छत्तीसगढ़ में मराठा शासन
छत्तीसगढ़ में मराठा शासन – ( 1741 – 1818 ई.) तक –
- भोंसला आक्रमण के समय हैहय शासन की दशा –
- आरंभिक हैहय शासक योग्य थे, किन्तु 19 वीं शताब्दी के प्रमार्ध में उनका गौरव विलुप्त हो चूका था,
- इस समय रतनपुर व रायपुर शाखा के तत्कालीन शासको क्रमशः रघुनाथ सिंह व अमरसिंह नितांत शक्तिहीन थे, उनमे महत्वकांक्षा का अभाव था,
- हैहय राज्य का संगठन दोषपूर्ण था,
- केंद्र में दृढ़ सेना का अभाव था,
- हैहय सरकार की आर्थिक दृष्टि से दिवालिया निकल चुकी थी,
- जनता पर कर का भार अधिक था,
जेकिंस के अनुसार — राज्य के अधिकांश भागो का विभाजन राज परिवार के सदस्यों व् अधिकारियो के बिच हो गया था, जिससे केन्द्रीय शक्ति कमजोर हो चुकी थी,
रघुजी भोसले – ( 1741 – 1758 ई. )
- इसने अप्रत्यक्ष शासन किया था,
- नागपुर के भोसले वंश के शासक रघुजी भोसले के सेनापति भास्कर पन्त ने दक्षिण भारत अभियान के समय 1741 में रतनपुर पर अपना कब्जा ज़माने का प्रयास किया,
- इस समय रतनपुर का शासक रघुनाथ सिंह था,
- रघुनाथ सिंह को पराजित कर, भास्कर पन्त ने रतनपुर पर कब्जा कर लिया, किन्तु प्रारम्भ में मराठा प्रतिनिधि के रूप में रघुनाथ सिंह को शासन करने दिया गया,
- 1745 ई. में रघुनाथ सिंह की मृत्यु के बाद मोहनसिंह को शासक नियुक्त किया गया,
- 1758 ई. में मोहनसिंह की मृत्यु के बाद रघुजी भोंसले के पुत्र बिम्बाजी भोंसले ने रतनपुर में प्रत्यक्ष शासन किया था,
छ.ग. में मराठा शासन को 4 चरणों में बांट सकते है,
- प्रत्यक्ष भोसला शासन (1758 – 1787 ई.)
- सूबा शासन (1787 – 1818)
- ब्रिटिश शासन के अधीन मराठा शासन (1818 – 1830)
- पुनः भोंसला शासन (1830 – 1854)
1. प्रत्यक्ष भोंसला शासन —
बिम्बाजी भोंसले – (1758 – 1787 ई.)
- 1750 ई. में इसने रायपुर की काल्चुरी शाखा के शासक अमरसिंह को परास्त किया, और 1757 तक पुरे क्षेत्र में अपना अधिकार जमा लिया,
- कलचुरी वंश का अंत हुआ, और मराठा शासन स्थापित हुआ,
- 1758 में मोहन सिंह की मृत्यु के बाद बिम्बाजी भोंसले ने इस क्षेत्र में प्रत्यक्ष शासन किया था,
- छ.ग. के पहले स्वतंत्र मराठा शासक थे जिसने रतनपुर में प्रत्यक्ष शासन किया था,
- इसने रायपुर व रतनपुर इकाई को प्रशासनिक रूप से एक किया
- परगना पध्दति के सूत्रधार ( नीव रखी थी ) थे ,
- इसकी स्वतंत्र सेना थी, तथा इनका शासन जनहितकारीथा, एवं राजा की भाति स्वतन्त्र दरबार का आयोजन करते थे,
- बिम्बाजी लोकप्रिय शासक थे,
- न्याय सम्बन्धी सुविधाओं के लिए उनके द्वारा रतनपुर नियमित न्यायालय की स्थापना की गई,
- राजस्व का कोई भी हिस्सा नागपुर नही भेजते थे,
- जमींदारो से होने वाले संधि पत्र पर वे स्वयं हस्ताक्षर करते थे,
- नई जमींदारी खुज्जी व राजनादगांव की शुरुवात की,
- मराठी, उर्दू, और मुड़ी भाषा का प्रयोग शुरू करवाया, ( मुड़ी – लिपि भी है )
- रामटेकरी में भव्य राममंदिर का निर्माण रतनपुर में करवाया,
- दशहरा के अवसर पर स्वर्ण पत्र देने की परंपरा की शुरुवात की,
- छत्तीसगढ़ राज्य की संज्ञा दी,
- राजस्व सम्बन्धी लेखा तैयार करवाकर राजस्व की स्थिति को व्यावस्थित किया,
- भवन निर्माण, कला, संगीत, का साहित्य विकास हुआ,
- रायपुर का प्रसिध्द दुधाधारी मंदिर इनके सहयोग से ही बनवाया गया था,
- बिम्बाजी में सैनिक गुणों का अभाव था, अतः साम्राज्य विस्तार का प्रयास नही किया,
- इन्होने धार्मिक कट्टरता का परिचय नही दिया,
- इनके साथ ही मराठा, व मुसलमान छ.ग. में आये थे,
- इनकी पत्नी का नाम उमा बाई था, जो 1787 में इनकी मृत्यु के साथ सती हो गई,
- इनकी मृत्यु के समय में यूरोपीय यात्री कोलब्रुक छ.ग. आये थे,
- कोलब्रुक ने अपनी किताब में लिखा है की — बिम्बाजी की मृत्यु से छ.ग. की जनता को सदमा पंहुचा था, क्यूंकि उनका शासन जनहितकारी था, वह जनता का शुभचिंतक व उनके प्रति सहानुभूति रखने वाला था,
