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अवसादी चट्टानें क्या है? विकास एवं रचना, वर्गीकरण, विशेषताएं एवं उपयोग

प्रारम्भ में जब पृथ्वी द्रव अवस्था से ठोस अवस्था को प्राप्त हुई तो पृथ्वी का समस्त भू-पृष्ठ आग्नेय चट्टानों का बना हुआ था। बाद में अनाच्छादन प्रक्रिया के प्रभाव से धीरे-धीरे आग्नेय चट्टानों का विनाश होने लगा, जिससे आग्नेय चट्टानें टूटकर चूर्ण रूप में बदलने लगीं।

अवसादी या परतदार चट्टानें 

धरातल पर पायी जाने वाली अधिकांश चट्टानें अवसादी चट्टानें होती हैं। ऐसा अनुमान लगाया गया है कि पृथ्वी के धरातल का लगभग 75% भाग इन्हीं चट्टानों द्वारा बना हुआ है और शेष 25% भाग में आग्नेय चट्टानें तथा कायान्तरित चट्टानें फैली हुई हैं। यद्यपि भूपटल पर अवसादी चट्टानों का अधिक विस्तार पाया जाता है, किन्तु इनका घनत्व बहुत कम है और ये केवल धरातल के ऊपरी भाग में ही फैली हुई हैं।

आग्नेय चट्टानों का यही क्षय पदार्थ जल, पवन और हिम द्वारा एक स्थान से दूसरे स्थान पर जमा किया जाने लगा। इस प्रकार जमा किए गए पदार्थों से बनी चट्टानों को अवसादी चट्टानें (Sedimentary Rocks) कहते हैं।

अवसादी चट्टानों का विकास एवं रचना 

ये चट्टानें प्राथमिक अर्थात् आग्नेय चट्टानों के जनक पदार्थों (Parental Materials) तथा अपरदन के कारकों के योगदान से बनती हैं। इनकी रचना निम्न अवस्थाओं से होकर गुजरती है-

  1. सर्वप्रथम आग्नेय चट्टानों का भौतिक रासायनिक या जैविक कारणों से अपने स्थान पर टूटना-फूटना अर्थात् अपक्षय (weathering) की प्रक्रिया।
  2. टूटे-फूटे चट्टानी पदार्थों का नदी, भूमिगत जल, पवन, हिमनदी, सागरीय तरंगें, आदि कारकों द्वारा अपने साथ एक स्थान से दूसरे स्थान को परिवहन (Transportation) इस प्रक्रिया में चट्टानी टुकड़े अपघर्षण तथा सन्निघर्षण द्वारा छोटे हो जाते हैं।
  3. जब अपरदन के कारकों की परिवहन शक्ति क्षीण हो जाती है तो वह इन पदार्थों का जमाव करने लगते हैं, यही जमाव समय-समय पर विभिन्न दरों में होते हैं जिससे परतों में जमाव होता है जो परतदार चट्टानें बनाते हैं।

अवसादी चट्टानों का वर्गीकरण 

इन चट्टानों का वर्गीकरण निम्न प्रकार से किया जा सकता है-

1. निर्जेय अथवा अवसादी चट्टानें Inorganic Sedimentary Rocks – ये वे चट्टानें हैं जिनका निर्माण अपरदन की विभिन्न शक्तियों द्वारा होता है। इनमें जीवधारियों के अवशेष (Fossils) नहीं पाए जाते हैं। ये चट्टानें पहले से बनी चट्टानों के अपक्षय से उत्पन्न बड़े-बड़े खण्डों से बनती हैं, अतः इन्हें खण्डाश्म (Clastic) कहा जाता है। इन चट्टानों के प्रमुख प्रकार निम्न हैं-

  1. बालू प्रधान चट्टानें Arenaceous Rocks – इनमें बालू और बजरी की अधिकता होती है। ये चट्टानें सरंध्र होती हैं। बालुका प्रस्तर (Sandstone) इसका मुख्य उदाहरण है।
  2. चिकनी मिट्टी प्रधान या मृण्मय चट्टानें Argillaceous Rocks- ये वे चट्टानें होती हैं जिनमें बालू की अपेक्षा चीका मिट्टी के कणों की अधिकता पायी जाती है। ये चट्टानें अरंध्र होती हैं। ये नरम और कमजोर होती हैं अतः अपरदन के कारकों द्वारा सरलता से कट जाती हैं। प्रवाल और चूनापत्थर इनके प्रमुख उदाहरण हैं।

