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ऊर्जा प्रबंधन क्या है? मुद्दे, चुनौतियाँ तथा हम ऊर्जा का प्रबंधन कैसे कर सकते हैं ..

देश में परंपरागत ऊर्जा संसाधन सीमित हैं तथा गैर परम्परागत ऊर्जा के लिये तकनीक का विकास अभी उतना नहीं हो पाया है, जितना होना चाहिये। देश में ऊर्जा की मांग दिनों-दिन बढ़ रही है।

ऊर्जा प्रबंधन

ऊर्जा प्रबंधन का आशय उस व्यवस्था से है जिससे देश में उपलब्ध ऊर्जा तथा ऊर्जा की मांग के बीच संतुलन स्थापित किया जाए। देश में परंपरागत ऊर्जा संसाधन सीमित हैं तथा गैर परम्परागत ऊर्जा के लिये तकनीक का विकास अभी उतना नहीं हो पाया है, जितना होना चाहिये। देश में ऊर्जा की मांग दिनों-दिन बढ़ रही है।

अतः हमें चाहिये की ऊर्जा का समुचित प्रबंधन करके इसकी पहुँच सभी तक सुनिश्चित किया जाए। ऊर्जा प्रबंधन हमारी जीविका तथा आने वाली पीढ़ी की जीविका के लिए अति आवश्यक है।

मुद्दे और चुनौतियाँ

1. जनसंख्या वृद्धि 

जनसंख्या में तीव्र वृद्धि तथा लोगों की आय बढ़ने के कारण ऊर्जा की मांग बढ़ी है, विशेषकर परंपरागत ऊर्जा स्रोत की मांग। भारत में ऊर्जा की खपत लगभग 12 प्रतिशत से अधिक प्रतिवर्ष की दर से बढ़ रही है। ऊर्जा की कमी के कारण घरों में बिजली आपूर्ति की कमी तथा कारखानों का बंद होना आदि समस्याएँ सामान्य बात हो गई हैं, परिणामस्वरूप कृषि उत्पादन एवं औद्योगिक उत्पादन घट गया है।

2. कोयले से संबंधित समस्याएं

भारत में कोयले के भंडार का वितरण भी असामान्य है, जिससे उसका परिवहन खर्च काफी अधिक है जिससे बिजली महंगी हो जाती है। ऊर्जा के क्षेत्र का प्रबंधन तथा बिजली घरों की कम दक्षता, मजदूरों की समस्या, बिजली की चोरी के साथ बिजली की बर्बादी ने भी देश में ऊर्जा की समस्या को अधिक गहरा कर दिया है।

3. तेल और गैस आयात से संबंधित समस्याएँ

गैस आयात की मात्रा भारत में तेजी से बढ़ रही है, वह भी तब जबकि लाभप्रद के जी-डी 6 बेसिन से उत्पादन बढ़ता दिखाई दे रहा है। हमारे कच्चे तेल आयात के देयक भी बढ़ते ही चले जा रहे हैं।

4. घरेलू क्षमताओं का अपूर्ण दोहन

भारत विश्व की जनसंख्या के लगभग 17% भाग के प्रतिनिधित्व करता है, लेकिन देश का ज्ञात हाइड्रोकार्बन का संरक्षित भंडार कुल वैश्विक भंडार का महज 0.6 प्रतिशत है। वहीं भारत की ऊर्जा खपत वैश्विक खपत की एक चौथाई है। साथ ही देश की घरेलू क्षमताओं का पूर्णतया उपयोग नहीं किया जा रहा है। उदाहरणस्वरूप, देश की तलछटी घाटियों का लगभग 80% भाग का या तो अवशोषण कम हुआ है या नहीं हुआ है।

5. मांग आपूर्ति अंतर

ऊर्जा क्षेत्र को फिलहाल आवंटित किए गए संसाधन, मोंग और आपूर्ति का अंतर कम करने के लिए पर्याप्त नहीं हैं। इसके परिणामस्वरूप आयात पर हमारी निर्भरता बढ़ती जा रही है। आगे चलकर मांग-आपूर्ति की यह खाई और अधिक गहराएगी, भारत बिजली ऊर्जा संकट के दौर से गुजर रहा है। केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण के अनुसार देश में मांग के सापेक्ष 11000 मेगावाट से भी ज्यादा बिजली की कमी है। देश के कई तापीय बिजली घरों को पर्याप्त कोयला नहीं मिल पा रहा है।

6. स्वच्छ एवं सस्ती प्रौद्योगिकी उपलब्ध कराना

भारत एक दुर्जेय चुनौती का सामना कर रहा है, क्योंकि यह ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले एक बड़े वर्ग के लिये खाना पकाने के ईंधन को स्थानापन्न करने के लिये ऊर्जा के एक स्वच्छ एवं सस्ते स्रोत की तलाश में है।

7. नीतिगत और नियामक बाधाएँ

हाइड्रोकार्बन और कोयला क्षेत्र में मूल्य निर्धारण गहरी चिंता का विषय है, क्योंकि घरेलू कीमतें अक्सर वैश्विक रूझानों से असंबद्ध होती हैं। नियामक अनिश्चितताएँ अक्सर तेल और गैस क्षेत्र में निवेश राह में बाधा बनती हैं।

हम ऊर्जा का प्रबंधन इसप्रकार कर सकते हैं-

  • रिहायशी आवास के लिये या फिर वाणिज्यिक प्रयोजन के लिये जो भी नई सोसायटियां आ रही हैं, उनमें अनिवार्य रूप से सौर हीटिंग सिस्टम होना चाहिये तथा हीटिंग की आवश्यकता न होने पर उन्हीं सौर पैनलों को प्रकाश व्यवस्था हेतु बिजली बनाने हेतु इस्तेमाल किया जा सकता है।
  • आरंभ में ऐसा बैकअप के रूप में किया जा सकता है।
  • शहरों में सभी स्ट्रीट लाईटें सौर ऊर्जा से जलनी चाहिये, भले ही शुरूआत में यह थोड़ा महंगा हो सकता है। इसके जरिए हम पारंपरिक साधनों द्वारा उत्पन्न की गई काफी बिजली बचा सकते हैं। जैसे-ग्रीन बिल्डिंग।
  • सरकार को सरकारी सेक्टर के साथ-साथ निजी सेक्टर के लिये भी इसी प्रकार के निर्माण को प्रोत्साहन देना चाहिये।
  • सरकार को कुछ पहल करने की जरूरत है, जैसे- घरेलू ऊर्जा क्षेत्र क्षमताओं को बढ़ाने तथा भारत को आत्मनिर्भर बनाने के लक्ष्य के साथ तेल, गैस, कोयला, लीथियम, जलविद्युत, परमाणु और पवन, जैव ईंधन, इलेक्ट्रिक वाहन और अन्य नवीकरणीय स्रोतों जैसे सभी ऊर्जा संसाधनों के लिये स्वतंत्र रूप से एक ऊर्जा सुरक्षा योजना बनाई जानी चाहिये।
  • भारत की संस्थापित ऊर्जा क्षमता का एक बड़ा हिस्सा सरकारी नियंत्रण में है और केवल एक छोटा सा हिस्सा ही निजी सेक्टर के स्वामित्व में है। अतः निजी सेक्टर की हिस्सेदारी को और बढ़ाना चाहिये।

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