ताल 36 दिनों तक चला था।
- आगमन – इस हड़ताल में राष्ट्रीय नेता V.V. गिरी आये थे व हड़ताल समाप्त किया।
- विशेष – छ.ग. का सबसे बड़ा मजदूर आंदोलन था।
यह आंदोलन 3 बार हुआ था -
आंदोलन | वर्ष | व्यक्ति | कारण |
प्रथम | 1920 | ठाकुर प्यारे लाल | अधिक कार्य व कम वेतन |
द्वितीय | 1924 | ठाकुर प्यारे लाल | मजदूरों के दमनकारी कानून |
तृतीय | 1937 | ठाकुर प्यारे लाल | मजदूरों के वेतन में कटौती |
खिलाफत आंदोलन (1920)
- खिलाफत आंदोलन का असर छ.ग. में भी हुआ एवं इसमें अत्यधिक हिन्दुओ की हत्या की गयी थी ।
- रायपुर – पं. रविशंकर शुक्ल, असगर अली ने आंदोलन किया।
- बिलासपुर – वजीम खाँ, हकीम खाँ व अकबर खाँ ने आंदोलन किया।
कंडेल नहर सत्याग्रह (1920)
- स्थान – कंडेल कुरूद (धमतरी)
- नेतृत्व – 1. पं. सुन्दर लाल शर्मा, 2. छोटे लाल श्रीवास्तव, 3. नारायण राव मेघावाले
- कारण – सिंचाई कर के विरोध में किसानों ने सत्याग्रह किया, गाँव वालों पर 4305 रू. का हर्जाना लगाया।
गाँधी जी का आगमन
- गाँधी जी छ.ग. प्रथम बार 20 दिसम्बर 1920 को आये।
- गाँधी जी पं. सुन्दर लाल शर्मा के निवेदन पर रायपुर स्टेशन पहुँचे।
- गाँधी जी के साथ मौलाना शौकत अली भी थे।
- रायपुर में आनंद समाज सभा में महिलाओं को सम्बोधित किया।
- 21 दिसम्बर को गाँधी जी रायपुर से कार में धमतरी कुरूद पहुँचे।
- गाँधी जी का भाषण कार्यक्रम जानी हुसैन के बाड़े में रखा गया था।
- बाजीराव कृदन्त ने तिलक स्वराज फण्ड के लिए 501 रू. गाँधी जी को भेंट किया।
- गाँधी जी ने नत्थू जी जगताप के यहाँ दोपहर का भोजन किया।
- 21 दिसम्बर को गाँधी जी कंडेल पहुँचे लेकिन उनके पहुंचने से पहले सत्याग्रह सफल हो चुका था।
- इसे छ.ग. का प्रथम सफल सत्याग्रह कहते है।
असहयोग आंदोलन (1920)
- 1920 में कांग्रेस का अधिवेशन नागपुर में आयोजित किया गया।
- गांधी जी को असहयोग आंदोलन के लिए स्वीकृति मिल गई।
इस आंदोलन में निम्न कार्यक्रम हुए
वकालत का त्याग
- छ.ग. से कुल 8 लोगों ने वकालत का त्याग किया था।
- बिलासपुर से ई. राघवेन्द्र राव, ठाकुर छेदी लाल एवं एन. आर. खानखोज।
- दुर्ग से घनश्याम सिंह गुप्त, ठाकुर प्यारेलाल सिंह एवं रत्नाकर
- रायपुर से रामदयाल तिवारी, पं.यादव राव देशमुख
- 4 मार्च 1921 को रायपुर में राष्ट्रीय पंचायत का गठन किया गया।
- राष्ट्रीय पंचायत का मंत्री जसकरण डागा को बनाया गया।
- इस अदालत में 85 मामलों का निपटारा किया गया।
- धमतरी में बाजीराव कृदन्त ने राष्ट्रीय पंचायत का गठन किया।
उपाधियों का त्याग
- छ.ग. में सर्वप्रथम वामनराव लाखे ने राय साहब की उपाधि का त्याग किया था, जनता ने उन्हें लोकप्रिय की उपाधि से सम्मानित किया।
- काजी शमशेर खाँ ने खान साहब की उपाधि त्याग दी।
- बैरिस्टर कल्याण जी मोरार जी थेकर एवं सेठ गोपी किशन ने राय साहब की उपाधि त्याग दी।
- बिलासपुर में यदुनन्दन प्रसाद श्रीवास्तव, लक्ष्मीनारायण वर्मा एवं सोमेश्वर शुक्ल ने सरकारी सेवा त्याग दी।
मघ निषेध
- सुन्दरलाल शर्मा ने रायपुर में मप निषेध एवं शराब की दुकान पर धरना करने का आह्वान किया।
- बिलासपुर में हीरालाल कलार की शराब भट्ठी पर युवाओं ने पिकेटिंग (धरना) किया जिसके कारण शहर में धारा 144 लगाया गया।
- गट्ठा सिल्ली में नारायणराव मेघावाले ने शराब ठेकादारों की नीलामी में भाग नहीं लेने के लिए मनाया।
