ब्रिटिश शासन के अधीन मराठा शासन
ब्रिटिश शासन के अधीन मराठा शासन — (1818 – 1830)
- 1817 में तृतीय आंग्ल – मराठा यूद्ध के दौरान, सीताबर्डी के युद्ध में मराठे पराजित हो गए, यही से छ.ग. में मराठो का शासन समाप्त हो गया, इस समय अंग्रेज अधिकारी लार्ड हेस्टिंग थे,
- 1818 में नागपुर की संधि हुई जिससे छ.ग. में अंग्रेजो का अप्रत्यक्ष शासन स्थापित हो गया,
- अब मराठे अंग्रेजो के अधीन शासन करने लगे,
- अप्पा साहब के पतन के पश्चात रघुजी तृतीय को नागपुर राज्य का उत्तराधिकारी बनाया गया,
- नर्मदा नदी के उत्तर में स्थित मराठा राज्य अंग्रेजो के अधिकार मी आ चुके थे,
- चूँकि – इस समय रघुजी भोंसले तृतीय काफी छोटे थे, इसलिए अंग्रेजो ने उनकी ओर से एजेंट बनकर शासन किया ,
- इन एजेंट को अधीक्षक कहा गया,
नागपुर में प्रथम अंग्रेज रेजिडेंट “ जेनकिंस” को नियुक्त किया गया,
प्रथम ब्रिटिश अधीक्षक — ( कैप्टन एडमंड )
- छ.ग. के प्रथम ब्रिटिश अधीक्षक थे,
- इनका शासन कुछ माह का था,
- इन्होने अपना सम्पूर्ण समय छ.ग. में शान्ति एवं व्यवस्था स्थापित करने में लगा दिया,
- इस समय की प्रमुख घटना –
- अप्पा साहब की प्रेरणा से डोंगरगढ़ में जमींदार द्वारा अंग्रेजी शासन के विरुध्द विद्रोह था,
- इस घटना पर नियंत्रण पा लिया गया,
- इस घटना के कुछ दिन पश्चात ही एडमण्ड की मृत्यु हो गई,
द्वितीय ब्रिटिश अधीक्षक – (कैप्टन एग्न्यू) (1818 – 1825 )
- कैप्टन एडमंड के बाद मि. एग्न्यू छ.ग. के अधीक्षक बने,
- इतिहास में इनके कार्य विशेष महत्त्व रखते है,
- इन्होने 1818 में रतनपुर से रायपुर राजधानी परिवर्तन किया,
- रेसिडेंट के आदेशानुसार प्रचलित व्यवस्था में कोई मुलभुत परिवर्तन करते हुए प्रशासन को भ्रष्टाचार रहित व चुस्त-दुरुस्त बनाने का प्रयास किया,
इनके प्रमुख कार्य –राजधानी परिवर्तन
- छ.ग. में 27 परगनों को पुनर्गठित कर केवल आठ परगनों में सिमित किया,
- 8 कमाविश्दार, परगनों की देख रेख के लिए नियुक्त किये,
- कुछ समय पश्चात् 1 नया परगना बालोद परगना बनाया गया,
- 1820 तक परगनों की संख्या 9 हो गई थी,
- सबसे बड़ा परगना रायपुर परगना, व सबसे छोटा परगना राजरो था,
- उत्पादन में वृध्दि तथा व्यापार एवं परिवहन आदि के क्षेत्र में भी अनेक सुधर किये,
- अवांछित करो को समाप्त कर दिया,
- जिससे उत्पादन को प्रोत्साहन मिला और कृषक की आर्थिक स्थिति में सुधार हुआ,
- धमधा के बनावटी गोंड़ राजा के विद्रोह को शांत किया,
- सोनाखान के जमींदारो को व्यवस्था के काल में उनके द्वारा हड़पी खालसा भूमि को वापस करने के लिए बाध्य किया,
- छ.ग. के लिए 3000 घोड़े निर्धारित किये,
