करेंट अफेयर्स प्रश्नोत्तरी

  • करेंट अफेयर्स दिसम्बर 2022
  • करेंट अफेयर्स नवंबर 2022
  • करेंट अफेयर्स अक्टूबर 2022
  • करेंट अफेयर्स सितम्बर 2022
  • करेंट अफेयर्स अगस्त 2022
  • करेंट अफेयर्स जुलाई 2022
  • करेंट अफेयर्स जून 2022
  • करेंट अफेयर्स मई 2022
  • करेंट अफेयर्स अप्रैल 2022
  • करेंट अफेयर्स मार्च 2022

करेंट अफेयर्स ( वर्गीकृत )

  • व्यक्तिविशेष करेंट अफेयर्स
  • खेलकूद करेंट अफेयर्स
  • राज्यों के करेंट अफेयर्स
  • विधिविधेयक करेंट अफेयर्स
  • स्थानविशेष करेंट अफेयर्स
  • विज्ञान करेंट अफेयर्स
  • पर्यावरण करेंट अफेयर्स
  • अर्थव्यवस्था करेंट अफेयर्स
  • राष्ट्रीय करेंट अफेयर्स
  • अंतर्राष्ट्रीय करेंट अफेयर्स
  • छत्तीसगढ़ कर्रेंट अफेयर्स

छत्तीसगढ़ का लोक खेल

छत्तीसगढ़ का लोक खेल

छत्तीसगढ़ का लोक खेल वह खेल है जिसकी परम्परा हज़ारों वर्ष पुरानी  है, जिसके न जन्मदाता का पता है और न जन्मभूमि का, उक्त खेल किसी भी पुरस्कार या उपलब्धि की चाह के बिना मात्र खिलाड़ियों के मनोरंजन हेतु खेलते-खेलते एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में हस्तांतरित होते रहे हैं। जिसके लिए न खिलाड़ी शब्द अनिवार्य होता है और न ही प्रशिक्षण। छत्तीसगढ़ का लोक  खेल से छत्तीसगढ़ की कला व संस्कृति का भी पता चलता है, सैकड़ों, हज़ारों वर्षों से मानव समाज में पीढ़ी दर पीढ़ी विकास करते आ रहे हैं। उक्त खेलों में न विशेष नियम होते हैं न विशेष शर्ते। इन्हें हम जन-जन का खेल या ग्रामीण खेल भी कहते हैं।

छत्तीसगढ़ लोक खेल का महत्व 
  • छत्तीसगढ़ में मानव जीवन के साथ ही लोक खेलों की परम्परा विकसित हुई है। झाड़ बेंदरा को आदिम युग का खेल मान सकते हैं। प्रमुख पारम्परिक लोक खेल-फल्ली, मटकी फोर, बांटी, ईभ्भा, भैंरा, बिल्लस, फोदा, गिदिगादा, खीलामार, गोटा, उलानबांटी, नौगाटिया, परी परवरा, कुकरा-कुकरी ।
  • जन साधारण द्वारा सहज रूप से खेले जाने के कारण इनमें सामग्री तथा खिलाड़ियों की संख्या सुनियोजित न होकर त्वरित उपलब्धि के आधार पर तय होती है। लोक खेलों में स्वस्थ मनोरंजन की अनुभूति खिलाड़ियों का लक्ष्य होती है किसी प्रकार का पुरस्कार या उपलब्धि नहीं।
छत्तीसगढ़ के प्रमुख लोक खेल
  • छत्तीसगढ़ के प्रमुख लोक खेल जैसे -फल्ली, मटकी फोर, बांटी, ईभ्भा, भैंरा, बिल्लस, फोदा, गिदिगादा, खीलामार, गोटा, उलानबांटी, नौगाटिया, परी परवरा, कुकरा-कुकरी ।
  • सरलता से उपलब्ध सामग्री पर ही केन्द्रित-जैसे कुचि, गोटा, बिल्लस, चूड़ी, पिट्ठल, गिदिगादा, खिलामार, भिर्री, भौंरा, गिल्ली-डंडा, फल्ली, चुहउल, संडउवा आदि।
छत्तीसगढ़ खेल की घोषणा

