करेंट अफेयर्स प्रश्नोत्तरी

  • करेंट अफेयर्स दिसम्बर 2022
  • करेंट अफेयर्स नवंबर 2022
  • करेंट अफेयर्स अक्टूबर 2022
  • करेंट अफेयर्स सितम्बर 2022
  • करेंट अफेयर्स अगस्त 2022
  • करेंट अफेयर्स जुलाई 2022
  • करेंट अफेयर्स जून 2022
  • करेंट अफेयर्स मई 2022
  • करेंट अफेयर्स अप्रैल 2022
  • करेंट अफेयर्स मार्च 2022

करेंट अफेयर्स ( वर्गीकृत )

  • व्यक्तिविशेष करेंट अफेयर्स
  • खेलकूद करेंट अफेयर्स
  • राज्यों के करेंट अफेयर्स
  • विधिविधेयक करेंट अफेयर्स
  • स्थानविशेष करेंट अफेयर्स
  • विज्ञान करेंट अफेयर्स
  • पर्यावरण करेंट अफेयर्स
  • अर्थव्यवस्था करेंट अफेयर्स
  • राष्ट्रीय करेंट अफेयर्स
  • अंतर्राष्ट्रीय करेंट अफेयर्स
  • छत्तीसगढ़ कर्रेंट अफेयर्स

पर्यावरण क्या है? परिभाषा, प्रकार, विशेषताएँ, संरचना और संघटक

पर्यावरण की कार्यप्रणाली प्राकतिक संसाधनों से संचालित होती है तथा पर्यावरण के तत्त्वों में पार्थिव एकता का विद्यमान है। पर्यावरण हमारी पृथ्वी पर जीवन का आधार है, जो न केवल मानव अपितु विभिन्न प्रकार के जीव-जन्तुओं एवं वनस्पतियों के उद्भव, विकास एवं अस्तित्व का आधार है।

पृथ्वी के उद्भव के बहुत बाद में पर्यावरण का निर्माण हुआ। इसके निर्माण की प्रक्रिया नितान्त मन्द गति से अनवरत सक्रिय रही। अनेक भौतिक एवं अभौतिक तत्वों का निर्माण तथा इनके मध्य उत्पन्न सम्बन्ध से पर्यावरण धीरे-धीरे मूर्त रूप धारण करता गया।

पर्यावरण क्या है?

जीवधारियों एवं वनस्पतियों के चारों ओर जो आवरण है, वह पर्यावरण कहलाता है। पर्यावरण शब्द की उत्पत्ति फ्रेंच शब्द Environ से हुई है, जिसका अर्थ है- आवृत्त या घिरा हुआ। पर्यावरण जैविक (Biotic) तथा अजैविक (Abiotic) अवयवों का सम्मिश्रण है, जो जीवों को अनेक प्रकार से प्रभावित करता है।

पर्यावरण के कुछ कारक संसाधन के रूप में कार्य करते है. जबकि दूसरे कारक नियन्त्रक का कार्य करते है। कुछ विद्वानों ने पर्यावरण को मिल्यू (Milieu) से भी सम्बोधित किया है, जिसका अर्थ चारों ओर के वातावरण का समूह होता है।

पर्यावरण की परिभाषाएँ

  • फिटिंग के शब्दों में “पर्यावरण किसी जीवधारी को प्रभावित करने वाले समस्त कारकों का योग है।” (Environment is the sum total of all the factors that inefluence an organism-Fitting)
  • हरकोविट्ज के अनुसार, “किसी जीवित तत्व के विकास चक्र को प्रभावित करने वाली समस्त बाह्य दशाओं को पर्यावरण कहते हैं।” (Envrionment is the sum total of all the external conditions and its influences on the external conditons and its influences ont he development cycle of biotic elements-Herkovitz)
  • रॉस ने लिखा है, “पर्यावरण एक वाह्य शक्ति है जो हमें प्रभावित करती है।” (Environment is an external force which influences us.- Ross)
  • डेविस ने पर्यावरण को मूर्त वस्तु न मानकर अमूर्त वस्तु मानी है। (Environment does not refer to anything tangible but to an abstraction.-Devis)

पर्यावरण का अध्ययन क्यों?

