छत्तीसगढ़ का लोक खेल
छत्तीसगढ़ी बाल खेलों –
अटकन-बटकन
- लोकप्रिय सामूहिक खेल है। इस खेल में बच्चे आंगन परछी में बैठकर, गोलाकार घेरा बनाते है।
- घेरा बनाने के बाद जमीन में हाथों के पंजे रख देते है। एक लड़का अगुवा के रुप में अपने दाहिने हाथ की तर्जनी उन उल्टे पंजों पर बारी-बारी से छुआता है।
- गीत की अंतिम अंगुली जिसकी हथेली पर समाप्त होता वह अपनी हथेली सीधीकर लेता है। इस क्रम में जब सबकी हथेली सीधे हो जाते है, तो अंतिम बच्चा गीत को आगे बढ़ाता है।
- इस गीत के बाद एक दूसरे के कान पकड़कर गीत गाते है।
फुगड़ी
- बालिकाओं द्वारा खेला जाने वाला फुगड़ी लोकप्रिय खेल है।
- चार, छः लड़कियां इकट्ठा होकर, ऊंखरु बैठकर बारी-बारी से लोच के साथ पैर को पंजों के द्वारा आगे-पीछे चलाती है।
- थककर या सांस भरने से जिस खिलाड़ी के पांव चलने रुक जाता है वह हट जाती है।
लंगड़ी
- यह वृद्धि चातुर्थ और चालाकी का खेल है।
- यह छू छुओवल की भांति खेला जाता है।
- इसमें खिलाड़ी एंडी मोड़कर बैठ जाते है और हथेली घुटनों पर रख लेते है।
- जो बच्चा हाथ रखने में पीछे होता है बीच में उठकर कहता है –
खुडुवा (कबड्डी)
- खुड़वा पाली दर पाली कबड्डी की भांति खेला जाने वाला खेल है।
- दल बनाने के इसके नियम कबड्डी से भिन्न है।
- दो खिलाड़ी अगुवा बन जाते है। शेष खिलाड़ी जोड़ी में गुप्त नाम धर कर अगुवा खिलाड़ियों के पास जाते है –
- चटक जा कहने पर वे अपना गुप्त नाम बताते है। नाम चयन के आधार पर दल बन जाता है।
- इसमें निर्णायक की भूमिका नहीं होती, सामूहिक निर्णय लिया जाता है।
डांडी पौहा
- डांडी पौहा गोल घेरे में खेला जाने वाला स्पर्द्धात्मक खेल है।
- गली में या मैदान में लकड़ी से गोल घेरा बना दिया जाता है।
- खिलाड़ी दल गोल घेरे के भीतर रहते है। एक खिलाड़ी गोले से बाहर रहता है।
- खिलाड़ियों के बीच लय बद्ध गीत होता है। गीत की समाप्ति पर बाहर की खिलाड़ी भीतर के खिलाड़ी किसी लकड़े के नाम लेकर पुकारता है। नाम बोलते ही शेष गोल घेरे से बाहर आ जाते है और संकेत के साथ बाहर और भीतर के खिलाड़ी एक दुसरे को अपनी ओर करने के लिए बल लगाते है, जो खींचने में सफल होता वह जीतता है। अंतिम क्रम तक यह स्पर्द्धा चलता है।