ब्रिटिश शासन के अंतर्गत छ.ग. में प्रमुख विद्रोह एवं क्रांति, ब्रिटिश कालीन छत्तीसगढ़ में विद्रोह
ब्रिटिश शासन के अंतर्गत छ.ग. में प्रमुख विद्रोह –
1. सोहागपुर का विद्रोह —
15/aug/1857 को यह विद्रोह सरगुजा में हुआ था,
इसके नेता रंगाजी बापू थे,
2. सोनाखान का विद्रोह –
- यह विद्रोह 1856 में हुआ था,
- स्थान – रायपुर जिले के, तहसील बलोदाबजार के सोनाखान नामक स्थान पर हुआ था,
- सोनाखान के जमींदार वीरनारायण सिंह ने इस विद्रोह का नेतृत्व किया था,
- वीरनारायण सिंह बिंझवार जाती के थे,
- इस विद्रोह का उद्देश्य “ अकाल पीड़ित” लोगो को खाना उपलब्ध कराना था,
- यह विद्रोह अकाल के दौरान सरकार के दमनकारी नीतियों के विरुध्द था,
- वीरनारायण सिंह ने कसडोल के माखनलाल नामक व्यापारी के गोदाम से अनाज लुटा,
- भटगांव, बिलाईगढ़, देवरी, एवं कटंगी के जमींदारों ने अंग्रेजो का साथ दिया,
- इसी आरोप में 10 दिसंबर 1857 को रायपुर के जयस्तंभ चौक में फांसी दे दिया गया,
- उस समय के तात्कालिक अधीक्षक – चार्ल्स इलियट थे,
- वीरनारायण सिंह छ.ग. स्वतंत्रता आन्दोलन के प्रथम शहीद थे,
3. सुरेन्द्र साय का विद्रोह —
- ये संबलपुर के जमींदार थे, संबलपुर में इन्होने विद्रोह किया था,
- उत्तराधिकारी युध्द के कारण हजारीबाग़ जेल में बंद थे,
- 31/oct/1857 को जेल से फरार हो गये,
- 23/ jan/1864 को पुनः गिरफ्तार कर लिए गए, और इन्हें असीरगढ़ के किले में कैद करके रखा गया,
- किले में इन्हें मृत्युपर्यंत यातनाएँ दी गई, जिससे 1884 में इनकी मृत्यु हो गई,
- इन्हें छ.ग. स्वतंत्रता आन्दोलन का अंतिम शहीद कहा जाता है,
- उस समय के तात्कालिक ज्युडिशियल कमिश्नर – कैम्पवेल ने इसका पक्ष लिया था,
- इस आन्दोलन में सुरेन्द्र साय की सहायता, वीरनारायण सिंह के पुत्र गोविन्द सिंह ने की थी,
4. उदयपुर का विद्रोह – ( 1858 )
- उदयपुर के राजकुमारों ने यह विद्रोह किया था,
- कुछ समय के लिए उन्होंने अपना स्वतंत्र राज्य स्थापित कर लिया था,
- 1859 में इन्हें गिरफ्तार कर कालापानी की सजा देकर अंडमान भेज दिया गया,
5. सैन्य विद्रोह ( jan/ 1858 )
- 1857 की क्रांति में वीरनारायण सिंह द्वारा प्रभावित होकर बैंसवारा के राजपूत हनुमान सिंह ने विद्रोह कर दिया,
- हनुमान सिंह रायपुर सैनिक टुकड़ी के तीसरी सेना के मेग्जिन लश्कर थे,
- हनुमान सिंह ने jan/ 1858 को विद्रोह कर मेजर सिडवेल की हत्या कर दी,
- अंग्रेजो ने इस विद्रोह को दबा दिया,हनुमान सिंह के 17 साथियो को पकड़ कर , 17/ जन/ 1858 को फांसी की सजा दे दी,
- हनुमान सिंह हत्या कर फरार हो गया,
- हनुमान सिंह को छ.ग. का मंगल पाण्डेय कहा जाता है,
छ.ग. के प्रमुख आदिवासी विद्रोह –
1. हल्बा विद्रोह ( 1774 – 79 )
- छ.ग. का प्रथम आदिवासी विद्रोह था,
- इस समय बस्तर के शासक राजा दलपत देव थे,