मानव और पर्यावरण का अन्योन्याश्रित है। पर्यावरण हमें विविध विकास की ऊँचाइयों को छूने हेतु प्रयत्नरत है, किंतु इस अंधी दौड़ में हमने अपने संसाधनों का अनियोजित उपयोग और दुरूपयोग किया है। इस कारण पर्यावरण पर दो दबाव उत्पन्न हुआ है उससे पर्यावरण का संतुलन डगमगा गया है। पर्यावरण संबंधी अनेक विसंगतियाँ उत्पन्न हो गई है, जिनसे न केवल कई मानवेत्तर प्रजातियाँ विलुप्त होती जा रही है बल्कि मानव के अस्तित्व पर भी भविष्य में प्रश्नचिन्ह लगने जैसी स्थिति उत्पन्न होने की सम्भावनाएँ प्रबल हो गई है। इसलिए पर्यावरणविदों का ध्यान विकास प्रक्रिया के पर्यावरणीय विश्लेषण की ओर गया है। मूल रूप से पर्यावरण और विकास दोनों एक-दूसरे के पूरक है।

पर्यावरण अध्ययन के उद्देश्य –

  1. पर्यावरण संबंधी विविध पक्षों की जानकारी प्रदान करना।
  2. पारिस्थितिक प्रणालियों का ज्ञान कराना।
  3. पारिस्थितिक प्रणालियों की समस्याओं की जानकारी प्रदान करना।
  4. पर्यावरणीय क्रियाओं के प्रभाव की जानकारी प्रदान करना।
  5. पर्यावरण असंतुलन और उसके प्रभावों का ज्ञान कराना।
  6. पर्यावरण संरक्षण हेतु विविध उपायों की जानकारी देना।
  7. पर्यावरण के प्रति जागरूकता उत्पन्न कराना।

पर्यावरण की मुख्य विशेषताएँ

पर्यावरण की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

  • जैविक एवं अजैविक तत्त्वों के योग को पर्यावरण कहते हैं।
  • जैविक विविधता (Biodiversity), प्राकृतिक वास तथा ऊर्जा (Energy) किसी पर्यावरण के मख्य तत्त्व होते हैं। पर्यावरण में समय तथा स्थान के साथ परिवर्तन होता रहता है।
  • पर्यावरण जैविक एवं अजैविक पदार्थों के कार्यात्मक (Functional) सम्बन्ध पर आधारित होता है।
  • पर्यावरण की कार्यात्मकता (Functioning) ऊर्जा संचार पर निर्भर करती है।
  • पर्यावरण अपने जैविक पदार्थों (Organic Matter) का उत्पादन करता है, जो विभिन्न स्थानों पर अलग अलग होता है। पर्यावरण सामान्यतः पारिस्थिातका सन्तुलन स्थापित करने की ओर अग्रसर रहता है।
  • पर्यावरण एक बन्द तन्त्र है। इसके अन्तर्गत प्राकृतिक पर्यावरण तन्त्र स्वतः नियन्त्रक क्रियाविधि जिसे होमियोस्टेटिक क्रियाविधि (Homeostatic Mechanism) कहते हैं, के द्वारा नियन्त्रित होता है।

पर्यावरण के प्रकार

पर्यावरण एक जैविक एवं भौतिक संकल्पना है इसलिए इसके अन्तर्गत केवल प्राकृतिक वातावरण को ही नहीं बल्कि मानवजनित पर्यावरण जैसे-सामाजिक व सांस्कृतिक पर्यावरण को भी शामिल किया जाता है।
सामान्यत: पर्यावरण को तीन वर्गों में वर्गीकृत किया जाता है

