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संविधान क्या है ? संविधान के प्रकार कौन कौन से है

15 अगस्त 1947 के बाद भारत देश को का शासन कैसे चलेगा, सरकार कैसे चलेगी, सरकार को क्या अधिकार और क्या जवाबदारी होगी, शासन के लिए पैसे कहा से आयेंगे और खर्च कहा पर होगा, पडोशी देश के साथ व्यवहार कैसा होगा। ऐसे सभी प्रश्नों को एक संविधान की जरूरत थी इसीलिए भारतीय संविधान सभा का गठन हुआ।

संविधान क्या है? संविधान के प्रकार? (what is constitution in hindi), संविधान के प्रकार एवं वर्गीकरण, और लिखित और अलिखित का भेद जैसे सवालों का जवाब मिलेगा।

संविधान ( ‘सम्’ + ‘विधान’ ), मूल सिद्धान्तों का एक समुच्चय है, जिससे कोई राज्य या अन्य संगठन अभिशासित होते हैं।संविधान ऐसी कठिन परिभाषा तो आपको कही भी मिल जाएगी, में इसको सरल रूप से समजा ने की कोशिश करता हु।

उदाहरण: मान लीजिये की पति-पत्नी और दो बच्चो का एक परिवार है। जिसमे पति पैसे कमाता है, पत्नी गृहिणी है और बच्चे पढ़ रहे है। पति अपनी आय को घर खर्च, बच्चो की पढाई, बचत के निर्णय लेकर घर की वित्तीय जवाबदारी संभालता है, पत्नी पति के पास से मिले पैसो से अनाज, कपडे, घर के बिल जैसी दैनिक जवाबदारी संभालती है, और बच्चे पर किया निवेश भविष्य में विकास और सुरक्षा प्रदान करता है।

हर घर अपने तरीके से चलता है जिसमे सबकी जवाबदारी और कार्य निचित होते है, वैसे ही देश और राष्ट्र को भी चलाने के लिए नियम या कानून होते है, ऐसे कानून या नियम को एक-एक पेज में प्रिंट निकाल कर एक किताब बनाए, तो उस किताब या कानून के संग्रह को संविधान कहते है।

संविधान एक मौलिक कानून है जो देश का संचालन करने, सरकार के विभिन्न अंगों की रूपरेखा तथा कार्य निर्धारण करने इवं नागरिको के हितो का संरक्षण करने के लिए नियम दर्शाता है।

प्रत्येक स्वतंत्र देश को अपना एक संविधान होता है, जो सरकार के अंग विधानमंडल(Legislature), न्यायतंत्र(Judiciary), कार्यपालिका(Executive) के गठन और कार्य की परिभाषा करता है ओर उसके अधिकार और जवाबदारीयों को सुनिचित करता है।

संविधान देश में बन रहे सभी कानून का मूल होने की वजह से उसे मूल कानून भी कहा जाता है।

किसी भी गणतंत्र राष्ट्र का आधार संविधान होता है, इसमें उस देश या राष्ट्र के महत्वपूर्ण व्यक्तियों के द्वारा देश का प्रशासन चलाने के लिए नियम का निर्माण किया जाता है, जिससे सत्ता का दुरुप्रयोग रोका जा सकता है | संविधान के द्वारा मूल शक्ति वहां की जनता में निहित की जाती है, जिससे किसी गलत व्यक्ति को सत्ता तक पहुंचने पर उसको पद से हटाया जा सकता है |

किसी भी देश का संविधान उस देश को आत्मा को भी कहते है क्योंकि संविधान में ही उस देश के सभी मूल भाव व कर्त्तव्य निहित होते है।

संविधान देश के सामाजिक, आर्थिक, भौगोलिक, धार्मिक आदि परिस्थिति के आधारित बनाया जाता है।

संविधान के प्रकार – संविधानों को मुख्य रूप से निम्नलिखित तीन आधारों पर वर्गीकृत किया गया जाता है –

1. संविधान को किस प्रकार बनाया गया है? – इस आधार पर संविधान के दो रूप माने जाते हैं।

(i) विकसित संविधान (Evolved Constitution)

(ii) बनाया गया संविधान (Enacted Constitution)