छत्तीसगढ़ राज्य गठन के साथ ही खेलों के आरंभ की घोषणा, खिलाड़ियों की मानसिकता, उनकी संख्या और सामग्री की उपलब्धता पर निर्भर होती है। पूर्व तैयारी का सदा अभाव, स्थल विशेष महत्व नहीं -घर के आँगन, बरामदे, कमरा, चौपाल, चबूतरा आदि से संबंधित खेल भोटकुल, फुगड़ी, नौ गोटिया, बन्ना, चौसर, पच्चीसा, चुड़ी बिनउल आदि। मैदान या गलियों में -संखली, गिल्ली डंडा, रेस-टीप, संडउवा, गिदिगादा, खिलामार आदि।

लोक खेल का दाम 
  • दाम किसी प्रकार की उपलब्धि, राशि या सामग्री नहीं होती बल्कि वह आनंद की अनुभूति प्रदान करने का माध्यम होता है। दो रूप पहला संगेच और दूसरा सांझर दाम। संगेच दाम -जिनमें खेल के साथ आनंद की अनुभूति उनके खिलाड़ियों को हो जाती है ऐसे लोक खेलों के दाम को संगेच दाम कहा जाता है।
  • दो रूप झेलार व उरकधारा दाम जैसे-भौंरा, फुगड़ी, सोना-चांदी, गिल्ली डंडा, अल्लग-कूद, फल्ली। सांझर दाम खेल जिसमें आनंद नहीं होता किन्तु खेल समाप्ति पर सफल खिलाड़ियों के लिए पुरस्कार स्वरूप जो दाम की व्यवस्था होती है उसे ही सांझर दाम कहा जाता है, दो रूप मिलते हैं- 1) तुवे व 2) ठुठी।
लोक खेल में गड़ी व दूधभात
  • खेलों में गड़ी व दूध-भात शब्द का भी प्रचलन मिलता है। गड़ी मतलब खिलाड़ी या साथी होता है। दूध-भात से तात्पर्य है अयोग्य या अनुभवहीन खिलाड़ी, उसके द्वारा की गयी गलती पर ध्यान नहीं दिया जाता। यदि वह खेल उचित खेलता है तो उसका सम्मान किया जाता है। ये खिलाड़ी सिर्फ दाम लेता है, दूध-भात के माध्यम से छोटे या अयोग्य बच्चे बड़ों के साथ खेलकर अनुभव प्राप्त करते हुए पारंगत हो जाते हैं।
छत्तीसगढ़ के बाल खेल
अटकन बटकन
  • लोकप्रिय सामूहिक खेल है। इस खेल में बच्चे आंगन परछी में बैठकर, गोलाकार घेरा बनाते है।
  • घेरा बनाने के बाद जमीन में हाथों के पंजे रख देते है। एक लड़का अगुवा के रुप में अपने दाहिने हाथ की तर्जनी उन उल्टे पंजों पर बारी-बारी से छुआता है।
  • गीत की अंतिम अंगुली जिसकी हथेली पर समाप्त होता वह अपनी हथेली सीधीकर लेता है। इस क्रम में जब सबकी हथेली सीधे हो जाते है, तो अंतिम बच्चा गीत को आगे बढ़ाता है।
  • इस गीत के बाद एक दूसरे के कान पकड़कर गीत गाते है।
फुगड़ी
  • बालिकाओं द्वारा खेला जाने वाला फुगड़ी लोकप्रिय खेल है।
  • चार, छः लड़कियां इकट्ठा होकर, ऊंखरु बैठकर बारी-बारी से लोच के साथ पैर को पंजों के द्वारा आगे-पीछे चलाती है।
  • थककर या सांस भरने से जिस खिलाड़ी के पांव चलने रुक जाता है वह हट जाती है।
लंगड़ी 
  • यह वृद्धि चातुर्थ और चालाकी का खेल है।
  • यह छू छुओवल की भांति खेला जाता है।
  • इसमें खिलाड़ी एंडी मोड़कर बैठ जाते है और हथेली घुटनों पर रख लेते है।
  • जो बच्चा हाथ रखने में पीछे होता है बीच में उठकर कहता है –
