करेंट अफेयर्स प्रश्नोत्तरी

  • करेंट अफेयर्स दिसम्बर 2022
  • करेंट अफेयर्स नवंबर 2022
  • करेंट अफेयर्स अक्टूबर 2022
  • करेंट अफेयर्स सितम्बर 2022
  • करेंट अफेयर्स अगस्त 2022
  • करेंट अफेयर्स जुलाई 2022
  • करेंट अफेयर्स जून 2022
  • करेंट अफेयर्स मई 2022
  • करेंट अफेयर्स अप्रैल 2022
  • करेंट अफेयर्स मार्च 2022

करेंट अफेयर्स ( वर्गीकृत )

  • व्यक्तिविशेष करेंट अफेयर्स
  • खेलकूद करेंट अफेयर्स
  • राज्यों के करेंट अफेयर्स
  • विधिविधेयक करेंट अफेयर्स
  • स्थानविशेष करेंट अफेयर्स
  • विज्ञान करेंट अफेयर्स
  • पर्यावरण करेंट अफेयर्स
  • अर्थव्यवस्था करेंट अफेयर्स
  • राष्ट्रीय करेंट अफेयर्स
  • अंतर्राष्ट्रीय करेंट अफेयर्स
  • छत्तीसगढ़ कर्रेंट अफेयर्स

चक्रवात क्या है? चक्रवात एवं प्रतिचक्रवात में अंतर एवं चक्रवात के भाग

चक्रवात ज्यों-ज्यों समीप आता है, मेध फैलते और घने होते जाते हैं। अन्तत: कुछ ही समय में ये सम्पूर्ण आकाश में छा जाते हैं और धीमी-धीमी बौछार करने लगते हैं। शनैः शनैः वर्षा की मात्रा बढ़ जाती है और वायु तीव्र हो उठती है।

थ्वी के धरातल पर नियमित रूप से कुछ पवनें चलती हैं, किन्तु इन पवनों के अतिरिक्त धरातल पर नियमित रूप से कुछ पवनें चलती हुई देखी जाती हैं, जिनका समय और स्थान निश्चित नहीं है। ये पवनें एक प्रकार की वायु की भंवरें हैं जो अस्थिर होती हैं। ये प्रायः दो प्रकार की होती हैं।

चक्रवात क्या है?

एक में पवनें वायु के निम्न दाब के कारण भंवर के केन्द्र की ओर वेगपूर्वक दौड़ती हैं वायु की यही भंवर चक्रवात कहलाती हैं।

उष्ण कटिबन्धीय चक्रवात

उषण प्रदेश के चक्रवात प्रदेशों के से कई बातों में भिन्न होते हैं। उष्ण प्रदेशीय चक्रवात प्रायः विस्तार में छोटे और गति में धीमे होते, परन्तु इनमें पवनें प्रचण्ड रूप से बहती हैं और घनघोर वर्षा करती हैं। इनके अतिरिक्त ये चक्रवात अपने आकार तथा वर्षा व तापमान के वितरण में अधिक समान होते हैं। इनकी समताप रेखाएँ लगभग गोलाकार होती हैं और निम्नदाब ठीक मध्य में रहता है।

सामान्यतया चक्रवात निम्न (Low) वायुदाब का केन्द्र होता है। केन्द्र से बाहर की ओर सभी ओर वायुदाब बढ़ता जाता है। यहाँ पवनें बाहर से केन्द्र की ओर बहती हैं। उत्तरी गोलार्द्ध में ये घड़ी की सुइयों के विपरीत तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में घड़ी की सुइयों के अनुरूप चलती हैं।

मध्य अक्षांशों में 35°  से 65°  उत्तरी  तथा दक्षिणी अक्षांशों के बीच आने वाले चक्रवात शीतोष्ण कटिबन्धीय चक्रवात तथा उष्ण कटिबन्ध में महाद्वीपों के पूर्वी किनारों पर 15°  – 30°  उत्तरी तथा दक्षिणी अक्षांशों के मध्य आने वाले चक्रवात उष्ण कटिबन्धीय चक्रवात कहलाते हैं।