2. संविधान का स्वरूप क्या है? – इस आधार पर, संविधान के दो रूप माने जाते हैं।

(i) लिखित संविधान (Written Constitution)

(ii) अलिखित संविधान (Unwritten Constitution)

3. संविधान में संशोधन की प्रक्रिया क्या है? – इस आधार पर भी संविधान के दो रूप माने जाते हैं।

(i) लचीला संविधान (Flexible Constitution)

(ii) कठोर संविधान (Rigid Constitution)

इन सभी प्रकार के संविधानों का विस्तृत विवरण निम्नलिखित अनुसार है –

  1. विकसित संविधान (Evolved Constitution) – एक विकसित संविधान वह है जो इतिहास में एक निश्चित समय पर किसी विशेष संविधान सभा द्वारा तैयार नहीं किया गया है, बल्कि जिसके अलग-अलग सिद्धांतों का धीरे-धीरे विकास हुआ हो। सरल शब्दों में विकसित संविधान किसी व्यक्ति या सभा द्वारा किसी निश्चित तिथि पर नहीं बनाया जाता है, बल्कि समय के साथ देश की राजनीतिक और सामाजिक परिस्थितियों के कारण इसके विभिन्न सिद्धांत समय-समय पर निर्धारित होते रहते हैं। इंग्लैंड का संविधान विकसित संविधान का बेहतरीन उदाहरण है। इंग्लैण्ड का संविधान न तो किसी संविधान सभा द्वारा तैयार किया गया है और न ही किसी निश्चित तिथि पर अधिनियमित किया गया है, लेकिन एंग्लो सैक्सन (Anglo Saxon) के समय से लेकर वर्तमान तक इसके विभिन्न सिद्धांत सहज रूप से उपलब्ध हैं।
  2. बनाया गया संविधान (Enacted Constitution) – अधिनियमित संविधान से हमारा तात्पर्य उस संविधान से है जो एक विशेष संविधान सभा द्वारा तैयार किया गया है और जिसे इतिहास में एक निश्चित तिथि पर लागू किया गया है।  उदाहरण के लिए, भारत का संविधान एक निर्मित संविधान है। यह 1946 में संविधान सभा द्वारा बनाया गया था, जिसे विशेष रूप से संविधान का मसौदा तैयार करने के लिए स्थापित किया गया था। इस संविधान को अंतत 26 नवंबर, 1949 को संविधान सभा द्वारा अनुमोदित किया गया और 26 जनवरी, 1950 को लागू हुआ। इसी तरह, संयुक्त राज्य अमेरिका का संविधान 1787 में फिलाडेल्फिया कन्वेंशन द्वारा तैयार किया गया था और 1789 में इसे अधिनियमित किया गया था। दुनिया में बनाए गए संविधान के कई अन्य उदाहरण हैं जैसे रूस, स्विट्जरलैंड, पाकिस्तान, बांग्लादेश, जापान, चीन, श्रीलंका आदि के संविधान।
  3. लिखित संविधान (Written Constitution) – लिखित संविधान वह होता है जिसके सिद्धांत और नियम लिखित रूप में होते हैं। एक लिखित संविधान हमेशा एक बनाया गया संविधान (Enacted Constitution) होता है, क्योंकि केवल एक विशेष संविधान सभा, बहुत विचार-विमर्श के बाद, अपने नियमों को लिखित रूप में रखती है। लिखित संविधान में सब कुछ स्पष्ट रूप से लिखा गया होता है।  प्रत्येक लिखित संविधान में संशोधन के लिए एक प्रक्रिया निर्धारित होती है। हर संविधान में एक संशोधन तंत्र होना बहुत जरूरी है क्योंकि इसके बिना संविधान को समय की आवश्यकताओं के अनुसार नहीं बदला जा सकता है। इस विधि के अनुसार, समय-समय पर किए गए संवैधानिक संशोधन भी लिखित संविधान का हिस्सा होती हैं। उदाहरण के लिए, भारतीय संविधान में अब तक 94 संशोधन प्राप्त हुए हैं और संयुक्त राज्य अमेरिका के संविधान में 27 संशोधन प्राप्त हुए हैं। ये संशोधन इन देशों के लिखित संविधान का हिस्सा हैं। एक लिखित संविधान एक दस्तावेज के रूप में होता है।  लेकिन एक संविधान के लिए एक के बजाय कई दस्तावेजों में होना भी संभव है। उदाहरण के लिए, फ्रांस के तीसरे गणराज्य के संविधान में तीन दस्तावेज थे जो 24 फरवरी, 26 फरवरी और 26 जुलाई, 1875 को बनायें गये थे। गौरतलब है कि दुनिया का कोई भी संविधान पूरी तरह से नहीं लिखित नहीं हो सकता, क्योंकि हर देश में समय बीतने के साथ कई अलिखित परंपराएं संविधान का हिस्सा बन जाती हैं। ऐसी परंपराओं के बिना लिखित संविधान कंकाल की तरह रहता है। उदाहरण के लिए, संयुक्त राज्य अमेरिका, स्विट्जरलैंड और भारत के संविधान लिखित रूप में हैं, लेकिन इन देशों में अंतहीन अलिखित संवैधानिक परंपराएं हैं जिनके आधार पर देश का शासन संचालित होता है।
