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छत्तीसगढ़ का साहित्य

छत्तीसगढ़ का साहित्य 

मुख्य लेख : छत्तीसगढ़ी साहित्य
भाषा साहित्य पर और साहित्य भाषा पर अवलंबित होते है। इसीलिये भाषा और साहित्य साथ-साथ पनपते है। परन्तु हम देखते है कि छत्तीसगढ़ी लिखित साहित्य के विकास अतीत में स्पष्ट रुप में नहीं हुई है। अनेक लेखकों का मत है कि इसका कारण यह है कि अतीत में यहाँ के लेखकों ने संस्कृत भाषा को लेखन का माध्यम बनाया और छत्तीसगढ़ी के प्रति ज़रा उदासीन रहे। इसीलिए छत्तीसगढ़ी भाषा में जो साहित्य रचा गया, वह करीब एक हज़ार साल से हुआ है।

 

छत्तीसगढ़ी साहित्य

(१) गाथा युग (सन् 1000 से 1500 ई. तक )

(२) भक्ति युग – मध्य काल (सन् 1500 से 1900 ई. तक )

(३) आधुनिक युग (सन् 1900 से आज तक

ये विभाजन साहित्यिक प्रवृत्तियों के अनुसार किया गया है यद्यपि प्यारेलाल गुप्त जी का कहना ठीक है कि – ” साहित्य का प्रवाह अखण्डित और अव्याहत होता है।” श्री प्यारेलाल गुप्त जी ने बड़े सुन्दर अन्दाज़ से आगे कहते है – ” तथापि विशिष्ट युग की प्रवृत्तियाँ साहित्य के वक्ष पर अपने चरण-चिह्म भी छोड़ती है : प्रवृत्यानुरुप नामकरण को देखकर यह नहीं सोचना चाहिए कि किसी युग में किसी विशिष्ट प्रवृत्तियों से युक्त साहित्य की रचना ही की जाती थी। तथा अन्य प्रकार की रचनाओं की उस युग में एकान्त अभाव था।”

आदि काल – गाथायुग (सन् 1000 से 1500 ई. तक)

  • इतिहास की दृष्टि से छत्तीसगढ़ी का गाथायुग को स्वर्ण युग कहा जाता है। गाथायुग के सामाजिक स्थिति तथा राजनीतिक स्थिति दोनों ही आदर्श मानी जा सकती है।
  • छत्तीसगढ़ बौद्ध-धर्म का एक महान केन्द्र माना जाता था। इसीलिये गाथा युग के पहले यहाँ पाली भाषा का प्रचार हुआ था।
  • गाथायुग में अनेक गाथाओं की रचना हुई छत्तीसगढ़ी भाषा में। ये गाथायें प्रेम प्रधान तथा वीरता प्रधान गाथायें है। ये गाथायें मौखिक रुप से चली आ रही है। उनकी लिपिबद्ध परम्परा नहीं थी।

गाथायुग के प्रेम प्रधान गाथाएँ –

  1. अहिमन रानी की गाथा
  2. केवला रानी की गाथा
  3. रेवा रानी की गाथा

ये सभी गाथाएँ नारी प्रधान है। नारी जीवन के असहायता को दर्शाया है। इन गाथाओं में मंत्र तंत्र और पारलौकिक शक्तियों को भी दर्शाया है। इन गाथाओं का आकार काफी दीर्ध है।

गाथायुग के धार्मिक एवं पौरानिक गाथाएँ

गाथायुग के धार्मिक एवं पौरानिक गाथाओं में प्रमुख है ” फुलवासन” और ” पंडवानी”

भक्ति युग – मध्य काल (सन् 1500 से 1900 ई. तक)