खुडुवा (कबड्डी)
  • खुड़वा पाली दर पाली कबड्डी की भांति खेला जाने वाला खेल है।
  • दल बनाने के इसके नियम कबड्डी से भिन्न है।
  • दो खिलाड़ी अगुवा बन जाते है। शेष खिलाड़ी जोड़ी में गुप्त नाम धर कर अगुवा खिलाड़ियों के पास जाते है –
  • चटक जा कहने पर वे अपना गुप्त नाम बताते है। नाम चयन के आधार पर दल बन जाता है।
  • इसमें निर्णायक की भूमिका नहीं होती, सामूहिक निर्णय लिया जाता है।
डांडी पौहा
  • डांडी पौहा गोल घेरे में खेला जाने वाला स्पर्द्धात्मक खेल है।
  • गली में या मैदान में लकड़ी से गोल घेरा बना दिया जाता है।
  • खिलाड़ी दल गोल घेरे के भीतर रहते है। एक खिलाड़ी गोले से बाहर रहता है।
  • खिलाड़ियों के बीच लय बद्ध गीत होता है। गीत की समाप्ति पर बाहर की खिलाड़ी भीतर के खिलाड़ी किसी लकड़े के नाम लेकर पुकारता है। नाम बोलते ही शेष गोल घेरे से बाहर आ जाते है और संकेत के साथ बाहर और भीतर के खिलाड़ी एक दुसरे को अपनी ओर करने के लिए बल लगाते है, जो खींचने में सफल होता वह जीतता है। अंतिम क्रम तक यह स्पर्द्धा चलता है।
डंडा कोलाउला 
  • डंडा कोलाल गॉव के चरवाहा बच्चों का खेल है।
  • इस खेल को कम से कम 3-10 तक की संख्या में खेला जा सकता है।
  • इस खेल को खेलने के लिए निर्धारित स्थान में बारी बारी से झुककर अपने दोनों टांगों के बीच से अपने डंडे को ताकत लगाकर फेंकना पड़ता है।
  • जिसका डंडा कम दूरी तक जाता है, उसे दाम देना होता है।
  • फिर हारने वाला अपने दोनों हाथों को ऊपर उठाकर कर डंडे को हाथ मे रखता है
  • बाकी लोग पीछे से उसके डंडे को अपने डंडे से फेकते फेकते दूर ले जाते हैं।
  • डंडे को फेकते समय फेकने वालों को निर्धारित चीजे जैसे पत्ती, कंकड़,आदि छूना होता है।
  • दाम देने वाला उन लोगों को छूने का प्रयास करता है। जो उसके डंडे को अपने डंडे से फेकते हैं।
  • यदि फेकनें वाले निर्धारित वस्तु नही छू पाता और दाम देने वाला उसे छू लेता है तो फिर जिसको छूता है उसे दाम देना पड़ता है।
बित्ता कूद
  • कूद ऊंची कूद का ही रूप है।
  • इस खेल को दो-दो की जोड़ी में खेला जाता है।
  • जब एक जोड़ी बैठकर पैर और बित्ते की मदद से ऊंचाई को बढ़ाते जाते हैं।
  • बाकी जोड़ी बारी-बारी से उस ऊंचाई को कूदते हैं।
  • यदि किसी का साथी कूद नही पाता या कूदते समय टच हो जाता है तब उसका साथी उसके बदले कूदता है।
  • यदि उस ऊँचाई को पार कर लेते हैं तो अगला राउंड चलता है और यदि पार नही कर पाता तो उन्हें दाम देना पढ़ता है।
परी-पत्थर
  • परी-पत्थर व अमरित-बिस ये दोनों खेल एक ही है इसमें कोई अंतर नही है।
  • जिसको पारी देना होता है वह किसी को छूकर पत्थर या बिस बोलता है ऐसे स्थिति में पत्थर जैसे खड़ा रहना होता है