  4. अलिखित संविधान (Un-Written Constitution) – एक अलिखित संविधान एक ऐसा संविधान होता है जिसके नियम और सिद्धांत लिखित रूप में नहीं होते बल्कि रीति-रिवाजों और परंपराओं पर आधारित होते हैं। एक अलिखित संविधान हमेशा एक विकसित संविधान (Evolved Constitution) होता है और यह एक बनाया गया संविधान (Enacted Constitution) नहीं होता है। गौरतलब यह है कि कोई भी संविधान पूर्ण रूप में लिखित नहीं हो सकता क्योंकि संसद द्वारा बनाए संविधानिक कानून और अदालतों द्वारा दिए संविधानिक मामलों संबंधी न्याय का निर्णय हमेशा लिखित रूप में होते हैं। वर्तमान युग में, इंग्लैंड का संविधान एक अलिखित संविधान का एक प्रमुख उदाहरण है। लेकिन इंग्लैंड के संविधान को पूर्ण रूप से लिखित संविधान नहीं कहा जा सकता क्योंकि इंग्लैंड में बहुत सारे चार्टर और संसद के कानून लिखती रूप में मौजूद हैं जिनके आधार पर देश का शासन चलाया जाता है।
  5. लचीला संविधान (Flexible Constitution) – लचीले संविधान से हमारा तात्पर्य एक ऐसे संविधान से है जिसमें आसानी से और जल्दी से संशोधित किया जा सकता है। संवैधानिक दृष्टिकोण से ऐसे संविधान लचीले होते हैं जिनमें सामान्य कानूनों को पारित करने की प्रक्रिया और संविधान में संशोधन की प्रक्रिया समान होती है। सरल शब्दों में, एक लचीले संविधान में, विधायिका को संवैधानिक कानून बनाने के लिए कोई विधि अपनाने की आवश्यकता नहीं होती है, बल्कि संवैधानिक कानून उस विधि के अनुसार बनता है जिसके द्वारा सामान्य कानून बनाया जाता है। प्रो. बार्कर के अनुसार, “ऐसा संविधान लचीला होता है जिसमें सरकार के रूप को लोगों या उनके प्रतिनिधियों की इच्छा पर आसानी से बदला जा सकता है।” इंग्लैंड का संविधान लचीले संविधान का बेहतरीन उदाहरण है। इंग्लैंड की संप्रभु संसद सामान्य कानून के अनुसार संवैधानिक कानून बना सकती है। इंग्लैंड में सामान्य कानून और संवैधानिक कानून में कोई अंतर नहीं है। संवैधानिक कानून उसी तरह बनाया जाता है जैसे साधारण कानून पारित किया जाता है। इंग्लैंड के संविधान को दुनिया का सबसे लचीला संविधान माना जाता है क्योंकि साधारण कानून और संवैधानिक कानून में कोई अंतर नहीं है। प्रो. गार्नर (Garner) के अनुसार, “जिन संविधानों में सामान्य कानूनों की तुलना में उच्चतम कानूनी शक्ति नहीं है और जिन्हें अन्य कानूनों की तरह ही संशोधित किया जा सकता है, उन्हें लचीला संविधान कहा जाना चाहिए।”
  6. कठोर संविधान (Rigid Constitution) – एक कठोर संविधान एक ऐसा संविधान है जिसे आसानी से संशोधित नहीं किया जा सकता है। संविधान पक्ष से ऐसे संविधान कठोर होते हैं जिनमें साधारण कानून पास करने की विधि और संविधान में संशोधन करने की विधि में अंतर होता है। सरल शब्दों में, कठोर संविधानों में संशोधन के लिए एक विशेष प्रक्रिया निर्धारित की जाती है ताकि सत्ताधारी दल अपने हितों के अनुरूप संविधान को तुरंत बदल न सके। प्रो. गार्नर (Garner) के अनुसार, “विभिन्न स्रोतों से आने वाले संविधान, जो कानूनी रूप से सामान्य कानूनों से बेहतर होते हैं और जिन्हें विशेष विधियों से बदला जा सकता है, उन्हें कठोर या स्थिर संविधान कहा जाना चाहिए। लचीले और कठोर संविधान के बीच का अंतर बताते हुए प्रो. गैटल (Gettel) ने लिखा है, कि लचीले और कठोर संविधान में अंतर उस विधि पर आधारित है जिसके द्वारा संविधान में तबदीली की जा सकती है – यदि संविधान में सामान्य प्रक्रिया के अनुसार कानून बनाने वाली संस्था परिवर्तन करती है, तो उस संविधान को लचीला संविधान कहा जा सकता हैं। उसी तरह, संवैधानिक कानून भी उस  कानूनी बल से उत्पन्न होता है यहाँ से समान्य कानून। इसके कारण संवैधानिक कानून को कोई विशेष श्रेष्ठता नहीं प्राप्त होती। यदि किसी संविधान में किसी विशेष अंग में संशोधन की आवश्यकता है या किसी संविधान में संशोधन की प्रक्रिया सामान्य कानून पारित करने की प्रक्रिया से अधिक कठिन है, तो उस संविधान को कठोर संविधान कहा जा सकता है।