  • छत्तीसगढ़ में इस मध्य काल मे राजनीतिक बदलाओं घटने के कारण शान्ति का वातावरण नहीं रहा। इस मध्यकाल मे बाहर से राजाओं ने छत्तीसगढ़ पर आक्रमण की थी।
  •  सन् 15 36 में सम्भवत रतनपुर के राजा बाहरेन्द्र के काल में मुसलमान राजाओं का आक्रमण हुआ था। इस युद्ध में राजा बाहरेन्द्र की जीत हुई थी। पर इस आक्रमण के कारण एक डर बहुत सालों तक बना रहा। और इसीलिये इस काल में जो गाथा रची गई थी, उसमें वीरता की भाव संचित है।
  •  इसके अलावा इस युग में और एक धारा धार्मिक और सामाजिक गीतों की है। ये रही दूसरी धारा और तीसरी धारा में हम पाते है स्फुट रचनाओं जिसमें अने भावनाएँ संचित है।

मध्ययुग की वीर गाथाएँ

स्फुट रचनाएँ

मध्ययुग की वीर गाथाएँ

इस युग में जो गाथाएँ प्रमुख है, वे है फूँलकुवंर की गाथा, कल्यानसाय की गाथा इसके अलावा है ” गोपाल्ला गीत” ” रायसिंध के पँवारा” ” देवी गाथा” ” ढोलामारु” ” नगेसर कइना” जो लधु गाथाएँ है। इन्हीं गाथाओं के समान है ” लोरिक चंदनी” ” सरवन गीत” ” बोघरु गीत”

स्फुट रचनाएँ

छत्तीसगढ़ के मध्ययुग का तीसरा स्वर है स्फुट रचनाओं का। इस युग में अनेक कवियों में कुछ नाम बड़े ही उल्लेखनीय है

  1. गोपाल कवि
  2. माखन कवि
  3. रेवा राम
  4. प्रह्मलाद दूबे

गोपाल कवि और उनका पुत्र माखन कवि, दोनों रतनपुर के निवासी थे। रतनपुर राज्य में उस वक्त कलचुरि राजा राजसिंह राज्य कर रहे थे। गोपाल कवि के कई रचनायें है।

उनमें से कुछ रचनाओं का उल्लेख किया जाता है जैसे –

  1. जैमिनी अश्वमेघ
  2. सुदामा चरित
  3. भक्ति चिन्तामणि
  4. छन्द विलास

गोपाल कवि ने छत्तीसगढ़ी में पद्य नहीं रची फिर भी उनकी काव्य रचनाओं में छत्तीसगढ़ी का प्रभाव है।

बाबु रेवाराम ने कई सारे काव्य ग्रन्थों की रचना की है।

लक्ष्मण कवि का नाम का उल्लेख उनकी भोंसला वंश प्रशस्ति के संदर्भ में किया जाता है। इस काव्य में अंग्रेजो के अत्याचार के बारे में विस्तृत विवरण पाई जाती है।

प्रह्मलाद दूवे जी, सारगंढ़ के निवासी थे। उनकी काव्य “ जय चन्द्रिका” छत्तीसगढ़ के प्राकृतिक सौन्दर्यता का दर्शाया है।

आधुनिक युग (1900 ई. से अब तक)

  • छत्तीसगढ़ भाषा साहित्य का आधुनिक युग 1900 ” ई. से शुरु होता है। इस युग में साहित्य की अलग-अलग विधाओं का विकास बहुत ही अच्छी तरह से हुआ है।
  • छत्तीसगढ़ साहित्यिक परम्परा के परिप्रेक्ष्य में अति समृद्ध प्रदेश है। इस जनपद का लेखन हिन्दी साहित्य के सुनहरे पृष्ठों को पुरातन समय से सजाता-संवारता रहा है।
  • छत्तीसगढ़ी और अवधी दोनों का जन्म अर्धमागधी के गर्भ से आज से लगभग 1080 वर्ष पूर्व नवीं-दसवीं शताब्दी में हुआ था।”
  • डॉ. सत्यभामा आड़िल अपनी पुस्तक ” छत्तीसगढ़ी भाषा और साहित्य” में लिखती हैं –
    “यद्यपि इस आधुनिक युग में गद्य के भी विविध प्रकरों का संवर्धन हुआ है, तथापि काव्य के क्षेत्र में ही महती उपलब्धियाँ दृष्टिगोचर होती हैं।”

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