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राज्य का अर्थ, परिभाषा, उदय एवं विकास एवं अवधारणा

राज्य उस संगठित इकाई को कहा जाता हैं जो एक शासन या सरकार के अधीन हो। राज्य संप्रभुता सम्पन्न हो सकते हैं। तथा राज्य किसी शासकीय इकाई या उसके किसी प्रभाग को भी ‘राज्य’ कहते हैं, जैसे भारत के प्रदेशों को भी ‘राज्य’ कहते हैं।

राज्य आधुनिक विश्व की अनिवार्य सच्चाई है। दुनिया के अधिकांश लोग किसी-न-किसी राज्य के नागरिक हैं। जो लोग किसी राज्य के नागरिक नहीं हैं, उनके लिए वर्तमान विश्व व्यवस्था में अपना अस्तित्व बचाये रखना काफ़ी कठिन है।

वास्तव में, ‘राज्य’ शब्द का उपयोग तीन अलग-अलग तरीके से किया जा सकता है। पहला, इसे एक ऐतिहासिक सत्ता माना जा सकता है; दूसरा इसे एक दार्शनिक विचार अर्थात् मानवीय समाज के स्थाई रूप के तौर पर देखा जा सकता है; और तीसरा, इसे एक आधुनिक परिघटना के रूप में देखा जा सकता है। यह आवश्यक नहीं है कि इन सभी अर्थों का एक-दूसरे से टकराव ही हो। असल में, इनके बीच का अंतर सावधानी से समझने की आवश्यकता है।

वैचारिक स्तर पर राज्य को मार्क्सवाद, नारीवाद और अराजकतावाद आदि से चुनौती मिली है। लेकिन अभी राज्य से परे किसी अन्य मज़बूत इकाई की खोज नहीं हो पायी है। राज्य अभी भी प्रासंगिक है और दिनों-दिन मज़बूत होता जा रहा है।

विश्व राज्य का मानचित्र 

rajya kya hai

 

राज्य का अर्थ

राजनीति विज्ञान के अध्ययन का मुख्य विषय ‘राज्य’ है। राजनीति शाश्त्र का आरंभ और अंत राज्य के साथ ही होता है। ‘राज्य’ शब्द को अंग्रेजी में State कहा जाता है और ‘State’ शब्द लैटिन भाषा केे Status से निकला है। लैटिन भाषा में, ‘स्टेटस’ शब्द का अर्थ दूसरों की तुलना में उच्च स्तर है। शब्दों के अर्थ के पख से राज्य उस संगठन का नाम है जिसका रूतबा या स्थिति अन्य संगठनों और लोगों की रूतबे या स्थिति से ऊचा है। राज शब्द का पहली बार प्रयोग इटली के महान विद्वान, Mechavalli ने किया था।

‘राज्य’ शब्द का अनुचित प्रयोग – सामान्य बोली जाने वाली भाषा में, राज्य शब्द का प्रयोग ढीलेपन से किया जाता है। उदाहरण के लिए, संघीय सरकार की इकाइयाँ, हम राज्य को हम राज्य कहते हैं, जैसे भारत में पंजाब, राजस्थान, पश्चिमी बंगाल छत्तीसगढ़ आदि और संयुक्त राज्य अमेरिका (यूएसए) में न्यूयॉर्क, कैलिफोर्निया को राज्य कहते हैं, इसी तरह, कभी-कभी सरकार के स्थान पर इस शब्द का उपयोग किया जाता है जैसा कि सरकार की ओर से प्राप्त सहायता को राज्य सहायता  कह देते है और सरकारी कॉलेज को राज्य का कॉलेज कह दिया जाता है।

  • कौटिल्य ने राज्य के सात अंग बताये हैं और ये उनका “सप्ताङ्ग सिद्धान्त ” कहलाता है – राजा , आमात्य या मंत्री , पुर या दुर्ग , कोष , दण्ड, मित्र । राज्य का क्षेत्रफल बड़ा होता है। अर्थात बड़ा भूभाग से घिरा क्षेत्र।
  • भारतीय संविधान में राज्य की परिभाषा (अनुच्छेद 12)
  • भारतीय संविधान के भाग 3 में, जब तक कि संदर्भ से अन्यथा अपेक्षित न हो, “राज्य” के अंतर्गत भारत की सरकार और संसद तथा राज्यों में से प्रत्येक राज्य की सरकार और विधान- मंडल तथा भारत के राज्यक्षेत्र के भीतर या भारत सरकार के नियंत्रण के अधीन सभी स्थानीय और अन्य प्राधिकारी हैं ।
राज्य की परिभाषा