उष्ण कटिबन्धीय चक्रवातों के प्रभाव

ये बड़े भीषण होते हैं। जब ये आगे बढ़ते हैं तो मार्ग की समस्त वस्तुओं को नष्ट करते हुए आगे बढ़ते हैं। सागरों में ये निरन्तर रौद्र बने रहते हैं जिससे बड़ा ही विनाशकारी प्रभाव पड़ता है। इसके कारण सागर में ऊँची ऊँची लहरें उठती हैं और जहाजों को भारी क्षति पहुंचती है।

सागर में उठी हुई लहरें कभी-कभी तट पर आकर फैल जाती हैं। इनमें पवनों की गति 80 से 200 किलोमीटर रहने से 10 से 15 मीटर ऊँची लहरें तट से टकरा कर भारी वर्षा के साथ प्रलय मचा देती हैं। सभी ओर विनाश लीला का ताण्डव नृत्य देखा जा सकता है।

शीतोष्ण चक्रवात 

साधारणत: शीतोष्ण चक्रवात अंडाकार होते हैं। इसमें निम्न दाब ठीक केन्द्र के समीप रहता है। केन्द्र से बाहर की ओर सब दिशाओं में वायुदाब क्रमशः बढ़ता जाता है। चक्रवात में इस कारण समदाब रेखाएँ भी लगभग अण्डाकार होती हैं। कई बार यह V के समकक्ष आकृति के भी होते हैं।

विस्तार Extent चक्रवात सदा भिन्न-भिन्न विस्तार के होते हैं। मध्य अक्षांशों उतरी गोलार्द्ध में ये शीतोष्ण चक्रवात कहलाते हैं एवं इनका विस्तार 320 से 480 किलोमीटर और कभी-कभी 3,200 वर्ग किलोमीटर तक भी देखा जाता है। इनका क्षेत्रफल लाखों वर्ग किलोमीटर में भी हो सकता है। ये चक्रवात सामान्यतया 35°  से 65°  उत्तरी तथा दक्षिणी अक्षांशों के मध्य आते हैं।

दिशा Direction चक्रवात शायद ही कभी स्थिर रहते हैं। ये प्राय: प्रचलित पवनों की दिशा में आगे बढ़ते रहते हैं। इस प्रकार पछुआ पवनों के प्रदेश में ये चक्रवात प्रायः पूर्व की ओर चलते हैं। व्यापारिक पवनों के क्षेत्र में इनकी दिशा प्रायः पूर्व से में पवन दिशा पश्चिम की ओर रहती है, परन्तु कभी-कभी उष्ण प्रदेश वाला चक्रवात पछुआ पवनों के प्रदेश में पहुंच जाता है तो उसकी दिशा पश्चिम से पूर्व की ओर बदल जाती है।

गति Speed- इनकी गति भी सदैव एक-सी नहीं रहती है। शीतोष्ण प्रदेश में इनकी गति 30 और 60 किलोमीटर प्रति घण्टा के बीच रहती है। उष्ण प्रदेश के चक्रवात इससे भी धीमे चलते हैं। उनकी गति 3 से लेकर 16 किलोमीटर प्रति घण्टे से अधिक नहीं होती है।

शीतोष्ण चक्रवातों की उत्पत्ति

चक्रवातों की उत्पत्ति के सम्बन्ध में भिन्न-भिन्न वैज्ञानिकों ने भिन्न मत प्रस्तुत किए हैं, पर नार्वे के जर्कनीज (Bjerknes) का ही मत सर्वमान्य है। जर्कनीज ने प्रथम महायुद्ध के समय ध्रुवीय वाताग्र सिद्धान्त (Polar Front Theory ) का प्रतिपादन किया था।

इस सिद्धान्त के अनुसार, शीतोष्ण चक्रवात की उत्पत्ति दो भिन्न ताप बाली राशियों (ध्रुव प्रदेश की शीतल वायु राशि और उष्ण प्रदेश की वायु राशि) की प्रतिक्रिया के फलस्वरूप होती है। शीतोष्ण कटिबन्ध में ध्रुवों से आने वाली शीतल वायु और उष्ण प्रदेशों से आने वाली उष्ण वायु दोनों आपस में मिलती हैं।

चक्रवात के भाग

चक्रवात के सामने वाले भाग को अग्रभाग या वाताग्र (Front) और पीछे वाले भाग को पृष्ठभाग (Rear) कहा जाता है। चक्रवात में निम्न दाव ठीक मध्य में नहीं होता, वरन् कुछ पीछे हटा हुआ होता है। साधारणतः यही विन्दु चक्रवात का मध्य भाग कहलाता है।

