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पवन क्या है? पवनों के प्रकार, ऋतुवार पवन प्रवाह कौन सी है

पृथ्वी के धरातल पर वायुदाब की भिन्नता के कारण ही वायु में गति उत्पन्न होती है। इस गतिशील वायु को पवन (wind) कहते हैं। फिन्च एवं ट्रिवार्था के अनुसार, “पवन प्रकृति का वह प्रयत्न है जिसके द्वारा वायुदाब की असमानता दूर होती है”

पवनें अधिक दाब के क्षेत्र से कम दाब के क्षेत्रों की ओर बहती हैं। वायुदाब की भिन्नता के आधार पर पवनों की  है क्युबाव में स्थिता जितनी अधिक होती है, पवते उतनी ही तीव्र गति से वहती हैं। पवन का नाम जिस दिशा से वह वहती है, उस दिशा के अनुसार होता है। यदि पवन उत्तर की ओर से दक्षिण की ओर बह रही है तो उसे उत्तरी पवन Northern Wind कहेंगे।

पवन क्या है?

धरातल की पवनों का सीधा सम्बन्ध वायुदाब के अन्तर से होता है। वायुदाब के अन्तर को वायुदाब का ढाल या प्रवणता कहा जाता है। धरातल पर चलने वाली पवनों की प्रवाह-दिशा और गति वायुमण्डल के ढाल से ही ज्ञात होती है। वायुदाब और पवनों के सम्बन्ध में दो बहुत ही महत्वपूर्ण नियम हैं- पहला, पवन-प्रवाह सदैव उच्च दाब से निम्न दाब की ओर होता है। दूसरा, पवन की प्रवाह-गति वायुदाब के अन्तर की न्यूनाधिकता (दाब की प्रवणता) पर निर्भर करती है।

फैरल का नियम

धरातल पर रूप से चलने वाली सभी हवाएं पृथ्वी की गति के कारण उत्तरी गोलार्द्ध में दाहिनी ओर तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में बायीं ओर मुड़ जाती हैं।” यह नियम बड़े क्षेत्रों पर चलने वाली स्थायी पवनों, छोटे चक्रवातों और प्रतिचक्रवातों पर लागू होता है। इस नियम का प्रभाव महासागरीय धाराओं, ज्वारीय गतियों, राकेटों, आदि पर भी देखा जाता है।

बाइस बैलेट का नियम

नीदरलैण्ड निवासी बाइस बैलेट नामक एक अन्य वैज्ञानिक ने सन् 1857 में वायुदाब सिद्धान्त का प्रतिपादन किया था। यह सिद्धान्त उसने सदा दिशा बदलने वाली पवनों के विषय में प्रमाणित किया था। उसके अनुसार, यदि हम चलती हुई वायु को पीठ देकर खड़े हों तो उत्तरी गोलार्द्ध में हमारे दायीं ओर निम्न दाब और बायीं ओर उच्च दाब होगा”।

पवनों के प्रकार Types of Winds

1. ग्रहीय या सनातनी (स्थायी) पवनें Planetary or Permanent Winds

व्यापारिक पवनें Trade Winds

यह अयनवृतीय उच्चदाब मेखलाओं से विषुवत रेखीय कम-दाब वाली मेखलाओं की ओर चलती हैं। इनका विस्तार विषुवत् रेखा के दोनों ओर 5°-10° अक्षांशों से 30°-35° अक्षांशों के बीच है। फैरल के नियमानुसार उत्तरी गोलार्द्ध में इनकी दिशा उत्तर-पूर्वी तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में दक्षिण-पूर्वी होती है। ये पवनें सामान्यतः वर्ष भर नियमित रूप से एक ही दिशा में बहती हैं इसलिए इनको सन्मार्गी पवनें कहा जाता है। प्राचीन समय में इन हवाओं के द्वारा व्यापार हुआ करता था, अतः इन्हें व्यापारिक पवनें कहा जाता है।

पछुआ पवनें Westerlies

अयनवृतीय उच्च वायुदाब की मेखला से उपध्रुवीय निम्न वायुदाब की मेखला की ओर बहने वाल को पछुआ पवनें कहा जाता है। उत्तरी तथा दक्षिणी गोलाद्धों में ये पवनें 35°-40° अक्षांशों से 60°-66½°  अक्षांशों के बीच बहती रहती हैं। पृथ्वी की परिभ्रमण गति के कारण उत्तरी गोलार्द्ध में इनकी प्रवाह दिशा दक्षिण-पश्चिम से उत्तर-पूर्व की ओर तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में उत्तर-पश्चिम से दक्षिण-पूर्व की ओर होती हैं। ये प्रायः शीतोष्ण कटिबन्ध और शीत शीतोष्ण में चला करती हैं। न तो इनकी प्रवाह गति एक-सी रहती है और न ही यहाँ सम्बन्धित मौसम शान्त रह पाता है, अर्थात् मौसम की परिवर्तनशीलता ही इनकी विशेषता है। इन पवनों के प्रदेश में शीतोष्ण चक्रवात और प्रतिचक्रवात चलते रहने के कारण बड़ी अनियमित अवस्था उत्पन्न हो जाती है।