चुनाव बहिष्कार
- रायपुर जिला परिषद् के सदस्य यादवराव देशमुख ने परिषद् का बहिष्कार किया।
- बाजीराव कृदन्त धमतरी महासमुंद से निर्विरोध निर्वाचित हुए और तत्काल त्याग पत्र दे दिया।
- बैरिस्टर बैकर ने भी विधानसभा के चुनाव का बहिष्कार किया।
शिक्षण संस्थान का बहिष्कार
- रायपुर में राष्ट्रीय विद्यालय की स्थापना के लिए भवन सेठ गोपीकिशन ने दिया तथा संचालन वामनराव लाखे ने किया।
- धमतरी में राष्ट्रीय विद्यालय की स्थापना एवं संचालन बाबू छोटेलाल श्रीवास्तव ने किया।
- बिलासपुर में राष्ट्रीय विद्यालय बद्रीनाथ साव के मकान में किया गया तथा शिवदुलारे मिश्र प्रधानाध्यापक एवं यदुनंदन प्रसाद शिक्षक नियुक्त किये
- राजनांदगाँव में ठाकुर प्यारे लाल ने राष्ट्रीय विद्यालय स्थापित किया।
विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार
- छ.ग. में लोगों ने विदेशी वस्तुओं की होली जलाई।
- खादी प्रचार-प्रसार के लिए रायपुर में चरखा वितरण किया गया।
- रावणभांटा मैदान में खादी सप्ताह मनाया गया।
- अर्जुमन बेगम ने खादी सप्ताह का संचालन किया।
- धमतरी में बाबू छोटेलाल श्रीवास्तव ने अपने घर में खादी उत्पादन केन्द्र खोला।
राष्ट्रीय नेताओं का आगमन
- डॉ. राजेन्द्र प्रसाद चक्रवर्ती राज गोपालाचारी सुभद्रा कुमारी चौहान के साथ धमतरी का भी का दौरा किया।
- सेठ गोविंददास मौलाना कुतुबुद्दीन एवं सेठ जमुनालाल बजाज ने रायपुर के गाँधी चौक में भाषण दिया।
माखनलाल चतुर्वेदी की गिरफ्तारी
- 12 मार्च 1921 को इन्होंने बिलासपुर के शनिचरी पड़ाव में ओजस्वी भाषण दिया।
- 12 मई 1921 को चतुर्वेदी जी को राजद्रोह के तहत जबलपुर से गिरफ्तार किया गया।
- 5 जुलाई 1921 में चतुर्वेदी जी को बिलासपुर जेल लाया गया।
- बिलासपुर जेल में ही चतुर्वेदी जी ने “पुष्प की अभिलाषा” “पर्वत की अभिलाषा” एवं “पुरी नहीं सुनोगे तान” राष्ट्रप्रेम से ओतप्रोत काव्य की रचना की।
- 4 मार्च 1922 को चतुर्वेदी पत्रिका के संपादक थे।
- 5 फरवरी 1922 में चौरा-चौरी काण्ड हुआ।
- इस हिंसक से गांधी जी दुखी हुए और 12 फरवरी को आंदोलन समाप्त करने की घोषणा कर दिया गया।
- छ.ग. में पं. सुन्दरलाल शर्मा, नारायणराव मेघावाले, अब्दुल रऊफ,
- भगवती प्रसाद मिश्र आदि नेताओं को अंग्रेजों ने गिरफ्तार कर लिया।
- पं. सुन्दरलाल शर्मा ने जेल में रहकर 22 मई 1922 को जेलपत्रिका या कृष्णजन्म पत्रिका निकाला।
नोट – छ.ग. असहयोग आन्दोलन को किसान सत्याग्रह के रूप में चलाया गया, 1921 में खादी सप्ताह रावणभांटा मैदान रायपुर में मनाया गया था।
रायपुर प्रांतीय अधिवेशन (1922)
- अध्यक्षता – उमाकांत बलवंत पाटे।
- स्वागताध्यक्ष, पं. रविशंकर शुक्ल ।
- डिप्टी कमिश्नर क्लार्क एवं पुलिस कप्तान जोन्स ने पाँच निःशुल्क टिकट की माँग किया, जिसे पं. रविशंकर शुक्ल ने देने से मना कर दिया।
- इस घटना से नाराज होकर डिप्टी कमिश्नर एवं पुलिस कप्तान ने सभा में जबरन पुसना थाहा जिसे पं. रविशंकर शुक्ल जी ने घुसने नहीं दिया।
- पं. रविशंकर शुक्ल को गिरफ्तार कर लिया गया जिससे जनता में आक्रोश फैल गया था।
- डिप्टी कमिश्नर एवं कप्तान जोन्स ने बाद में टिकट खरीदकर सभा में प्रवेश किया।
- इस घटना की चर्चा गांधी जी ने अपने पत्रिका नवजीवन में किया है।.