  • जब उसके अन्य साथी परी या अमरित बोलकर छूते हैं तो वह फिर से इधर उधर भाग सकता है।
  • यदि भागते हुए पकड़ा गया तो दाम देना पड़ता है।
गोटी
  • इस खेल को ज्यादातर लड़कियाँ ही खेलती हैं। इस खेल को दो तरीके से खेला जाता है और बैठकर खेला जाता है। बहुत सारे कंकड़ को बिखेरकर बारी-बारी से बीनते हैं। सभी कंकड़ को एक एककर बिना जाता है और बीनते समय कोई दूसरा हिल गया तो जितना कंकड़ हिला रहेगा उतने को दूसरे को देना पड़ता है। दूसरे से हिला तो पहले वाले को देना पड़ता है।
  • इस प्रकार ज्यादा कंकड़ जितने वाला जीत जाता है। हारने वाला जितने वाले को उसका उधार चुकाता है। गोटी के दूसरे तरीके में पाँच गोटी के मदद से छर्रा,दुवा,तिया,चौके,उद्दलकुल तक बिना जाता है।
  • इस प्रकार 5-7 राउंड तक खेल चलता है जो बिना गिराए उस राउंड तक जल्दी पहुंच जाता है वो जीत जाता है।
फल्ली
  • इस खेल को पाँच लोग मिलकर खेलते हैं।
  • बीच मे खपरैल का टुकड़ा रखा होता है जिसे बचाते हुए पारी वाला चारो तरफ को फल्ली बोलते हुए पूरा करता है।
  • इस बीच में चारो खानों में खड़े खिलाड़ी उस खपरैल को चुराकर अपने अन्य तीन साथियों को बांटता है।
  • यदि दाम देने वाला उसे छू लेता है तो उसे दाम देना पड़ता है।
नदी-पहाड़
  • नदी पहाड़ का खेल सामूहिक खेल है इस खेल को खेलने के लिए ऊँचा और नीचा स्थान का होना जरूरी रहता है।
  • नीचे वाला स्थान नदी और ऊपर वाला स्थान पहाड़ कहलाता है।
  • पारी से पूछा जाता है,कि ‘नदी लेबे या पहाड़’ फिर पारी वाला नदी कहता है,तो सभी को पहाड़ वाले स्थान पर जाना होता है और पहाड़ बोलने पर नदी वाले स्थान पर जाना होता है।
  • इस बीच जाते समय किसी को छू लेता है तो उसे दाम देना पड़ता है।
अंधियारी-अंजोरी
  • अंधियारी-अंजोरी के खेल को भी नदी-पहाड़ के खेल जैसे ही खेला जाता है।
  • पर इसमें नदी पहाड़ के स्थान पर अंधियारी या अंजोरी बोला जाता है।
  • इस खेल में छाया और उजाला वाला स्थान होना जरूरी रहता है।
  • इस लिए बच्चे इस खेल को दिन ढलने के बाद खेलते हैं।
ख़िलामार
  • ख़िलामार खेल में एक कील को पारी वाले को छोड़कर सभी बारी बारी से मार मारकर जमीन में गड़ाते हैं और फिर सभी आसपास छिप जाते हैं।
  • पारी वाला कील को जमीन से निकालता हैं और सभी को ढूंढता है।
  • जो पहला मिला होता है उसे दाम देना पड़ता है।
  • यदि कोई नजरों से बचकर कील के पास बने गढ्ढे में थूक देता है तो पुनः उसे ही दाम देना होता है।
बाँटी
  • कंचा को ही बाँटी कहा जाता है। दस,बीस, तीस,…..सौ तक गिनकर एक दूसरे के बाँटी को मारते हैं।
  • जिनका जिनका सौ जल्दी हुआ वे सभी जीत जाते हैं ,जिसका सौ नही हो पाता ओ हार जाता है। 
  • फिर कदम से नाप कर अपने बाँटी को दूर में रखता है
