करेंट अफेयर्स प्रश्नोत्तरी

  • करेंट अफेयर्स दिसम्बर 2022
  • करेंट अफेयर्स नवंबर 2022
  • करेंट अफेयर्स अक्टूबर 2022
  • करेंट अफेयर्स सितम्बर 2022
  • करेंट अफेयर्स अगस्त 2022
  • करेंट अफेयर्स जुलाई 2022
  • करेंट अफेयर्स जून 2022
  • करेंट अफेयर्स मई 2022
  • करेंट अफेयर्स अप्रैल 2022
  • करेंट अफेयर्स मार्च 2022

करेंट अफेयर्स ( वर्गीकृत )

  • व्यक्तिविशेष करेंट अफेयर्स
  • खेलकूद करेंट अफेयर्स
  • राज्यों के करेंट अफेयर्स
  • विधिविधेयक करेंट अफेयर्स
  • स्थानविशेष करेंट अफेयर्स
  • विज्ञान करेंट अफेयर्स
  • पर्यावरण करेंट अफेयर्स
  • अर्थव्यवस्था करेंट अफेयर्स
  • राष्ट्रीय करेंट अफेयर्स
  • अंतर्राष्ट्रीय करेंट अफेयर्स
  • छत्तीसगढ़ कर्रेंट अफेयर्स

सूर्यातप क्या है? सूर्याभिताप, वायुमण्डल के गर्म होने क्या कारण है

वायुमण्डल तथा पृथ्वी की ऊष्मा (Heat) का प्रमुख स्रोत सूर्य है। सौर ऊर्जा को ही सूर्यातप कहते हैं। अनुमान है कि सूर्य के धरातल पर लगभग 5,700° सेण्टीग्रेड अथवा 6000° केल्विन से भी अधिक तापमान रहता है और इसके नाभिक (Nucleous) में 1.5 से 2.0 करोड़ डिग्री केल्विन तापमान रहता है।

सूर्य से निरन्तर शून्य की ओर ताप तरंगों (Heat waves) के रूप में शक्ति प्रसारित होती रहती है। सूर्य के धरातल से निकलने वाली गर्मी प्रति वर्ग इंच लगभग 1,00,000 अश्व शक्ति के बराबर होती है। पृथ्वी सूर्य से 14.96 करोड़ किलोमीटर दूर है एवं इसके धरातल को सूर्य से प्रसारित शक्ति का केवल 12,00,00,00,000 भाग (दो अरबवाँ भाग) ही प्राप्त होता है।

सूर्यातप क्या है?

सूर्य से ताप का विकिरण लघु तरंगों के रूप में होता है जो 1250 से 16,700 किलोमीटर लम्बी होती है तथा 1,86,000 मील प्रति सेकण्ड की गति से चलती है, सूर्यातप कहलाती है।”

सूर्य से पृथ्वी के समस्त धरातल पर प्रति मिनट इतनी शक्ति प्राप्त होती है, जितनी कि मानव जाति एक वर्ष में उपयोग में लाती है। सूर्य की शक्ति का इतना स्वल्प अंश प्राप्त होते हुए भी पृथ्वी की समस्त भौतिक और जीवन सम्बन्धी घटनाएं इसी शक्ति पर निर्भर हैं। सूर्य से प्राप्त होने वाली इसी शक्ति को ही सूर्याभिताप कहते हैं। यह प्रति सैकण्ड 2,97,000 किलोमीटर की गति से विद्युत चुम्बकीय तरंगों के द्वारा पृथ्वी के धरातल पर आता है। इसे पृथ्वी तल तक पहुँचने में 8 मिनट 30 सेकण्ड का समय लगता है।

सूर्याभिताप 

सूर्य की किरणों का सापेक्ष तिरछापन- पृथ्वी सूर्य के चारों ओर परिक्रमा करती है, अतः सूर्य की भू-सापेक्ष स्थिति बदलती रहती है। इस परिक्रमण के फलस्वरूप सूर्य 6 महीने उत्तरायण और 6 महीने दक्षिणायन होता है। दूसरे शब्दों में, जब 22 दिसम्बर को सूर्य मकर अयन रेखा पर लम्बवत् चमकता है अर्थात् दक्षिणायन तो उत्तरी गोलार्द्ध में उसकी किरणें बहुत तिरछी पड़ती हैं। उस समय उत्तरी ध्रुव वृतीय क्षेत्रों में तो ये पहुँच भी नहीं पाती।