राज्य एक विश्व व्यापक संगठन है। दुनिया की लगभग पूरी आबादी विभिन्न क्षेत्रों के संगठित राज्यों में रहती है। राज ही राजनीति शाश्त्र का मुख्य विषय वस्तु है। विभिन्न लेखकों ने “राज्य” शब्द की परिभाषा अपनी विचारधारा के अनुसार की है। राज्य की कुछ महत्वपूर्ण परिभाषाएँ इस प्रकार है।

  • हालैंड (Holland) अनुसार – “राज्य मनुष्य के ऐसे समूह का नाम है जो एक निश्चित क्षेत्र में रहते है और जिसमें बहु-गिणती के आधार पर एक वर्ग अपने विरोधियों पर हकूमत करता है।
  • हॉलैंड की परिभाषा में राज्य के कुछ आवश्यक तत्व भी हैं। उनकी परिभाषा में राज्य की आंतरिक संप्रभुता का वर्णन है, लेकिन राज्य की बाहरी संप्रभुता का कोई वर्णन नहीं है। मिस्टर गिलक्राईसट (Gillchrist) और डॉ गार्नर (Garner) की परिभाषाओं को सबसे अच्छा माना जाता है क्योंकि उनमें राज्य के सभी आवश्यक तत्व मौजूद हैं।
  • गिलक्रिस्ट (Gillchrist) के अनुसार – “जहां कुछ लोग एक निश्चित क्षेत्र में एक संगठित सरकार के अधीन है और सरकार के आंतरिक मामलों में उनकी संप्रभुता को प्रगट करने का साधन है और बाहरी मामलों में अन्य सरकारों से स्वतंत्र है तो वह राज्य होता है।
  • गार्नर (Garner) के अनुसार – “राज्य कुछ या अधिक लोगों का एक ऐसा समूह है, जो स्थायी रूप से पृथ्वी के निश्चित हिस्से में बसे हैं, बाहरी नियंत्रण से पूरी तरह से या पूरी तरह से स्वतंत्र हैं और जिसकी एक ऐसी संगठित सरकार है जिसकी आग्याा का पालन वहाँ के लोगो स्वाभाविक रूप करते है।
  • लास्की (Laski) के अनुसार – “राज्य एक विशेष प्रदेश में रहने वाला समाज है, जो समाज और प्रजा में विभाजित है और अपने क्षेत्र में आने वाली या सभी समस्याओं पर प्रभुत्व रखता है।
  • गेटेल (Gattell) के अनुसार – राज्य उन व्यक्तियों का संगठन है जो स्थायी तौर पर निश्चित क्षेत्र में रहते है। कानूनी दृष्टिकोण से विदेशी नियंत्रण से स्वतंत्र हैं, उनकी अपनी संगठित सरकार होती है, जो अपने अधिकार क्षेत्र में रहने वाले सभी लोगों और समूहों के लिए कानून बनाते हैं और उन्हें लागू करते हैं।
  • बलंशली (Bluntschli) के अनुसार – “एक निश्चित प्रदेश पर राजनीतिक दृष्टिकोण से गठित लोगों को ही राज्य कहा जाता है।
  • वुडरोविल्सन (Woodrow Wilson) के अनुसार – “एक निश्चित क्षेत्र के अंदर कानून द्वारा संगठित लोगों को राज्य कहा जाता है।
  • बरगस (Burges) के शब्दों में – राज्य मानव जाति के एक हिस्से का एक विशेष हिस्सा है जिसे एक संगठित इकाई के रूप में देखा जाता है।
  • संयुक्त राज्य अमेरिका (USA) – के सर्वोच्च न्यायालय ने अपने एक निर्णय में कहा था कि “राज्य एक निश्चित जमीन पर रहने वाले राजनीतिक समूह का नाम है, जिसकी सीमा एक लिखित संविधान द्वारा तय की गई है और जिसको शाश्त लोगों की प्रवाणगी के साथ स्थापित किया गया है।
राज्य का उदय एवं विकास

जीवन के महत्व के प्रति सजग राष्ट्र-राज्य का विकास मानव सभ्यता की बहुत लंबी इतिहास का परिणाम है इनकी निम्नलिखित अवस्थाएं स्वीकार की जाती है।