उत्तरी गोलार्द्ध की अपेक्षा दक्षिणी गोलार्द्ध में पवनों का प्रवाह अधिक स्थायी ओर निश्चित होता है। दक्षिणी गोलार्द्ध में 40°-60° अक्षांशों के बीच स्थलखण्ड पवनों के प्रवाह मार्ग में कोई रूकावट पैदा नहीं होती है। इन अक्षांशों के बीच फैले विशाल सागरों पर पवनें ग्रीष्म ऋतु और शीत ऋतु में समान रूप से प्रचण्ड गति से बहती रहती हैं। यहाँ के प्रचण्ड वेग के कारण ही यह गरजने वाली चालीसा (Roaring Forties) या वीर पछुवा पवनें (Brave West Winds) कहलाती हैं।

ध्रुवीय पवनें Polar Winds

वे ठण्डे ध्रुव प्रदेशों से ध्रुव-वृतीय कम दाब की मेखलाओं की ओर बहती हैं। इनका क्षेत्र 60° से 70° अक्षांशों तक विस्तृत है। उत्तरी गोलार्द्ध में ये उत्तर-पूर्व की दिशा से चलती हैं और दक्षिणी गोलार्द्ध में इनकी दिशा दक्षिण-पूर्व होती है। ये पवनें अत्यन्त ठण्डी होती हैं, इसलिए इनके सम्पर्क में आने वाले क्षेत्रों का तापमान बहुत नीचे गिर जाता है। पछुआ से मिलकर ये चक्रवातों और प्रतिचक्रवातों को जन्म देती हैं।

2. अस्थायी अथवा सामयिक पवनें Temporary or Seasonal Winds

स्थायी रूप से तापमान एवं वायुदाब की विशेष दशाओं के कारण जब पवनें किसी निश्चित अवधि में बहती हैं तो उन्हें अस्थायी (Temporary) या सामयिक (Seasonal) पवनें कहा जाता है।

ये पवनें तीन प्रकार की होती हैं-

मानसूनी पवनें Mansoon winds

ऐसी पवनें जो मौसम के अनुसार अपनी प्रवाह-दिशा बदल देती हैं, मानसून पवनें कहलाती हैं। मानसून अरबी शब्द मौसम से निकला है। इनका सर्वप्रथम प्रयोग अरब सागर पर चलने वाली पवनों के लिए किया गया था, जो 6 महीने उत्तर-पूर्व से और 6 महीने दक्षिण-पश्चिम से चला करती थीं। इन पवनों के चलने का कारण धरातल पर जल और स्थल का पाया जाना है और जल और स्थल असमान रूप से गरम और ठण्डे होते हैं।

इन पवनों को मुख्य रूप से दो प्रकारों में बाँटा जा सकता है-

  1. ग्रीष्म ऋतु का मानसून summer Monsoon– सूर्य 21 जून को कर्क रेखा पर लम्बवत् चमकता है। इस कारण मध्य एशिया एवं राजस्थान के अन्तःस्थित भागों में प्रगाढ़ निम्न दाब क्षेत्रों का विकास होता है। इसके विपरीत अरब सागर, हिन्द महासागर तथा प्रशान्त महासागर में अपेक्षाकृत उच्च दाब रहता है, जिससे इन महासागरों से दक्षिण-पश्चिमी तथा दक्षिण-पूर्वी पवनें स्थल भागों की ओर बहती हैं। महासागरों से आने के कारण ये पवनें जल-वाष्प से पूर्ण होती हैं तथा पर्वतों के पवनामुखी (winds ward slopes ) ढालों से टकराकर भारी वर्षा करती हैं।
  2. शीत ऋतु का मानसून Winter Monsoon शीत ऋतु में सूर्य 22 दिसम्बर को मकर रेखा पर लम्ववत् चमकता है। उत्तरी गोलार्द्ध में इस समय कम ताप के कारण मध्य एशिया में उच्च दाब क्षेत्र स्थापित हो जाता है। इसकी अपेक्षा अरब सागर, हिन्द महासागर व प्रशान्त महासागर में तापमान के अपेक्षाकृत ऊँचे रहने के कारण वहां निम्न दाब क्षेत्र रहता है। फलस्वरूप स्थल के उच्च दाब क्षेत्रों से महासागरों के निम्न दाब क्षेत्रों की ओर (उत्तरी गोलार्द्ध में) पवनें बहने लगती हैं। स्थल भागों से आने के कारण ये पवनें अत्यधिक ठण्डी तथा शुष्क होती हैं।

