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घनीभवन क्या है? घनीभवन के विभिन रूप कौन से है

घनीभवन के कारण जलवाष्प कई रूपों में बदल जाती है, जैसे-, धुन्ध, कुहरा, पाला, तुषार, मेघ, ओला और वर्षा।

घनीभवन क्या है Condensation

जिस ताप पर वायु संतृप्त हो जाती है उस दशा को वायु का ओसांक विन्दु (Dew point) कहते हैं। जब वाष्प की मात्रा और अधिक हो जाती है तो जलवाष्प जलकणों और तुषार कणों में परिवर्तित होने लगती है। इस क्रिया को घनीभवन या द्रवण कहते हैं। घनीभवन तीन प्रकार से हो सकता है-

  1. जब पवन किसी ठंडे धरातल के सम्पर्क में आकर ठण्डी हो जाती है।
  2. संवाहन द्वारा गरम वायु अधिक ऊँचाई पर पहुंचकर फैलती है और ठंडी हो जाती है।
  3. गरम क्षेत्रों में प्रवाहित वायु ठंडे क्षेत्रों से आने वाली पवन के संपर्क में आकर ठंडी हो जाती है।

घनीभवन के रूप Forms Condensation

घनीभवन के कारण जलवाष्प कई रूपों में बदल जाती है, जैसे-, धुन्ध, कुहरा, पाला, तुषार, मेघ, ओला और वर्षा।

ओस Dew शीतकाल में रात्रि को जब घरातल उससे लगी हुई वायु से भी अधिक शीतल हो जाता है तो उसमें निहित वाष्प घनीभूत हो जाती है और वह छोटी-छोटी बूंदों के रूप में धरातल पर जमा हो जाती है। घासफूस, फूलपतियों तथा भूमि पर एकत्रित जल बूंदों को ओस कहा जाता है।

पाला Frost जब वायु का तापमान 32° फरेनहाइट अथवा 0° सेण्टीग्रेड से भी कम हो जाता है तो वायु में निहित वाष्प जल-कणों में न बदलकर हिमकणों में परिणत हो जाती है। इस प्रकार हिम के रूप में जमी हुई ओस को ही पाला कहा जाता है। शीत में जब रात्रि लम्बी होती है, आकाश स्वच्छ होता है और वायु शान्त होती है तो पाले की क्रिया अधिक होती है। पाले से पौधों एवं फसलों को बड़ी हानि होती है। उन्नरी भारत में शीतकाल में अक्सर पाला पड़ता है।

कुहरा Fog- रात्रि के समय जब कभी उष्ण और आर्द्र वायु का तापमान ओसांक बिन्दु से नीचे चला जाता है तो उसमें व्याप्त जल-कणों में बदल जाती है। ये जल-कण अत्यन्त छोटे होने के कारण वायु में ही तैरते रहते हैं जिससे वायुमण्डल में धुएँ जैसा मेघ प्रतीत होने लगता है। आकाश में छाया धुएँ जैसा व धरती के निकट का यह मेघ ही कुहरा कहलाता है। घने कुहरे के समय कुछ दूर की वस्तुओं को देखना भी कठिन हो जाता है।

जब रात को विकिरण द्वारा धरातल पर टिकी शान्त और आर्द्र वायु की परत ठण्डी हो जाने पर कुहरा फैलता है तो उसे विकिरण कुहरा (Radiation Fog) कहते हैं। यह सामान्यतः सूर्योदय के बाद समाप्त हो जाता है। जब ठण्डी और गर्म समुद्री धाराएँ मिलें और उष्णाद्र वायु ठण्डे धरातल पर से निकलें तो अभिवहण कुहरा अथवा सम्पकीय विकिरण कुहरा (Advection Fog) उत्पन्न होता है। यह सामान्यतः सागरों पर तथा मध्य एवं उच्च अक्षांशों से अधिक बनता है।

धुन्ध या कुहासा Mist- धुन्ध कुहरे का ही एक रूप है। जब कुहरा घना न होकर हल्का-पतला होता है तो उसे धुन्ध कहते हैं। धुन्ध में 2 किलोमीटर तक की दूरी की वस्तुएँ प्रायः साफ दिखायी पड़ती हैं।

हिमपात Snowfall- जब कभी घनीभवन क्रिया के समय वायु का तापमान हिमांक बिन्दु से काफी नीचे गिर जाता है तो जल वाष्प हिमकणों के रूप में बदल जाती है जिससे धरातल पर हिमपात (Snowfall) हो जाता है। हिमपात प्रायः ऊँचे पर्वतीय भागों तथा ठण्डे देशों में अधिक होता है।

ओलावृष्टि Hailstorm- कभी-कभी वायुमण्डल में सुविकसित कपासी मेघों में तीव्र संवाहन धाराएँ चला करती हैं। इन संवाहन धाराओं के साथ उष्ण एवं आर्द्र वायु भी ऊपरी भागों में पहुंच जाती है। ऐसे संवाहन से ऊँचे भाग की आर्द्र पवनों का तापमान हिमांक बिन्दु से बहुत नीचा गिर जाता है, इसी कारण उसमें निहित वाष्प हिमकणों में बदल जाती है। जब इन हिम कणों का रूप काफी बड़ा हो जाता है और संवाहन धाराएँ इन्हें संभाल नहीं पाती तो ये नीचे बर्फ के बड़े कणों या ओलों के रूप में गिर पड़ते हैं। इसे ओलावृष्टि Hailstorm) कहा जाता है।

मेघ Clouds- धरातल से कुछ ऊँचाई पर होने वाली संघनन क्रिया से जलवाष्प जलकणों में बदल जाती है और मेघ बनने लगते हैं। मेघों की रचना ऊँचाई, वाष्प की मात्रा, अक्षांश, तापमान, आकाशीय स्थिति, आदि पर निर्भर है। अतः मेघ कई प्रकार के होते हैं।

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