(i) प्राकृतिक पर्यावरण

प्राकृतिक पर्यावरण (Natural Environment) के अन्तर्गत वे सभी जैविक (Organic) एवं अजैविक (Inorganic) तत्त्व शामिल है, जो पथ्वी पर प्राकतिक रूप में पाए जाते हैं। इसी आधार पर प्राकृतिक पर्यावरण को जैविक एवं अजैविक भागों में बाँटा जाता है। जैविक तत्वों में सक्ष्म जीव, पौधे एवं जन्तु शामिल ह तथा अजैविक तत्त्वों के अन्तर्गत ऊर्जा, उत्सर्जन, तापमान, ऊष्मा प्रवाह, जल, वायुमण्डलीय गैसें, वायु, अग्नि, गुरुत्वाकर्षण, उच्चावच एवं मृदा शामिल है।

(ii) मानव निर्मित पर्यावरण

मानव निर्मित पर्यावरण (Man-Made Environment) के अन्तर्गत वे सभी स्थान सम्मिलित हैं, जो मानव ने कृत्रिम (Artificial) रूप से निर्मित किए हैं। अत: कृषि क्षेत्र, औद्योगिक शहर, वायुपत्तन, अन्तरिक्ष स्टेशन आदि मानव निर्मित पर्यावरण के उदाहरण हैं। जनसंख्या वृद्धि एवं आर्थिक विकास के कारण मानव निर्मित पर्यावरण का क्षेत्र एवं प्रभाव बढ़ता जा रहा है।

(iii) सामाजिक पर्यावरण

सामाजिक पर्यावरण (Social Environment) में सांस्कृतिक मूल्य एवं मान्यताओं को सम्मिलित किया जाता है। पृथ्वी पर भाषायी, धार्मिक रीति-रिवाजों, जीवन-शैली आदि के आधार पर सांस्कृतिक पर्यावरण (Cultural Environment) का निर्माण होता है। राजनीतिक, आर्थिक एवं धार्मिक संस्थाएँ या संगठन, सामाजिक पर्यावरण का हिस्सा होने के साथ-साथ यह निर्धारित करते हैं कि पर्यावरणीय संसाधनों का उपयोग कैसे किया जाएगा और किन लाभों के लिए किया जाएगा।

पर्यावरण की संरचना

पृथ्वी पर पाए जाने वाले पर्यावरण की संरचना का निर्माण चार वर्गों से मिलकर होता है-

1. वायुमण्डल

  • वायुमण्डल अपनी गैसों द्वारा पृथ्वी के चारों ओर एक रक्षात्मक ब्लैंकेट की तरह कार्य करता है। जिससे पृथ्वी पर जीवन बना रहता है।
  • अंतरिक्ष के विपरीत पर्यावरणीय प्रभाव से बचता है।
  • यह वाह्य अन्तरिक्ष की अधिकतर ब्रह्माण्डीय किरणों को तथा सूर्य को विद्युत चुम्बकीय करणों को अवशोषित कर उनके दुष्प्रभाव को नगण्य करता है।
  • यह यहाँ पर केवल अल्ट्रावायलेट, दृश्य, लगभग अवरक्त किरणें (300 से 2500 एन.एम) और रेडियों तरंगो को ही प्रसारित होने देता है। जबकि 300 एनएम से कम की अल्ट्रावायलेट किरणों को अवशोषित कर लेता है जो समस्त जीवित जीव को हानि पहुँचा सकती है।
  • वायुमण्डल, नाइट्रोजन और ऑक्सीजन से बना है। कुछ अन्य गैस जैसे-आर्गन कार्बन डाईआक्साइड और संकेतिक गैसें।

2. जलमण्डल

  • जलमण्डल में सभी प्रकार के जल संसाधनों को शामिल करते है जैसे महासागर, सागर, झीलें, नदियाँ, जलाशय, ध्रुवीय बर्फ, हिमानी और धरातलीय जल।
  • पृथ्वी के पानी का 97% महासागरों में।
  • 2% पानी हिमनदों और ध्रुवीय क्षेत्रों में है।
  • केवल 1% पानी नदियों और झीलों और धरातलीय पानी मानव के उपयोग के लिए उपयुक्त है।