सामयिक पवनें Periodic Winds

  1. समुदी या सागरीय समीर Sea Breeze दिन के समय सूर्य की गर्मी से स्थल भाग जल भाग की अपेक्षा अधिक गरम हो जाता है। अत: स्थल भाग पर अधिक ताप से उत्पन्न निम्न वायुदाब तथा जल भाग पर कम तापमान होने से अधिक वायुदाब स्थापित हो जाता है। परिणामस्वरूप दिन को सागर से स्थल की ओर पवनें बहने लगती हैं। ये पवने दिन के दस बजे से सूर्यास्त तक बहती हैं और कभी-कभी 30-40 किमीं तक स्थल भाग में भीतर प्रवेश कर जाती हैं। इस पवनों से स्थल भाग का तापमान गिर जाता है और कुछ वर्षा भी होती है। इस प्रकार मौसम की दैनिक अवस्थाओं पर इनका बड़ा प्रभाव पड़ता है। सागर से बहने के कारण इनको सागरीय समुदी) पवन कहा जाता है।
  2. स्थलीय समीर Land Breeze रात्रि के समय स्थल भाग में तापमान की कमी और समुद्री भाग पर तापक्रम की अधिकता (जल स्थल की अपेक्षा धीरे-धीरे ठण्डा होता है) के कारण स्थलीय भाग में अधिक वायुदाब तथा समुद्री भाग पर न्यून वायु भार रहता है, इस कारण प्रायः समुद्री तटों पर सूर्यास्त से प्रातः 8 बजे तक स्थल की ओर से हवाएँ समुद्र की ओर बहती हैं। इनको स्थलीय पवन कहते हैं।
  3. पर्वतीय घाटी तथा पवनें Mountain and valley Breezes- ये भी तापमान के दैनिक परिवर्तन के कारण उत्पन्न होती हैं। रात्रि के समय पर्वत शिखर से जो पवने घाटी के तल की ओर चलती हैं, उन्हें पर्वतीय पवनें कहा जाता है। दिन के समय जो पवने घाटी के तल से पर्वत शिखर की ओर बहती हैं, उन्हें घाटी पवनें कहा जाता है। सूर्योदय के साथ सूर्य की किरणे सर्वप्रथम पर्वत शिखरों का स्पर्श करती हैं। इसी कारण घाटी की अपेक्षा वे शीघ्र गर्म हो जाते हैं तथा संवाहन के कारण उनकी वायु ऊपर उठ जाती है। परिणामस्वरूप घाटी के तल से अपेक्षाकृत ठण्डी पवनें शिखर की ओर आने लगती हैं। इन्हें घाटी समीर कहते हैं जबकि रात्रि के समय तीव्र विकिरण के कारण पर्वतशिखर शीघ्र ठण्डा हो जाता है तथा घाटी अपेक्षाकृत गरम रहती है। फलतः पर्वतशिखर की वायु सघन तथा भारी होने के कारण नीचे उतरती है, जबकि घाटी की वायु अपेक्षाकृत हल्की होने के कारण ऊपर उठ जाती है। इन्हें पर्वतीय समीर कहते हैं।