  • कबीला राज्य– यह राज्य का सबसे पुराना रूप है जिसमें छोटे छोटे काबिले अपने अपने सरदार की शासन में रहते थे यह कबीले स्वजन समूह पर आधारित है समूहों पर आधारित थे कुछ कबीले खानाबदोश थे जिन्हें राज्य मानना ठीक नहीं होगा
  • प्राच्य साम्राज्य– यह वही स्थिति है जब नीलगंगा पीली नदी आदि की उर्वर घाटियों में प्रारंभिक सभ्यता का विकास हुआ और शहर बन गए इन जगहों पर भिन्न-भिन्न सुजन समूहों के लोग आकर मिलजुल कर रहने लगे प्राचीन मिस्र बेबीलोन सीरिया भारत और चीन के साम्राज्य इसी श्रेणी में आते हैं।
  • यूनानी नगर– राज्य जब ईजियन और भूमध्य सागर की ओर सभ्यता का विस्तार हुआ तब यूरोप प्रायद्वीप में भी राज्य का उदय हुआ। इस तरह यूनानी नगर राज्य अस्तित्व में आए क्योंकि वहां पर्वतों, घने जंगलों और समुद्र ने भूमि को अनेक घाटियों और द्वीपो में बांट दिया था। जिन की रक्षा करना सरल था परंतु समुद्री मार्ग से आपस में जुड़े हुए थे यहां छोड़ चुके नगर राज्य बस गए जिससे वहां निरंकुश निरंकुश शासक आदत में नहीं आए बल्कि यहां के नागरिक मिलजुलकर शासन चलाते थे।
  • रोमन साम्राज्य– जब आंतरिक कला और बाय आक्रमणों के कारण यूनानी नगर राज्य नष्ट हो गए। तब यूरोप में रोम सारी सभ्यता का केंद्र बना और रोमन साम्राज्य विकसित हुआ। विभिन्न जातियों धर्म और प्रथाओं को मानने वाले लोगों पर शासन करने के लिए विस्तृत कानूनी प्रणाली विकसित की गई। साम्राज्य की शक्ति पर धर्म की छाप लगा दी गई। उनकी अदम्य शक्ति के नीचे व्यक्तियों की स्वतंत्रता दबकर रह गई। अंततः यह शक्तिशाली साम्राज्य अपने ही भार को ना संभाल पाने के कारण छिन्न भिन्न हो गया।
  • सामन्ती राज्य– रोमन साम्राज्य के पतन के बाद केंद्रीय सत्ता लुप्त हो गई पांचवी शताब्दी ईस्वी से मध्यकाल का आरंभ हुआ जिसमें सारी शक्ति बड़े बड़े जमीदारों जागीरदारों और सामान सरदारों के हाथों में आ गई वैसे छोटे-छोटे राज्यों में राजा जिसकी सर्वोच्च मानी जाती थी परंतु शक्ति सामंत सरदारों के हाथ में ही रही।
  • आधुनिक राष्ट्र राज्य– 15वीं और 16वीं शताब्दी से यूरोप में राष्ट्रवाद का उदय हुआ तब जमीदारों और धर्म अधिकारियों की शक्ति क्षीण हो चुकी थी और नए आर्थिक संबंधों के अलावा लोग राष्ट्रीय भाषा और संस्कृति की एकता तथा देश की प्राकृतिक सीमाओं इत्यादि के विचार से अस्थाई समूह के रूप में जुड़ गए थे। इस तरह पहले फ्रांस स्पेन इंग्लैंड स्विट्जरलैंड नीदरलैंड रूस इटली और जर्मनी में राष्ट्र राज्यों का विकास हुआ।
राज्य की अवधारणा
  • मैकियावेली के अनुसार गणराज्य में प्रिंस जैसी ख़ूबियों को सामूहिक रूप से विकसित करने की ज़रूरत है, और ये ख़ूबियाँ मित्रता और परोपकार जैसे पारम्परिक सद्गुणों के आधार पर नहीं विकसित हो सकतीं। गणराज्य में हर व्यक्ति नाम और नामा हासिल करने के मकसद से दूसरे के साथ खुले मंच पर सहयोग करेगा। मैकियावेली मानते थे कि राजशाही के मुकाबले गणराज्य अधिक दक्षता से काम कर सकेगा, उसमें प्रतिरक्षा की अधिक क्षमता होगी और वह युद्ध के द्वारा अपनी सीमाओं का अधिक कुशलता से विस्तार कर सकेगा।
  • हॉब्स के अनुसार वह परोपकार के लिए  भी सक्षम है लेकिन, अगर संसाधन कम हुए या किसी किस्म का भय हुआ, तो मनुष्य आत्मकेंद्रित और तात्कालिक आग्रहों के अधीन हो कर परोपकार को मुल्तवी कर देगा। ऐसी स्थिति में उसे अपने ऊपर किसी सरकार का नियंत्रण चाहिए, वरना वह अपने सुख को अधिकतम और दुःख को न्यूनतम करने का अबाध प्रयास करते हुए सभ्यता और संस्कृति से हीन प्राकृतिक अवस्था में पहुँच जायेगा। जो कुछ उसके पास है, उसे खोने के डर से मनुष्य शक्ति के एक मुकाम से दूसरे मुकाम तक पहुँचने की कोशिशों में लगा रहेगा जिसका अंत केवल उसकी मृत्यु से ही हो सकेगा।
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