पर्यावरण के भौतिक तत्व में सबसे अधिक प्रभाव जलवायु मानव समाज और उनकी जीवन-शैली पर पड़ता है।
पर्यावरण का मानव पर प्रभाव
- वायु का प्रभाव प्रत्यक्ष रूप से प्रजातियों (Races) के रंगरूप, आँख, नाक शरीर की बनावट, बाल ठोढ़ी, कपाल तथा चेहरे की आकृति पर पड़ता है। अरस्तू महोदय (Aristotle) के अनुसार ठंडे प्रदेशों के लोग बुद्धिमान परंतु आलसी होते हैं। प्रसिद्ध अरब इतिहासकार इवने- खल्दून के अनुसार ठंडी जलवायु के लोगों में सजीवता (vivacity) का अभाव है, जबकि उष्णकटिबंध के लोग सजीव तथा हँसमुख तथा मिलनसार होते हैं।
- जलवायु का मानव समाज पर प्रभाव का अध्ययन उचित ढंग से अमेरिका के हंटिंगटन महोदय ने किया। हटिंगटन महोदय के अनुसार, शीतोष्ण जलवायु प्रदेशों में जहाँ चक्रवाती मौसम रहता है, तापमान 20°C के आस-पास और सापेक्षिक आर्द्रता (Relative Humidity) 60 प्रतिशत से अधिक रहती है, वहाँ के लोगों की कार्यक्षमता बढ़ी रहती है और अधिक एकाग्रता (concentration) के साथ कार्य करते हैं। यही कारण है कि शीतोष्ण जलवायु के लोगों का उत्पादन अधिक एवं उच्च कोटि का होता है।
- मानव भूगोल के विशेषज्ञों के अनुसार मौसम तथा अपराधों में भी एक घनिष्ठ संबंध है। उदाहरण के लिए आत्महत्या, कत्ल जैसे अपराध एक विशेष समय तथा मौसम में होते हैं। कत्ल जैसे अपराध प्रायः गर्मी के मौसम में अधिक होते हैं जबकि बलात्कार की घटनाएं शीतऋतु में संध्या के समय अधिक होती हैं। बहुत से भूगोलवेत्ताओं ने मानव के सुखद एवं दुःखद जीवन का भी जलवायु के परिप्रेक्ष्य में अध्ययन करने का प्रयास किया है।
- मानव अपने प्रयास तथा टेक्नॉलॉजी की सहायता से मौसम व जलवायु के प्रभाव को परिवर्तित कर सकता है, परंतु फिर भी मानव अपने भोजन, कपड़े तथा मकान जैसी आवश्यक आवश्यकताओं की आपूर्ति अपनी जलवायु तथा संसाधनों के अनुसार करता है।
- वास्तव में विश्व की लगभग 50 प्रतिशत जनसंख्या गाँव में रहती है और उनमें से अधिकतर प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से कृषि इत्यादि (Primary activities) पर निर्भर करते हैं।
- कृषि और कृषि संबंधित कारोबार पर मौसम एवं जलवायु का भारी प्रभाव पड़ता है। संक्षिप्त में कहा जा सकता है कि मानव की आवश्यक और आरामदेह आवश्यकताएँ, टेक्नोलॉजी तथा आर्थिक उन्नति, सामाजिक प्रगति पर जलवायु का गहरा प्रभाव पड़ता है।
मानव का पर्यावरण पर प्रभाव
- पर्यावरण में निरंतर परिवर्तन होता रहता है अर्थात् पर्यावरण सदैव गतिशील है। लगभग 4.6 बिलियन वर्ष पूर्व जब पृथ्वी की उत्पत्ति हुई तब ही से पृथ्वी के धरातल एवं पर्यावरण में परिवर्तन होता है।
- पृथ्वी के अधिकतर इतिहास में पृथ्वी के अंतर्जात तथा बहिंजात बलों के कारण तब्दीली होती रही है, परंतु वर्तमान में पृथ्वी और पर्यावरण में भारी परिवर्तन मानव के द्वारा हो रहा है। वास्तव में वर्तमान समय में मानव पर्यावरण का सबसे प्रमुख कारक है।
- मानव अब अपने पर्यावरण की उत्पत्ति नहीं वरन् वह पर्यावरण का एक ऐसा महत्त्वपूर्ण अंग है जो तीव्र गति से इसमें परिवर्तन कर रहा है। यूँ तो मानव आदि काल से पर्यावरण को तब्दील करता रहा है, फिर भी आज के युग में परिवर्तन की गति में भारी तीव्रता देखी जा सकती है।
- विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी (Technology) की सहायता से मानव अपने पर्यावरण में तीव्रता से परिवर्तन करने में सक्षम हो गया है। महानगरों एवं सन्न नगरों में मानव द्वारा लाई गई तब्दीली विशेष रूप से देखी जा सकती है। महानगरों ने प्राकृतिक पर्यावरण को पूर्ण रूप से परिवर्तन कर दिया है।
- मानव भूगोल के विशेषज्ञ, वास्तविक (objectivs) पर्यावरण तथा ज्ञानात्मक (cognitive) पर्यावरण में अंतर करते हैं। उनके अनुसार मानव अपने संसाधनों का उपयोग अपने ज्ञानात्मक पर्यावरण के आधार पर करता है। उदाहरण के लिये एक खेत (संसाधन) को विभिन्न प्रकार से उपयोग में लाया जा सकता है।
- उस खेत में कोई सब्जी बोना चाहता है तो कोई उसमें गेहूँ, चावल अथवा गन्ने की खेती करना चाहता है और कोई ऐसे खेत में पशु-पालन करना चाहता है अर्थात् वास्तविक पर्यावरण एक है, परंतु उसका उपयोग करने वाले उसका उपयोग अपने-अपने ज्ञानात्मक पर्यावरण के आधार पर करता है।
वर्तमान समय में भूगोलवेत्ता, पर्यावरण के संबंध में निम्न विषयों अध्ययन कर रहे हैं-
- मानव द्वारा पर्यावरण में तापमान वृद्धि।
- वायुमंडल में तापमान वृद्धि तथा जलवायु परिवर्तन।
- ओजोन परत (Ozone Layer) का हास।
- महानगरों तथा अन्य स्थानों पर वायु प्रदूषण
- प्राकृतिक आपदाओं का अध्ययन, विशेष रूप से भूकंप, सुनामी (Tsunami) ज्वालामुखी, ऊष्णकटिबंधीय चक्रवात, हरिकेन (Hurricanes), टाइफून (Typhoons) सागरीय लहरों का थल में चढ़ना (Sea Surge), भू-स्खलन (Land-slide), सूखा (Drought) बाढ़ (Floods) इत्यादि।
- मानव द्वारा जंगलों का विनाश ।
- जैविक विविधता का हास।
- नाभिकीय ऊर्जा (Nuclear Energy) उत्पादन केंद्रों में होने वाली दुर्घटनाएँ, जैसे-1986 में चर्नोबिल (Chornobyl) दुर्घटना तथा । मार्च 2011 में जापान की भूकंप सुनामी दुर्घटना जिसमें फूकूशिया-डायशी (Fukushima-Daiichi) न्यूक्लियर प्लांट नष्ट हो गए थे।
- जैविक विविधता (Biodiversity) का विनाश तथा उसका संरक्षण (Conservation) |
- संसाधनों का सदुपयोग तथा उनका संरक्षण
- प्राकृतिक संसाधनों का लेखा-जोखा तैयार करना।
- जैविक विविधता का लाभ समाज के सभी वर्गों तक पहुँचाना।
FAQs
पर्यावरण का मानव पर क्या प्रभाव पड़ता है?
वायु का प्रभाव प्रत्यक्ष रूप से प्रजातियों (Races) के रंगरूप, आँख, नाक शरीर की बनावट, बाल ठोढ़ी, कपाल तथा चेहरे की आकृति पर पड़ता है। अरस्तू महोदय (Aristotle) के अनुसार ठंडे प्रदेशों के लोग बुद्धिमान परंतु आलसी होते हैं। प्रसिद्ध अरब इतिहासकार इवने- खल्दून के अनुसार ठंडी जलवायु के लोगों में सजीवता (vivacity) का अभाव है, जबकि उष्णकटिबंध के लोग सजीव तथा हँसमुख तथा मिलनसार होते हैं
मानव का पर्यावरण पर क्या प्रभाव है?
पर्यावरण में निरंतर परिवर्तन होता रहता है अर्थात् पर्यावरण सदैव गतिशील है। लगभग 4.6 बिलियन वर्ष पूर्व जब पृथ्वी की उत्पत्ति हुई तब ही से पृथ्वी के धरातल एवं पर्यावरण में परिवर्तन होता है। पृथ्वी के अधिकतर इतिहास में पृथ्वी के अंतर्जात तथा बहिंजात बलों के कारण तब्दीली होती रही है, परंतु वर्तमान में पृथ्वी और पर्यावरण में भारी परिवर्तन मानव के द्वारा हो रहा है। वास्तव में वर्तमान समय में मानव पर्यावरण का सबसे प्रमुख कारक है।