स्थानीय पवनें Local Winds

  1. सिमूम Simoom- शुष्क तथा धूलयुक्त हवाएँ सहारा मरुस्थलू में बहती हैं। काफी तेजी से बहने के कारण अपने साथ रेत उड़ाकर ले जाती हैं, इस कारण मानव को सांस लेने में कठिनाई होती है। सांस के साथ बजरी, बालू, रेत नाक और मुँह में घुस जाती है। ये हवाएँ अपने प्रभाव क्षेत्र से बालू के टीलों को स्थानान्तरित करती हैं।
  2. लू Loo- ग्रीष्म ऋतु में उष्ण प्रदेशों में बहने वाली शुष्क हवाओं को लू कहते हैं। भारत में लू उन अति तप्त हवाओं को कहते हैं, जिनका कि तापक्रम 38° सेण्टीग्रेड से 49° सेण्टीग्रेड तक होता है। इस प्रकार की हवाएँ उत्तरी भारत में मई के अन्तिम सप्ताह से जून के अन्तिम सप्ताह तक वहती हैं।
  3. मिस्ट्रल Mistral- इटली, फ्रांस और स्पेन में ध्रुवीय क्षेत्रों में आने वाली ठण्डी हवाएँ होती है तथा इनका प्रभाव भूमध्य सागर के तट पर आकर समाप्त हो जाता है।
  4. खमसिन Khamsin अफ्रीका में मिस्त्र की ओर अप्रैल से जून के महीनों में बहने वाली उष्ण और शुष्क हवा है।
  5. सिरोको Sirroco- सहारा मरुस्थल से भूमध्यसागर की ओर चलने वाली उशन शुष्क हवाएं हैं, परन्तु भूमध्य सागर पर पहुंचने पुर नमी प्राप्त कर लेती हैं और सिसली, इटली, फ्रांसू और स्पेन में प्रवेश कर धुल युक्त वर्षा करती हैं।
  6.  बोरा Bora बोरा भी मिस्ट्रल की भांति ठण्डी और शुष्क हवाएँ हैं। ये आद्र हवाएँ एड्रियाटिक सागर के पूर्वी किनारे से होती हुई उत्तर-पश्चिम में इटली के पूर्वी तथा उत्तरी क्षेत्र को प्रभावित करती हैं। वे हवाएँ बहुत तेज गति (128 से 200 किलोमीटर प्रति घण्टा) से वहने के कारण अधिक हानि पहुंचाती हैं।
  7. हरमट्टान Harmattan अफ्रीका के सहारा प्रदेश में उत्तर-पूर्व एवं पूर्व से वहने वाली उष्ण, शुष्क तथा धूल से भरी होती हैं। इन हवाओं के कारण सारा वातावरण धूल युक्त हो जाता है। आस्ट्रेलिया में इस प्रकार की हवाओं को ब्रिकफील्डर कहते हैं।
  8. चिनूक Chinook- रॉकी पर्वतीय प्रदेश में जब कोई आर्द्र वस्तु या चक्रवात प्रवेश करता है तो उस प्रदेश की शुष्क हवा को अपनी ओर खींचती है और वर्षा करती है। वर्षा के उपरान्त यही हवाएँ पर्वतों के पूर्वी भागों में उतरती हैं तो यह शुष्क और गरम होती हैं, यही कारण है कि संयुक्त राज्य अमरीका और कनाडा के रॉकी पर्वतों के पूर्वी ढाल वृष्टिछाया प्रदेश हैं।
  9. ॅान Fohn- हवाओं के समान ही यूरोप के आसपास प्रदेश में ये हवाएँ दक्षिणी भाग में प्रवेश कर उत्तर की ओर उतरती हैं तो तापक्रम बढ़ जाता है। ये गर्म तथा शुष्क पवनें होती हैं।

ऋतुवार पवन प्रवाह 

जनवरी की पवनें Winds of Jaunary उत्तरी गोलार्द्ध में जनवरी अत्यन्त शीतल तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में अत्यन्त गरम महीना होता है। अत: जनवरी में दक्षिणी-पूर्वी सन्मार्गी पवनों का विस्तार सीमित हो। जाता है, क्योंकि ये विषुवत् रेखा को पार नहीं कर पाती, अतः दक्षिणी-पूर्वी द्वीप समूह में मानसूनी पवनों का प्रभाव अधिक रहता है। पछुआ पवनों की मेखलाएँ दक्षिण की ओर खिसक कर भूमध्यसागर के क्षेत्र तक अपना प्रभाव डालती हैं, जिससे यहां शरद ऋतु में वर्षा होती है। ध्रुवों से आने वाली पवनें शरद ऋतु में अधिक ठण्डी हो जाती हैं, इससे यूरेशिया महाद्वीप एवं उत्तरी अमेरिका के तापमान तेजी से गिरते हैं। दक्षिणी गोलार्द्ध में स्थल के अभाव से पछुआ अथवा सन्मार्गी पवनों का मार्ग बिना अवरोध के होता है। ये पवनें तीव्रगामी होती हैं।

जुलाई की पवनें winds July ऋतु के बदलने पर जुलाई में पवनों में परिवर्तन जाता है। तब वायुदाब की सारी मेखलाएँ उत्तर की ओर खिसक जाती हैं। ध्रुवीय पवनों का क्षेत्र संकुचित हो जाता है और गर्मियों में भूमध्यसागरीय प्रदेशों में पछुआ पवनें वर्षा नहीं करती। भूमध्यसागरीय क्षेत्रों में उत्तर-पूर्वी पवनों का प्रभाव स्पष्ट होने लगता है। ये पवनें स्थलीय होने के कारण वर्षा नहीं करती। दक्षिण-पूर्वी सन्मार्गी पवनें विषुवत् रेखा को पार करके दक्षिण-पश्चिमी पवन के रूप में मानसूनी प्रदेशों में भारी वर्षा करती हैं। दक्षिणी गोलार्द्ध में अन्य पवनों के मार्ग में कोई अन्तर उत्पन्न नहीं हो पाता, क्योंकि इनका अधिकांश मार्ग बिना किसी स्थानीय अवरोध के सागर के ऊपर से होता है।

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