चट्टानें एवं खनिज
भूपटल पर पाए जाने वाले वे समस्त पदार्थ जो पातुएँ नहीं (Non Metallic) हैं, चाहे वे चीका मिट्टी (Clay) की भाँति मुलायम हो अथवा ग्रेनाइट की भांति कठोर हो, चट्टान कहलाते हैं। चट्टानें ग्रेनाइट तथा बलुआ पत्थर (Sandstone) की भांति कठोर भी हो सकती हैं अथवा चीका मिट्टी (Clay) और बालू (sand) की भांति मुलायम भी। यह खड़िया मिट्टी (Chalk) और चूने के पत्थर (Limestone) की भांति छिद्रमय (Pervious) भी हो सकती हैं और ग्रेनाइट (Granite) तथा स्लेट (slate) की भांति अछिद्रमय या अप्रवेश्य (Impervious) भी।
चट्टानों की रचना अथवा विकास
ज्वालामुखी उद्गार या लावा प्रवाह द्वारा आग्नेय चट्टानें बनती हैं। इसके उपरान्त इन चट्टानों का अपक्षय विभिन्न कारणों से होता है। इन टुकड़ों के अपरदन के कारण टुकड़े छोटे-छोटे होकर जमते जाते हैं जिससे परतदार चट्टानें बनती हैं।
परतों पर निरन्तर दबाव और भार बढ़ने तथा ताप वृद्धि के कारण यह रूपान्तरित होती जाती है जिससे रूपान्तरित चट्टानें बनती हैं। दाब तथा ताप की निरन्तर वृद्धि के कारण अति रूपान्तरण (Ultrametamorphism) होता है, इसके बाद ये चट्टानें पुनः लावा या मैग्मा में बदल जाती हैं जो पुनः ज्वालामुखी से निस्सृत होकर आग्नेय चट्टानें बनती हैं। इस प्रकार यह चक्रीय प्रक्रिया निरन्तर चलती रहती है और चट्टानों की रचना होती है, या विकास चक्र चलता रहता है।
चट्टानों का वर्गीकरण
भूपटल या पृथ्वी की सतह पर पायी जाने वाली चट्टानों को उनकी रचना के अनुसार तीन भागों में बाँटा जा सकता है-
(1) आग्नेय चट्टानें Igneous Rock
(2) अवसादी या परतदार चट्टानें Sedimentary Rocks
(3) कायान्तरित चट्टानें Metamorphic Rocks
1. आग्नेय चट्टानें Igneous Rock
आग्नेय शब्द लैटिन भाषा के इग्निस (Ignis) शब्द से सम्बन्धित है जिसका अर्थ ‘अग्नि’ होता है। पृथ्वी (Inner Core) आन्तरिक क्रिया द्वारा पृथ्वी के ऊपरी परत या ऊपरी धरातल पर जब पिघला हुआ पदार्थ ठोस रूप धारण करता है तो आग्नेय चट्टानें बनती हैं। इन चट्टानों का निर्माण पृथ्वी में पदार्थों के तरल अवस्था से ठण्डे हो जाने से जमकर ठोस अवस्था में बदल जाने से हुआ है।
2. अवसादी या परतदार चट्टानें Sedimentary Rocks
धरातल पर पायी जाने वाली अधिकांश चट्टानें अवसादी चट्टानें होती हैं। ऐसा अनुमान लगाया गया है कि पृथ्वी के धरातल का लगभग 75% भाग इन्हीं चट्टानों द्वारा बना हुआ है और शेष 25% भाग में आग्नेय चट्टानें तथा कायान्तरित चट्टानें फैली हुई हैं। यद्यपि भूपटल पर अवसादी चट्टानों का अधिक विस्तार पाया जाता है, किन्तु इनका घनत्व बहुत कम है और ये केवल धरातल के ऊपरी भाग में ही फैली हुई हैं।
प्रारम्भ में जब पृथ्वी द्रव अवस्था से ठोस अवस्था को प्राप्त हुई तो पृथ्वी का समस्त भू-पृष्ठ आग्नेय चट्टानों का बना हुआ था। बाद में अनाच्छादन प्रक्रिया के प्रभाव से धीरे-धीरे आग्नेय चट्टानों का विनाश होने लगा, जिससे आग्नेय चट्टानें टूटकर चूर्ण रूप में बदलने लगीं। आग्नेय चट्टानों का यही क्षय पदार्थ जल, पवन और हिम द्वारा एक स्थान से दूसरे स्थान पर जमा किया जाने लगा। इस प्रकार जमा किए गए पदार्थों से बनी चट्टानों को अवसादी चट्टानें (Sedimentary Rocks) कहते हैं।