2. जैव अथवा प्राणिज चट्टानें Organic Rocks-  ये वे चट्टानें हैं जिनकी तहों में जीवधारियों के अवशेष पाए जाते हैं। ये चट्टानें निम्न प्रकार की होती हैं-

  • चूना प्रघान चट्टानें Calcareous Rocks- विश्व के उष्ण एवं शीतोष्ण कटिबन्धीय छिछले सागरों के जल में घुले हुए चूने तथा जीव जन्तुओं के अवशेषों से बनी होने के कारण इन्हें चूना प्रधान चट्टानें कहा जाता है। ये चट्टानें अपरदन के कारकों द्वारा सरलता से काट दी जाती हैं। खड़िया, जिप्सम और डोलोमाइट ऐसी ही चट्टानें हैं।
  • कार्बनप्रधान चट्टानें Carbonaceous Rocks- ये वे चट्टानें होती हैं जिनमें कार्बन तत्वों की अधिकता होती है। जलाशयों में संगृहीत मिट्टी, जलजीवों और पौधों के जीवाश्मों के जमते रहने से इस प्रकार की चट्टानें बनती हैं। कोयला पीट, भूरा, बिटुमिनस आदि और आयल शेल (Oil shale) इन शैलों के उदाहरण हैं।

3. रासायनिक क्रिया द्वारा बनी चट्टानें Chemicallyformed Rocks- जल में कई रासायनिक तत्व घुले रहते हैं। कभी-कभी ये तत्व झीलों, आदि में एकत्रित हो जाते हैं। जल वाष्प बनकर उड़ जाता है, किन्तु रासायनिक पदार्थ इनकी तहों में जमे रह जाते हैं। यही जमाव कालान्तर में चट्टानों का रूप लेते हैं। सेंधा नमक (Rock Salt), जिप्सम (Gypsum),  ऊलाइट (Oolite), लोहा निक्षेप (Iron Deposit) तथा आश्चुताश्म (stalactite) और निश्चुताश्म (Stalagmite), आदि सभी ऐसी चट्टानें हैं।

उत्पति के अनुसार इन चट्टानों का वर्गीकरण निम्न प्रकार से किया जाता है-

  1. समुद्री चट्टानें Marine or Aqueous Rocks- जो चट्टानें सागरों या महासागरों के नितल पर अवसाद के जमने से बनती हैं, समुद्री चट्टानें कहलाती हैं। कंकड़ (pebbles), चूना-पत्थर, चीका इसी प्रकार की चट्टानें कहलाती हैं।
  2. सरोवरीय चट्टानें Lacustrine Rocks वे चट्टानें जी झीलों के तल में अवसाद के जम जाने से बनती हैं, सरोवरीय चट्टानें कहलाती हैं।
  3. नदीकृत चट्टानें Riverine Rocks- वे चट्टानें जो नदियों के बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में नदियों के जल में मिले अवसाद के जम जाने से बनती हैं, नदीकृत चट्टानें कहलाती हैं। भारत की जलोढ़ या कॉप मिट्टी के जमाव इस प्रकार की चट्टानों के रूप हैं।
  4. वायुवीय चट्टानें Aeolian Rocks- पवनों द्वारा उड़ाकर लायी गयी मिट्टी उपयुक्त स्थितियों में जमकर कठोर चट्टान का रूप धारण कर लेती है। इन्हें वायूढ़ चट्टानें कहा जाता है। चीन के मैदान में जमी लोएस (Loess) मिट्टी इसका उदाहरण है।
  5. हिमनदीय चट्टानें Glacial Rocks- हिमनदियाँ अपने साथ मिट्टी, कंकड़, पत्थर, आदि को अपने मार्ग में जमा करती रहती हैं, जिससे निक्षेप चट्टानें बन जाती हैं। इन निक्षेपों को हिमोढ़ (Moraine) कहते हैं।

अवसादी चट्टानों का वर्गीकरण 

अवसादीचट्टानें विश्व के लगभग 75% भाग पर पायी जाती हैं। ये केवल पृथ्वी के ऊपरी धरातल पर ही मिलती हैं। नीचे गहराई पर ये कम पायी जाती हैं। भारत में इनके क्षेत्र गंगा, यमुना, , ब्रह्मपुत्र, नर्मदातापी ताप्ती,महानदी, दामोदर, कृष्णा, गोदावरी आदि नदियों की घाटियों में पाए जाते हैं। ये चट्टानें लगभग 5 करोड़ वर्ष पुराणी मानी जाती हैं। इनकी रचना अधिकांशतः प्लिस्टोसीन युग के बाद हुई है।