यह मकर रेखा सूर्य की दक्षिणायन यात्रा की अन्तिम सीमा होती है। यहाँ से 22 दिसम्बर के उपरान्त सूर्य की उत्तरायण गति आरम्भ होती है और तब उत्तरी गोलार्द्ध में सूर्य की किरणे अधिकाधिक सीधी पड़नी आरम्भ हो जाती हैं। 21 जून को सूर्य की किरणे कर्क रेखा प्रर लम्बवत हो जाती हैं।

दिन और रात की लम्बाई- परिभ्रमण और परिक्रमण पृथ्वी की दो गतियाँ हैं। परिभ्रमण गति द्वारा पृथ्वी अपनी धुरी पर बराबर चक्कर लगाती है और परिक्रमण द्वारा वह अपनी कक्ष पर 66½° का कोण बनाती हुई सूर्य के चारों ओर घूमती है। इन गतियों के कारण ही पृथ्वी पर दिनरात तथा ऋतु परिवर्तन होता है भिन्न-भिन्न ऋतुओं में विभिन्न अक्षांशों पर दिन और रात की लम्बाई भिन्न-भिन्न होती है, जिनका प्रभाव पृथ्वी पर सूर्याभिताप की न्यूनाधिक मात्रा पर पड़ता है।

किसी स्थान पर जितना ही सूर्य ऊंचा और अधिक देर तक चमकता है, वहां उतना ही अधिक सूर्याभिताप प्राप्त होता है। भूमध्य रेखा पर दिन-रात सदैव बराबर होते हैं, परन्तु भूमध्य रेखा से दूर अन्य अक्षांशों पर परिभ्रमण की विभिन्न स्थितियों के अनुसार दिनरात छोटे-बड़े होते रहते हैं।

वायुमण्डल की अवस्था Condition of Atmosphere धरातल पर प्राप्त सूर्याभिताप की मात्रा वायुमण्डल की अवस्था पर निर्भर करती है। आकाश की मेधाच्छन्नता, आर्द्रता, धूल, आदि वायुमण्डल की परिवर्तनशील दशाएं पृथ्वी पर पहुँचने वाले सूर्याभिताप की मात्रा को निरन्तर बदलती रहती हैं। वायुमंडल में छायी हुई धूल सूर्य शक्ति को पृथ्वी तक पहुंचने में बाधा उपस्थित करती है। आकाश की मेघाच्छन्नता भी सूर्याभिताप पर गहरा प्रभाव डालती है, क्योंकि मेघ सूर्याभिताप को पुनः प्रतिबिम्वित करने में बड़े महत्वपूर्ण सिद्ध होते हैं, इस कारण धरातल पर आने वाली सूर्यशक्ति में कुछ न्यूनता जाती है।

पृथ्वी से सूर्य की दूरी- सूर्य से पृथ्वी की दूरी सदैव एक समान नहीं होती। उपसौर (Perihelion) की अपेक्षा अपसौर(Aphelion) की दशा में सूर्य से पृथ्वी की दूरी अधिक होती है। अपसौर की व्यवस्था में पृथ्वी को सूर्य से कम शक्ति प्राप्त होती है और उपसौर की दशा में अधिक

घरातल की प्रकृति Nature surface खुली और वनस्पति-विहीन शैलों वाले क्षेत्र खेतिहर भूमि की अपेक्षा अधिक गरम रहते हैं। इसी प्रकार बालू मिट्टी वाले भाग कॉप या दलदल भूमि की अपेक्षा शीघ्र ही अधिक गरम और ठण्डे हो जाते हैं। इसी कारण से मरुस्थलों में दैनिक तापान्तर अधिक मिलता है।