- बस्तर एवं जयपुर जमींदारों के मध्य कोटपाड़ परगने सम्बन्धी विवाद को सुलझाने में सफल रहा,
नये रेसिडेंट बिल्डर —
- मि. जेनकिंस ब्रिटिश रेसिडेंट के पद पर 1827 ई. तक रहे,
- 18/04/1827 को नये रेसिडेंट बिल्डर बने,
- 1829 ई. में अंग्रेजो और भोंसला शासक के बिच में एक नवीन संधि हुई, इस संधि के अंतर्गत छ.ग. का शासन पुनः मराठो को दे दिया,
- 1818 – 1825 तक छ.ग. में सेवारत होने के पश्चात अपना त्यागपत्र दे दिया,
तीसरे अधीक्षक – (कैप्टन हंटर)
- ये छ.ग. के तीसरे अधीक्षक बने,
- इन्होने कुछ माह तक शासन किया था,
चौथे अधीक्षक – मि. सेंडिस (1825 – 28)
- नागपुर घुड़सवार सेना के पहले सैनिक अधिकारी थे,
- एग्न्यू के परामर्श के अनुसार इन्हें छ.ग. के सैनिक व असैनिक दोनों अधिकार सौपे गए,
- इसके समय में 1826 ई. की संधि प्रमुख घटना थी,
- यह संधि अंग्रेजो और रघुजी तृतीय के बिच हुआ,
- इनका दूसरा महत्वपूर्ण कार्य था, – इन्होने अंग्रेजी वर्ष को जारी किया,
- अंग्रेजी भाषा को सरकारी कामकाज का माध्याम बनाया गया,
- छ.ग. में डाक तार का विकास कार्य भी इसी ने करवाया,
विलकिंसन और क्राफर्ड –
- सेंडिस के उत्तराधिकारी थे, जो की सेंडिस के बाद ब्रिटिश अधीक्षक बने –
- इनका कार्यकाल (1828 – 1830) तक था,
- 27/ 12/ 1829 को क्राफर्ड के काल में नागपुर में ब्रिटिश रेसिडेंट बिल्डर और भोंसले के बिच एक नई संधि हुई,
- इस संधि के अनुसार छ.ग. का शासन पुनः भोंसले (मराठो) को सौप दिया गया,
- सत्ता का यह हस्तानान्तरण 06/01/1830 को संपन्न हुआ,
- ब्रिटिश अधीक्षक क्राफर्ड ने भोंसले शासक कृष्णराव अप्पा को छ.ग. का शासन सौपा,
- इस दौरान 12 वर्षो तक छ.ग. ब्रिटिश नियंत्रण में रहा, जो की 1829 में मुक्त होकर पुनः मराठो के अधीन चला गया,
छ.ग. में पुनः भोंसला शासन (1830 – 54)
रघुजी तृतीय –
- 1830 में छ.ग. में पुनः भोसला शासन रघुजी तृतीय का शासन रहा,
- इस समय छ.ग. में नियुक्त अधिकारी को जिलेदार कहते थे,
- कुल 8 जिलेदार नियुक्त हुए थे,
- प्रथम जिलेदार – कृष्णा राव अप्पा थे
- अंतिम जिलेदार — गोपाल राव थे,
- इस समय भारत के गवर्नर जनरल – विलियम बैटिंक थे,
- विलियम बैटिंक ने भारतीय नरेशो के साथ हस्तक्षेप न करने की निति अपनाई,
कृष्णा राव अप्पा–
- प्रथम जिलेदार नियुक्त हुए,
- ये शांत प्रकृति के व्यक्ति थे,
- छ.ग. के प्रथम जिलेदार बनने से पूर्व ये नागपुर में सदर फड़नवीस के पद पर थे,
- ये राजस्व सम्बन्धी मामलो में योग्य सिध्द नही हुआ,
इनके बाद (1830 – 1854 ) के बीच नियुक्त अन्य जिलेदार इस प्रकार है –
- कृष्णाराव
- अमृतराव
- सदरुद्दीन
- दुर्गाप्रसाद
- इन्दुक्राव
- सखाराम बापू
