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वायुमण्डल क्या है? संघटन, बनावट, तापमान एवं वायुमंडल का महत्त्व

पृथ्वी के चारों ओर सैकड़ो किमी की मोटाई में लपेटने वाले गैसीय आवरण को वायुमण्डल कहते हैं। वायुमण्डल विभिन्न गैसों का मिश्रण है जो पृथ्वी को चारो ओर से घेरे हुए है।

पृथ्वी के चारों ओर गंधहीन, रंगहीन और स्वादहीन पारदर्शी गैसों के मिश्रण का एक विशाल आवरण है, जो कई सौ किलोमीटर मोटा है। इस आवरण को ही वायुमण्डल (Atmosphere) कहा जाता है। प्रो. ट्रिवार्या (Triwartha) के अनुसार, “पृथ्वी से परिवेष्ठित गैसों का एक विशाल आवरण जो पृथ्वी का अभिन्न अंग है और उसे चारों ओर से घेरे हुए है, वायुमण्डल कहलाता है।”

वायुमंडल की संघटना या बनावट 

युमण्डल अनेक गैसों का यान्त्रिक सम्मिश्रण है। इसमें नाइट्रोजन, आक्सीजन (प्राण वायु), कार्बन डाइऑक्साइड, आर्गन, हाइड्रोजन, हीलियम, नियोन, क्रिप्टोन, जिनोन (Xenon), ओजोन, आदि गैसें पायी जाती हैं, किन्तु धरातल के समीप की वायु में (10 किमी की ऊंचाई तक) ऑक्सीजन- 21% और नाइट्रोजन- 78%  गैसें ही मुख्य हैं। वायुमण्डल का 99 प्रतिशत भाग इन्हीं दो गैसों से निर्मित है। शेष 1 प्रतिशत में अन्य सभी गैसें सम्मिलित हैं। वायु में गैसों के साथ अशुद्धियों के रूप में गन्धक का तेजाब, शोरे का तेजाब तथा अन्य कई पदार्थ सूक्ष्म मात्रा में मिलते हैं।

10 किलोमीटर के उपरान्त भारी गैसों की मात्रा विभिन्न ऊँचाई पर कम और हल्की गैसों की मात्रा बढ़ती जाती है। अतः सामान्यतः भारी गैसें वायुमण्डल के निचले स्तरों में और हल्की गैसें ऊपरी स्तरों में मिलती हैं। उदाहरणार्थ, कार्बन डाइऑक्साइड गैस वायुमण्डल में 20 किलोमीटर की ऊँचाई तक, आक्सीजन और नाइट्रोजन 100 किलोमीटर की ऊँचाई तक और हाइड्रोजन 125 किलोमीटर की ऊँचाई तक मिलती है। इसके बाद बहुत ऊँचाई पर हीलियम, नियोन, क्रिप्टोन एवं जिनोन जैसी हल्की गैसें 125 किलोमीटर से अधिक ऊँचाई पर पायी जाती हैं।

वायुमंडल की परतें

पिछले 150 वर्षों में किए गए वैज्ञानिक अध्ययनों के आधार पर जो निष्कर्ष वायुमण्डल की विभिन्न परतों के बारे में निकाले गए हैं उसके अनुसार वायुमण्डल निम्नांकित परतों में विभक्त किया गया है-

क्षोभमण्डल

यह वायुमण्डल का सवसे नीचे का भाग है। जो धरातल से 16 किलोमीटर की ऊँचाई तक एवं ध्रुवों पर10 किमी. की ऊँचाई तक पाया जाता है। इस भाग में जलवाष्प, धूलकण और भारी गैसें अधिक पायी जाती हैं। वायुमण्डल के इस भाग में वायु कभी शान्त नहीं रहती। यहाँ आँधी, मेघ गर्जन, विद्युत का चमकना, कड़कना, इत्यादि अनुभव होती हैं। इसमें निरन्तर पवनें और संवहनीय धाराएँ चला करती हैं जो ताप और आर्द्रता को काफी ऊँचाई तक वितरित करती रहती हैं। इस भाग में ऊँचाई के अनुसार ताप गिरता जाता है। प्रति 165 मीटर की ऊँचाई पर 1 सेण्टीग्रेड तापमान कम होता है।