सिहावा जंगल सत्याग्रह (1922)
- नेतृत्व – श्याम लाल सोम , पंचम सिंह , विश्वभर पटेल , शोभराम साहू
- कारण – आदिवासियों का वन में प्रवेश व वन के उपयोग पर प्रतिबन्ध लगाना।
- इसे छत्तीसगढ़ का प्रथम जंगल सत्याग्रह कहते है।
नोट – इसी आंदोलन में नेतृत्वकारी के गिरफ्तार हो जाने के पश्चात् आंदोलन का नेतृत्व पंडित सुंदरलाल शर्मा ने किया।
स्वराज पार्टी का गठन (1923)
- छत्तीसगढ़ में विभिन्न नेताओ ने स्वराज पार्टी में भाग लिया।
- रायपुर – पंडित रविशनकर शुक्ल , शिवदास डागा।
- बिलासपुर – इ राघवेंद्रराव, बैरिस्टर छेदीलाल।
- दुर्ग – घनश्याम सिंह गुप्त
नोट – मध्यप्रांत में स्वराज पार्टी को 70 में से 42 सीट जित मिली।
झंडा सत्याग्रह (1923)
- यहाँ सत्याग्रह जबलपुर से शुरू हुआ था, और बाद में नागपुर इसका प्रमुख केंद्र बन गया था।
- कांग्रेस के प्रतिनिधियों ने नागपुर में झंडा लेकर शांति पूर्ण जुलुस निकलने का कार्यक्रम बनाया था जिसे झंडा सत्याग्रह के नाम से जाना जाता है।
- झंडा सत्याग्रह का दूसरा चरण बिलासपुर में शुरू किया गया था।
- पंडित रविशंकर शुक्ल झंडा सत्याग्रह के लिए नागपुर गए थे।
- बिलासपुर – क्रांति कुमार भारती
- धमतरी – पंडित सुन्दर लाल शर्मा
नोट – इसमें सत्याग्रही अपने हाथ में झंडा लेकर प्रतिबंधित क्षेत्र प्रवेश करता था और बंदी बना लिया जाता था
काकीनाड़ा अधिवेशन (1923)
- काकीनाड़ा (आंध्रप्रदेश) में 1923 का कांग्रेस अधिवेशन हुआ था।
- इस अधिवेशन में छ.ग. के कार्यकर्ताओं ने पैदल बस्तर होते हुए काकीनाड़ा जाने का निश्चय किया था।
- नेतृत्व – नारायणराव मेघावाले
- सहयोगी – 1. सुन्दरलाल शर्मा, 2. श्यामलाल गुप्ता, 3. गिरधारी लाल तिवारी, 4. रामजी लाल सोनी, 5. श्यामलाल सोम
हिन्दु मुस्लिम दंगा (1924)
- धमतरी में हिन्दु मुस्लिम दंगा हुआ, इसमें हिन्दुओ को मुसलमानो ने क्रूरता से मारा था ।
- पं. सुन्दरलाल शर्मा ने दोनों पक्षों में समझौता करवाया।
- दुर्ग के शेख मुजीमुद्दीन ने रायपुर में जार्ज पंचम के मूर्ति में चारों तरफ तार लगवा दिया था।
अछुतोद्वार कार्यक्रम (1925)
- पं. सुन्दरलाल शर्मा ने छ.ग. के अछुतोद्वार के लिए आंदोलन चलाया था।
- घनश्याम सिंह, छविराम चौबे एवं ठाकुर प्यारेलाल सिंह उनके सहयोगी थे।
- छबिराम चौबे ने 21 दिन का छुआछुत के विरोध में उपवास रखा था।
- पं. शर्मा ने सतनामियों को जनेऊ धारण कराया।
- पं. शर्मा के प्रयास से रायपुर में सतनामी आश्रम, हरिजन पुत्री शाला, छात्रावास एवं वाचनालय स्थापित किया।
- पं. शर्मा ने रायपुर में सत्याग्रह आश्रम की स्थापना किया था।
- महंत नैनदास ने सतनामियों को संबोधित करते हुए कहा कि वे गो वय
- निषेध, अहिंसा शराब एवं मादक पदार्थों के सेवन का प्रयोग न करे।