अवसादी चट्टानों की विशेषताएं 

  1. ये चट्टानें भिन्नभिन्न रूप की होती हैं जिनका निर्माण छोटे बड़े भिन्न-भिन्न कणों से होता है।
  2. इन चट्टानों में परत अथवा स्तर होते हैं जो एक-दूसरे पर समतल रूप में जमे रहते हैं।
  3. इन चट्टानों में वनस्पति एवं जीवजन्तुओं के जीवाश्म (Fossils) पाए जाते हैं। इन्हीं चट्टानों से कोयला, स्लेट, संगमरमर, नमक, पेट्रोलियम, आदि खनिज प्राप्त किए जाते हैं।
  4. ये चट्टानें अपेक्षतया मुलायम होती हैं। इनका निर्माण सामान्यतः जल, पवन, हिम, जीवजन्तु अथवा रासायनिक प्रक्रियाओं के फलस्वरूप होता है।
  5. ये शैलें ढीले कणों वाली होने से छिद्रमय होती हैं।

बलुआ पत्थर, चूनापत्थर, जिप्सम, चट्टानी नमक, कोयला, प्रवाल, पोटाश-लौह-निक्षेप, खड़िया तथा चिकनी मिट्टी प्रमुख अवसादी चट्टानें हैं।

अवसादी चट्टानों का आर्थिक उपयोग 

  • अवसादी चट्टानें अनेक प्रकार से उपयोगी हैं। वर्तमान में सभी देशों में नदियों द्वारा निर्मित समतल अवसादी मैदान, बालू के महीन जमाव के लोयस के मैदान आदि विश्व के सबसे उपजाऊ एवं सघन क्रियाकलाप एवं सघन बसाव के प्रदेश हैं। विश्व की सभ्यता के विकास का ड्रामा इन्हीं मैदानों में निरन्तर रचा जाता रहा है।
  • बलुआ पत्थर, चूने के पत्थर, आदि का उपयोग भवन निर्माण में किया जाता है जो चूने के पत्थर से तैयार किया जाता है। चूना एवं डोलोमाइट व अन्य मिट्टियाँ इस्पात उद्योग में काम में आती हैं अवसादी चट्टानों में चूने के पत्थर का उपयोग सीमेण्ट बनाने में किया जाता है।
  • सीमेण्ट उद्योग आज विश्व के प्रमुख उद्योगों में गिना जाता है।
  • जिप्सम का उपयोग विविध प्रकार के उद्योगों में किया जाता हैचीनी मिट्टी के बर्तन, सीमेण्ट, आदि में इसका उपयोग किया जाता है।
  • अनेक प्रकार क्षार, रसायन पोटाश एवं नमक जो कि अवसादी चट्टानों से प्राप्त होते हैं विभिन्न रासायनिक उद्योगों के आधार हैं। कोयला एवं खनिज़ तेल भी अवसादी चट्टानों में प्राप्त होते हैं।
  • ये शक्ति का प्रमुख स्रोत है। आज का औद्योगिक विकास कोयले के कारण ही सम्भव हो सका है।

FAQs

चट्टान की परिभाषा क्या है?

पृथ्वी की ऊपरी परत या भू-पटल (क्रस्ट) में मिलने वाले पदार्थ चाहे वे ग्रेनाइट तथा बालुका पत्थर की भांति कठोर प्रकृति के हो या चाक या रेत की भांति कोमल; चाक एवं लाइमस्टोन की भांति प्रवेश्य हों या स्लेट की भांति अप्रवेश्य हों, चट्टान अथवा शैल (रॉक) कहे जाते हैं।

चट्टानें कैसे बनती है?

आग्नेय चट्टानें पृथ्वी के आंतरिक भाग से मैग्मा और लावा से बनती हैं, उन्हें प्राथमिक चट्टान के रूप में जाना जाता है। मैग्मा के ठंडा होने और जमने पर आग्नेय चट्टानें बनती हैं। जब मैग्मा ऊपर की ओर गति करते हुए ठंडा होकर ठोस रूप में परिवर्तित हो जाता है तो इसे आग्नेय चट्टान कहते हैं।

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