शिक्षा की राष्ट्रीय नीति का मुख्य केन्द्र व उद्देश्य शैक्षणिक विकास एवं शिक्षा के सभी स्तरों पर पिछड़ी जातियों/पिछड़े वर्गों के लोगों व गैर पिछड़ी जातियाँ व गैर पिछड़े वर्गों के लोगों में समानता लाना है ।
शिक्षा की राष्ट्रीय नीति1986 के लक्ष्य एवं उद्देश्य
- कक्षा 1 से 5 तक पिछड़ी जाति/पिछड़े वर्गों के बच्चों का शत-प्रतिशत नामांकन एवं शिक्षा की प्राथमिक अवस्था की संतोष्ज्ञजनक समाप्ति तक उन्हें स्कूल में टिकाए रखना ।
- 11-14 वर्ष आयु के कम से कम 75ः बच्चों को स्कूल में रोका जाना चाहिए । इसके लिए निम्नलिखित सुझाव दिए गए हैं:- पिछड़ी जाति/पिछड़े वर्ग के लोगों के बच्चों के लिए पूर्व मैट्रिक छात्रावृतियाँ ।
- पिछड़ी जाति/पिछड़े वर्ग/ओबीसी के लिए हाॅस्टल सुविधाओं का प्रावधान ।
- पिछड़ी जाति/पिछड़े वर्ग की बस्तियों एवं कबीलों के गाँवों में स्कूल इमारतों बाल-बाडि़याँ एवं प्रौढ़ शिक्षा केन्द्रों को बनाना ।
- पिछड़े वर्गों के विषय में पाठ्यक्रम को विषय व मूल्य उन्मुखी बनाना ।
- घुमन्तु, अल्प घुमन्तू एवं सूची से बाहर रखे जाने वाले समुदायों की विशेष आवश्यकताओं को प्राथमिकता दी जायेगी ।
संबंधित चुनौतियाँ
- महँगी शिक्षा: नई शिक्षा नीति में विदेशी विश्वविद्यालयों के प्रवेश का मार्ग प्रशस्त किया गया है, विभिन्न शिक्षाविदों का मानना है कि विदेशी विश्वविद्यालयों के प्रवेश से भारतीय शिक्षण व्यवस्था महँगी होने की संभावना है। परिणामस्वरूप निम्न वर्ग के छात्रों के लिये उच्च शिक्षा प्राप्त करना चुनौतीपूर्ण हो जाएगा।
- शिक्षकों का पलायन: विदेशी विश्वविद्यालयों के प्रवेश से भारत के दक्ष शिक्षक भी इन विश्वविद्यालयों में अध्यापन हेतु पलायन कर सकते हैं।
- शिक्षा का संस्कृतिकरण: दक्षिण भारतीय राज्यों का यह आरोप है कि ‘त्रि-भाषा’ सूत्र से सरकार शिक्षा का संस्कृतिकरण करने का प्रयास कर रही है।
- संसद की अवहेलना: विपक्ष का आरोप है कि भारतीय शिक्षा की दशा व दिशा तय करने वाली इस नीति को अनुमति देने में संसद की प्रक्रिया का उल्लंघन किया गया। पूर्व में राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 1986 भी संसद के द्वारा लागू की गई थी।
- मानव संसाधन का अभाव: वर्तमान में प्रारंभिक शिक्षा के क्षेत्र में कुशल शिक्षकों का अभाव है, ऐसे में राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 2020 के तहत प्रारंभिक शिक्षा हेतु की गई व्यवस्था के क्रियान्वयन में व्यावहारिक समस्याएँ हैं।