ऊँचाई का प्रभाव Effect Altitude अधिक ऊंचे स्थानों पर तापमान कम रहता है। इसका कारण यह है कि समुद्र के धरातल से प्रति 165 मीटर ऊँचे उठने पर तापमान 1°C कम हो जाता है। इसके ये कारण हैं-

  1. वायुमण्डल की ऊपरी पतों का घनत्व कम होता है, इस कारण वहाँ भूमि से गर्मी शीघ्र विकिरित हो जाती है।
  2. धरातल के समीप की वायु में कार्बन, जलवाष्प, धूलकण, आदि पर्याप्त मात्रा में विद्यमान रहते हैं। ये सब धरातल से गर्मी को शीघ्र बाहर निकलने से रोकते हैं। धरातल के समीप की वायु सघन और अधिक घनत्व वाली होती है, अतः स्वयं पर्याप्त गर्मी सोख लेती है। फलस्वरूप धरातल के समीप की वायु का तापमान अधिक तथा पर्वतीय भागों में तापमान कम रहता है।

वायुमण्डल के गर्म होने की तीन विधियाँ हैं-

विकिरण Radiation

जब धरातल सूर्य से आने वाली गर्मी के द्वारा बिना माध्यम के प्रत्यक्ष रूप से गरम हो जाता है तो वह गर्मी को पार्थिव शक्ति में बदल कर पुनः प्रसारित करता है। धरातल से निकलने वाली यह शक्ति लम्बी लहरों के नीचे प्रकट होती है जो शीघ्र ही वायुमण्डल में समाकर उसे गरम कर देती है। वायु के इस प्रकार गरम होने को विकिरण कहते हैं।

संचालन Conduction

यह एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसके अन्तर्गत गर्मी किसी पदार्थ के द्वारा एक अणु से दूसरे अणु को स्थानान्तरित होती है। जैसे, जब किसी लोहे की छड़ का एक सिरा गरम हो जाता है तो संचालन के द्वारा दूसरा सिरा भी गरम हो जाता है। दिन में धरातल सूर्याभिताप द्वारा गरम हो जाता है। अतः जब वायुमण्डल की ठण्डी वायु गरम पृथ्वी के सम्पर्क में आती है तो वह संचालन द्वारा गरम हो जाती है। संचालन द्वारा वायु के एक के बाद एक स्तर गरम हो जाते हैं।

संवाहन Convection

जब किसी स्थान की वायु संचालन और विकिरण द्वारा गरम हो जाती है तो गर्मी पाकर वह हल्की होती है, परन्तु इसके आसपास ठण्डी और भारी वायु विद्यमान होती है। इस प्रकार गरम वायु ऊपर उठती है और ठण्डी वायु उसका स्थान लेने के लिए नीचे आती है। इस प्रकार वायुमंडल में संवाहन धाराएं उत्पन्न हो जाती हैं। इस संवाहन क्रिया के द्वारा समस्त वायुमंडल गरम हो जाता है।

सम्बंधित लेख

इसे भी देखे ?

सामान्य अध्यन

वस्तुनिष्ठ सामान्य ज्ञान

  • प्राचीन भारतीय इतिहास
  • मध्यकालीन भारतीय इतिहास
  • आधुनिक भारत का इतिहास
  • भारतीय राजव्यवस्था
  • पर्यावरण सामान्य ज्ञान
  • भारतीय संस्कृति
  • विश्व भूगोल
  • भारत का भूगोल
  • भौतिकी
  • रसायन विज्ञान
  • जीव विज्ञान
  • भारतीय अर्थव्यवस्था
  • खेलकूद सामान्य ज्ञान
  • प्रमुख दिवस
  • विश्व इतिहास
  • बिहार सामान्य ज्ञान
  • छत्तीसगढ़ सामान्य ज्ञान
  • हरियाणा सामान्य ज्ञान
  • झारखंड सामान्य ज्ञान
  • मध्य प्रदेश सामान्य ज्ञान
  • उत्तराखंड सामान्य ज्ञान
  • उत्तर प्रदेश सामान्य ज्ञान

Exam

GS

Current

MCQ

Job

Others

© 2022 Tyari Education.