  • सभी अपने बाँटी से उसके बाँटी के निशाना लगाते हैं. पड़ा, तो फिर कदम से नाप कर बाँटी रखता है
  • इस प्रकार खेल चलते रहता है। नही पड़ा तो पुनः खेल शुरू होता है फिर दस, बीस बोलकर एक दूसरे के बाँटी को निशाना लगाते हैं।
भौंरा
  • भौंरा का खेल बच्चों का पसंदीदा खेल है हिंदी में इसे लट्टू कहा जाता है।
  • इस खेल में लकड़ी के गोल टुकड़े में कील लगा होता जिसे रस्सी से लपेट कर फेंकते हैं जिससे भौंरा कील के सहारे गोल घूमने लगता है।
  • इस खेल में एक दूसरे के घूमते भौरे को गिराना होता है।
बिल्लस
  • बिल्लस के खेल को आंगन में बिछे पत्थरों पर खेला जाता है
  • कभी-कभी जमीन में चौकोर चौकोर डिब्बा बनाकर भी खेलते हैं।
  • इस खेल में घर(खाना) जितना होता है।
चांदनी
  • चांदनी का खेल खेलने के लिए एक दाम देने वाला होता है और बाकी उसके कहे निर्देशों को पूरा करते हुए एक स्थान से दूसरे स्थान तक जाते हैं
  • इस बीच में कोई उस एक्शन को नही कर पाता या उठ कर भागता है तो उसे छू देता है।
  • अब उसे दाम देना होता है।इस खेल में पारी वाले से बोला जाता है ए चांदनी का लेबे?
  • पारी देेने वाली बोलती है अग्गल बेली बग्गल छी सभी वैसे ही बोलते और एक्शन करते दूसरे
चिंगरी बुर-बुच्ची
  • यह भी गोल घेरे में बैठकर बच्चे अपनी- अपनी अँगुलियों को जमीन पर रखकर निम्नानुसार शब्द लय-ताल में बोलते है: दसतो पिंजो काल कबूतर ढोल उपरोक्त अंतिम शब्द ढोल जिसकी अँगुली मे आकर समाप्त होता है, क्रमानुसार वह अपना हाथ उठाता है।
  • अंत में जो बच्चा बच जाता है उसे अपने दोनों हाथ जोड़कर नमस्कार की मे मुद्रा बारी-बारी से सबके सामने जाना पड़ता है। इस अवस्था में प्रत्येक बच्चा बोलता है:
  • ” चिंगरी बुर-बच्ची मानबती के दाई , मानबती के दाई मुर्रा खाबे के लाई ”
पच्चीसा
  • हागे डार घोसनीन-घोसर घोसर, पानी नइये पसिया पसर पसर, हाड़ा के दातुन कर, गुहू के भोजन कर चीता हाड़ा बिनाथाबे,चित्ताहाड़ा बिनाथाबे।
कोबी
  • चल भईया आवन दे -तबला बजावन दे कनवा हे धोबी कतर दे कोबी
पोसम पा भई पोसम पा
  • इस खेल में दो बच्चे भाई गड़ी बन हाथों को जोड़कर दरवाजा सदृश्य आकार बनाते हैं। एक बच्चा राजा बनता है। शेष बच्चे उसके पीछे चलते है। बच्चे गाते है- ‘पोसम पा भई पोसम पा’ बच्चों जब दरवाजा से निकलते रहते हैं वब माईगड़ी कहते है- सवा रूपए की घड़ी चोराय अब तो जेल में जाना पड़ेगा।
  • इस प्रकार कोई न कोई बच्चा पकड़ा जाता है। दोनों माई गड़ी उससे पूछते है ‘आमा खाबे के अमली’ फंसा हुआ बच्चा एक नाम आमा या अमली बोलता है इस तरह जिसका नाम बोलता है इसकी ओर हो जाता है। इस तरह यह खेल विभिन्न चरणों में आगे बढ़ता है।
अती-पत्ती
  • किसी पेड़ की पत्ती का उपयोग करते है। दाम देने वाले बच्चे से कहा जाता है कि:-