3. कायान्तरित चट्टानें Metamorphic Rocks
उच्च तापमान, दवाव अथवा दोनों के प्रभाव से एवं ऊँचे ताप की वाष्प व जल से रासायनिक क्रिया से आग्नेय और अवसादी चट्टानों में मूल रूप में परिवर्तन हो जाता है। इन परिवर्तनों के फलस्वरूप बनी चट्टानें कायान्तरित चट्टानें कहलाती हैं। वारेस्टर के अनुसार, “The agents that produce changes are chiefly heat, compression and solution acting singly or together.” ऐसी चट्टानों का गुण, रंग, खनिज संरचना एवं रवे पुर्णतः नए सिरे से बनते हैं। इन चट्टानों में कठोरता एवं दृढ़ता भी अधिक होती है।
चट्टानों का आर्थिक महत्व Economic Importance of Rocks
उपर्युक्त तीनों ही प्रकार की चट्टानें आर्थिक दृष्टि से किसी-न-किसी रूप में महत्वपूर्ण हैं। इन चट्टानों में ही खनिज पदार्थ पाए जाते हैं। आर्थिक दृष्टिकोण से इनका निम्नलिखित महत्व है-
- आग्नेय चट्टानों में सोना, चांदी, तांबा, जस्ता, सीसा, क्रोमाइट, अभ्रक, गन्धक, मैग्नेसाइट, मैंगनीज, आदि मिलते हैं। इन चट्टानों से सड़कें बनाने के लिए पत्थर (डोलोराइट, गेब्रो तथा ग्रेनाइट) प्राप्त किए जाते हैं। लावा की काली मिट्टी भी इन्हीं चट्टानों से मिलती है, जो कपास और गेहूं की खेती के लिए उपयुक्त है।
- अवसादी चट्टानों में कोयला, लिग्नाइट, प्राकृतिक गैस, पेट्रोलियम, जिप्सम, बलुआ पत्थर, चूना पत्थर, इमारती पत्थर, फास्फेट, पोटाश, सेंधा , डोलोमाइट, आदि मिलते हैं। कृषि के लिए महत्वपूर्ण कांप या मिट्टी भी इन चट्टानों से प्राप्त होती है।
- कायान्तरित चट्टानों में चुम्बकीय तांबा, क्रोमियम, लोहा, ग्रेफाइट, यूरेनियम, संगमरमर, सोना, चांदी, हीरा, आदि मिलते हैं।
- चट्टानों से ही भवन-निर्माण के लिए विभिन्न प्रकार के इमारती पत्थर प्राप्त किए जाते हैं। आगरा, फतेहपुर सीकरी और दिल्ली से मस्जिदों और किलों में लाल बलुआ पत्थर का उपयोग किया गया है। विश्व प्रसिद्ध प्राचीन मन्दिरों का निर्माण संगमरमर से किया गया है।
- चट्टानों से ही अनेक उद्योगों के लिए कच्चा माल मिलता है, जैसे-सीमेण्ट उद्योग के लिए चूना, डोलोमाइट, कोयला, सिलिकायुक्त मिट्टी, कांच उद्योग के लिए विशेष प्रकार की बालू मिट्टी, रासायनिक पदार्थों के लिए नमक, पोटाश, रासायनिक खाद के लिए जिप्सम, गन्धक, पायराइट और फास्फेट, आदि की प्राप्ति चट्टानों से ही होती है।
- आग्नेय चट्टानों के क्षेत्र में अनेक स्थानों पर (भारत में महाराष्ट्र, गुजरात, उड़ीसा में) गन्धक, अन्य रसायन व खनिज मिश्रित जल के स्रोत पाए जाते हैं जिनमें स्नान करने से त्वचा के अनेक रोग मिट जाते हैं।
- हमारा सम्पूर्ण अभिनव औद्योगिक तन्त्र एवं विकसित सभ्यता का सामाजिक एवं सांस्कृतिक स्वरूप चट्टानों एवं खनिजों के विविध या विशिष्ट प्रकार से बढ़ते हुए एवं बदलते हुए उपयोग के अनुसार ही संशोधित होता जा रहा है।