3. स्थलमण्डल

यह पृथ्वी के तीन मुख्य पतों में सबसे बाहरी पर्त है जिसमें पृथ्वी के दूसरे भाग मेण्टल के बाहरी भाग और पृथ्वी के उपरी परत क्रस्ट को सम्मिलित करते है। यह खनिजों का स्रोत तथा जीवों, प्राणियों, वायु और जल आदि इसी से

सम्बन्ध रखते है।

4. जैवमण्डल

  • जीवमण्डल रहने वाले जीवों के स्थानों को इंगित करता है तथा इसके पर्यावरण के साथ जैसे स्थलमण्डल, वायुमण्डल, जलमण्डल के साथ अन्त:क्रिया को दर्शाता है।
  • पर्यावरण अध्ययन में मानव तथा प्रकृति का पारस्परिक सम्बन्धों एवं अर्न्तक्रियाओं का भी अध्ययन प्रमुखता से किया जाता है। पर्यावरण अध्ययन की प्रकृति बहु-विषयक होने के कारण ये समस्या अध्ययन वैज्ञानिक तथा मानविकी के दृष्टिकोणों से किये जाते हैं। पर्यावरण अध्ययन के विषय क्षेत्र का निरन्तर विकास हो रहा है और आज इसका अध्ययन कई मानवीय विषयों के साथ-साथ शुद्ध विज्ञानी विषयों को भी आच्छादित कर रहा है।

पर्यावरण के तत्व

पर्यावरण का निर्माण भौतिक, जैविक और सांस्कृतिक तत्वों के अंतरक्रिया पद्धति के द्वारा हुआ है जो आपस में विभिन्न तरीकों से सम्बन्धित हैं, व्यक्तिगत के साथ-साथ सामूहिक रूप से भी इन तत्वों को निम्न रूप में समझाया जा सकता है-

भौतिक तत्व

भौतिक तत्व जैसे-अंतरिक्ष, स्थलाकृतियाँ, जलराशियाँ, मिट्टी, चट्टान, खनिज आदि। ये तत्व मानव अधिवासों के विभिन्न लक्षणों को निर्धारित करते हैं। ये उपलब्धि के साथ-साथ सीमा का भी निर्धारण करते हैं।

जैविक तत्व

जैविक तत्व जैसे कि पादप, जन्तु, सूक्ष्म जीव और मानव जो एक जैवमण्डल का निर्माण करते है।

सांस्कृतिक तत्व

सांस्कृतिक तत्व जैसे कि आर्थिक, सामाजिक, राजनैतिक तत्व जो महत्वपूर्ण मानवीय रूप है जो सांस्कृतिक आधिवास बनाता है।

पर्यावरण की संरचना एवं प्रकार

सम्पूर्ण पर्यावरण की संरचना में तीन तत्व महत्त्वपूर्ण हैं- भौतिक, जैविक और सामाजिक सांस्कृतिक। इन्हीं संरचनात्मक तत्वों के आधार पर पर्यावरण को तीन वर्गों में विभक्त किया गया है-

  1. भौतिक पर्यावरण
  2. जैविक पर्यावरण
  3. सामाजिक-सांस्कृतिक पर्यावरण

1. भौतिक पर्यावरण

भौतिक पर्यावरण प्राकृतिक तत्वों का अन्योन्याश्रित पुंज है जिसका प्रत्यक्ष प्रभाव मानव एवं समस्त प्राणियों के समस्त क्रियाकलापों पर पड़ता है।

इस भौतिक पर्यावरण के तीन वर्ग है

  1. स्थलमंडलीय पर्यावरण (Lethosphere): पर्यावरण का वह भाग जिसमें रेत, मिट्टी, चट्टाने आदि हैं और जो पेड़-पौधों का पोषण करता है।
  2. जल मंडलीय पर्यावरण (Hydrosphere): पर्यावरण का वह भाग जिसमें जल स्थित है।
  3. वायुमंडलीय पर्यावरण (Atmosphere): स्थलमंडल तथा जलमंडल के ऊपर लगभग 300 किलोमीटर तक फैला हुआ गैसीय वातावरण।