पवनें Winds

ऐसे चक्रवात में निम्न दाब केन्द्र के समीप स्थित रहता है। इस कारण सब दिशाओं से पवनें भीतर केन्द्र की ओर बहती हैं, किन्तु फैरल के नियमानुसार ये पवनें सीधी केन्द्र तक नहीं पहुँचती। उत्तरी गोलार्द्ध में ये पवनें दायीं ओर तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में बायीं ओर मुड़ जाती हैं। अतः ये केन्द्र तक पहुँचने की अपेक्षा उसकी परिक्रमा करने लगती हैं।

चक्रवात के अग्रभाग में पवनें दक्षिण की ओर से बहती हैं अतः वे गर्म और आर्द्र होती हैं, किन्तु पृष्ठ भाग में ये उत्तर से चलती हैं, इस कारण शुष्क और ठण्डी होती हैं। चक्रवात में ऊपर उठती हुई हवाएँ मुख्यतः अग्रभाग की ओर बहती हैं। अतः अग्रभाग पृष्ठभाग की अपेक्षा हवाओं से अधिक प्रभावित रहता है। इसी कारण अग्रभाग में चक्रवाती वर्षा अधिक होती है।

तापमान Temperature

चक्रवात में तापमान परिवर्तन दिन और वर्ष के समय के अनुसार होता है। शीतकाल में अग्रभाग गरम रहता है और पृष्ठ भाग अधिक ठण्डा। ग्रीष्म ऋतु में यह परिवर्तन पिछले दिनों के निर्भर करता है। साधारणतया चक्रवात का अग्रभाग सभी ऋतुओं में उष्णाद्र रहता है। पृष्ठ भाग में आकाश स्वच्छ रहता है।

मेघ और वर्षा Clouds and Rainfall

चक्रवात के आगमन से पूर्व आकाश के श्वेत मेघाँ की लम्बी, किन्तु पतली टुकड़ी दिखायी पड़ती है। मेघों की इन लम्बी टुकड़ियों से ही चक्रवात के आगमन सम्वन्धी सूचनाएँ प्राप्त होती हैं। मेघों की टुकड़ियाँ प्रायः एक-दूसरे के समान्तर होती हैं, परन्तु दृष्टि भेद के कारण ये सब क्षितिज से ऊपर उठती हुई मालूम पड़ती हैं।

चक्रवात के अग्रभाग में घनघोर वर्षा होती है और प्रचण्ड वायु के झोंके आते हैं। पृष्ठ भाग में भिन्न-भिन्न स्थानों पर भिन्न वायु-दशा पायी जाती है। मेघ पीछे हटते समय कभी कभी जोर से गर्जना करते हैं और विद्युत चमकती है। शीतल वायु के आने से तापमान एकदम गिर जाता है जिससे वर्षा हो जाती है।

ये सब दशाएँ चक्रवात के अन्त की सूचक होती हैं। चक्रवात के निकल जाने पर मेघ शीघ्र ही हटने लगते और आकाश फ्री से स्वच्छ हो जाता है।

प्रतिचक्रवात क्या है?

वायु के अधिक दाब के कारण पवनें भंवर के केन्द्र से बाहर की ओर जाती हैं, वायु की यही भंवर प्रतिचक्रवात कहलाती हैं।

प्रतिचक्रवात उच्चदाब का एक ऐसा क्षेत्र है जिसमें केन्द्र में उच्च वायुदाब होता है। परिधि की ओर घटता जाता है। इसकी समदाब रेखाएँ भी लगभग गोलाकार होती हैं। सबसे अधिक दाब वाली रेखा मध्य में होती है। प्रतिचक्रवातों का कोई निर्दिष्ट पथ नहीं होता। ये किसी भी दिशा की ओर स्वतन्त्र रूप से बढ़ सकते हैं।

पवने winds- प्रतिचक्रवात में उच्च दाब केन्द्र में रहता है। इसलिए पवनें केन्द्र से बाहर की ओर चलती हैं। केन्द्र से बाहर चलते समय फेरल के नियमानुसार ये अपनी दिशाएँ बदल देती हैं। उत्तरी गोलार्द्ध में ये दायीं ओर घड़ी की सुई की दिशा में तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में इसके ठीक विपरीत बायीं ओर मुड़ जाती हैं। प्रतिचक्रवात में समदाब रेखाएँ काफी दूरदूर होती हैं।