मध्य या क्षोभ स्तर 

क्षोभ मण्डल एवं समताप मण्डल के बीच यह एक संक्रमण पट्टी होती है। इसकी ऊँचाई ध्रुवों पर 10 किलोमीटर एवं विषुवत् रेखा पर 16 किलोमीटर है। इसे मध्य स्तर (Tropopause) कहते हैं। इसकी मोटाई 1.5 से 2 किलोमीटर है। इसमें तापमान प्रायः समान रहते हैं। इसकी निचली सीमा पर जेट पवनें चलती हैं।

समताप मण्डल

इसकी ऊँचाई 16 से 30 किलोमीटर तक आंकी गयी है। यहाँ क्षैतिज रूप से पवनें चला करती हैं। सम तापमान, मेघों का अपेक्षाकृत अभाव और हल्की पवनें इस मण्डल की अन्य विशेषताएँ हैं। यहाँ जल-वाष्प और धूलकण प्रायः नहीं मिलने से वायु विक्षोभ की क्रिया नहीं होती, यहाँ के तापमान प्रायः स्थिर रहते हैं। यहाँ वायुमण्डलीय प्रभावकारी घटनाएँ यथा- आंधी, तूफान, हिम, मेघगर्जन, आर्द्रता, धूलकण, आदि नहीं पाई जाती हैं।

ओजोन मण्डल

यह 32 से 80 किमी. की ऊँचाई तक फैला हुआ है। इस भाग में ओजोन गैस की प्रधानता रहती है। यह गैस सूर्य से निकलने वाली अत्यन्त गरम पराबैंगनी किरणों (Ultra-violet Rays) को सोख लेती हैं। इसमें निहित ओजोन गैस (O3) के साथ UV किरणें O3 का आणविक विघटन करती हैं जिससे इनकी शक्ति समाप्त हो जाती है (Oó UVàO+ O) धरातल से पहुंचने वाली ऑक्सीजन (O2) परमाणु ऑक्सीजन(O) को पुनः मिलाती है जिससे O3 बनती है। यह प्रक्रिया निरन्तर इस मण्डल में चलती है जिससे UV किरणों से पृथ्वी के जैव जगत की रक्षा होती है। वरना यह पृथ्वी अन्य ग्रहों की तरह वीरान होती।



आयन मण्डल

ओजोन मण्डल के ऊपर वायु की कई तहें पायी जाती हैं। इन्हीं तहों को आयन मण्डल कहा गया है। वायुमण्डल का यह भाग 80 से 640 किलोमीटर तक विस्तृत है। इस भाग में स्वतन्त्र आयन की संख्या पर्याप्त मात्रा में पायी जाती है। आकाश का नीलवर्ण, घुवीय प्रकाश और ब्रह्माण्ड किरणे (Cosmic Rays ) इस भाग की विशेषताएँ हैं। इस मण्डल में तापमान की वृद्धि तेजी से होती है क्योंकि यहाँ की पवनें ब्रह्माण्ड किरणों को सोखकर विद्युन्मय हो जाती हैं।

बहिर्मण्डल 

वायुमण्डल में ऊँचाई के हिसाब से यह सबसे ऊँची और अन्तिम परत है, जिसकी ऊँचाई अनुमानतः 640 से 1,000 किलोमीटर और इससे भी अधिक आंकी गयी है। यहां पर सबसे हल्की गैसें रुई के गुच्छे की भाँति तैरती रहती हैं।