  • अत्ती -पत्ती माद गदती तुम लाओ आमा के पत्ती
  • इस तरह दाम देने वाला लड़का बरगद के नीचे धूल या पत्थर में आमा की पत्ती लाकर रखता है फिर यह पेड़ पर चढ़े बच्चों को छूने के लिए दौड़ता है। यदि किसी बच्चे को छू लिया तो वह दाम देगा और उससे उपरोक्त गीत गाकर मंगाई जाएगी। खेल आगे बढ़ता जाता है।
नदी पहाड़
  • चांदनी रात में यह खेल खेलते समय घर के किनारे बने हुए चबूतरो को पहाड़ तथा नीचे जमीन को नदी मानकर खेला जाता है। नदी में आने वाले बच्चे गीत गाते है:- तोर नदी में डुबक डैया, छू ले रे मोर छोटू भईया। जो खिलाड़ी दाम देता है। वह नदी में आने वाले खिलाड़ियो को छूने की कोशिश करता है।
  • जिस बच्चे को वह छू लेता है, उसके स्थान पर वह दाम देता है। इस प्रकार यह खेल आगे बढ़ता है। इसी प्रकार का खेल अंधियारी-अंजोरी और परी : पखना का भी खेल है।
अंधरी चपटी
  • इसमें कई बच्चे एक साथ खेल सकते है। दाम देने वाले बच्चे की आंखों में कपड़ा बांध दिया जाता है। तब अन्य बच्चों को वह छूने का प्रयास करता है।
  • अन्य बच्चे पट्टी बंधे बच्चे को सिर पर हल्की चोट देते है। इस बीच पट्टी बंधा बच्चा किसी को छू लेता है तब वह बच्चा दाम देने लगता है। इस तरह खेल आगे चलता रहता है।
चोर पुलिस
  • इसमें छोटे-छोटे बच्चे कभी कोई राजा दरोगा, कोतवाल एवं चोर आदि पात्रों का स्वांग करते हुए चोर पुलिस का खेल खेलते है।
  • इस खेल के लिए कोई एक विषय चुन अभिव्यक्ति गीत के माध्यम से करते है।
चुटिया मुटिया
  • यह छुवा-छुवव्वल खेल है बालकों का एकत्रित समूह चित्त-पट्ट या जनावला के माध्यम से दाम देनेवाले के एक हाथ को पैर में रस्सी से बाँध देते हैं । हाथ बाँधने से बालक का शरीर झुक जाता है और पीठ कूबड़ के समान उभर जाती है।
  • इस स्थिति में जब वह छूने के लिए दौड़ता है हाथ में लकड़ी के छोटे-छोटे टुकड़ों का बँधा हुआ एक मुठिया को दाम लेने वाले बच्चों की ओर फेंककर उनमें से किसी एक को छूने का प्रयास करता है।
  • कभी जब वह थककर बैठ जाता है, तब दाम लेने वाले बच्चे उसकी चोटी को स्पर्श करते हुए हास-परिहास करते हुए गीत गाते है
  1. कहां जाथस डोकरी ,महुवां बीने बर
  2. महूं लेगबे का, तोर दाई ददा ला पूँछ के आ
  3. आगेन डोकरी , चल मोला खदैया चढ़ा
  4. हः हः हःडोकरी के मूड मा, कौवां चिरक दिस
गोल गोल रानी
  • अतका अतका पानी, गोल गोल रानी – मुठुवा अतका पानी , गोल गोल रानी -गाड़ी अंतका पानी, घुटना जितना पानी, गोल गोल रानी- कनिहा अतका पानी, गोल गोल रानी – छाती अतका पानी, गोल गोल रानी – टोंटा अतका पानी, गोल गोल रानी गोल रानी म ठठाहूं। – मूड़ अतका पानी, गोल – तारा लगे हे, सचर लगेहे, येती लेजा हूं – बाहरी
इन्हें भी देखे 
FAQs

