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सिन्धु घाटी की सभ्यता

सिन्धु घाटी की सभ्यता

सिन्धु सभ्यता आद्य-ऐतिहासिक काल की सभ्यता थी। आद्य-ऐतिहासिक काल इसे इसलिए कहा जाता है क्योंकि सिन्धु लिपि को अब तक नहीं पढ़ा जा सका है। यह आश्चर्यजनक सांस्कृतिक उपलब्धियों का प्रतिनिधित्व करता है। यह पुरातन तथा आधुनिक भारतीय सभ्यता के कुछ महत्त्वपूर्ण आयामों के दृष्टिकोण से भी महत्त्वपूर्ण है।

सिन्धु घाटी का काल निर्धारण 

एच. हेरास ने नक्षत्रीय आधार पर इसकी उत्पत्ति का काल 6000 ई.पू. माना है। मेसोपोटामिया में 2350 ई.पू. का सरगॉन का अभिलेख मिला है, उसके आधार पर इसकी समयावधि 3250-2750 ई.पू. मानी गयी है। जॉन मार्शल ने 3250-2750 ई.पू. में इसका काल निर्धारित किया है जबकि अर्नेस्ट मैके ने 2800-2500 ई.पू. को इसका काल माना है।

माधोस्वरूप वत्स ने 3500-2700 ई.पू. और सी.जे. गैड ने 2300-1750 ई.पू. इसका काल माना है। माटींसर व्हीलर 2500-1500 ई.पू. को इस सभ्यता का काल मानते हैं जबकि फेयर सर्विस 2000-1500 ई.पू. को। रेडियो कार्बन पद्धति के अनुसार, इसका समय 2350 ई.पू. से 1750 ई.पू. माना गया है। इस संदर्भ में ऐसा माना जाता है कि इसका काल लगभग 2600 ई.पू. एवं 1900 ई.पू. के बीच निर्धारण किया जा सकता है।

सिन्धु घाटी का नामकरण

इसके लिए कई नाम प्रचलित हैं, यथा, सिन्धु घाटी की सभ्यता, सिन्धु सभ्यता, हड़प्पा सभ्यता और हाल में इसके लिए सिन्धु-सरस्वती सम्पदा जैसे नामकरण पर बल दिया जाने लगा है किन्तु हड़प्पा सभ्यता नाम अधिक उपयुक्त प्रतीत होता है क्योंकि पुरातात्विक उत्खनन के पश्चात् किसी सभ्यता का नामकरण प्रथम उत्खनित स्थल के आधार पर किया जाता रहा है।

प्राप्त पुरातात्विक स्रोत

हमें पुरातात्विक स्रोत से ही मुख्यतः इस सभ्यता का अभिज्ञान प्राप्त होता है क्योंकि इस सभ्यता के बारे में कोई साहित्य उपलब्ध नहीं है। मुहर, टेरीकोटा फिगर्स (मृण्मूर्तियाँ), चक्र की आकृति, महल और खण्डहर, मेसोपोटामिया से प्राप्त बेलनाकार मुहर, लोथल से प्राप्त एक छोटी बेलनाकार मुहर, 2350 ई.पू. की मेसोपोटामिया की मुहर, मोहनजोदड़ो से प्राप्त एक वाट और लोथल से प्राप्त हाथी दाँत के माप का पैमाना आदि स्रोत उल्लेखनीय हैं।