2. सूबा शासन – (1787 – 1818)
व्यंकोजी भोंसले — (1787 – 1815)
- 1787 में बिम्बाजी भोंसले की मृत्यु के बाद इसने शासन किया
- इसने छ.ग. में प्रत्यक्ष शासन नही किया, नागपुर में रहकर छ.ग. का शासन संचालन किया,
- इसके परिणामस्वरूप नागपुर छ.ग. की राजनितिक गतिविधियों का केंद्र बन गया, जिससे रतनपुर का राजनैतिक वैभव धूमिल होने लगा था,
- इसने सूबा शासन ( सुबेदारी पध्दति ) की शुरुवात की,
- सूबा शासन प्रणाली मराठो की उपनिवेशवादी निति का अंग थी,
- जिसे सूबा सर्कार की संज्ञा दी गई थी,
- सूबेदार रतनपुर के मुख्यालय में रहकर शासन का संचालन करते थे,
- सूबेदारों की नियुक्ति ना तो स्थाई थी, और न ही वंशानुगत थी,
- सूबेदारों की नियुक्ति ठेकेदारी प्रथा के अनुसार होती थी,
- यह पध्दति 1818 ई. तक छ.ग. के ब्रिटिश नियंत्रण में आने तक विधमान रही,
- इस दौरान व्यांकोजी का तीन बार छ.ग. में आगमन हुआ था,
कुल 8 सूबेदार नियुक्त हुए,
1. महिपतराव दिनकर – (1787 – 90 )
- छ.ग. के प्रथम सूबेदार नियुक्त हुए थे,
- इसके समय में शासन की समस्त शक्तिया बिम्बाजी की विधवा “आनंदी बाई” के हाथो में केन्द्रित थी,
- सत्ता का संघर्ष प्रारम्भ हो गया था ,
- इसके शासन काल में ही यूरोपीय यात्री “ फारेस्टर” छ.ग. आये थे,
- इस यात्री ने सूबा शासन पर प्रकाश डाला था,
- फारेस्टर – 17/05/1790 ई. दिन सोमवार को रिअपुर पंहुचा था,
2. विट्ठलराव दिनकर (1790 – 96 )
- छ.ग. के दुसरे सूबेदार थे,
- इसका शासन काल बहुत महत्वपूर्ण मन जाता है,
- इसने छ.ग. की राजस्व व्यवस्था में कुछ परिवर्तन किया था,
- छ.ग. में परगना पध्दति के जन्म दाता है
परगना पध्दति ( 1790 – 1818 ई. ) तक चली है,
- परगने का प्रमुख कमाविश्दार कहलाता था, इसके अतिरिक्त फड़नवीस, बड़कर आदि नये अधिकारी को नियुक्त किया गया,
- ग्राम के गोंटिया का पद यथावत बना रहा,
- इस व्यवस्था के अंतर्गत राजस्व को दो भागो में विभाजित किया गया था, भूमि कर , अतिरिक्त कर ( यह कर बाद में लगा )
- इसके समय में यूरोपीय यात्री मि. ब्लंट का 13 मई 1795 ई. को रतनपुर में आगमन हुआ था,
3. भवानी कालू – ( 1796 – 97 )
- तीसरे सूबेदार थे,
- इन्होने बहुत कम समय के लिए सुबेदारी की थी,
4. केशव गोविन्द ( 1797 – 1808 )
- सबसे लम्बे समय तक छ.ग. में सुबेदारी की थी,
- चौथे सूबेदार थे,
- इसके समय में यूरोपीय यात्री कोलब्रुक छ.ग. आया था,
- इसके समय की महत्वपूर्ण घटना – छ.ग. के आसपास पिंडारियो की गतिविधियों का आरम्भ सरगुजा व छोटानागपुर के मध्य सीमा विवाद का उठना आदि,
5. बीकाजी गोपाल —
- पांचवे सूबेदार थे,
- राजनितिक इतिहास में विशेष महत्त्व का काल रहा था,
- इस काल में राजनितिक घटना बड़ी तीव्रता के साथ घटित हुई,
- प्रमुख घटना है –
- इसके समय में पिंडारियो का छ.ग. में उपद्रव हुआ था,
- इसी के समय में व्यंकोजी भोंसले की मृत्यु और उनके स्थान पर अप्पाजी को छ.ग. का वायसराय बनाया गया,
- रघुजी भोंसले (द्वितीय ) की मृत्यु हुई थी, और उसके बाद अंग्रेजो और मराठो के बिच सहायक संधि हुई थी,
- परसों जी की आकस्मिक मृत्यु, आदि ने नागपुर के साथ – साथ छ.ग. के राजनीति को बहुत तेजी सा प्रभावित किया,
वायसराय अप्पासाहब व अन्य सूबेदार –
- व्यंकोजी के मृत्यु के बाद अप्पासाहब छ.ग. के वायसराय बन गये थे,
- ये नितांत लोभी व स्वार्थी प्रवृत्ति के थे,
- छ.ग. के सूबेदारों से अत्याधिक धान की मांग की थी, सूबेदारों की असमर्थता पर उसे पदच्युत कर देते थे,
6. सरकार हरि-
- 6 वा सूबेदार था,
- इसका शासन काल अल्प समय के लिए था,
7. सीताराम टांटिया –
- 7 वा सूबेदार था,
- इसका शासन काल भी अल्प समय के लिए था,
8. यादवराव दिवाकर – (1817 – 1818)
- यह अंतिम सूबेदार था,
Note — इसके बाद 1818 में छ.ग. में ब्रिटिश शासन का प्रारम्भ हो गया, और सूबा पध्दति समाप्त हो गई,