- गोविंदराव
- गोपालराव
रायपुर जिलेदारो का मुख्यालय बना रहा, जिलेदार शासन विषयक जानकारी सीधे राजा को भेजते थे, कमाविसदार मजदूरो से बेगार लेते थे, ग्राम पटेलो की संख्या भी अधिक थी, पहले वर्ष में राजस्व कम एकत्रित हुआ, एवं शासन आर्थिक कठिनाइयों के भंवर में फंसता चला गया,
रघुजी तृतीय के समय छ.ग. में हुए कुछ महत्वपूर्ण सुधार –
ये सुधार रघुजी तृतीय के काल में अंग्रेजो की सहायता से किये गए
- सती प्रथा का उन्मूलन — छ.ग. में सती प्रथा विद्यमान थी,
- अंग्रेजो ने इस प्रथा को बंद करने के लिए नागपुर के राजा से आग्रह किया,
- इस प्रथा के उन्मूलन हेतु आवश्यक कार्यवाही के लिए कहा गया,
- अंग्रेजो ने 4/sep/1829 ई. को 17 वें नियम के द्वारा इस प्रथा के उन्मूलन हेतु बंगाल प्रेसिडेंसी में पहले से ही आदेश प्रसारित कर दिया था,
- राजा ने sep. / 1831 में इस प्रथा के उन्मूलन हेतु राज्य में आदेश प्रसारित किया,
बस्तर व करौद (कालाहांडी) में नरबली प्रथा पर रोक –
- इसके सम्बन्ध में एकमात्र अभिलेख छिंदक नागवंश के राजा मधुरान्तकदेव के ताम्र पत्र से मिलता है,
- ताम्र पत्र में शकसंवत 987 अंकित है,
- इस समय गवर्नर जनरल – लार्ड हार्डिंग प्रथम थे,
- इस प्रथा को समाप्त करने के लिए अंग्रेज अधिकारी जॉन कैम्बेल ने इसका नेत्तृत्व किया,
- इस समय मनिकेश्वरी देवी ( दंतेश्वरी देवी ) में नरबली प्रथा प्रचलित थी,
ठगों और डाकुओ का उन्मूलन –
- छ.ग. में ठगों व लुटेरो के गिरोह अनेक वर्षो से सक्रीय थे,
- छ.ग. में मुल्तानी लोगो का गिरोह लूटमार के लिए प्रसिध्द था,
मुल्तानी लोग –
- ये मोहम्मद गौरी अर्थात 12 वीं. सदी से मुल्तान में बसे हुए थे,
- इनका मुख्य कार्य कृषि था,
- अकबर के समय में भीषण अकाल पड़ने के कारण राजा को अपनी वार्षिक भेंट देने में असमर्थ थे,
- राजस्व की अदायगी न कर पाने के कारण उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया,
- विवशता और प्रतिशोध के कारण इन्होने लूटपाट शुरू कर दिया,
- ये लोग लूटपाट का ¼ भाग जमींदारो को दिया करते थे,
- छ.ग. में मुल्तानियो के गिरोह का मुखिया सलावत उदाहुस्न और प्यारे जमादार थे,
- इस गिरोह के कुछ अन्य नेता थे – हिरानायक, उमर खां, दिलावर खां. आदि
- अर्द्ध रात्री में लूटमार करते, इनके लूटपाट का शिकार प्रायः छोटे वर्ग के जमींदार एवं व्यापारी वर्ग के लोग होते थे,
- छ.ग. की जनता पर इन लुटेरो का आतंक था,
- अंग्रेजो ने उनके गिरोह को नष्ट करने का प्रयास किया,
- इनके उन्मूलन के लिए अंग्रेजो ने कठोर दण्ड की व्यवस्था की जिसके तहत – इन्हें प्राण दण्ड या कालापानी की सजा दी जाती थी,
