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सिन्धु घाटी सभ्यता की प्रशासन व्यवस्था

सिन्धु घाटी सभ्यता की प्रसाशनिक व्यवस्था

सिन्धु घाटी सभ्यता की प्रशासन के अन्य पहलुओं के बारे में निश्चित रूप से यह कहना कठिन है कि सिन्धु सभ्यता की राजनैतिक व्यवस्था का स्वरूप क्या था? किन्तु इस सभ्यता का सुविशद विस्तार-क्षेत्र तथा सुव्यवस्थित नगर विन्यास योजना यानि टाउन प्लानिंग के आधार पर यह कहा जा सकता है कि सिन्धु सभ्यता की राजनैतिक व्यवस्था भी सुगठित और विकसित थी। मैके महोदय ने एक प्रकार की प्रतिनिध्यात्मक सरकार की कल्पना की है। जर्मन विद्वान् वाल्टर रूबन एवं रूसी विद्वान् वी.वी. स्टुर्ब का मानना है कि सिंधु सभ्यता का प्रशासन गुलामों पर आधारित होता था। स्टुअर्ट पिगॉट का मानना है कि हड़प्पा और मोहनजोदड़ो सिंधु सभ्यता की दो राजधानियाँ थीं और यहाँ पर संभवत: पुरोहितों का शासन था।

सिन्धु घाटी सभ्यता की राजनीतिक विशेषता 
  • राजनीतिक संगठन के बारे में सिन्धु क्षेत्र में कोई स्पष्ट प्रमाण नहीं मिले हैं। राजभवन जैसे कोई विशाल भवन भी अवशेष के रूप में यहां नहीं मिले हैं, जिसके आधार पर राजनीतिक अध्ययन किया जा सके। 
  • किसी विशाल मंदिर और उसके प्रधान देवता की भी जानकारी नहीं हो पायी है, जिसके आधार पर यह अनुमान किया जाए कि यहां का प्रधान शासक कोई पुरोहित था। 
  • अवशेष के रूप में जहां विशाल स्नानागार मिला है उसी के समीप कुछ भवनों के अवशेष भी मिले हैं। इसे कुछ लोग राजभवन की संज्ञा देते हैं लेकिन यह विचार ठीक नहीं लगता। असल में इन भवनों में मात्र एक विशाल कमरे की जानकारी होती है और एक ही विशाल कमरे के आधार पर इसे राजभवन कहना उचित प्रतीत नहीं होता।
  • भवनों का निर्माण भी यहां लगभग एक ही प्रकार का होता था। यहां पायी गयी मूर्तियों में भी एकरूपता पायी गयी है तथा लिपि का प्रचार भी एक ही तरह का था। उपर्युक्त तथ्यों के आधार पर ऐसा लगता है कि यहां एक व्यवस्थित शासन संगठन था। 
  • इस क्षेत्र में पाये गये नगरों की योजनाओं को देखकर यह कहा जा सकता है कि यहां नगरपालिका संगठन भी था जो राजनीतिक व्यवस्था का ही एक अंग है। नगरपालिका होने के कारण ही वहां गलियों तथा सड़कों की रक्षा एवं नालियों की समुचित व्यवस्वथा थी। अतएव विद्वानों का मत है कि यहां एक विशाल राजनीतिक संगठन था। 
  • ह्वीलर ने उत्खनन के आधार पर वहां की शासन व्यवस्था को मध्यवर्गीय जनतांत्रिक शासन कहा है। उसके अनुसार “चाहे कहीं से भी उपर्युक्त तथ्य ज्ञात हुआ हो, धार्मिक प्रवृत्ति की प्रमुखता तो स्वीकार करनी ही होगी। 
  • सुमेर और अक्कड़ के पुरोहित राजा के समान हड़प्पा के मालिक भी अपने नगरों पर शासन करते थे। मंदिर के मुख्य देवता के ही हाथ में सुमेर नगर का अनुशासन और धन रहता था। यहां के देवता को पुरोहित राजा कहा जाता था।” सुमेर की शासन प्रणाली को इतिहासकार हण्टर द्वारा राजतांत्रिक प्रणाली कहा गया है। 
  • सिन्धु घाटी सभ्यता में जनतांत्रिक शासन प्रणाली प्रचलित थी, इसका अनुमान सिन्धु क्षेत्र में पाये गये विशाल स्नानागार से सटे हुए भवनों के आधार पर किया जा सकता है। विद्वानों का कहना है कि यहां के नगर के व्यक्ति इस विशाल भवन में अपने प्रतिनिधियों का निर्वाचन करने के लिए एकत्र हुआ करते थे। 
  • विशेष महत्त्वपूर्ण समस्याओं पर विचार करने के लिए भी वे इस भवन में एकत्रित होते थे। वैसे यह स्पष्ट नहीं हो सका कि शासन की लगाम एक संवैधानिक राजा के हाथ में थी या जनता के प्रतिनिधियों के हाथ में शासन में विकेन्द्रीकरण जैसी व्यवस्था शायद थी।
  • सिन्धु घाटी के लोग युद्धप्रिय नहीं थे, यह प्रमाण तो उत्खनन से प्राप्त सामग्री के आधार पर ही हो चुका है। उनकी सभ्यता शान्तिप्रधान थी। खुदाई से प्राप्त अस्त्र-शस्त्र का अध्ययन करने पर पता चलता है कि ये ताम्बे एवं कांसे के बने रहते थे। ये औजार अधिक तीक्ष्ण नहीं थे।
  • सिन्धु घाटी के निवासी ऋग्वैदिक काल के समान तलवार, कवच, शिरस्त्राण आदि का प्रयोग नहीं करते थे। इन सब औजारों से ये अनभिज्ञ थे। यहां के निवासियों को शांतिमय जीवन व्यतीत करने में ज्यादा विश्वास था। फलतः कहा जा सकता है कि सिन्धु काल में शासन व्यवस्था अच्छी थी। अशान्ति एवं राजनीतिक अशांतियों से यह मुक्त था। 
  • युद्ध प्रिय नहीं रहने के कारण ही अगर बाहर की जातियों ने इन पर आक्रमण करके इन्हें परास्त कर दिया हो तो कोई आश्चर्य नहीं।
 सिन्धु घाटी सभ्यता की लिपि
  • 1853 ई. में सर्वप्रथम सिंधु लिपि का साक्ष्य मिला, 1923 ई. से यह लिपि संपूर्ण रूप में प्रकाश में आई।
  • इस लिपि में लगभग 64 मूल चिह्न हैं एवं 250-400 तक अक्षर हैं जो सेलखड़ी की आयताकार मुहरों एवं तांबे की गुटिकाओं आदि पर मिलते हैं।
  • लिपि चित्राक्षर थी, यह लिपि बाउसट्रोफेन्डम लिपि कहलाती है।
  • यह दाएँ से बाएँ और पुन: बाएँ से दाएँ लिखी जाती है, यह लिपि अत्यंत छोटे-छोटे अभिलेखों में मिलती है, इस लिपि में प्राप्त सबसे बड़े लेख में लगभग 17 चिह्न थे।
इन्हें भी देखे 
FAQs