छत्तीसगढ़ का प्रमुख खेल कौन सा है?

छत्तीसगढ़ का प्रमुख खेल गिल्ली-डंडा, पिट्टूल, संखली, लंगड़ी दौड़, कबड्डी, खो-खो, रस्साकसी और बांटी (कंचा) जैसी खेल विधाएं शामिल की गई हैं, वहीं एकल श्रेणी की खेल विधा में बिल्लस, फुगड़ी, गेड़ी दौड़, भंवरा, दौड़ एवं लंबी कूद को शामिल किया गया है।

छत्तीसगढ़ का पारंपरिक खेल क्या है?

छत्तीसगढ़ में छत्तीसगढ़िया ओलंपिक ने पारंपरिक खेलों को दिया मंच है छत्तीसगढ़िया ओलंपिक में 14 खेलों को शामिल किया गया है। जिसमे - गिल्ली डंडा, पिट्टुल, संखली, लंगड़ी दौड़, कबड्डी, खो-खो, रस्साकसी, बाटी (कंचा) और एकल खेल में बिल्लस, फुगड़ी, गेड़ी दौड़, भंवरा, 100 मी.

छत्तीसगढ़ में खेलेजाने वाले खेल कोन से है ?

छत्तीसगढ़ का प्रमुख खेल गिल्ली-डंडा, पिट्टूल, संखली, लंगड़ी दौड़, कबड्डी, खो-खो, रस्साकसी और बांटी (कंचा) जैसी खेल विधाएं शामिल की गई हैं। वहीं एकल श्रेणी की खेल विधा में बिल्लस, फुगड़ी, गेड़ी दौड़, भंवरा, दौड़ एवं लंबी कूद को शामिल किया गया है।

छत्तीसगढ़ के बाल खेल कोन से है ?

छत्तीसगढ़ के बाल खेल जैसे -फल्ली, मटकी फोर, बांटी, ईभ्भा, भैंरा, बिल्लस, फोदा, गिदिगादा, खीलामार, गोटा, उलानबांटी, नौगाटिया, परी परवरा, कुकरा-कुकरी ।

छत्तीसगढ़ का लोक खेल कोन सा है ?

छत्तीसगढ़ का लोक खेल या प्रमुख पारम्परिक लोक खेल-फल्ली, मटकी फोर, बांटी, ईभ्भा, भैंरा, बिल्लस, फोदा, गिदिगादा, खीलामार, गोटा, उलानबांटी, नौगाटिया, परी परवरा, कुकरा-कुकरी ।

सम्बंधित लेख

इसे भी देखे ?

सामान्य अध्यन

वस्तुनिष्ठ सामान्य ज्ञान

  • प्राचीन भारतीय इतिहास
  • मध्यकालीन भारतीय इतिहास
  • आधुनिक भारत का इतिहास
  • भारतीय राजव्यवस्था
  • पर्यावरण सामान्य ज्ञान
  • भारतीय संस्कृति
  • विश्व भूगोल
  • भारत का भूगोल
  • भौतिकी
  • रसायन विज्ञान
  • जीव विज्ञान
  • भारतीय अर्थव्यवस्था
  • खेलकूद सामान्य ज्ञान
  • प्रमुख दिवस
  • विश्व इतिहास
  • बिहार सामान्य ज्ञान
  • छत्तीसगढ़ सामान्य ज्ञान
  • हरियाणा सामान्य ज्ञान
  • झारखंड सामान्य ज्ञान
  • मध्य प्रदेश सामान्य ज्ञान
  • उत्तराखंड सामान्य ज्ञान
  • उत्तर प्रदेश सामान्य ज्ञान

Exam

GS

Current

MCQ

Job

Others

© 2022 Tyari Education.