- यह विद्रोह बस्तर के हल्बा आदिवासियों द्वारा किया गया था,
- इस विद्रोह का नेतृत्व 1774 में अजमेर सिंह ने किया था
- विद्रोह का प्रमुख करण – डोंगर में बस्तर के रा जा से मुक्त एक स्वतंत्र राज्य की स्थापना करना चाहते थे,
- अजमेर सिंह को हल्बा आदिवासी एवं सैनिको का समर्थन प्राप्त था,
- इस विद्रोह का अंग्रेजो ने बहुत ही क्रूरता के साथ दमन किया था,
- केवल एक ही हल्बा विद्रोही अपनी जान बचा कर भाग सका था,
- परिणाम – बस्तर से चालुक्य शासन का अंत हो गया, मराठो का उस क्षेत्र में प्रवेश हुआ, बाद में ब्रिटिश का नियंत्रण हुआ,
- यह घटना बस्तर के इतिहास की प्रमुख घटना थी,
2.भोपाल पटनम संघर्ष (1795 ई.) –
- यह विद्रोह बस्तर के गोड आदिवासियों के द्वारा हुआ था,
- यह विद्रोह aprl/ 1795 में हुआ था
- इसविद्रोह का मुख्य कारण – कैप्टन ब्लंट के बस्तर में इन्द्रावती पार कर भोपाल पटनम जाने के प्रयास में उन्हें रोकने के लिए, यह विद्रोह हुआ था,
- परिणाम – गोडो ने ब्लंट को प्रवेश नही करने दिया, जिससे ब्लंट को वापस लौटना पड़ा,
3. परलकोट का विद्रोह – (1824 – 25 ई.)
- परलकोट – यह पुरानी जमिदारियो में से एक है,
- परलकोट तीन नदियों के संगम पर स्थित है, – कोटरी + निबरा + गुडरा आदि
- परलकोट के जमींदार सूर्यवंशी राजपूत थे, जिनकी उपाधि भूमिया थी,
- बस्तर भूषण के लेखक – पं. केदारनाथ ठाकुर के अनुसार यहाँ के जमींदार माड़िया गोंड़ थे,
- इस विद्रोह के प्रमुख नेता गेंदसिंह थे, ये 1824 में परलकोट के जमींदार थे,
- इस विद्रोह का प्रमुख कारण मराठो एवं ब्रिटिश सेनाओं का बस्तर में प्रवेश था,
- मराठो एवं अंग्रेजो की शोषण निति से अबुझमाड़िया की जनता तंग आ गई थी,
- ये अबूझमाड़िया मराठो और अंग्रेजो द्वारा लगाये गए करो का विरोध कर रहे थे,
- 24/ dec/ 1824 में गेंदसिंह के आव्हान पर सभी आदिवासी परलकोट में एकत्रित हो गये थे,
- 4/jan/1825 तक अबूझमांड – चाँद तक छ गये थे,
- इन विद्रोहियों का संकेत चिन्ह – धावड़ा वृक्ष की टहनिया थी,
- वृक्ष के पत्ते सूखने से पहले वर्ग विशेष को क्रन्तिकारी के पास जाने की हिदायत थी,
- विद्रोह का संचालन अलग-अलग टुकडियो में मांझी लोग करते थे,
- विद्रोहियों के आक्रमणों,लूटपाट तथा कत्ले आम से मराठो और अंग्रेजो में दहशत फ़ैल गई,
- छ.ग. अधीक्षक मि. एग्न्यू की पहल पर 4/ जन/ 1825 को चाँद के पुलिस अधीक्षक कैप्टन वेव के नेतृत्व में एक सेना विद्रोहियों का दमन करने के लिए परलकोट में बुलवाई गई थी,
- 10/जन/1825 को मराठो व अंग्रेजो ने परलकोट को घेर लिया था, व गेंदसिंह और उनके साथियो को गिरफ्तार कर मुकदमा चलाया गया,
- 20/ जन/1825 को गेंदसिंह को उसके महल के सामने अंग्रेजो ने फांसी दे दी,
- गेंदसिंह को बस्तर का प्रथम शहीद कहते है,
4. तारापुर का विद्रोह – (1842 – 54 ई.)