सिन्धु घाटी सभ्यता की लिपि कैसी थी?

इस लिपि में लगभग 64 मूल चिह्न हैं एवं 250-400 तक अक्षर हैं जो सेलखड़ी की आयताकार मुहरों एवं तांबे की गुटिकाओं आदि पर मिलते हैं। लिपि चित्राक्षर थी, यह लिपि बाउसट्रोफेन्डम लिपि कहलाती है। यह दाएँ से बाएँ और पुन: बाएँ से दाएँ लिखी जाती है, यह लिपि अत्यंत छोटे-छोटे अभिलेखों में मिलती है, इस लिपि में प्राप्त सबसे बड़े लेख में लगभग 17 चिह्न थे।

सिन्धु घाटी सभ्यता की प्रसाशनिक व्यवस्था कैसी थी?

सिन्धु घाटी सभ्यता की प्रशासन के अन्य पहलुओं के बारे में निश्चित रूप से यह कहना कठिन है कि सिन्धु सभ्यता की राजनैतिक व्यवस्था का स्वरूप क्या था? किन्तु इस सभ्यता का सुविशद विस्तार-क्षेत्र तथा सुव्यवस्थित नगर विन्यास योजना यानि टाउन प्लानिंग के आधार पर यह कहा जा सकता है कि सिन्धु सभ्यता की राजनैतिक व्यवस्था भी सुगठित और विकसित थी।

सिन्धु घाटी सभ्यता की राजनीतिक विशेषता बताइए?