भारतीय संविधान से क्या मतलब है

15 अगस्त 1947 के बाद भारत देश को का शासन कैसे चलेगा, सरकार कैसे चलेगी, सरकार को क्या अधिकार और क्या जवाबदारी होगी, शासन के लिए पैसे कहा से आयेंगे और खर्च कहा पर होगा, पडोशी देश के साथ व्यवहार कैसा होगा। ऐसे सभी प्रश्नों को एक संविधान की जरूरत थी इसीलिए भारतीय संविधान सभा का गठन हुआ।

संविधान के कार्य

  • सरकार के उद्देश्यों को स्पष्ट करना।
  • शासन की संरचना को स्पष्ट करना।
  • नागरिकों के अधिकारों और स्वतंत्रता की रक्षा करना।
  • राज्य को वैचारिक समर्थन और वैधता प्रदान करना।
  • भविष्य की दृष्टि के साथ एक आदर्श शासन संरचना का निर्माण करना।

FAQs

संविधान के कार्य ?

  • सरकार के उद्देश्यों को स्पष्ट करना।
  • शासन की संरचना को स्पष्ट करना।
  • नागरिकों के अधिकारों और स्वतंत्रता की रक्षा करना।
  • राज्य को वैचारिक समर्थन और वैधता प्रदान करना।
  • भविष्य की दृष्टि के साथ एक आदर्श शासन संरचना का निर्माण करना।

भारतीय संविधान से क्या मतलब है?

15 अगस्त 1947 के बाद भारत देश को का शासन कैसे चलेगा, सरकार कैसे चलेगी, सरकार को क्या अधिकार और क्या जवाबदारी होगी, शासन के लिए पैसे कहा से आयेंगे और खर्च कहा पर होगा, पडोशी देश के साथ व्यवहार कैसा होगा। ऐसे सभी प्रश्नों को एक संविधान की जरूरत थी इसीलिए भारतीय संविधान सभा का गठन हुआ।
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