- अछुतोद्वार के क्षेत्र में पं. सुन्दरलाल शर्मा को गांधी जी ने अपना गुरू कढ़ा था।
- पं. सुन्दरलाल शर्मा ने सतनामियों को राजिम के राम मंदिर में प्रवेश दिलाया था।
सविनय अवज्ञा आंदोलन (1930)
- 6 अप्रैल 1930 को गाँधी जी ने डांडी में नमक कानून तोड़ कर इस आंदोलन की शुरूआत किया।
- छ.ग. में यह सविनय अवज्ञा आंदोलन जंगल सत्याग्रह के रूप में चलाया गया था।
इस दौरान छ.ग. में निम्न कार्यक्रम हुए
रायपुर
- सर्वप्रथम छ.ग. में पं. रविशंकर शुक्ल ने हाड्रोक्लोरिक एसिड (HCL) एवं सोडे से नमक बनाकर नमक कानून तोड़ा।
- रायपुर में 6 अप्रैल से 13 अप्रैल 1930 तक राष्ट्रीय सप्ताह मनाया गया।
- महाकौशल राजनीतिक परिषद् के सम्मेलन में प्रांतीय युद्ध समिति का गठन किया गया।
- रायपुर में वानर सेना के संस्थापक बलीराम आजाद थे।
- यति यतनलाल इस सेना के संचालक थे।
- रायपुर का ब्राम्हण पारा इसका प्रमुख केन्द्र था।
- वानरसेना का प्रमुख कार्य नेताओं को संदेश पहुँचाना शहर में जुलूस निकालना एवं छोटी सभाएँ आयोजित करना था।
- रायपुर के आजाद चौक का नामकरण इसके उपनाम आजाद पर रखा गया है।
- रक्षाबंधन के दिन 1932 में बलीराम दुबे “आजाद” एवं रामाधार नाई को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया।
बिलासपुर
- बिलासपुर में वानर सेना का गठन वासुदेव देवसर ने किया था।
- बिलासपुर में सविनय अवज्ञा आंदोलन का नेतृत्व दिवाकर कार्लीकर ने किया था।
- 1930 में बिलासपुर जिला राजनीतिक परिषद् सम्मेलन ठाकुर छेदीलाल की अध्यक्षता में हुआ था।
- क्रांति कुमार भारती ने बिलासपुर के टाऊन हॉल में तिरंगा झण्डा फहराया था।
दुर्ग
- नरसिंह प्रसाद अग्रवाल, रामप्रसाद देशमुख, तामस्कर एवं रत्नाकार ने किसान सभा का गठन किया।
- गणेश सिंगरौल एवं गंगाधर प्रसाद चौबे ने विद्यार्थी कांग्रेस की स्थापना किया था।
मुंगेली
- मुंगेली में रामगोपाल तिवारी ने नाले के पानी एवं मिट्टी से नमक बनाकर नमक कानून तोड़ा था
- गंगाधर राव दीक्षित ने बनाये गए नमक को 50 रूपये में खरीदा।
धमतरी
- यहाँ नमक कानून नारायणराव मेघावाले ने तोड़ा था।
- बनाए गए नमक को करण जी तेजपाल ने 61 रूपये में खरीदा था।
- नत्थूजी जगताप के मकान में 1 मई 1930 को सत्याग्रह आश्रम खोला गया।
छ.ग. के पाँच पाण्डव
- वामनराव लाखे – धर्मराज (युधिष्ठर )
- मंहत लक्ष्मीनारायण दास – भीम
- ठा.प्यारे लाल सिंह – अर्जुन
- हिरमन सिंह राजपूत – नकुल
- शिवदास डागा – सहदेव
नोट – इन पाँच पाण्डव ने रायपुर में सविनय अवज्ञा आंदोलन को स्थापित किया।
जंगल सत्याग्रह
- छ.ग. में जंगल सत्याग्रह सविनय अवज्ञा आंदोलन का हिस्सा था।
रूद्री नवागाँव (1930)
- स्थान – धमतरी
- नेतृत्व – 1. छोटेलाल श्रीवास्तव, 2. नत्थूजी जगताप