राजनीतिक संगठन के बारे में सिन्धु क्षेत्र में कोई स्पष्ट प्रमाण नहीं मिले हैं। राजभवन जैसे कोई विशाल भवन भी अवशेष के रूप में यहां नहीं मिले हैं, जिसके आधार पर राजनीतिक अध्ययन किया जा सके। किसी विशाल मंदिर और उसके प्रधान देवता की भी जानकारी नहीं हो पायी है, जिसके आधार पर यह अनुमान किया जाए कि यहां का प्रधान शासक कोई पुरोहित था।

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सिन्धु घाटी सभ्यता की प्रशासन व्यवस्था

सिन्धु घाटी सभ्यता की प्रसाशनिक व्यवस्था

सिन्धु घाटी सभ्यता की प्रशासन के अन्य पहलुओं के बारे में निश्चित रूप से यह कहना कठिन है कि सिन्धु सभ्यता की राजनैतिक व्यवस्था का स्वरूप क्या था? किन्तु इस सभ्यता का सुविशद विस्तार-क्षेत्र तथा सुव्यवस्थित नगर विन्यास योजना यानि टाउन प्लानिंग के आधार पर यह कहा जा सकता है कि सिन्धु सभ्यता की राजनैतिक व्यवस्था भी सुगठित और विकसित थी। मैके महोदय ने एक प्रकार की प्रतिनिध्यात्मक सरकार की कल्पना की है। जर्मन विद्वान् वाल्टर रूबन एवं रूसी विद्वान् वी.वी. स्टुर्ब का मानना है कि सिंधु सभ्यता का प्रशासन गुलामों पर आधारित होता था। स्टुअर्ट पिगॉट का मानना है कि हड़प्पा और मोहनजोदड़ो सिंधु सभ्यता की दो राजधानियाँ थीं और यहाँ पर संभवत: पुरोहितों का शासन था।

सिन्धु घाटी सभ्यता की राजनीतिक विशेषता 
  • राजनीतिक संगठन के बारे में सिन्धु क्षेत्र में कोई स्पष्ट प्रमाण नहीं मिले हैं। राजभवन जैसे कोई विशाल भवन भी अवशेष के रूप में यहां नहीं मिले हैं, जिसके आधार पर राजनीतिक अध्ययन किया जा सके। 
  • किसी विशाल मंदिर और उसके प्रधान देवता की भी जानकारी नहीं हो पायी है, जिसके आधार पर यह अनुमान किया जाए कि यहां का प्रधान शासक कोई पुरोहित था। 
  • अवशेष के रूप में जहां विशाल स्नानागार मिला है उसी के समीप कुछ भवनों के अवशेष भी मिले हैं। इसे कुछ लोग राजभवन की संज्ञा देते हैं लेकिन यह विचार ठीक नहीं लगता। असल में इन भवनों में मात्र एक विशाल कमरे की जानकारी होती है और एक ही विशाल कमरे के आधार पर इसे राजभवन कहना उचित प्रतीत नहीं होता।
  • भवनों का निर्माण भी यहां लगभग एक ही प्रकार का होता था। यहां पायी गयी मूर्तियों में भी एकरूपता पायी गयी है तथा लिपि का प्रचार भी एक ही तरह का था। उपर्युक्त तथ्यों के आधार पर ऐसा लगता है कि यहां एक व्यवस्थित शासन संगठन था। 
  • इस क्षेत्र में पाये गये नगरों की योजनाओं को देखकर यह कहा जा सकता है कि यहां नगरपालिका संगठन भी था जो राजनीतिक व्यवस्था का ही एक अंग है। नगरपालिका होने के कारण ही वहां गलियों तथा सड़कों की रक्षा एवं नालियों की समुचित व्यवस्वथा थी। अतएव विद्वानों का मत है कि यहां एक विशाल राजनीतिक संगठन था। 
  • ह्वीलर ने उत्खनन के आधार पर वहां की शासन व्यवस्था को मध्यवर्गीय जनतांत्रिक शासन कहा है। उसके अनुसार “चाहे कहीं से भी उपर्युक्त तथ्य ज्ञात हुआ हो, धार्मिक प्रवृत्ति की प्रमुखता तो स्वीकार करनी ही होगी। 
  • सुमेर और अक्कड़ के पुरोहित राजा के समान हड़प्पा के मालिक भी अपने नगरों पर शासन करते थे। मंदिर के मुख्य देवता के ही हाथ में सुमेर नगर का अनुशासन और धन रहता था। यहां के देवता को पुरोहित राजा कहा जाता था।” सुमेर की शासन प्रणाली को इतिहासकार हण्टर द्वारा राजतांत्रिक प्रणाली कहा गया है। 
  • सिन्धु घाटी सभ्यता में जनतांत्रिक शासन प्रणाली प्रचलित थी, इसका अनुमान सिन्धु क्षेत्र में पाये गये विशाल स्नानागार से सटे हुए भवनों के आधार पर किया जा सकता है। विद्वानों का कहना है कि यहां के नगर के व्यक्ति इस विशाल भवन में अपने प्रतिनिधियों का निर्वाचन करने के लिए एकत्र हुआ करते थे। 
  • विशेष महत्त्वपूर्ण समस्याओं पर विचार करने के लिए भी वे इस भवन में एकत्रित होते थे। वैसे यह स्पष्ट नहीं हो सका कि शासन की लगाम एक संवैधानिक राजा के हाथ में थी या जनता के प्रतिनिधियों के हाथ में शासन में विकेन्द्रीकरण जैसी व्यवस्था शायद थी।
  • सिन्धु घाटी के लोग युद्धप्रिय नहीं थे, यह प्रमाण तो उत्खनन से प्राप्त सामग्री के आधार पर ही हो चुका है। उनकी सभ्यता शान्तिप्रधान थी। खुदाई से प्राप्त अस्त्र-शस्त्र का अध्ययन करने पर पता चलता है कि ये ताम्बे एवं कांसे के बने रहते थे। ये औजार अधिक तीक्ष्ण नहीं थे।
  • सिन्धु घाटी के निवासी ऋग्वैदिक काल के समान तलवार, कवच, शिरस्त्राण आदि का प्रयोग नहीं करते थे। इन सब औजारों से ये अनभिज्ञ थे। यहां के निवासियों को शांतिमय जीवन व्यतीत करने में ज्यादा विश्वास था। फलतः कहा जा सकता है कि सिन्धु काल में शासन व्यवस्था अच्छी थी। अशान्ति एवं राजनीतिक अशांतियों से यह मुक्त था। 
  • युद्ध प्रिय नहीं रहने के कारण ही अगर बाहर की जातियों ने इन पर आक्रमण करके इन्हें परास्त कर दिया हो तो कोई आश्चर्य नहीं।
 सिन्धु घाटी सभ्यता की लिपि
  • 1853 ई. में सर्वप्रथम सिंधु लिपि का साक्ष्य मिला, 1923 ई. से यह लिपि संपूर्ण रूप में प्रकाश में आई।
  • इस लिपि में लगभग 64 मूल चिह्न हैं एवं 250-400 तक अक्षर हैं जो सेलखड़ी की आयताकार मुहरों एवं तांबे की गुटिकाओं आदि पर मिलते हैं।
  • लिपि चित्राक्षर थी, यह लिपि बाउसट्रोफेन्डम लिपि कहलाती है।
  • यह दाएँ से बाएँ और पुन: बाएँ से दाएँ लिखी जाती है, यह लिपि अत्यंत छोटे-छोटे अभिलेखों में मिलती है, इस लिपि में प्राप्त सबसे बड़े लेख में लगभग 17 चिह्न थे।
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सिन्धु घाटी सभ्यता की लिपि कैसी थी?