2. जैविक पर्यावरण

पृथ्वी की सतह से लगभग 10 किलोमीटर नीचे और 10 किलोमीटर ऊपर धरती, पानी और वायु का हिस्सा ही जैविक पर्यावरण है जिसे जीवमंडल (Biosphere) भी कहते। जीवमंडल के संदर्भ में पर्यावरण का तात्पर्य उस समूची भौतिक एवं जैविक व्यवस्था से है जिसमें जीवधारी रहते हैं, विकास करते हैं और अपनी स्वाभाविक प्रवृत्तियों के अनुसार क्रियाकलाप करते हैं।

जैविक पर्यावरण के दो वर्ग हैं:

  1. वानस्पतिक (Botanical) पर्यावरणः इसके अन्तर्गत समस्त प्रकार के पेड़-पौधे, वनस्पतियाँ आदि आती है।
  2. जन्तु (Zoological) पर्यावरणः धरती के समस्त पशु-पक्षी, कीट, सरीसृप, मत्स्य एवं मनुष्य जन्तु के अन्तर्गत आते हैं।

3. सामाजिक सांस्कृतिक पर्यावरण

सामाजिक सांस्कृतिक पर्यावरण का सम्बन्ध प्रमुख रूप से मनुष्य जाति से है। वैसे अन्य जीवधारी भी अपने समाज का निर्माण करते हैं परन्तु श्रेष्ठ प्राणी होने के कारण मनुष्य अपने समूहों, समुदायों, रूढ़ियों, परम्पराओं, आदर्शों, मूल्यों तथा सामाजिक विरासत को लेकर एक सामाजिक सांस्कृतिक पर्यावरण का निर्माण करता है।

पर्यावरण के संघटक

पर्यावरण अनेक तत्त्वों का समूह है तथा प्रत्येक तत्त्व का इसमें महत्त्वपूर्ण स्थान है। प्राकृतिक पर्यावरण के तत्त्व ही पारिस्थितिकी के भी तत्त्व हैं, क्योंकि पारिस्थितिकी का एक मूल घटक पर्यावरण है।
सामान्य स्तर पर पर्यावरण के तत्त्वों को जैविक एवं अजैविक दो समूहों में वर्गीकृत किया जाता है-

  1. जैविक घटक
  2. अजैविक घटक

1. जैविक घटक

पर्यावरण के जैविक घटकों के अंतर्गत पौधों, प्राणियों (मानव, जंतु, परजीवी, सूक्ष्मजीव आदि) एवं अवघटकों (Decomposer) को शामिल किया जाता है। पारितंत्र के जैविकीय घटक अजैविक पृष्ठभूमि में परस्पर क्रिया करते हैं और इनमें प्राथमिक उत्पादक (स्वपोषी) एवं उपभोक्ता (परपोषी) आते हैं।

प्राथमिक उत्पादक (Primary Producers) या स्वपोषी (Autotroph)

प्राथमिक उत्पादक जीव, आधारभूत रूप में हरे पौधे, कुछ खास जीवाणु एवं शैवाल (Algae), जो सूर्य के प्रकाश की उपस्थिति में सरल अजैविक पदार्थों से अपना भोजन स्वयं बना सकते हैं। वे स्वपोषी (Autotroph) अथवा प्राथमिक उत्पादक (Primary Producers) कहलाते हैं।

उपभोक्ता (Consumers) या परपोषी (Heterotrophs)

उपभोक्ता वे जीव जो स्वयं अपना भोजन नहीं बना सकते एवं अन्य जीवों से अपना भोजन प्राप्त करते हैं, उन्हें परपोषी (Heterotrophs) अथवा उपभोक्ता (Consumers) कहते हैं। इनके पुनः तीन उपवर्ग होते हैं