गट्टा सिल्ली (1930)
- स्थान – ठेभली सिहावा धमतरी
- नेतृत्व – 1. नारायणराव मेघावाले 2. नत्थूजी जगताप 3. छोटे लाल श्रीवास्तव
तमोरा जंगल सत्याग्रह (1930)
- स्थान – तमोरा महासमुंद
- नेतृत्व – 1. यति यतन लाल 2. शंकर राव गढ़वाल
- विशेष – बालिका दयावती ने एम. पी. दुबे अधिकारी को तमाचा जड़ दिया, इसलिए पुलिस ने बर्बरता दिखाई थी।
लभरा जंगल सत्याग्रह (1930)
- स्थान – लभरा महासमुंद
- नेतृत्व – अरिमर्दन गिरि
मोहवना पोड़ी जंगल सत्याग्रह ( 1930 )
- स्थान – पोड़ी दुर्ग
- नेतृत्व – नरसिंह अग्रवाल
पोड़ी ग्राम जंगल सत्याग्रह (1930)
- स्थान – सीपत, बिलासपुर
- नेतृत्व – रामाधार दुबे
बांधाखार जंगल सत्याग्रह (1930)
- स्थान – बांधाखार कटघोरा कोरबा
- नेतृत्व – मनोहर लाल शुक्ल
सारंगढ़ जंगल सत्याग्रह (1930)
- स्थान – सारंगढ़ रायगढ़
- नेतृत्व – 1. धनीराम 2. जगतराम 3. कुंवरभान
द्वितीय गोलमेज सम्मेलन (1931)
- छ.ग. से रामानुज प्रताप सिंह देव लंदन गये थे।
सविनय अवज्ञा आंदोलन द्वितीय चरण (1932)
- द्वितीय गोलमेज सम्मेलन असफल होने के कारण गांधी जी ने पुनः सविनय अवज्ञा आंदोलन प्रारंभ किया।
- छ.ग. में अनेक कार्यवाहक (डिटेक्टर) चुने गये थे।
- छ.ग. में प्रमुख डिटेक्टर पं. रविशंकर शुक्ल थे।
- इस आंदोलन का रायपुर में नेतृत्व श्रीमति राधाबाई ने किया था।
- दुर्ग जिले में नमक कानून घनश्याम सिंह गुप्त ने तोड़ा था।
- राजनांदगाँव जिले में ठाकुर प्यारेलाल सिंह ने कर ना देने का आह्वान किया।
- 4 अगस्त 1932 को रायपुर में बंदी दिवस मनाया गया।
पत्र बम (सांकेतिक प्रहार)
- दो स्याही सोख कागजों के मध्य फास्फोरस का टुकड़ा चिपका कर पत्र बम बनाया जाता था।
- यह पत्र लिफाफे में बंद कर राष्ट्र विरोधी लोगो के यहाँ भेजा जाता था जिससे उनके चेहरे एवं हाथ जल जाते थे।
- रामनारायण मिश्र को इस कार्य के लिए अंग्रेजो ने गिरफ्तार कर लिया ।
खादी प्रचार
- कीका भाई की दुकान पर धरना देने आ रहे बिसाहू तेली को खादी पहनने के कारण अंग्रेजों ने जेल में पीटा।
- ठाकुर छेदीलाल ने सदर बाजार बिलासपुर में धरना दिया। जिसके कारण उनके ऊपर 250 रूपये का जुर्माना लगाया गया।
- घनश्याम सिंह गुप्त को तिरंगा फहराने के कारण दुर्ग में गिरफ्तार किया गया।
गाँधी जी का द्वितीय आगमन (1933)
- गाँधी जी का यात्रा कार्यक्रम – दुर्ग > कुम्हारी > रायपुर > धमतरी > राजिम > रायपुर > बिलासपुर।
- 22 नवम्बर शाम 6 बजे दुर्ग स्टेशन में उतरे ।
- गाँधी जी 22 से 28 नवम्बर 1933 में 5 दिनों के लिए छ.ग. आये थे। इनका उद्देश्य हरिजन उत्थान था।
- गाँधी जी के साथ मीराबेन, ठक्कर बाबा, निजी सचिव महादेव देसाई थे।
- इसी दौरान राजिम में सुन्दर लाल शर्मा को अपना गुरू कहा था।