इस लिपि में लगभग 64 मूल चिह्न हैं एवं 250-400 तक अक्षर हैं जो सेलखड़ी की आयताकार मुहरों एवं तांबे की गुटिकाओं आदि पर मिलते हैं। लिपि चित्राक्षर थी, यह लिपि बाउसट्रोफेन्डम लिपि कहलाती है। यह दाएँ से बाएँ और पुन: बाएँ से दाएँ लिखी जाती है, यह लिपि अत्यंत छोटे-छोटे अभिलेखों में मिलती है, इस लिपि में प्राप्त सबसे बड़े लेख में लगभग 17 चिह्न थे।

सिन्धु घाटी सभ्यता की प्रसाशनिक व्यवस्था कैसी थी?

सिन्धु घाटी सभ्यता की प्रशासन के अन्य पहलुओं के बारे में निश्चित रूप से यह कहना कठिन है कि सिन्धु सभ्यता की राजनैतिक व्यवस्था का स्वरूप क्या था? किन्तु इस सभ्यता का सुविशद विस्तार-क्षेत्र तथा सुव्यवस्थित नगर विन्यास योजना यानि टाउन प्लानिंग के आधार पर यह कहा जा सकता है कि सिन्धु सभ्यता की राजनैतिक व्यवस्था भी सुगठित और विकसित थी।

सिन्धु घाटी सभ्यता की राजनीतिक विशेषता बताइए?

राजनीतिक संगठन के बारे में सिन्धु क्षेत्र में कोई स्पष्ट प्रमाण नहीं मिले हैं। राजभवन जैसे कोई विशाल भवन भी अवशेष के रूप में यहां नहीं मिले हैं, जिसके आधार पर राजनीतिक अध्ययन किया जा सके। किसी विशाल मंदिर और उसके प्रधान देवता की भी जानकारी नहीं हो पायी है, जिसके आधार पर यह अनुमान किया जाए कि यहां का प्रधान शासक कोई पुरोहित था।

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