- गवर्नर जनरल विलयम बैंटिक के आदेशानुसार इस कार्य हेतु कर्नल स्लीमन को सामान्य अधीक्षक के पद पर नियुक्त किया गया,
- इसने ठगों के विरुध्द कठोर कार्यवाही की,
- नागपुर राज्य की सीमा में पकड़े गए ठगों व डाकुओ को कठोर दण्ड के साथ जबलपुर जेल में रखा गया,
- कर्नल स्लीमन ने 1830 तक ठगों का पुर्णतः उन्मूलन कर दिया,
- ठगों के बच्चो की शिक्षा हेतु जबलपुर में एक औद्योगिक विद्यालय खोला गया
भोंसले राज्य का ब्रिटिश राज्य में विलय एवं छ.ग. में पुनः ब्रिटिश शासन –
- 11/dec/1853 को रघुजी तृतीय की मृत्यु हो गई,
- इस समय ब्रिटिश रेसिडेंस “मेन्सल” थे,
- रघुजी की मृत्यु की खबर जब केन्द्रीय सरकार को मिली, तो उन्होंने उसी दिन 6 बजे राज्य का प्रशासन अपने हाथ में ले लिया,
- मि. मेन्सल का यह व्यक्तिगत विचार था की राजा को गोद लेने का अधिकार ना दिया जाए,
- गवर्नर जनरल लार्ड डलहौजी ने अपनी हड़प निति का प्रयोग किया, और नागपुर को ब्रिटिश साम्राज्य में मिला लिया
- 13/ मार्च/1854 को नागपुर का ब्रिटिश साम्राज्य में विलय की घोषणा कर दी गई,
- 1/feb/1855 को छ.ग. के अंतिम मराठा जिलेदार – गोपालराव ने, छ.ग. का शासन, ब्रिटिश शासन के प्रतिनिधि, प्रथम दीप्ती कमिश्नर “चार्ल्स सी इलियट” को सौप दिया,
- मराठा शासन पूरी तरह से समाप्त हो गया,
- छ.ग. में ब्रिटिश शासन का नियंत्रण – 1854 – 1947 तक बनी रही,
- ब्रिटिश शासन के अंतर्गत सम्पूर्ण सूबे को एक जिले का दर्जा दिया गया,
- जिले का प्रमुख अधिकारी को – डीप्टी कमिश्नर कहा गया,
- डिप्टी कमिश्नर प्रशासनिक कार्यो में सहयोग के लिए कमिश्नर तथा एक अतिरिक्त सहायक कमिश्नर की नियुक्ति कर सकता था,
- अतिरिक्त सहायक कमिश्नर का पद केवल भारतीयों के लिए था,
- इस पद पर क्रमशः गोपालराव आनंद, और मोहिबुल हसन को क्रमशः बिलासपुर व रायपुर में नियुक्त किया गया,
- अंग्रेजो ने अपने शासन काल में यहाँ विकास और ज्ञान – विज्ञान का आरम्भ किया,
छ.ग. में ब्रिटिश प्रशासन का नवीन स्वरुप –
- कमिश्नर मि. मेन्सल ने छ.ग. में नव नियुक्त डिप्टी कमिश्नर को यह अधिकार दिया की क्षेत्रीय प्रशासन, स्थानीय परम्पराओ को ध्यान में रखते हुए स्थापित हो,
- छ.ग. के असैनिक प्रशासन का पुनर्गठन कर यहाँ पंजाब की प्राशासनिक व्यावस्था को लागू किया गया,
- इसके अंतर्गत प्रशासन को दो वर्गों – माल और दीवानी में विभक्त किया गया,
- डिप्टी कमिश्नर को दीवानी शाखा के प्रशासन हेतु दोनों – मूल और अपील सम्बन्धी अधिकारसुपर गए,
- ये अधिकार 5,000 से ऊपर के होते है,
- बाद में तहसीलदारों की नियुक्ति कर उन्हें भी दीवानी और फौजदारी से सम्बंधित अधिकार सौपे गए,