- गाँधी जी ने नवजीवन का नाम बदलकर हरिजन सेवक कर दिया था। रामदयाल तिवारी ने गाँधी जी से प्रेरित होकर 1936 में गांधी मीमांसा की रचना किया।
- रामदयाल तिवारी को छ.ग. का विद्यासागर कहते है।
- धमतरी प्रवास के दौरान गांधी जी ने सतनामी मोहल्ले में भोजन किया।
- अपनी हजामत माखन नामक नाई से बनवाया ।
- बिलासपुर प्रवास के दौरान गांधी जी का स्वागत छेदीलाल गुप्ता ने किया था।
- दोपहर का भोजन कुंज बिहार अग्निहोत्री के यहाँ किया था।
- गाँधी चौक में विशाल सभा को सम्बोधित किया।
रायपुर जिला कौंसिल (1934)
- रायपुर जिला कौंसिल का शासन पं. रविशंकर शुक्ल को अंग्रेजों ने सौंपा।
- केन्द्रीय व्यवस्थापिका सभा के निर्वाचन में घनश्यामसिंह गुप्त सदस्य चुने गए।
भारत अधिनियम (1935)
- इस अधिनियम के द्वारा बरार को मध्यप्रांत मिला दिया गया।
- 1935 में पं. जवाहरलाल नेहरू रायपुर आये थे।
- दिसम्बर 1935 में राजेन्द्र प्रसाद रायपुर आये थे।
भारत का प्रथम निर्वाचन (1937)
- इस समय छ.ग. मध्यप्रांत का हिस्सा था।
- कांग्रेस को 10 राज्यों में से 8 राज्यों में पूर्ण बहुमत मिला था।
- मध्यप्रांत में भी कांग्रेस को पूर्व बहुमत मिला।
- छ.ग. से निर्वाचित सदस्य – 1. रविशंकर शुक्ल (रायपुर) 2. ई. राघवेन्द्रराव (बिलासपुर) 3. घनश्याम सिंह गुप्त (दुर्ग)
मंत्रिमण्डल
- मुख्यमंत्री – एन वी खरे
- शिक्षामंत्री – पं. रविशंकर शुक्ल
- खरे के त्यागपत्र पश्चात
- मुख्यमंत्री – पं. रविशंकर शुक्ल (प्रथम)
- गवर्नर – ई. राघवेन्द्र राव (प्रथम)
- विधानसभा अध्यक्ष – घनश्याम सिंह गुप्त (प्रथम)
छुईखदान जंगल सत्याग्रह (1938 )
- समारू बरई को अंग्रेजों ने गोली मार कर हत्या कर दी।
बादरा टोला सत्याग्रह ( 1939 )
- रामाधीन गोंड़ को अंग्रेजों ने गोली मार कर हत्या कर दी।
मंत्रिमण्डल का त्यागपत्र (1939)
- भारत में वायसराय ने मंत्रिमण्डल को सूचना दिये बिना द्वितीय विश्व युद्ध में भारत को झोंक दिया।
- इससे भारत के मंत्रिमण्डल नाराज हो गये।
- इसलिए 15 नवंबर 1939 को मंत्रिमण्डल ने त्यागपत्र दे दिया।
नोट – 22 दिसम्बर 1939 को मुक्ति दिवस के रूप में मनाया गया।
व्यक्तिगत सत्याग्रह (1940)
- छ.ग. के प्रथम सत्याग्राही पं. रविशंकर शुक्ल थे।
- सत्याग्रहीयों का एक जत्था पैदल दिल्ली के लिए प्रस्थान किया उन्हें ललितपुर में गिरफ्तार कर लिया गया।
- इस सत्याग्रह में छ.ग. से लगभग सभी नेता शामिल थे।
- इस समय रायपुर कांग्रेस भवन का उद्घाटन सरदार वल्लभ भाई पटेल ने किया था।
भारत छोड़ो आंदोलन (1942)
- 8 अगस्त 1942 को पूरे भारत में भारत छोड़ो आंदोलन शुरू हुआ।
- छ.ग. से मुम्बई अधिवेशन में भाग लेने वाले कार्यकर्ता थे –
- पं. रविशंकर शुक्ल
- घनश्याम सिंह गुप्त
- महत लक्ष्मी नारायण
- शिवदास डागा