- जगदलपुर से 80 km. दक्षिण – पश्चिम में तारापुर का परगना था,
- इस परगने का शासक भुपाल्देव था,
- तारापुर का प्राशासक – दलगंजन सिंह ( भुपालदेव का भाई था )
- इस विद्रोह का प्रमुख कारण – दीवान जगबंधु को दीवान पद से हटाने, और कर को बढ़ाने के विरोध में था,
- इसके अतिरिक्त अंग्रेजो और मराठो का आदिवासियों के धार्मिक, सामाजिक, व आर्थिक क्षेत्र में हस्तक्षेप करना भी इस विद्रोह का कारण था,
परिणाम – यह विद्रोह सफल रहा, और नागपुर के रेजिडेंट मेजर विलियम्स ने तारापुर के आदिवासियों के असंतोष को दूर करके दीवान जगबंधु को दीवान पद से हटा दिया, और आदिवासियों पर लगाये गये कर को वापस ले लिया गया,
5. मेरिया/माड़िया विद्रोह ( 1842 – 63 )
- यह विद्रोह दंतेवाड़ा में स्थित दंतेश्वरी मंदिर में प्रचलित नरबली प्रथा पर नागपुर के भोंसले राजा द्वारा प्रतिबन्ध लगाये जाने पर वंहा के आदिवासियों के द्वारा किया गया,
- आदिवासी नरबली प्रथा को जारी रखना चाहते थे, किन्तु भोंसले राजा ने इस प्रथा को रोकने के लिए 22 वर्षो तक सेना की रक टुकड़ी दंतेवाड़ा के मंदिर में नियुक्त कर दी थी,
- दंतेवाड़ा के आदिवासीयो ने इस रोक को अपनी परम्पराओ पर बाहरी आक्रमण समझा और यह विद्रोह किया,
- नरबली प्रथा को रोकने और विद्रोह को दबाने के लिए, दलगंजन सिंह को हटाकर वामन राव को बस्तर का दीवान नियुक्त किया गया,
- हिडमा मांझी के नेतृत्व में आदिवासियों ने दंतेश्वरी मंदिर से सैनिक हटाने की मांग की थी,
परिणाम – इस विद्रोह का परिणाम यह हुआ की, अंग्रेजो ने आदिवासियों के घरो को जला दिया, और इस विद्रोह को दबाने में सफल रहे, इस विद्रोह के कारण हमेशा के लिए आदिवासियों और अंग्रेजो के मध्य शत्रुता बनी रही,
6. लिंगागिरी का विद्रोह ( 1856 – 57 ई.)
- लिंगागिरी तालुके के तालुकेदार थे – धुर्वाराव,
- धुर्वाराव ने अंग्रेजो के विरुध्द सशस्त्र विद्रोह किया था,
- धुर्वाराव मारिया जनजाति के डोरला उपजाति का था,
- इसे अन्य आदिवासियों का समर्थन प्राप्त था,
- यह विद्रोह इसने अपनी प्रजा की भलाई और प्रजातांत्रिक मूल्यों की रक्षा के लिए अंग्रेजो के साथ संघर्ष किया था,
- 5/ मार्च/ 1856 को अंग्रेजो ने धुर्वाराव को फांसी दे दी,
- धुर्वाराव का विद्रोह 1857 ई. की महान क्रान्ति के एक वर्ष पहले बस्तर के इतिहास में अंकित वीरगाथा तथा द्वितीय आत्महुती का अधखुला स्वर्णिम अध्याय है,
7. राष्ट्रीय आन्दोलन का छ.ग. में प्रभाव –
- नागपुर अधिवेशन 1891 में, छ.ग. के निवासियों का कांग्रेस से सम्बन्ध स्थापित हुआ,
- जबलपुर अधिवेशन 1906 में दादा साहेब खापर्डे का स्वदेशी आन्दोलन विषयक प्रस्ताव स्वीकृत