तहसीलदारी व्यावस्था का आरम्भ —
- छ.ग. में डिप्टी कमिश्नर ने प्रथम प्रशासकीय परिवर्तन के रूप में यहाँ तहसीलदारी व्यवस्था का सूत्रपात किया,
- छ.ग. जिले में तीन तहसीलों का निर्माण किया गया, — रायपुर, धमतरी, रतनपुर,
- क्षेत्र का मुख्य अधिकारी तहसील मुख्यालय का तहसीलदार था,
- ये डिप्टी कमिश्नर के निर्देशानुसार कार्य करते थे, यह पद भारतीयों के लिए निश्चित था,
- छ.ग. के परगनों का पुनर्गठन हुआ तब परगनों में कमाविश्दार के स्थान पर नायब तहसीलदार नियुक्त किये गए
- तहसीलदार व नायब तहसीलदार का वेताल क्रमशः 150 और 50 रु./ माह था,
- 1 / feb / 1857 को छ.ग. के तहसीलों को पुनर्गठित कर उनकी संख्या बढ़ाकर पांच कर दी गई,
- रायपुर, धमतरी, धमधा, नवागढ़, रतनपुर आदि तहसील थे,
- इसके आठ माह बाद तहसीलों का पुनर्गठन हुआ और धमधा के स्थान पर दुर्ग को नया तहसील मुख्यालय बनाया गया,
मध्य प्रांत का गठन –
प्रशासनिक सुविधा की दृष्टि से 2/nov/1861 ई. को नागपुर और उसके अधीनस्थ क्षेत्रो को मिलाकर एक केन्द्रीय क्षेत्र का गठन किया गया,
इस केन्द्रीय क्षेत्र को मध्य प्रांत कहा गया,
इसका संगठन इस प्रकार था, —
नागपुर राज्य के क्षेत्र –
इसमें तीन संभाग एवं 10 जिले थे,
नागपुर संभाग
रायपुर संभाग
गोदावरी तालुक संभाग
सागर नर्मदा क्षेत्र –
यह नागपुर राज्य का अधीनस्थ क्षेत्र था,
इसमें दो संभाग एवं सात जिले शामिल थे,
मध्यप्रांत का मुख्यालय नागपुर था,
राज्य का शासन – संचालन, चीफ कमिश्नर या संभागायुक्त के हाथो में था,
छ.ग. संभाग का गठन –
1861 में छ.ग., म.प्रांत के चीफ कमिश्नर के अधीन था,
1862 में छ.ग. एक स्वतंत्र संभाग बना, जिसका मुख्यालय रायपुर बना,
इस समय संबलपुर को मध्य प्रांत में शामिल कर रायपुर संभाग का हिस्सा बना लिया गया,
छ.ग. तीन जिलो में—रायपुर, बिलासपुर, व संबलपुर में विभक्त हो गया,
यह प्रशासनिक व्यवस्था बिना किसी परिवर्तन के 1905 तक बनी रही,
भौगोलिक पुनर्गठन एवं प्रशासनिक परिवर्तन –
1905 में परिवर्तन के द्वारा संबलपुर जिले को बंगाल प्रांत उड़ीसा में मिला लिया गया,
इसके बदले बंगाल प्रांत के बिहार के छोटा नागपुर क्षेत्र की पांच रियासते – चांगभखार, कोरिया, सरगुजा, उदयपुर, व जशपुर को छ.ग. में मिला लिया गया,
छ.ग. में तीन नये जिले बने – रायपुर, बिलासपुर, व दुर्ग
यह प्रशासनिक व्यवस्था 1947 तक बनी रही,
छ.ग. में राजस्व व्यवस्था –
डिप्टी कमिश्नर मि. इलियट ने छ.ग. की राजस्व व्यवस्था को लागू करने के लिए तीन वर्षीय राजस्व व्यवस्था लागू की,
यह व्यवस्था 1855 – 1857 तक बनी रही,
परगनों का पुनर्गठन कर उनकी संख्या 12 कर दी गई,