- यति यतनलाल
- ठाकुर छेदी लाल आदि
मल्कानपुर स्टेशन में गिरफ्तारी
- तत्कालीन मध्यप्रांत की सीमा पर स्थित रेलवे स्टेशन मलकापुर पर छ.ग. के प्रमुख कांग्रेस कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार कर लिया गया।
- गिरफ्तारी किए गए कार्यकर्ता –
- पं. रविशंकर शुक्ल
- यति यतनलाल
- द्वारिका प्रसाद मिश्र
- ठाकुर छेदीलाल
- शिवदास डागा
- महंत लक्ष्मी नारायण
- दुर्गा शंकर मेहता
रायपुर का योगदान
- रणवीर सिंह शास्त्री, कमल नारायण शर्मा, जयनारायण पांडेय, त्रैतानाच, भगवती चरण शुक्ल
- रायपुर मे 9 अगस्त 1942 को जनता द्वारा जुलुस निकाला गया जिसमें “अंग्रेजों भारत छोड़ो” के नारे लगे।
नोट – इस आंदोलन के दौरान अग्रदूत पत्रिका प्रकाशित किया गया था।
बिलासपुर का योगदान
- कालीचरण, बै. छेदीलाल, यदुनंदन प्रसाद, राजकिशोर वर्मा, चिंतामणी आदि को गिरफ्तार किया गया।
- कालीचरण को सभा करते समय गिरफ्तार किया गया।
- 2 अक्टूबर 1942 को भुवन भास्कर सिंह ने विशाल जुलुस निकाला।
दुर्ग का योगदान
- रघुनन्दन सिंगरौल एक उत्साही युयक था , जो कोई असाधारण कार्य करना चाहता था।
- रघुनन्दन सिंगरौल ने मिलकर अपने साथियो के साथ दुर्ग की कचहरी में आग लगा दिया था।
- जेल से रिहा होने के बाद फिर रघुनन्दन सिंगरौल ने जशवंत सिंह के सहयोग से नगरपालिका भवन में आग लाया दिया था।
रायपुर सडयंत्र केश (1942)
- नेतृत्व – परसराम सोनी
- उद्देश्य – बम बनाना
- मुखबिर – शिवनंदन प्रसाद
- परिणाम – असफल रहा
- सहयोगी – गिरिलाल लोहार , रणबीर सिंह , सुधीर मुखर्जी , दशरथ लाल दुबे , प्रेमचंद वासनिक , क्रांतिकुमार भारती , बिहारी चौबे
रायपुर डायनामाइट केस (1942)
- नेतृत्व – बिलखनारायण अग्रवाल
- उद्देश्य – जेल के दिवार को डायनामाइट से उड़ाना
- मुखबिर – अविनाश संग्राम
- परिणाम – असफल रहा
- सहयोगी – ईश्वररियाचरण शुक्ल , जयनारायण पांडेय , नगरदास बावरिया सुधीर मुखर्जी
मध्यप्रांत में दूसरा चुनाव (1946)
- मुख्यमंत्री – पं. रविशंकर शुक्ल ।
- गृहमंत्री – द्वारिका प्रसाद मिश्र (कसडोल के विधायक)
- विधान सभा अध्यक्ष – घनश्याम सिंह गुप्त
- संसदीय सचिव – रामगोपाल तिवारी
संविधान निर्मात्री सभा (1946)
- मध्यप्रांत से 17 सदस्य निर्वाचित हुये थे।
- इसमें छ.ग. से 6 सदस्य निर्वाचित हुये थे।
निर्वाचित 6 सदस्य
- देशी रियासत से 3 सदस्य
- राय साहब रघुराज सिंह (सरगुजा)
- किशोरी मोहन त्रिपाठी (रायगढ़)
- 3. रामप्रसाद पोटाई (कांकेर)
- ब्रिटिश प्रांत से 3 सदस्य
- पं. रविशंकर शुक्ल (रायपुर)
- बै. छेदीलाल (बिलासपुर)
- घनश्याम सिंह गुप्त (दुर्ग)
नोट – घनश्याम सिंह गुप्त को हिन्दी प्रारूप समिति का अध्यक्ष चुना गया था, 15 दिसंबर 1947 को सरदार पटेल छ.ग. आये थे।