मौसम एवं वर्षा Weather And Rainfall

प्रतिचक्रवात में प्रायः मौसम स्वच्छ और सुहावना रहता है। आकाश में मेघ नहीं रहते हैं। अतः मेघों के अभाव में दिन में सूर्य बड़ी प्रचण्डता से तपता है, परन्तु रात्रि में गर्मी पुनः नष्ट हो जाती है। ग्रीष्मकाल में इस कारण दिन बड़े गर्म होते हैं। सूर्यास्त के बाद तापमान फिर गिरने लग जाता है। रात्रि के पिछले प्रहर में तापमान इतना नीचे चला जाता है कि सूर्योदय के समय कुहरा और धुन्ध सा छा जाते हैं। पतझड़ ऋतु में कुहरा और धुन्ध की मात्रा और भी बढ़ जाती है।

आार्द्रता एवं वृष्टि Humidity And Rainfall

भूमण्डल पर जल-प्राप्ति का प्रधान स्रोत वर्षा है। वर्षा वायुमण्डल में मिली हुई जलवाष्प के कारण होती है। जलवाष्प वायुमण्डल में सम्मिलित अनेक तत्वों में से एक है। वायुमण्डल में पायी जाने वाली जलवाष्प की मात्रा कई बातों पर निर्भर करती है-

  1. जलाशयों अथवा सागरों के निकटवर्ती स्थानों में जलवाष्प की अधिकता होती है।
  2. गरम पवन में जलवाष्प धारण करने की क्षमता ठण्डी पवन की अपेक्षा अधिक होती है।
  3. पर्वतीय बाधाओं से घिरे स्थानों तक जलवाष्प नहीं पहुंच पाती, फलतः वे प्रायः शुष्क रहते हैं।

आर्द्रता Humidity

वायुमंडल  में निहित जलवाष्प विशाल महासागरों, झीलों, नदियों अथवा पेड़-पौधों से प्राप्त होती है। प्रतिदिन धरातल का जल सूर्य की गर्मी से वाष्प के रूप में परिवर्तित होता रहता है। वायु में विद्यमान वाष्प ही उसकी आर्द्रता कहलाती है।

FAQs

चक्रवात क्या है?

एक में पवनें वायु के निम्न दाब के कारण भंवर के केन्द्र की ओर वेगपूर्वक दौड़ती हैं वायु की यही भंवर चक्रवात कहलाती हैं।

प्रतिचक्रवात क्या है?

वायु के अधिक दाब के कारण पवनें भंवर के केन्द्र से बाहर की ओर जाती हैं, वायु की यही भंवर प्रतिचक्रवात कहलाती हैं।

चक्रवात के भाग क्या है?

चक्रवात के सामने वाले भाग को अग्रभाग या वाताग्र (Front) और पीछे वाले भाग को पृष्ठभाग (Rear) कहा जाता है। चक्रवात में निम्न दाव ठीक मध्य में नहीं होता, वरन् कुछ पीछे हटा हुआ होता है।

सम्बंधित लेख

इसे भी देखे ?

सामान्य अध्यन

वस्तुनिष्ठ सामान्य ज्ञान

  • प्राचीन भारतीय इतिहास
  • मध्यकालीन भारतीय इतिहास
  • आधुनिक भारत का इतिहास
  • भारतीय राजव्यवस्था
  • पर्यावरण सामान्य ज्ञान
  • भारतीय संस्कृति
  • विश्व भूगोल
  • भारत का भूगोल
  • भौतिकी
  • रसायन विज्ञान
  • जीव विज्ञान
  • भारतीय अर्थव्यवस्था
  • खेलकूद सामान्य ज्ञान
  • प्रमुख दिवस
  • विश्व इतिहास
  • बिहार सामान्य ज्ञान
  • छत्तीसगढ़ सामान्य ज्ञान
  • हरियाणा सामान्य ज्ञान
  • झारखंड सामान्य ज्ञान
  • मध्य प्रदेश सामान्य ज्ञान
  • उत्तराखंड सामान्य ज्ञान
  • उत्तर प्रदेश सामान्य ज्ञान

Exam

GS

Current

MCQ

Job

Others

© 2022 Tyari Education.