परगनों में गांव को सम्मिलित कर रेवेन्यु सर्कल बनाया गया,
पटवारियों की नियुक्ति की गई,
तीन पुराने परगनों – राजरो, लवन, और खल्लारी के स्थान पर चार नए परगने गुलू, सिमगा, मारो, और बीजापुर का निर्माण हुआ,
राजस्व की दृष्टि से सम्पूर्ण क्षेत्र को तीन भागो में विभक्त किया गया, —
- खालसा क्षेत्र
- जमींदारी क्षेत्र
- ताहुतदारी क्षेत्र
सिध्दांत रूप से सरकार सम्पूर्ण भूमि के स्वामी थे, आय का मुख्य स्रोत भूमि कर था,
न्याय व्यवस्था –
- डिप्टी कमिश्नर न्याय करता था, ( न्याय फ्रांस ) में होता था,
- 1925 से जिले का डिप्टी कमिश्नर – दीवानी तथा फौजदारी दोनों मामले देखने लगा ,
- इस काम में सहायक कमिश्नर उसकी सहायता करता था,
पुलिस व्यवस्था –
- पुलिस प्रशासन की दृष्टि से चार भागो में बांटा गया था,
- 1858 में पुलिस मेन्युअल लागू हुआ,
- 1862 में पुलिस व्यवस्था ( अधीक्षक ) पद बनाया गया,
- रायपुर का जेल 1854 से पूर्व का था,
- 1873 में बिलासपुर जेल का निर्माण किया गया,
डाक व्यवस्था –
- रायपुर में डाकघर ( हरकारे नियुक्त) का निर्माण किया गया,
- 1857 में रायपुर में पहला पोस्ट मास्टर – स्मिथ बना
यातायात व्यावस्था –
- कैप्टन एग्न्यू ने रायपुर- नागपुर सड़क योजना की शुरुवात की थी,
- 1862 में ग्रेट ईस्टर्न रोड / NH6 / GE/ रोड बना
- 1905 में 130 नंबर की सड़क (III) ( बिलासपुर – अंबिकापुर ) बनी,
उद्योग व्यवस्था —
- 1894 में CP ( कपड़ा) मिल्स राजनंदगांव में बनी,
- इस कपड़े मिल्स के निर्माता – बंबई के मैकवेथ ब्रदर्स थे,
- 1897 में में. शावालिस कंपनी कोलकाता को बेचीं गई, जिसका नाम बंगाल कॉटन मिल( BNC )मिल रखा गया,
- 1935 में मोहन जुट मिल रायगढ़ में स्थापित किया गया,
- 1885 में रायपुर, बिलासपुर, जिला परिषद् गठित किये गए,
शिक्षा व्यवस्था –
- 1910 में छ.ग. में स्वतंत्र शिक्षा विभाग की स्थापना की गयी,
- राजकुमार कॉलेज – 1893 में
- शालेय कन्याशाला (अंग्रेजी शाला) – 1907
- सेंट पाल स्कूल — 1911
- काली बाड़ी संस्था — 1925 में
- मेनोनाईट संस्था — (धमतरी – रायपुर में)
- असहयोग आन्दोलन के दौरान रायपुर में राष्ट्रिय विद्यालय संचालन वामनराव लाखे द्वारा किया गया,
- 1937 में मध्य प्रांत सरकार में — एन. जी. खरे — मुख्यमंत्री बने
- और रविशंकर शुक्ल — शिक्षामंत्री
- रविशंकर शुक्ल द्वारा — विद्या मंदिर योजना लायी गई,
- 1937 में छ.ग. शिक्षण समिति का गठन रायपुर में हुआ जिसके अध्यक्ष थे – प्यारेलाल सिंह
- 1938 में छ.ग. महाविद्यालय, का निर्माण रायपुर में हुआ, जिसके प्राचार्य महासमुंद के अधिवक्ता जे. योगानंदन जी को बनाया गया,
- 1944 में महाकौशाल शिक्षण समिति द्वारा