- बैरिस्टर सी.एम.ठक्कर के योगदान से रायपुर में कांग्रेस का पहला शाखा स्थापित हुआ,
8. छ.ग. में होमरूल आंदोलन –
- होमरूल आन्दोलन के समय छ.ग. क्षेत्र तिलक के क्षेत्राधिकार में आया,
- इस आन्दोलन के समय 1918 में रायपुर में लीग की शाखा स्थापित हुई,
- 1918 में तिलक रायपुर आये थे,
- इस आन्दोलन के प्रमुख संगठन कर्ता पं. रविशंकर शुक्ल थे,
- छ.ग. में कुंजबिहारी अग्निहोत्री, गजाधर साव, गोविन्द तिवारी प्रमुख प्रचारक थे,
- 1918 में घनश्यामदास गुप्त के प्रयासों से दुर्ग में लीग की स्थापना हुई,
9. छ.ग. में रोलेक्ट एक्ट का विरोध –
- 1919 के रोलेक्ट एक्ट के समय छ.ग. में हड़ताल, सभाएं द्वारा कानून का विरोध हुआ,
- छेदीलाल व् राघवेन्द्र राव ने बिलासपुर में काले वस्त्र धारण कर रैली निकाली,
- राजनंदगांव में प्यारेलाल सिंह के नेतृत्व में विरोध हुआ,
10. बी.एन.सी. ( BNC ) मिल मजदुर हड़ताल –
- यह हड़ताल राजनंदगांव में ठा. प्यारेलाल के नेतृत्व में हुआ था,
- 1920 में यह आन्दोलन हुआ, यह पहला मजदुर आन्दोलन था,
- कुल 36 दिनों तक यह आन्दोलन चला,
- इस आन्दोलन का प्रमुख कारण – मजदूरो से अधिक कार्य लिया जाना था,
- वी.वी. गिरी ( भारत के राष्ट्रपति) ने मजदूरो के हितो में समझौता कराया और इस आन्दोलन को ख़त्म किया,
11. द्वितीय BNC मिल मजदुर आन्दोलन – ( 1924 में ) हुआ,
- इस आन्दोलन का नेतृत्व भी ठाकुर प्यारेलाल ने किया था,
- इस आन्दोलन का प्रमुख कारण—श्रमिको पर दमनकारी निति को अपनाना था,
- इस आन्दोलन का परिणाम यह हुआ की ठा. प्यारेलाल सिंह को राजनंदगांव से निष्कासित कर दिया गया,
- श्रमिको की मांग हेतु जैक्सन आयोग गठित किया गया,
12. तृतीय BNC मिल आंदोलन – ( 1937 )
- इस आंदोलन के प्रमुख नेता, ठाकुर प्यारेलाल सिंह थे,
- आन्दोलन का प्रमुख कारण मजदूरो के वेतन में कटौती थी,
- इस आन्दोलन के समय ठाकुर प्यारेलाल का निष्कासन वापस ले लिया गया था,
13. कंडेल नहर सत्याग्रह – ( 1920 ई. )
- यह आन्दोलन धमतरी जिले के, तहसील कुरूद, ग्राम कंडेल में हुआ था,
- इस आंदोलन का प्रमुख कारण सिंचाई में लगा टैक्स का विरोध करना है,
- इस आन्दोलन के प्रमुख नेता – पं. सुन्दरलाल शर्मा, नारायण राव मेघावाले, छोटेलाल श्रीवास्ताव थे,
- इस आन्दोलन में भाग लेने के लिए पहली बार गाँधी जी 20/दिसंबर / 1920 को छ.ग. आये थे, उनके साथ मौलाना शौकतअली भी आये थे,
- 21/ दिसंबर / 1920 को कंडेल पंहुचे थे,
- इस आन्दोलन में भाग लेने के लिए गाँधी जी, सुन्दरलाल शर्मा के निवेदन पर, कलकत्ता अधिवेशन से छ.ग. आये थे,
- यह आन्दोलन रायपुर, दुर्ग, धमतरी में चला,
- यह प्रथम सफल सत्याग्रह था, जो की अपने उद्देश्य में सफल रहा,