  1. प्राथमिक उपभोक्ता – ये शाकाहारी (Herbivores) जन्तु होते हैं।
  2. द्वितीयक उपभोक्ता – ये मांसाहारी (Carnivores) जन्तु होते हैं।
  3. तृतीयक उपभोक्ता या सर्वाहारी (Omnivores) – इसके अन्तर्गत मुख्य रूप से मनुष्य आता है, क्योंकि यह शाकाहारी तथा मांसाहारी दोनों को खाता है।

वियोजक या अपघटक (Decomposers)

वियोजक/अपघटक (Decomposers) ये सक्ष्मजीव होते हैं, जो मृत पौधों जन्तुओं तथा जैविक पदार्थों को वियोजित (सड़ाना-गलाना) करते हैं। इस क्रिया के दौरान ये अपना भोजन भी निर्मित करते हैं तथा जटिल कार्बनिक (जैविक) पदाथा का एक-दूसर से पृथक कर उन्हें सामान्य बनाते हैं जिनका स्वपोषित, प्राथमिक उत्पादक हरे पौधे पनः उपयोग करते हैं। इनमें से अधिकांश जीव सुक्ष्म बैक्टीरिया तथा कवक (Fungi) के रूप म मृदा में रहते हैं।

2. अजैविक घटक

पर्यावरण के अजैविक घटकों में प्रकाश, वर्षण, तापमान, आर्द्रता एवं जल, अक्षांश, ऊँचाई, उच्चावच आदि शामिल होते है। पर्यावरण के प्रमुख अजैविक घटक इस प्रकार हैं:-

  • प्रकाश (Light) हरे पौधों के लिए प्रकाश आवश्यक है, जिसके द्वारा वे प्रकाश संश्लेषण करते हैं। सभी प्राणी प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप में हरे पौधों द्वारा निर्मित भोजन पदार्थ पर ही निर्भर होते हैं। सभी जीवों के लिए सूर्य से आने वाला प्रकाश (सौर ऊर्जा) ही ऊर्जा का अन्तिम स्रोत है।
  • वर्षण (Precipitation) कोहरा, वर्षा, हिमपात अथवा ओलावृष्टि, का एक सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण अजैविक कारक है। अधिकांश जीव सीधे अथवा परोक्ष रूप में किसी-न-किसी प्रकार से वर्षण पर निर्भर होते हैं, जो अधोभमि से होता है। वर्षण की मात्रा अलग-अलग होती है, जो इस प्रकार निर्भर है कि आप पृथ्वी पर कहाँ हैं।
  • तापमान (Temperature) यह पर्यावरण का महत्त्वपूर्ण घटक है, जो जीवों की उत्तर जीविता (Survival) को वृहद रूप से प्रभावित करता है। जीव अपनी वृद्धि हेतु एक निश्चित सीमा तक के तापमान को ही बर्दाश्त कर सकते हैं। उस सीमा से कम या अधिक तापमान की स्थिति में जीवों की वृद्धि रूक जाती है।
  • आर्द्रता एवं जल (Humidity and Water) अनेक पौधों तथा प्राणियों के लिए वाय में नमी का होना अति आवश्यक है, जिससे वे सही कार्य कर सकें। कुछ प्राणी केवल रात में ही अधिक सक्रिय होते हैं, जब आर्द्रता अधिक होती है। जलीय आवास पर, रसायन तथा गैस की मात्रा में होने वाले परिवर्तनों का तथा गहराई में अन्तर आने का प्रभाव पड़ता है।
  • अक्षांश (Latitude) जैसे-जैसे हम विषुवत् रेखा से उत्तर या दक्षिण की ओर बढ़ते जाते हैं वैसे-वैसे सूर्य का कोण भी सामान्यत: छोटा होता जाता है, जिससे औसत तापमान गिरता जाता है।
  • ऊँचाई (Altitude) विभिन्न ऊँचाइयों पर वर्षण तथा तापमान दोनों में भिन्नता पाई जाती है। वर्षण आमतौर से ऊँचाई के साथ बढ़ता जाता है, लेकिन चरम ऊचाइया पर यह कम हो सकता है।
  • उच्चावच (Relief) भू-आकार या उच्चावच पर्यावरण का एक अति महत्त्वपर्ण तत्त्व है। सम्पूर्ण पृथ्वी का धरातल या उच्चावच विविधता से युक्त है। यह विविधता महाद्वीपीय स्तर से लेकर स्थानीय स्तर तक देखी जा सकती है। सामान्यतः उच्चावच के तीन स्वरूप- पर्वत, पठार एवं मैदान हैं।