सिन्धु घाटी का उद्भव
  • इस सभ्यता के उद्भव पर विद्वानों में मतैक्य नहीं है। कुछ विद्वानों ने प्रारम्भ में इसकी उत्पत्ति पश्चिमी एशिया (मेसोपोटामिया) में ढूंढ़ने का प्रयास किया, जबकि कुछ पुराविदों ने इसका उद्गम ईरान-बलूची-सिंध संस्कृतियों से माना है। अर्वाचीन भारतीय पुराविदों ने भारत की ग्रामीण संस्कृतियों में इसका स्रोत ढूंढने का प्रयास किया है। संस्कृति का विकास मेसोपोटामिया में कालक्रम की दृष्टि से हड़प्पा संस्कृति से पहले हुआ था।
  • इसलिए विद्वानों का इसके प्रभाव से प्रभावित होना स्वाभाविक है, पर विद्वानों में इस पर पर्याप्त मतभेद है। इस सभ्यता का विकास मेसोपोटामिया के प्रभाव से हुआ, इस विचार के प्रवर्तक हैं- मॉर्टीमर व्हीलर, गॉर्डन चाइल्ड, लियोनार्ड बूली, डी.डी. कौशांबी, क्रेमर।
  • इसके विपक्ष में कहना है कि मेसोपोटामिया में स्पष्ट रूप से पुरोहितों का शासन था, सिन्धु सभ्यता में यह स्पष्ट नहीं है। मेसोपोटामिया की लिपि कीलनुमा लिपि है; जबकि सिन्धु सभ्यता के लोग चित्रलेखात्मक लिपि का प्रयोग करते थे।
सिन्धु घाटी का विस्तार
  • जम्मू में मांडा और पंजाब में रोपड़ सिंध सभ्यता की उत्तरी सीमा के सूचक है, और बड़गाँव, मनपुर एवं आलमगीरपुर इसका पूर्वीय स्थल है। दक्षिण में गुजरात क्षेत्र में लोथल, रंगपुर, रोजड़ी, प्रभासपट्टन तथा नर्मदा-ताप्ती नदियों के तट पर भगतराव, मालवण, मेघम, तेलोद में सैन्धव अवशेष पाए गए हैं।
  • सिंधु संस्कृति का पश्चिमी स्थल पाकिस्तान से सतुकांगेडोर (सुतकगेन्दर) ईरान की सीमा से 40 कि.मी. पूर्व एवं अरब सागर से लगभग 50 कि.मी. उत्तर की ओर स्थित है। हाल ही में, कच्छ में एक नवीन स्थल से सैन्धव सभ्यता के अवशेष प्राप्त हुए हैं,उत्तरी बलूचिस्तान में डाबरकोट और मेहरगढ़ महत्त्वपूर्ण स्थल हैं।
सिंधु सभ्यता के विकास के चरण
  • नवपाषाण काल (5500-3500 ई.पू.)- इस काल में बलूचिस्तान और सिंधु के मैदानी भागों में स्थित मेहरगढ़ और किली गुल मुहम्मद जैसी बस्तियाँ उभरीं। खेती की शुरूआत हुई, स्थायी गाँव बसे।
  • पूर्व हड़प्पा काल (3500–2600 ई.पू.)- ताँबा, चाक एवं हल का प्रयोग हुआ। अन्नागारों का निर्माण हुआ। ऊंची-ऊँची दीवारें बनीं। सुदूर व्यापार की शुरूआत हुई।
  • पूर्ण विकसित हड़प्पा युग (2600-1800 ई.पू.)- सम्पूर्ण विकसित क्षेत्र 12,99,600 वर्ग कि.मी. था। यह पूरब से पश्चिम 1600 कि.मी. एवं उत्तर से दक्षिण 1400 कि.मी. था। हड़प्पा सभ्यता से संबद्ध लगभग 1400 स्थल प्रकाश में आए हैं। इनमें लगभग 6 अथवा 7 स्थलों को नगर का दर्जा दिया जाता हैं। उत्तरी क्षेत्र जम्मू में मांडा, दक्षिण में दैमाबाद, पश्चिम में सुत्कागेडोर और 3 पूरब में आलमगीरपुर इसकी सीमा है। इस सभ्यता के अवशेष पाकिस्तान और भारत के पंजाब, सिंध, बलूचिस्तान, उ.प्र. सीमांत, बहावलपुर, राजस्थान, हरियाणा, गंगा-यमुना में दोआब, जम्मू, गुजरात और उत्तरी अफगानिस्तान से प्राप्त हुए हैं।
सिन्धु घाटी सभ्यता के स्थल 
  1. सिंध- मोहनजोदड़ो चांहुदड़ो, जुडेरजोदड़ो, आमरी, कोटदीजी, अलीमुराद।
  2. पंजाब- हड़प्पा, रोपड, बारा, संघोल।
  3. हरियाणा- राखीगढ़ी, मिताथल, बनवाली।
  4. राजस्थान- कालीबंगा।
  5. जम्मू- मांडा।
  6. गंगा-यमुना, दोआब- आलमगीरपुर, हुलास।
  7. गुजरात- देशलपुर, सुरकोटड़ा, धौलावीरा (कच्छ प्रदेश) काठियावाड्-रंगपुर, रोजदी, लोथल, मालवण (सूरत) भगवतरव।
  8. बलूचिस्तान- सुत्कागेडोर, सुतकाकोह, बालाकोट, डाबरकोट, राणां घुंड।
  9. बहावलपुर- कुडवालाथेर।
  10. अफगानिस्तान- शोर्तुघई।
  11. उ. प्र. सीमाप्रांत।
  12. गोमल घाटी- रहमान ढेरी।
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FAQs

सिन्धु घाटी का काल कब से कब तक है?

सिन्धु घाटी का काल रेडियो कार्बन पद्धति के अनुसार, इसका समय 2350 ई.पू. से 1750 ई.पू. माना गया है।

सिन्धु घाटी की सभ्यता को और किस नाम से जानते है?

इसके लिए कई नाम प्रचलित हैं, यथा, सिन्धु घाटी की सभ्यता, सिन्धु सभ्यता, हड़प्पा सभ्यता और हाल में इसके लिए सिन्धु-सरस्वती सम्पदा जैसे नामकरण पर बल दिया जाने लगा है

सिन्धु घाटी का विस्तार कहा तक है?

सिन्धु घाटी का विस्तार जम्मू में मांडा और पंजाब में रोपड़ सिंध सभ्यता की उत्तरी सीमा के सूचक है, और बड़गाँव, मनपुर एवं आलमगीरपुर इसका पूर्वीय स्थल है। दक्षिण में गुजरात क्षेत्र में लोथल, रंगपुर, रोजड़ी, प्रभासपट्टन तथा नर्मदा-ताप्ती नदियों के तट पर भगतराव, मालवण, मेघम, तेलोद में सैन्धव अवशेष पाए गए हैं।

सिंधु घाटी सभ्यता के विकास के कितने चरण है?

सिंधु सभ्यता के विकास के चरण-

  1. नवपाषाण काल (5500-3500 ई.पू.)- इस काल में बलूचिस्तान और सिंधु के मैदानी भागों में स्थित मेहरगढ़ और किली गुल मुहम्मद जैसी बस्तियाँ उभरीं।
  2. पूर्व हड़प्पा काल (3500–2600 ई.पू.)- ताँबा, चाक एवं हल का प्रयोग हुआ। अन्नागारों का निर्माण हुआ। ऊंची-ऊँची दीवारें बनीं। सुदूर व्यापार की शुरूआत हुई।
  3. पूर्ण विकसित हड़प्पा युग (2600-1800 ई.पू.)- सम्पूर्ण विकसित क्षेत्र 12,99,600 वर्ग कि.मी. था।

सिन्धु घाटी किस काल की सभ्यता थी?

सिन्धु घाटी की सभ्यता आद्य-ऐतिहासिक काल की सभ्यता थी, आद्य-ऐतिहासिक काल इसे इसलिए कहा जाता है क्योंकि सिन्धु लिपि को अब तक नहीं पढ़ा जा सका है।

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