स्वतंत्रता दिवस (1947)
- 15 अगस्त 1947 को मध्यप्रांत के राज्यपाल मंगलदास पकवासा थे।
- छ.ग. के नेताओं ने विभिन्न स्थानों पर झण्डा फहराया
- पं. रविशंकर शुक्ल (मुख्यमंत्री) – सीताबाड़ी (नागपुर)
- वामनराव लाखे – गांधी चौक (रायपुर)
- R.K. पाटिल (खाद्य मंत्री) – पुलिस लाईन (रायपुर)
- रामगोपाल तिवारी (संसदीय सचिव) – गांधी चौक (बिलासपुर)
- घनश्याम सिंह गुप्त – दुर्ग
मुख्य बिन्दु
- रानी दुर्गावती का बलिदान दिवस 24 जून को मनाया जाता है।
- छ.ग. के सत्यम् शिवम् सुन्दरम् थे –
- 1. गुरू घासीदास
- 2. पं. सुन्दरलाल शर्मा
- 3. ठाकुर प्यारे लाल सिंह
- खूबचंद बघेल ने इन्हें त्रिमूर्ति कहा है।
- 9 सितम्बर 1942 को नागपुर हाईकोर्ट भवन पर ठाकुर राम कृष्ण सिंह ने तिरंगा फहराया था।
छत्तीसगढ़ किसान आंदोलन
राजनांदगाँव में बेगारी विरोधी आंदोलन (1879)
- इसका नेतृत्व सेवता सिंह ठाकुर ने किया था।
- बेगारी प्रथा के विरुद्ध सर्वप्रथम आवाज सेवता ठाकुर ने उठायी .
- अंग्रेजों ने इस आंदोलन को कुचल दिया।
छुईखदान आंदोलन (1938)
- इसका नेतृत्व रामनारायण मिश्र (हर्बुल) ने किया।
- यह अहिंसक आंदोलन था इसकी तुलना बारदोली सत्याग्रह से की जाती हिअ .
- गांधी जी की सलाह से यह आंदोलन स्थगित कर दिया गया।
डौडी लोहारा आंदोलन (1939)
- इसका नेतृत्व नरसिंह प्रसाद अग्रवाल व सरजू प्रसाद अग्रवाल ने किया।
- किसानों ने माली थोरा बाजार में आम सभा किया व गिरफ्तार हुये।
कांकेर आंदोलन (1944)
- इसका नेतृत्व तीन लोगों ने किया
- 1. इन्दरू केवट (कांकेर के गाँधी)
- 2. गुलाब हटना
- 3. कंगलू कुम्हार
- 200 बैलगाड़ियों के साथ 429 किसान गिरफ्तार हुये।
- आंदोलन की व्यापकता को देखकर कांकेर के राजा भानुप्रताप देव ने किसानों से समझौता कर लिया।
सक्ती में आंदोलन (1947 )
- कारण – राजा लीलाधर सिंह की कृषि नीति।
- राजा ने पुराने गौटियाओं को बेदखल कर दिया था।
- पुराने गौटियाओं एवं किसानों ने बेदखल किये गये खेतों से फसल काट लिया जिसके कारण उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया।
- आजादी के बाद भी सक्ती में कृषक आंदोलन जारी रहा है।
सामाजिक आंदोलन
- छ.ग मुक्ति मोर्चा – शंकर गुहा नियोगी (विधायक)
- सहकारिता आंदोलन – ठाकुर प्यारे लाल सिंह
- मजदूर आंदोलन (1920) – ठाकुर प्यारे लाल सिंह
- अस्पृश्यता आंदोलन -पं. सुन्दरलाल शर्मा
- किसान आंदोलन – खूबचंद बघेल
- सामाजिक क्रांति के जनक – गुरु घासीदास
इन्हें भी देखे
- छत्तीसगढ़ का इतिहास
- छत्तीसगढ़ का प्राचीन इतिहास
- छत्तीसगढ़ का मध्यकालीन इतिहास
- छत्तीसगढ़ का आधुनिक इतिहास
- छत्तीसगढ़ के प्रमुख राजवंश
- छत्तीसगढ़ में कलचुरी वंश की शासन व्यवस्था
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