पर्वत पर एवं मैदान में भी विस्तार, ऊंचाई, संरचना आदि की क्षेत्रीय विविधता होती है तथा अपरदन एवं अपक्षय क्रियाओं से अनेक भू-रूपों या स्थलाकृतियों का जन्म हो जाता है; जैसे-कहीं मरुस्थलीय स्थलाकृति है, तो कहीं चूना प्रदेश की और यदि एक और हिमानीकृत है, तो दूसरी ओर नदियों द्वारा निर्मित मैदानी डेल्टाई प्रदेश।

पर्यावरण का महत्त्व

  • सम्पूर्ण पर्यावरण में तीन प्रमुख विशेषताएँ परिलक्षत होता हैं। पर्यावरण के तत्वों की अन्योन्याश्रितता, सीमित क्षमता, तथा जटिल सम्बन्धी प्रकृति के निर्माण में असंख्य तत्वों का योगदान होता है।
  • ये सभी तत्व एक-दूसरे पर निर्भर होते हैं, इन सभी तत्वों की मात्रा सीमित एवं सुनिश्चित होती है तथा इनका एक-दूसरे से केवल सरल और प्रत्यक्ष सम्बन्ध ही नहीं होता बल्कि अप्रत्यक्ष एवं जटिल सम्बन्ध भी होता है।
  • अन्योन्याश्रितता (Interdependence) के कारण ही किसी प्राणी की सत्ता अन्य असंख्य प्राणियों के अस्तित्व पर निर्भर करती है। वस्तुतः इस दृष्टि से मानव स्वतंत्र नहीं है।
  • यदि पेड़-पौधे ऑक्सीजन उत्पन्न करना बन्द कर दें तो मनुष्य तथा जीव-जन्तु बच नहीं पायेंगे। पेड़-पौधों के विभिन्न अवयन मिट्टी की उर्वरता बढ़ाते हैं और मिट्टी के जीवांश पेड़-पौधों का पोषण करते हैं।
  • पेड़-पौधों भी अपने में स्वतंत्र नहीं है। मिट्टी के बैक्टीरिया एवं सूक्ष्म जीवन उसे लाभ पहुँचाते हैं। वृक्ष भी असंख्य जीव घटकों के कारण ही जीवित है।

सम्बंधित लेख

इसे भी देखे ?

सामान्य अध्यन

वस्तुनिष्ठ सामान्य ज्ञान

  • प्राचीन भारतीय इतिहास
  • मध्यकालीन भारतीय इतिहास
  • आधुनिक भारत का इतिहास
  • भारतीय राजव्यवस्था
  • पर्यावरण सामान्य ज्ञान
  • भारतीय संस्कृति
  • विश्व भूगोल
  • भारत का भूगोल
  • भौतिकी
  • रसायन विज्ञान
  • जीव विज्ञान
  • भारतीय अर्थव्यवस्था
  • खेलकूद सामान्य ज्ञान
  • प्रमुख दिवस
  • विश्व इतिहास
  • बिहार सामान्य ज्ञान
  • छत्तीसगढ़ सामान्य ज्ञान
  • हरियाणा सामान्य ज्ञान
  • झारखंड सामान्य ज्ञान
  • मध्य प्रदेश सामान्य ज्ञान
  • उत्तराखंड सामान्य ज्ञान
  • उत्तर प्रदेश सामान्य ज्ञान

Exam

GS

Current

MCQ

Job

Others

© 2022 Tyari Education.