सिन्धु घाटी सभ्यता की कला और शिल्प व्यवस्था कुछ इस प्रकार की थी –
मुहर- सिंधु सभ्यता में लगभग 2500 मुहरें प्राप्त हुई हैं। यह प्रायः आयताकार या वर्गाकार है। पशु के चित्र के साथ लिपि वर्गाकार मुहर पर उत्कीर्ण है, जबकि आयताकार मुहर पर केवल लिपि उत्कीर्ण है। अधिकांश मुहरें सेलखड़ी बनी हुई पाई गई हैं। हालांकि डॉ. मजूमदार का मानना है कि ये मुहरें हाथी दांत की बनी होती थीं।
इनका प्रयोग दो तरह से होता था। अपनी वस्तुओं की पहचान के लिए संभवतः उच्च वर्ग के लोग इनका व्यापार करते थे। संभवतः सिक्कों की तरह इसका प्रयोग होता था। इन पर एक ऋंगी पशु, भैस, बाघ, बकरी और हाथी की आकृति उकेरी जाती थी। सबसे अधिक संख्या एक ऋंगी पशुओं की है।
अनेक तरह के जानवरों के आकार मुहरों पर चित्रलिपि में संकेत चिन्हों के साथ बने होते थे। कुछ मुहरों पर केवल लिपि उत्कीर्ण है जबकि कुछ अन्य पर मानव एवं अर्धमानव आकृतियाँ उत्कीर्ण हैं। कुछ मुहरों पर ज्यामिति से सम्बंधित विभिन्न नमूने बने हैं। दर्शायी गयी पशु आकृति में भारतीय हाथी, सांड, गैंडा और बघ प्रमुख हैं।
व्याघ्र चित्रण केवल सिंध प्रदेश के स्थलों में हुआ है। सिंध प्रदेश के बाहर केवल कालीबंगा की मुहर पर ही बघ का चित्रण मिलता है। तिन घड़ियाल एवं एक मछली का चित्र चान्हूँदड़ो की एक मिट्टी की मुद्रा पर बना है। हडप्पा की एक मुद्रा पर एक गरुड़ और एक दूसरी मुद्रा पर एक खरगोश का चित्र है। मोहनजोदड़ो की एक मुद्रा पर पशुपति शिव का चित्र अंकित है। गणेश का भी चित्र है। सिंह का चित्र सिंधु सभ्यता की मुद्रा पर नहीं मिलता है। यह मेसोपोटामिया की मुद्रा पर मिलता है। लोथल की एक मुद्रा पर बीज बोने के यंत्र जैसी आकृति अंकित है।
विभिन्न मुद्राओं पर कुछ वृक्षों के चित्र भी अंकित हैं जिनमें पीपल और बबूल प्रमुख हैं। मैके महोदय ने एक वृक्ष की पहचान झंडी से की है। कुछ मुद्राओं पर स्वास्तिक के चिह्न अंकित हैं। लोथल में छोटे आकार की मुद्राएँ साधारण मुद्राओं के साथ प्रारंभ से लेकर अंत तक के चरण में मिलती हैं। आलमगीरपुर से कोई मुद्रा प्राप्त नहीं हुई है। रोपड़ से एक मुद्रा प्राप्त हुई है।
सुरकोटड़ा से भी एक मुद्रा और कालीबंगा से आठ मुद्राएँ प्राप्त हुई हैं। दूसरी ओर हड़प्पा, मोहनजोदड़ो एवं लोथल से विशाल संख्या में मुद्रायें मिली हैं। मोहनजोदड़ो से लगभग 1200 मुहरें मिली हैं। मुहरों का आकार लगभग 1 (एक) सेंटीमीटर से 5 सेंटीमीटर के बीच होता था। सेलखड़ी के अतिरिक्त कांचली मिट्टी, गोमेद और चर्ट आदि की मुद्रा बनायी जाती थी। लोथल और देशलपुर से तांबे की मुद्राएं भी मिली हैं।