वायुमंडल का महत्त्व

  • वायु मानव सहित सम्पूर्ण जैव मण्डल का आधार है। पृथ्वी की सतह पर वायुमण्डल की गैसों की बनावट का अनेक प्रकार से प्रभाव पड़ता है।
  • ऐसे प्रभाव की एवं वायुमण्डल की घटनाओं या आकस्मिक घटनाओं की खोज मनुष्य निरन्तर नव विकसित तकनीक, अनुभव, प्रेक्षण एवं दूरस्थ संवेदन (रिमोट सेंसिंग) तथा रॉकेट एवं उपग्रहों से सही-सही ज्ञान प्राप्त करता रहा है।
  • इसी कारण मानव द्वारा वर्तमान में वनों का विनाश करने, इनका सन्तुलन बिगाड़ने एवं बढ़ते हुए प्रदूषण के कुप्रभावों से वर्तमान वैज्ञानिक जगत बुरी तरह चिन्तित है, क्योंकि इसका प्रभाव वायुमण्डल के सन्तुलन एवं परतों गैसों के व्यवहार पर पड़ता है। इसका तेजी से एवं घातक प्रभाव मानव तथा अन्य जीवों पर भी पड़ने लगा है।
  • पृथ्वी तल का तापमान, गैसों का संगठन एवं मानव की सहनशीलता सभी इससे प्रभावित रहे हैं। इसी कारण परमाणु अस्त्रों पर रोक लगाई जा रही है। आज ओजोन परत में छिद्र होने की आशंका भी मानव एवं जैव-जगत को विशेष चेतावनी है। वैज्ञानिक इस ओर भी निरन्तर सुधार के लिए उपाय सुझाते रहे हैं। अतः संसार के सभी देशों के निवासियों एवं जैव-जगत का हित इसी में है कि वायुमण्डल की निचली परतें स्वच्छ एवं सहज रूप में बनी रहें।
  • इसके लिए पृथ्वी की सतह पर वातावरण का सन्तुलन तथा मानव एवं जैव-जगत तथा प्रकृति के बीच मानव द्वारा सहयोग एवं सुखद स्थिति बनाए रखना आवश्यक है अन्यथा बढ़ते हुए प्रदूषण तथा विगड़ते हुए वायुमण्डल की सजा सम्पूर्ण मानव समाज को भुगतनी पड़ सकती है।
  • पश्चिम एशिया में तेल के कुओं तथा इण्डोनेशिया के जंगलों में लगी आग से स्थानीय रूप से भयंकर गर्मी व प्रदूषण बढ़ा है। अत: वायुमण्डल में बढ़ती हुई घातक गैसों व जहरीले धुएं से भूमण्डल का तापमान गिर भी सकता है। वायुमण्डल की निचली परत असन्तुलित व दूषित हो सकती है
  • । इनसे सम्पूर्ण भोजन श्रृंखला एवं जैव रसायन ही प्रदूषित होकर मानवशील क्रियाओं पर अनेक प्रकार से प्रतिकूल प्रभाव डाल सकते हैं।


FAQs

वायुमण्डल से आप क्या समझते?

पृथ्वी के चारों ओर सैकड़ो किमी की मोटाई में लपेटने वाले गैसीय आवरण को वायुमण्डल कहते हैं। वायुमण्डल विभिन्न गैसों का मिश्रण है जो पृथ्वी को चारो ओर से घेरे हुए है। निचले स्तरों में वायुमण्डल का संघटन अपेक्षाकृत एक समान रहता है। ऊँचाई में गैसों की आपेक्षिक मात्रा में परिवर्तन पाया जाता है।

वायुमंडल में कितने मंडल होते हैं?

पृथ्वी के वायुमंडल की पांच परतें क्षोभमंडल, समतापमंडल, मध्यमंडल, आयन मंडल और बाह्य मंडल हैं।

वायुमंडल में कितनी परते हैं?

पृथ्वी के वायुमंडल में कुल पाँच परतें हैं। Q. 2 वायुमंडल की प्रमुख परतें कौन कौन सी हैं? वायुमंडल की प्रमुख परतें क्षोभमण्डल, समतापमण्डल, मध्य मण्डल, आयन मण्डल, बाह्यमण्डल हैं।

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