मनके (Bead)- हड़प्पा सभ्यता के लोग गोमेद, फिरोजा, लाल पत्थर और सेलखड़ी जैसे बहुमूल्य एवं अर्द्ध कीमती पत्थरों से बने अति सुन्दर मनके का प्रयोग करते थे। मनका बनाने वाली फैक्ट्री का कार्यस्थल चांहुदड़ो और लोथल से उद्घाटित हुए हैं। सोने और चांदी के मनके भी पाए गये हैं। गहनों का ढेर मोहनजोदडो में भी पाया गया है। इसमें सोने के मनके और अन्य आभूषण भी शामिल हैं। इसके अलावा चांदी की थालियां भी पाई गयी हैं।
मृण्मूर्तियाँ (टेराकोटा फिगर्स)- संभवत: खिलौनों या पूज्य प्रतिमाओं के रूप में इनका प्रयोग होता था। इन पर पशुओं, पक्षियों, पुरुषों एवं स्त्रियों के चित्र उकेरे गए हैं। इनमें तीन चौथाई मृण्मूर्तियों पर पशुओं के चित्र मिलते हैं। इनका निर्माण मिट्टी (पक्की हुई) से हुआ है। पशु पक्षियों में बैल, भैसा, भेड़, बकरा, बाघ, सूअर, गैंडा, भालू, बन्दर, मोर, तोता, बत्तख एवं कबूतर की मृण्मूर्तियाँ प्राप्त हुई हुई हैं।
इसके अलावा बैलगाड़ी और ठेलागाडी की आकृति भी मिली हैं। टेराकोटा में कुबड़ वाले सांड की आकृति विशेष रूप से मिलती हैं। घोड़े साक्ष्य मोहनजोदड़ो की एक मृण्मूर्ति से मिलता है। कुछ मृण्मूर्तियों में अर्द्धमानव की आकृति भी बनी है अर्थात् कुछ जानवर के मुख मानव के बने हैं। मानव मृण्मूर्तियाँ ठोस हैं, परन्तु पशुओं की खोखली हैं।
अधिकतर मृण्मूर्तियाँ हाथ से बनी हैं। किन्तु कुछ सांचे में भी ढाले गए हैं। जल जन्तुओं में घड़ियाल, कछुआ और मछली की मृण्मूर्तियाँ हड़प्पा से प्राप्त होती हैं। हड़प्पा एवं मोहनजोदड़ो की मृण्मूर्तियों में गाय की आकृति नहीं है। पुरुषों की तुलना में स्त्रियों की संख्या अधिक है। यह महत्त्वपूर्ण बात है। रंगनाथ राव ने लोथल से गाय की दो मृण्मूर्तियाँ प्राप्त होने का उल्लेख किया है।
धातु की बनी मूर्तियाँ- अब तक यह मोहनजोदड़ो, चाँहुदड़ो, लोथल एवं कालीबंगा से प्राप्त हुई हैं। कांस्य की एक नग्न नर्तकी की मूर्ति मोहनजोदड़ो एवं चाँहुदड़ो से मिली है। इसके गले में कंठहार सुशोभित था। चाँहुदड़ो और हड़प्पा से कांसे की एक एक्का गाड़ी मिली है। लोथल से तांबे के बैल की आकृति प्राप्त हुई है। कालीबंगा से भी तांबे के बैल की आकृति मिली है।
प्रस्तर कला- प्रस्तर कला में हड़प्पा सभ्यता पिछड़ी हुई थी। उपलब्ध पाषाण मूर्तियाँ, अलबस्टर, चूना पत्थर, सेलखड़ी, बलुआ पत्थर और स्लेटी पत्थर से निर्मित है। सभी मूर्तियां लगभग खंडित अवस्था में प्राप्त हुई हैं।
सिंधु सभ्यता की कला की सीमाएँ- सिन्धु सभ्यता में पायी गयी कलाकृतियों की संख्या सीमित हैं। इनमें अभिव्यक्ति की उतनी विविधता नहीं है जितनी मिस्र और मेसोपोटामिया की समकालीन संस्कृतियों में पाई गयी है।